रक्षाबंधन के दो दिन पहले से ही बरसात हो रही थी। इसके साथ नेट भी जवाब दे गया। धीमें-धीमें सांस लेने लगा। मेल बाक्स भी नहीं खुलता था। कम्पयुटर भी इसका साथ देने लगा। सोचा कि पीसी में कोई शत्रुकीट षड़यंत्र पूर्वक प्रवेश कर गया है। इसने यहाँ तक बाधित कर दिया कि चैट बाक्स भी जवाब दे गया। रक्षाबंधन पर मित्रों को शुभकामना संदेश भी नहीं दे सका। कम्पयुटर को कई बार स्केन किया, सभी फ़ालतु फ़ाईलों को डी लिट की उपाधि बख्शी। सिस्टम रजिस्ट्री क्लीन एवं फ़िक्स की। एक फ़ाईल में छिपे तीन शत्रुकीट मिले, जिनकी छित्तर परेड की। लेकिन हासिल कुछ नहीं आया। समस्या ज्यों की त्यों खड़ी रही। नेट और कम्पयुटर में ताल-मेल नहीं बैठा। अब हारकर इसकी धुलाई सफ़ाई का विचार बनाया और छोड़ दिया।
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हमारी छोटी रेल |
राखी के दिन सुबह ही ट्रेन पकड़ कर बहन के यहाँ जाने का कार्यक्रम बना लिया। श्रीमती जी ने भी काम पकड़ा दिया, उनकी राखियाँ भी
भाटापारा स्टेशन में पहुंचानी थी, रायपुर स्टेशन पर यात्रियों की भीड़ देख कर लगा कि ट्रेन में खड़े होने की जगह भी नहीं मिलने वाली। रक्षाबंधन को यात्रियों की भीड़ बढ जाती है। छत्तीसगढ एक्सप्रेस प्लेटफ़ार्म पर देखते ही लोग पटरियों के उस पार भी खड़े हो गए, बैक डोर से एन्ट्री करने के लिए। बैक डोर से एन्ट्री करने वालों को सीट मिल ही जाती है। लेकिन हम सही रास्ते से ही ट्रेन में चढने के लिए कमर कस चुके थे। संसद में बैक डोर (राज्य सभा) से एन्ट्री करने वाले प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंच जाते हैं और फ़्रंट डोर (लोक सभा) से एन्ट्री करने वालों का नम्बर ही नहीं लगता।
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बिलासपुर में अंग्रजी पढने-लिखने वाली पगली |
ट्रेन आते ही थोड़ी मशक्कत के बाद प्रवेश मिल गया, बालकनी की सीट मिल गयी, रौब काम आ गया। ट्रेन सरकने लगी, मुझे बिलासपुर तक ही जाना था। वहाँ से आगे की यात्रा कार से करनी थी। सभी जगह फ़ोन लगा कर अपने आने की सूचना दे दी। भाटापारा में सालिगराम जी स्टेशन आ चुके थे, उन्हे खिड़की से ही राखियाँ दी, आगे चल पड़े। बिलासपुर पहुंचते साढे बारह बज चुके थे। मैने चीफ़ लेबर कमिश्नर मीणा साहब को फ़ोन पर आने की सूचना दी। थोड़ी देर बाद बहनोई साहब पहुंच चुके थे। मीणा साहब से मिले कई दिन हो गए थे। उनसे मिल कर हम कटघोरा चल पड़े।
अरविंद झा जी गाँव गए थे और
श्याम कोरी जी का नम्बर घर पर भूल आया था, अन्यथा राम राम तो हो ही जाती।
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उमड़-घुमड़ बरसे बदरा |
रतनपुर के पास बरसात शुरु हो चुकी थी। इस मार्ग पर कोयला और स्लेग के भारी वाहन (कैप्शुल) चलते हैं। पाली के पास तो सड़क ही गायब हो चुकी है। पता चला की भारी बरसात का परिणाम है। पाली से कभी चतुरगढ जाने का मन है, अबकी बार नवरात्रि में जाने का प्लान बनाया है। पाली का
प्राचीन शिवमंदिर प्रसिद्ध है। बरसों के बाद रास्ते में फ़ुट दिखाई दिए, इन्हे हरियाणा में "हैजा" नाम से संबोधित किया जाता है। क्योंकि गंदे नाले या नाली में उगे फ़ुट खाने से टट्टी-उल्टी होती है और हैजा हो जाता है। इसकी खुश्बु खरबूजे जैसी ही होती है, पर मीठे होने की बजाए थोड़ी सी खंटास लिए होते हैं। हमने "हैजा" खरीद लिया, घर पहुंचने पर इसका ही इस्तेमाल पहले करने की सोची। हैजा खाने के बाद भी हमें हैजा नहीं हुआ। कटघोरा पहुंचने पर देखा कि वहाँ गड्ढों में सड़क ही नहीं दिखाई दे रही। बरसात का असर कुछ अधिक ही हुआ।
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करील-बास्टा |
इस इलाके में बांस की करील चोरी छुपे मिलती हैं, करील की सब्जी खाने का इरादा बनाया। लेकिन बहन को करील की सब्जी बनानी नहीं आती, उसने करील मंगा दिया, अब समस्या हो गयी सब्जी बनाने की। बस्तर में इसे बास्टा नाम से जानते हैं।
अली सा को फ़ोन लगाया, रैसिपी के लिए, उन्होने अपने एक सहायक का नम्बर दिया और उनसे मैने सब्जी की रैसिपी पूछी। उसने दाल के साथ बनाना बताया। मैने करील की सब्जी खाने का इरादा बदल दिया। तभी
संगीता जी का ध्यान आया, तो उन्हे फ़ोन लगा कर पूछा। संगीता जी से सही रैपिसी मिली मन माफ़िक। तब तक करील किसी और को दे दिया गया था। मेरी करील की सब्जी खाने की इच्छा धरी की धरी रह गयी। अब फ़िर किसी दिन आजमा कर देखेगें, जायका इंडिया का।
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कोरबा से वापसी |
रात भर बरसात होते रही, वापसी कोरबा से करने का विचार बनाया। 11 बजे कोरबा से छत्तीसगढ एक्सप्रेस बिलासपुर तक पैसेंजर बनकर चलती है। इसका बिलासपुर पहुंचने का समय 1/35 बजे का है, फ़िर वहाँ से 1/45 को झारसुगड़ा-गोंदिया पैसेंजर चलती है जो रायपुर पहुंचाती है। बिलासपुर पहुंच कर दुसरे प्लेटफ़ार्म पर पहुंचा तो ट्रेन खड़ी थी। डिब्बे में सीट मिल गयी, लेकिन ट्रेन एक घंटे खड़ी रही, जिस ट्रेन से आया था पहले वही गयी। इंटरनेट से टाईम देख कर जाने के चक्कर में खड़ी गाड़ी में बैठे रहे। अब विचार बनाया कि बिल्हा स्टेशन में उतरा जाए। बिल्हा स्टेशन बिलासपुर से 3 रुपए की दुरी पर है। बिल्हा में
भाई साहब के पास दो घंटे बिता कर रात 10 बजे घर पहुंचा। पुरे दो दिन की बरसाती यात्रा रही। अम्बिकापुर तक जाने का इरादा था लेकिन अगले दिन 15 अगस्त होने के कारण वापस आना पड़ा।
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15 अगस्त के कार्यक्रम में |
15 अगस्त को सुबह स्कूल में झंडा फ़हराने के बाद अन्य कई जगहों के कार्यक्रमों में भी शरीक होना पड़ता है। कन्या शाला के कार्यक्रम में झंडा उत्तोलन करने के लिए
अशोक भैया पहुंच चुके थे। समाचार मिला कि मुख्यमंत्री ने 9 नए जिलों की घोषणा कर दी है। हमारे रायपुर जिले के कई टुकड़े हो गए, महासमुंद, गरियाबंद, बलौदाबाजार, तीन जिले बन गए। अब रायपुर जिला 4 ब्लाकों में ही सिमट कर रह गया। समाचार बढिया था, छोटे जिलों में प्रशासनिक चुस्ती बनी रहती है। विकास के काम भी तेजी से होते हैं। यहाँ के कार्यक्रम को निपटाने के बाद घर पहुंच कर कम्पयुटर की तरफ़ ध्यान दिया। 4 दिनों से आराम कर रहा था। प्रयास के पश्चात भी हालात वही बने रहे। थक हार कर छोड दिया।
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मोटे होने का ईलाज |
16 तारीख को सुबह उठने के बाद दिमाग में ये ख्याल आते रहा कि आज कोई महत्वपूर्ण दिन है, सोचते रहा कि क्या है आज, कलेंडर देखा तो कोई छुट्टी नहीं थी। (हमारे देश में महत्वपूर्ण दिन छुट्टी रहती है) कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या महत्वपूर्ण है आज। फ़िर याद आया कि आज अन्ना हजारे अनशन पर जाने वाले हैं। सुबह 8 बजे अन्न हजारे की गिरफ़्तारी का समाचार मिला। यह तो होना ही था, जब भ्रष्ट्राचारियों को अपनी खाल बचानी है तो ईमानदारों को ही जेल भेजेगें। मै भी कुछ लिखना चाहता था फ़ेसबुक, ब्लॉग या गुगल प्ल्स पर। लेकिन कम्पयुटर साथ नहीं दे रहा था। तभी मुझे ध्यान आया नेट स्लो होने के पीछे षड़यंत्रकारी ताकतों का तो हाथ नही है। एक्सचेंज में फ़ोन करके अपनी शिकायत दर्ज कराई। 5 बजे सो कर उठने के बाद देखा तो नेट चालु हो गया था।
नेट पर आने के पश्चात पता चला कि कई ब्लागरों के नेट कनेक्शन धीमे चल रहा है, दो दिनों से वे भी परेशान हैं। तब लगा कि नेट धीमे होने के पीछे सरकार की भी कोई चाल हो सकती है। भ्रष्ट्राचार के विरोध एवं अन्ना के समर्थन में ब्लॉगर और फ़ेसबुकिए ही अधिक रहते हैं। अगर नेट धीमा हो जाए या बंद हो जाए तो ये हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेगें। हल्ला बोल बंद हो जाएगा। समर्थन का नारा सुनाई नहीं देगा। जिनकी सरकार है, जिनके हाथ में पावर है वह कुछ भी कर सकता है। नेट शुरु हुआ तो अन्ना हजारे की रिहाई का समाचार भी समाचार मिला। एक तरफ़ कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी का अन्ना को तू एवं तुम कहने वाला सम्बोधन सुनने मिला तो दुसरी तरफ़ चिदम्बरम का श्री अन्ना हजारे सुनने मिला। भारत की सड़कों पर अन्ना के समर्थन में युवाओं का हुजूम देख कर दिल्ली का सुर बदला-बदला लगा। आगे देखते हैं क्या होता है।
NH-30 सड़क गंगा की सैर
अनेक नई जानकारी के साथ सराहनीय लेख , आभार .
जवाब देंहटाएंसभी चीजों का मिश्रण कर तैयार किया गया एक अनुपम लेख ....आपकी लेखकीय क्षमता को जय हिंद ...!
जवाब देंहटाएंपाली से कभी चतुरगढ जाने का मन है....
जवाब देंहटाएंबढ़िया जघा हवे, खच्चित जाबे उंहा घुमे बर...
वाह! बढ़िया काकटेल असन हवे पोस्ट हर, बड अकन स्वाद हवे...
सादर...
शीघ्र लौटे पटरी पर सब और गति वापस आए, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंबहुत गजब की पोस्टं.....जबरदस्त!!
जवाब देंहटाएंवाह भाई आनंद आ गया !! करीली की सब्जी और हैजा आज पहली बार सूना | सारा वृतांत मजे और चटखारे ले ले कर लिखा है | हर शब्द में आनंद आया! "शत्रु कीट" उम्दा नामकरण किया हिंदी शब्द कोष को एक नया शब्द मिला !! ऐसे ही लिखते रहे | शुभ कामनाये|
जवाब देंहटाएंफूट का नाम हैजा पहली बार जाना ... और करील के बारे में भी नयी जानकारी ... यात्रा से ले कर अन्ना हजारे तक बढ़िया पोस्ट
जवाब देंहटाएंफ़ुट - बहुत दिन बाद याद दिलाया ...... यहाँ दिल्ली में नहीं मिलता..
जवाब देंहटाएंपोस्ट कहीं से शुरू हुई और कहीं अंत .. पर तालमेल बना ही रहा सबका आपस में ...
जवाब देंहटाएंदेशी फल करील के बारे मे महाकवि सूरदास ने भी लिखा है ..
जिहिं मधुकर अंबुज-रस चाख्यो, क्यों करील-फल खावै।
'सूरदास' प्रभु कामधेनु तजि, छेरी कौन दुहावै!!
पर हमारे देशवासियों ने इस बेस्वाद करील को भी नहीं छोडा .. तेल मसालों से स्वादिष्ट बनाकर इसका भी उपयोग किया जाता है !!
छत्तीसगढ़ के बारे में नक्सल समस्या से ज्यादा कुछ पढ़ा नहीं कही , आपके ब्लॉग पर इससे सम्बंधित नयी जानकारी मिल जाती है ...
जवाब देंहटाएंमोटा होना स्मार्ट होना है , नयी जानकारी ...
दिलचस्प पोस्ट !
यात्रा भी, जानकारी भी, मनोरंजन भी और साथ में अन्ना हजारे का साथ बहुत बढ़िया पोस्ट...
जवाब देंहटाएंयात्रा वो भी रेल की, बहुत अच्छे।
जवाब देंहटाएंबरसात में ज़रा संभल के घूमा करो भाई ।
जवाब देंहटाएंशत्रुकीट हवा में भी घूमते हैं ।
शुभकामनायें ।
कलील की सब्जी --पहली बार सुनी ।
मांफ कीजियेगा --करील पढ़ें ।
जवाब देंहटाएंइन्द्रधनुषी घटनाक्रम।
जवाब देंहटाएंजबरजस्त और रोचक पोस्ट।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया पोस्ट, आपके ससुराल और हमारे जन्मस्थान का नाम ही पढकर मन रोमांचित हो जाता है.हर अक्षर के साथ बड़े आ की मात्रा.भ में बड़े आ की मात्रा भा, ट में बड़े आ की मात्रा टा, प में बड़े आ की मात्रा पा, र में बड़े आ की मात्रा रा, भाटापारा. ऐसा है कोई शहर जिसके हर अक्षर में आ की मात्रा हो ढुंढते रह जाओगे भाई साहब ससुराल जो आपका है. नारायण भूषणिया
जवाब देंहटाएंलालित भाई बस्तर में करील का नाम basta नहीं बल्कि बांस्ता होता है और फुट भी बस्तर या कहें पूरे छत्तीसगढ़ में ही में होता है जिसकी सब्जी बनाकर खाई जाती है
जवाब देंहटाएंबहुत ही सजीव और रोचक चित्रण किया है.
जवाब देंहटाएंयदि मीडिया और ब्लॉग जगत में अन्ना हजारे के समाचारों की एकरसता से ऊब गए हों तो कृपया मन को झकझोरने वाले मौलिक, विचारोत्तेजक आलेख हेतु पढ़ें
अन्ना हजारे के बहाने ...... आत्म मंथन http://sachin-why-bharat-ratna.blogspot.com/2011/08/blog-post_24.html