दुनिया का प्रत्येक आदमी रेडियो सुनता है, इस माध्यम से अपनी मातृ भाषा में जगत के विषय में जानता है। भारत में भी रेडियो का प्रचलन एक समय में जोरों पर था। हम बचपन में रेडियो सुनते थे। लेकिन जब से टीवी ने घर में प्रवेश किया तभी से रेडियो चलन के बाहर हो गया था।
लोगों के घरों से रेडियो गायब हो गए। लेकिन समय ने एक बार फ़िर करवट ली है। रेडियो के सुहाने दिन फ़िर आ चुके हैं। तकनीकि में सुधार होने से एफ़एम के माध्यम से मधुर और कर्णप्रिय संगीत अब साफ़-साफ़ सुना जा सकता है। जैसे रिकार्ड पर चल रहा हो।
श्री मनोहर महाजन,विजय लक्षमी,रिपुसूदन एलाबादी,अशोक जी |
मैने अधिकतर रेडियो का एक ही कार्यक्रम सुना चौपाल, यह मीडियम वेब पर चलने वाला कार्यक्रम था इसलिए साफ़ सुनाई देता था। उस जमाने में रेडियो सिलोन तो मुझसे ट्यून ही नहीं होता था। अगर कभी रेडियो ट्यून हो गया तो इतनी घर-घराहट आती थी कि गाना सुनने का मजा किरकिरा हो जाता था।
चौपाल में बजने वाले छत्तीसग़ढी गीत मन को मोह लेते थे। एक कार्यक्रम रेडियो सिलोन पर बजा करता था प्रत्येक बुधवार को बिनाका गीत माला। क्या कार्यक्रम हुआ करता था, उसका आनंद अभी तक मौजूद है,
अमीन सयानी की आवाज चार चांद लगा देती थी। गीत से कम उसकी आवाज से हम अधिक प्रभावित होते थे।उसके बाद फ़िर कभी रेडियो सुनने का मौका नहीं मिला, लेकिन जब से एफ़एम आया तब से फ़िर रेडियो की तरफ़ मुड़ गए। सिर्फ़ पुराने गाने ही सुनने का मन करता है।
रेडियो सिलोन के दीवानो से खचाखच भरा हॉल |
अमीन सयानी की आवाज चार चांद लगा देती थी। गीत से कम उसकी आवाज से हम अधिक प्रभावित होते थे।उसके बाद फ़िर कभी रेडियो सुनने का मौका नहीं मिला, लेकिन जब से एफ़एम आया तब से फ़िर रेडियो की तरफ़ मुड़ गए। सिर्फ़ पुराने गाने ही सुनने का मन करता है।
पुराने और नए रेडियो के साथ श्री अशोक बजाज |
आज 20 अगस्त है और इस दिन को रेडियो श्रोता दिवस के रुप में मनाया जाता है यह अशोक भाई से सु्ना। हमारे चाचा रेडियो के बहुत शौकीन थे।
जैसे आज अशोक बजाज हैं। मेरा भी मन हो गया कि इस कार्यक्रम में शिरकत की जाए। कार्यक्रम में रेडियो सिलोन के उद्घोषक मनोहर महाजन, रिपुसूदन एलाबादी, विजय लक्ष्मी डिसेरम, हरमिंदर सिंग हमराज, उद्घोषिका शारदा पांडे ग्वालियर, महेन्द्र मोदी झारखंड आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम के आयोजक छत्तीसगढ श्रोता संघ एवं ओल्ड लिस्नर्स ग्रुप ऑफ़ इंडिया थे।
इनके संरक्षक भाई अशोक बजाज हैं। जब हम इस कार्यक्रम में पहुंचे तो श्रोताओं से हाल खचाखच भर गया था। मैने सोचा भी न था कि उत्साह से लबरेज इतने रेडियो श्रोता एक साथ मुझे मिलेंगें। लेकिन मैं आश्चर्य चकित रह गया कि डिश टीवी और इंटरनेट के जमाने में आज भी रेडियो का आर्कषण कायम है।
मैं भी कभी-कभी मोबाईल रेडियो पर पुराने गाने सुन लिया करता हूँ। इस मायने में एक श्रोता मैं भी हूँ।
जैसे आज अशोक बजाज हैं। मेरा भी मन हो गया कि इस कार्यक्रम में शिरकत की जाए। कार्यक्रम में रेडियो सिलोन के उद्घोषक मनोहर महाजन, रिपुसूदन एलाबादी, विजय लक्ष्मी डिसेरम, हरमिंदर सिंग हमराज, उद्घोषिका शारदा पांडे ग्वालियर, महेन्द्र मोदी झारखंड आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम के आयोजक छत्तीसगढ श्रोता संघ एवं ओल्ड लिस्नर्स ग्रुप ऑफ़ इंडिया थे।
रेडियो सिलोन के एनाऊंदर श्री रिपुसूदन एवं ललित शर्मा |
मैं भी कभी-कभी मोबाईल रेडियो पर पुराने गाने सुन लिया करता हूँ। इस मायने में एक श्रोता मैं भी हूँ।
जब मनोहर महाजन ने कार्यक्रम स्थल में प्रवेश किया तो सारे श्रोता झूम उठे, ऐसा तो मैने श्रीदेवी के कार्यक्रम में भी नहीं देखा।
इस कदर स्वागत उनका उपस्थित श्रोताओं ने स्वागत किया कि कोई टॉप का फ़िल्म अभिनेत्री या अभिनेता भी ईर्ष्या से भर उठे।
इसी तरह दिल से मनोहर महाजन भी सबसे गले लग के मिले, उनका यही अपनापन उनके चाहने वाले श्रोताओं के दिलों मे बस जाता है। विजय लक्ष्मी डिसेरम ,रिपुसूदन एलाबादी, हरमिंदर सिंग हमराज और उद्घोषिका शारदा पांडे ग्वालियर को भी लोगों ने हाथों हाथ लिया।
इतना प्रेम और स्नेह का आदान प्रदान एक उद्घोषक और श्रोताओं के बीच मैने कहीं नहीं देखा। लगभग 80 की उम्र के एक सज्जन तो मनोहर महाजन के गले लग गए और भावुक हो गए।
आह इतना प्रेम!!!!!!!! शायद प्रेम का दरिया फ़ूट पड़ा। अथाह सागर उमड़ पड़ा। अगर कवि तुलसी दास की वाणी में--"स्वर्ग से देवताओं द्वारा पूष्प वर्षा की बस कमी रह गयी थी"कहूं तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
अशोक भाई और श्रोता संघ की टीम साधुवाद की पात्र है। मै यह अपने मन की बात लिख रहा हूँ कोई समाचार नहीं। इस वक्त मेरे मन में यही भाव उमड़ रहे हैं।
इस कदर स्वागत उनका उपस्थित श्रोताओं ने स्वागत किया कि कोई टॉप का फ़िल्म अभिनेत्री या अभिनेता भी ईर्ष्या से भर उठे।
इसी तरह दिल से मनोहर महाजन भी सबसे गले लग के मिले, उनका यही अपनापन उनके चाहने वाले श्रोताओं के दिलों मे बस जाता है। विजय लक्ष्मी डिसेरम ,रिपुसूदन एलाबादी, हरमिंदर सिंग हमराज और उद्घोषिका शारदा पांडे ग्वालियर को भी लोगों ने हाथों हाथ लिया।
इतना प्रेम और स्नेह का आदान प्रदान एक उद्घोषक और श्रोताओं के बीच मैने कहीं नहीं देखा। लगभग 80 की उम्र के एक सज्जन तो मनोहर महाजन के गले लग गए और भावुक हो गए।
आह इतना प्रेम!!!!!!!! शायद प्रेम का दरिया फ़ूट पड़ा। अथाह सागर उमड़ पड़ा। अगर कवि तुलसी दास की वाणी में--"स्वर्ग से देवताओं द्वारा पूष्प वर्षा की बस कमी रह गयी थी"कहूं तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
अशोक भाई और श्रोता संघ की टीम साधुवाद की पात्र है। मै यह अपने मन की बात लिख रहा हूँ कोई समाचार नहीं। इस वक्त मेरे मन में यही भाव उमड़ रहे हैं।
देवी शंकर अय्यर परिचय देते हुए--हरि भूमि से साभार |
शाम को मुख्य अतिथी केबिनेट मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने उपस्थित उद्घोषकों को स्मृति चिन्ह दिए। उन्हे रेडियो रत्न से नवाजा गया। श्रोताओं को भी स्मृति चिन्ह दिए गए उन्हे रेडियो स्टार का सम्मान दिया गया।
मनोहर महाजन ने कहा कि-जितना प्रेम मुझे रेडियो सिलोन के श्रोताओं का मिला उतना प्रेम 1200 घंटे की 17 साल की रिकार्डिंग में डिस्कवरी एवं जियोग्राफ़ी के दर्शकों का नहीं मिला। वे तो जानते ही नहीं है कि मनोहर महाजन कौन है?
इस कार्यक्रम में सुदुर वनांचल से भी रेडियो के श्रोता आए थे। इससे आभास होता है कि रेडियो के दिन फ़िर लौट रहे हैं। क्योंकि स्वच्छ मनोरंजन का एक मात्र साधन रेडियो ही है, भले कुछ मिर्ची वाले रेडियो आने से इसके स्वाद में बदलाव अवश्य ही आया है लेकिन रेडियो की महत्ता आज भी कायम है।
श्री अशोक बजाज, श्री बचका मल, श्री बरलोटा |
प्रज्ञा चक्षु कांति लाल बरलोटा और कुमारी दुबे की उपस्थिति भी सराहनीय रही। मैं भी रेडियो श्रोताओं से परिचित हुआ। रेडियो में हमने भी पहले बहुत फ़रमाईशी कार्यक्रम के पत्र डाले और गाने भी सुने लेकिन कुछ अंतराल के बाद फ़रमाईश करना छूट गया।
यह भी एक साधना का ही काम है, पहले गाने याद रखना, फ़िर पोस्ट कार्ड पर लिखना और उन्हे समय पर सुनना। अगर पत्र फ़रमाईशी कार्यक्रम में शामिल नहीं हुआ फ़िर भी फ़रमाईशी पत्र ले्खन की निरंतरता बनाए रखना बड़े धैर्य का काम है। रेडियो श्रोता अवश्य ही साधक हैं। ओल्ड लिस्नर्स ग्रुप ने कुछ बच्चों को भी सम्मानित कर अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया।
ग्रामीण श्रोता, जिनके दम से रेडियो कायम है |
भाई अशोक बजाज ने एक सारगर्भित बात कही-"हम लोग रेडियो को सपरिवार बैठ कर सुन सकते हैं लेकिन टीवी सपरिवार बैठ कर नहीं देख सकते।" यह मेरे साथ भी होता है कि कभी किसी चैनल पर इतने भद्दे कार्यक्रम के दृश्य आ जाते हैं कि मुझे चैनल बदलना ही पड़ता है।
रेडियो संस्कृति का पोषक है तो टीवी अब भस्मासुर बन कर खड़ा है और अपने वरदान दाता के सिर पर हाथ फ़ेरने ही वाला है। संस्कृति के अपसंस्कृतिकरण से अगर बचना है तो रेडियो की ओर पुन: उन्मुख होना ही पड़ेगा।
टीवी ने रेडियों के श्रोताओं का बलात अपहरण किया है एक दिन उसके बंधन से श्रोताओं को छूटना ही है,वह समय अब आ गया है जब रेडियों की जड़ों में पावस की अमृ्त की बुंदों का संचरण हो रहा है।
बूढा बरगद एक दिन फ़िर से पुष्पित पल्ल्वित होगा और सारा जमाना फ़िर से सुनेगा इसकी मधुर तान। वही किसान फ़िर ऊंट के गले रेड़ियो लटका कर अपने खेतों में हल चलाएगा और माटी भी पुन: माटी के गीत सुनेगी और आनंदित होकर दुगनी फ़सल देगी। रेड़ियो सिलोन फ़िर भूले बिसरे गीत सुनाएगा।
रेडियो संस्कृति का पोषक है तो टीवी अब भस्मासुर बन कर खड़ा है और अपने वरदान दाता के सिर पर हाथ फ़ेरने ही वाला है। संस्कृति के अपसंस्कृतिकरण से अगर बचना है तो रेडियो की ओर पुन: उन्मुख होना ही पड़ेगा।
टीवी ने रेडियों के श्रोताओं का बलात अपहरण किया है एक दिन उसके बंधन से श्रोताओं को छूटना ही है,वह समय अब आ गया है जब रेडियों की जड़ों में पावस की अमृ्त की बुंदों का संचरण हो रहा है।
बूढा बरगद एक दिन फ़िर से पुष्पित पल्ल्वित होगा और सारा जमाना फ़िर से सुनेगा इसकी मधुर तान। वही किसान फ़िर ऊंट के गले रेड़ियो लटका कर अपने खेतों में हल चलाएगा और माटी भी पुन: माटी के गीत सुनेगी और आनंदित होकर दुगनी फ़सल देगी। रेड़ियो सिलोन फ़िर भूले बिसरे गीत सुनाएगा।
सुनिए अशोक बजाज को रेड़ियो श्रोता दिवस पर
सुनिए सिलोन वाले रिपुसूदन एलाबादी को रेड़ियो श्रोता दिवस पर
ग़ज़ब की पोस्ट है आज की तो.... क्या रिपोर्टिंग की है....
जवाब देंहटाएंkamaal hai bhai.........is anant radio prem ke prati shubhkamnaen.........
जवाब देंहटाएंaapki post padhkar is baat ka malaal huaa ki baarish ke baawajood mujhe bhi is kaaryrakram men shareek hona hi tha. khair...zamaana tezee se badla hai.pahle aakashwani se naatako ka prasaaran bhi hota tha. hum log aawaz ke jaadoogar kahlaate the. log humara swar - abhinay sunkar hum logon se prabhaavit huaa karte the. ab to T.V men dikhte rahne ke bawajood itni lokpriyata nahin milti. jai ho radio ki...
जवाब देंहटाएंकाश...मैं भी होता आपके साथ इस कार्यक्रम में
जवाब देंहटाएंबहुत गजब पोस्ट, टीवी आगमन के बाद कहा जाने लगा था "रेडियो के दिन बीते रे भैया" ...काश उसी तर्ज पर ये हो सके कि "टीवी के दुख भरे दिन बीते रे भैया". वाकई टीवी के अधिकतर चैनल अकेले बैठकर ही देख सकते हैं परिवार के साथ नही.
जवाब देंहटाएंरामराम
...behatareen post !!!
जवाब देंहटाएंbahut badhiya prastuti
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया!
जवाब देंहटाएंalll isss wellll
जवाब देंहटाएंइस जानकारी के लिए हृर्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंसद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
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रेडियो सीलोन के तो हम भी दीवाने थे, खासकर बिनाका गीतमाला और फिल्मों के रेडियो प्रोग्राम्स के!
जवाब देंहटाएंअशोक बजाज जी को इस सफल कार्यक्रम के आयोजन के लिए बधाई!
५० से ८० के दशक के भारतीय मनोरंजन के एक मात्र उम्दा साधन की बढ़िया प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंरेडियो प्रेम कम हुआ है लेकिन मिटा नहीं है | उसका प्लेटफार्म बदल गया उसका डिजिटल रूप आ गया ह | लेकिन श्रोता आज भी उसी लगन से सुन रहे है |इस शानदार रिपोर्टिंग हेतु आपका आभार |
जवाब देंहटाएंबिनाका गीतमाला और हवामहल तो हमने भी सुना है जी, पिताजी और दीदी के साथ खाना खाते हुये या सोने के समय पर
जवाब देंहटाएंप्रणाम स्वीकार करें
वो गांव के दिन थे ..... और मरफी फिर फिलिप्स रेडियो को कंधे में लटकाये तो कभी सिरहाने में टिकाये, रेडियो सीलोन, बिनाका गीतमाला, बीबीसी लंदन, रेडियो डायचवेले और बहुत से स्टेशनों में सुई घुमती थी... यादों को ताजा करने के लिए धन्यवाद भाई साहब.
जवाब देंहटाएंअशोक भाई को इस आयोजन के लिए एवं आपको इस रिपोर्ट को यहां प्रकाशित करने के लिए धन्यवाद.
याद आ गया ... यू पार्क में बैंच पर लेट कर बेफिक्री से विविध भारती का छाया गीत सुनते थे. जी हाँ रात्रि तक.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रिपोर्ट
जवाब देंहटाएंटीवी ने रेड़ियों के श्रोताओं का बलात अपहरण किया है एक दिन उसके बंधन से श्रोताओं को छूटना ही है,वह समय अब आ गया है जब रेड़ियों की जड़ों में पावस की अमृ्त की बूंदों का संचरण हो रहा है। बूढा बरगद एक दिन फ़िर से पुष्पित पल्ल्वित होगा और सारा जमाना फ़िर से सुनेगा इसकी मधुर तान। वही किसान फ़िर ऊंट के गले रेड़ियो लटका कर अपने खेतों में हल चलाएगा और माटी भी पुन: माटी के गीत सुनेगी और आनंदित होकर दुगनी फ़सल देगी। रेड़ियो सिलोन फ़िर भूले बिसरे गीत सुनाएगा।
जवाब देंहटाएंक्या खूब समीक्षा की आपने. धन्यवाद
सुन्दर पोस्ट, छत्तीसगढ मीडिया क्लब में आपका स्वागत है.
जवाब देंहटाएंकार्यक्रम की अच्छी रिपोर्टिंग की है……………गुजरा हुआ ज़माना आता नही दोबारा………………बस यादें याद रह जाती हैं………………सिर्फ़ यही कह सकती हूँ।
जवाब देंहटाएंसच कहा भैया रेडिओ टी.वी से मुकाबले के लिए एकदम तैयार है.
जवाब देंहटाएंवास्तव में रेडियो के दिन वापस आ गए हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रिपोर्ट ..रेडियो कम जरुर हुआ है मिटा नहीं है ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रिपोर्ट जी, मजा आ गया धन्यवाद
जवाब देंहटाएंहमें तो साहब खुद ही रेडियो पसंद है टी.वी. की बनिस्बत।
जवाब देंहटाएंमजा आ गया पोस्ट पढ़कर।
आभार।
बेहतरीन प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंरेड़ियो श्रोता दिवस की एक दिन देर से बधाई. :)
जवाब देंहटाएंवैसे रेडियो फिर से जोर पकड़ रहा है भले ही वो एफ एम के कारण हो..कार में ही सही..बहुत हद तक लौट आया है.
अच्छी लगी पोस्ट.
बहुत बढ़िया ...रेडियो आज भी जिन्दा है मोबाइल रेडियो के जरिये ... हम तो इसका खूब लुफ्त उठाते है !
जवाब देंहटाएंरेडियो प्रेम को सलाम करते हैं ।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआप अति मेहनत और लगन से ब्लोग जगत के सितारे है और सबके प्यारे है , बहेतरीन लेख हेतु शुभकामना
जवाब देंहटाएंधरोहर संजोने जैसा लेख
जवाब देंहटाएंबढि़या रिपोर्ट. झुमरी तलैया तो कोडरमा से रांची जाते हुए देख चुका था, बचकामल जी को आज फोटो में पहली बार और बार-बार देख रहा हूं.
जवाब देंहटाएंभावनाओं का महज़ ज्वार नहीं है यह एक सच है की हम सभी सिलोन
जवाब देंहटाएंके दीवाने रहे. ! गहरे उतर कर आपने रिपोर्टिंग की है..
क्या बात है!! बहुत खूब!!
माओवादी ममता पर तीखा बखान ज़रूर पढ़ें:
http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_21.html
आकाशवाणी और विविध भारती के कार्यक्रमों का लोकप्रिय नाम होता था ...झुमरीतलैया ..
जवाब देंहटाएंऔर रेडिओ सीलोन की ट्यूनिंग और अमीन सायानी की बिनाका गीतमाला ने तो क्या-क्या करतब नहीं करवाए ....
अच्छी रिपोर्टिंग ...
रेडियो प्रेमियों को बहुत शुभकामनायें ....उनका प्रेम ऐसा ही बना रहे ...!
बढिया। सुन्दर रिपोर्टिंग है।
जवाब देंहटाएं