बुधवार, 13 जून 2012

दंतैल हाथी से मुड़भेड़ ----------- ललित शर्मा

हेशपुर के मंदिरों के पुरावशेष देख कर जंगल के रास्ते से लौट रहे थे। तभी रास्ते में सड़क के किनारे हाथी दिखाई दिया। एक बारगी तो दिमाग की बत्ती जल गयी। सरगुजा के जंगलों में हाथी का दिखना और देखना दोनो ही खतरनाक होता है। छत्तीसगढ के रायगढ, कोरबा, जशपुर और सरगुजा के जंगलों में हाथियों के उत्पात से प्रतिवर्ष बहुत सी जाने जाती हैं और जंगलवासियों के घर तबाह हो जाते हैं। इन हाथियों से मुकाबला करने एवं बचाव के लिए सरकार के प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए खर्च होते हैं। एक बार आसाम से 2003 में ही हाथी विशेषज्ञ पार्वती बरूआ के नेतृत्व में जशपुर में हाथियों को पकड़ने का प्रयोग किया जा चुका था, जिसमें एक हाथी पकड़ा गया और अठारह दिनों में ही मर गया। हाथी के मरने पर प्रदेश सरकार ने पार्वती बरूआ के साथ अपने अनुबंध को समाप्त कर उन्हें वापस भेज दिया। परन्तु जंगली हाथियों से बचाव का कोई हल नहीं निकला। ये वनों के प्राकृतिक वातावरण में स्वछन्द विचरण कर रहे हैं। जिस गांव में प्रवेश कर गए उसे तो पूरा ही तबाह करके छोड़ते हैं। आज इन हाथियों से तकरीबन पूरा एक जिला ही नहीं पूरा संभाग आतंकित है। मानवीय छेड़छाड़ और धान, महुआ शराब के प्रति इनकी रूचि इतनी बढ़ गई है कि हाथियों के एक दल ने जिला मुख्यालय के मायापुर मुहल्ले में अपनी उपस्थिति बताकर शहरी लोगों को भी सावधान रहने चेतावनी दे डाली है।
मेरे द्वारा हाथी का पहला चित्र- सड़क पार से

आज 122 हाथियों का दल पांच दलों में बंटकर इन प्रभावित जिलों में लूटपाट एवं आतंक पैदा कर रहा है। इनमें से लगभग पचास हाथियों के तीन दलों ने जिले में भ्रमण कर सरगुजा जिले को अपने प्रभाव क्षेत्र में कैदकर रखा है। पिछले कुछ सालों में हाथियों ने 72 लोगों को कुचल डाला है।हाथियों का प्राकृतिक आवास और उदरपूर्ति का क्षेत्र लगभग समाप्ति की ओर है इसलिए हाथी सरगुजा में घुस रहे हैं। सिंहभूमि के हाथी भी इन्हीं कारणों से झारसुगुड़ा होकर यहां अपना रहवासी क्षेत्र खोजने आ रहे हैं। स्थानीय जंगलों में इन हाथियों को कुछ सुकून मिल रहा है इसलिए यहां ये बार-बार दस्तक दे रहे हैं। जिले में अवैध कटाई, बस्तियों का अतिक्रमण एवं वनभूमि अधिकार पत्र पाने की होड़ में जंगल रातों-रात साफ हो रहे हैं। इन्हीं कारणों से हाथियों का दल अब मानवीय बस्तियों से भी गुरेज नहीं कर पा रहा है। सरगुजा के नामकरण के पीछे हाथियों का बहुत बड़ा हाथ है। इससे ऐसा भान होता है कि सरगुजा में भारी तादाद में हाथियों की उपस्थिति रही होगी। सरगुजा शब्द सुरगज, सरगजा या स्वर गजा का विकृत रूप हो सकता है। सुरगज- जहां इन्द्रदेव के हाथी ऐरावत जैसे हाथी पाए जाते हों। सरगजा- जहां हाथियों के विशालकाय सिर ही सिर दिखते हों। स्वरगजा- जहां हाथियों का स्वर चिंघाड़ गुजता रहता हो। इस प्रकार सरगुजा नाम की व्युत्पत्ति इन शब्दों से विकृत होकर हो सकती है।
दूसरा चित्र - हाथी के नजदीक जाकर, इसके बाद मेरे मोबाईल की बैटरी धोखा दे गयी

हम हाथी तो बचपन से देखते आए हैं।पालतु हाथी देखे और उसकी सवारी भी की। लेकिन हाथी के प्राकृतिक आवास में उसे पहली बार हम सभी ने देखा। हाथियों का झुंड नहीं था वह अकेला ही सड़क उस पार पेड़ों के बीच खड़ा था। कुछ वनवासी भी सड़क के इस पार खड़े होकर हाथी की गतिविधि देख रहे थे। हमने थोड़ी दूर पर कार रोक दी क्योंकि फ़ोटो लेने का लोभ नहीं छोड़ पा रहे थे। मै, राहुल सिंह, बाबू साहब, के पी वर्मा ने अपना-अपना हथियार(कैमरा) संभाला और चित्र लेने लगे।
बाबू साहब के मोबाईल कैमरे का चित्र

मेरे मोबाईल में दूरी होने के कारण हाथी का चित्र ठीक से नहीं आ रहा था। हाथी को चित्र में कैद करने के लालच से मै सड़क पार करके उसके समीप चला गया। मुस्किल से 20-25 फ़ुट की दूरी होगी। तब हाथी का पार्श्व भाग दिख रहा था। जैसे ही मैने कैमरा साधा उसने मुंह सीधा करके कैमरे की तरफ़ कर लिया जैसे फ़ोटो खिंचाने के लिए पोज दे रहा हो। लेकिन जैसे ही उसने आगे मेरी ओर कदम बढाया, मुझे लगा कि दौड़ाने वाला है। जान बचाकर भागने में ही भलाई है। बस मैने दौड़ लगा दी। मेरे कार के समीप पंहुचते तक सभी साथी कार में समा चुके थे।
समीप से फ़ोटो लेने  के लिए जाते हुए- बाबू साहब के मोबाईल कैमरे का चित्र

हमारे सामने हाथी और कार को उसके सामने से निकालना खतरे से खाली नहीं था। हाथी तो बड़ी-बड़ी बस को टक्कर मार कर पलटा देते हैं। फ़िर उसके सामने कार की क्या बिसात है? तभी लोगों के मना करने के बाद भी एक मोटर सायकिल सवार हाथी के सामने वाले रास्ते से गुजर गया। हाथी का ध्यान उधर बंटते ही हमारे ड्रायवर ने कार आगे बढा दी। डब्लु बी एम रोड़ होने के कारण स्पीड भी नहीं चला सकते थे। पर जीवन में पहली बार जंगली हाथी को इतने करीब से देखा और उसकी फ़ोटो लेना रोमांचित कर गया। फ़ोटो लेते वक्त सभी मित्रों के कैमरे की फ़्रेम ऐसे फ़िट थी कि मजा आ गया।
पोजिशन लेकर मुझे और हाथी को कैद करते बाबु साहब - चित्र: राहुल सिंह जी द्वारा

मै हाथी को फ़ोटो ले रहा था तो बाबु साहब का कैमरा मेरी और हाथी की। फ़िर राहुल सिंह जी का कैमरा मेरी, हाथी और बाबु साहब की फ़ोटो ले रहा था। इसके बाद केपी वर्मा जी अपने एस एल आर कैमरे से हम सबकी फ़ोटो ले रहे थे। मतलब इस मुड़भेड़ के सभी गवाह थे। जंगली हाथी खतरनाक ही होते हैं और एक बार पीछे पड़ गए तो जान बचाना नामुमकिन है। कुछ दिनों पूर्व तीन हाथी हाईवे पर बैठ गए थे। 6 घंटे तक ट्रैफ़िक जाम रहा। सारा प्रशासनिक अमला लगा रहा उन्हे हटाने के लिए, पर वे गए अपनी मर्जी से। जंगली हाथी यह मुड़भेड़ जीवन भर याद रहेगी। क्योंकि जंगली हाथी शेर से भी खतरनाक होता है।
हाथी के आगे बढते ही  रवानगी डालते मैं और बाबु साहब - चित्र: राहुल सिंह जी द्वारा
डॉ के पी वर्मा के पास SLR (रील वाला) कैमरा था, उसके चित्र डेवलप होकर नहीं आए हैं। फ़ुल साईज में देखने के लिए चित्र पर क्लिक करें.
पोस्ट अपडेट - डॉ कामता प्रसाद वर्मा के एस एल आर कैमरे की फ़ोटो

29 टिप्‍पणियां:

  1. आबादी का बोझ जानवर ज़्यादा समय सह नहीं सकेंगे, मि‍ट जाएंगे जानवर.

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  2. के.पी.वर्मा जी के केमरे वाली फोटो नहीं दिखाई आपने......फ़ुल साइज़ में देखने पर रौंगटे खड़े हो गए...इतने पास !!!

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  3. देखते-पढ़ते फिर रोमांच हो आया.

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  4. @Archana ji....

    डॉ के पी वर्मा के पास SLR (रील वाला) कैमरा था, उसके चित्र डेवलप होकर नहीं आए हैं। चित्र मिलते ही पोस्ट अपडेट की जाएगी…… आभार

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  5. गज़ब...
    अच्छा लगा पढ़ कर ...
    दंतैल हाथी से मुलाक़ात... और ब्लागरों की ... त :)

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  6. रोमांचकारी मुठभेड़ रही। और चित्र देखने फिर आयेंगे!

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  7. जान बची तो लाखों पाए लौट के भाई जी घर को आये ,एक रोमांचक घटना , खुबसूरत यात्रा कथा का साथ और ज्यो का त्यों लेखा .

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  8. अकेले हाथी से शेर सिंह को भी पंगा नहीं लेना चाहिए . :)
    बहुत हिम्मत की हाथी के पास जाने की . राहुल सिंह जी द्वारा खीचा गया फोटो लाज़वाब है . सारी कहानी कह रहा है .
    रोमांचक अनुभव .
    हरिद्वार में चिल्ला के हाथी विध्वंश नहीं करते .

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  9. बहुत रोमांचक रहा होगा अनुभव .... बढ़िया संस्मरण

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  10. भई हमारी तो चित्र देखकर ही डरके मारे हालत ख़राब हो गई है, इतने पास से फोटो लेना कितने खतरनाक हाथी हैं, वो भी जंगली, उन्हें क्या पता ये ब्लॉ. शेरसिंह ललितजी हैं. बड़ा डरावना और खतरनाक अनुभव... :))

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  11. रोंगटे खडे कर देनेवाला रोमांचक अनुभव!!

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  12. हाथी देखे बार 8 दिन ले जशपुर/कुनकुरी/रायगढ़/कोरबा के बीहड़ बीहड़ जंगल म बईहा बरोबर किंदरे रेहेन फेर नीच्च दिखीस.... किस्मत तुमन ल दिख गे.... बधई

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  13. दंतेल हाथी से बचने के लिये बहुत बधाई। ईश्वर आगे भी इसी तरह रक्षा करें।

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  14. उस दिन कानो सुना और आज फोटू देखकर बहुत रोमांच हो रहा हैं ....क्या हाथी भी इतना खतरनाक हो सकता हैं ?

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  15. हाथी के प्राकृतिक आवास छीनते जा रहे हैं , आखिर ये जाएँ भी तो कहाँ जाएँ ...आक्रोश प्रकट करना स्वाभाविक है .प्राक्रतिक वातवरण में पलने वाले हाथियों की त्वचा पालतू हाथियों के मुकाबले अधिक चमकदार होती है .
    रोमांचक यात्रा और तस्वीरें !

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  16. जंगल के वरिष्ठ को जंगल में सानन्द रहने दिया जाये...वहीं उनका जीवन है..

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  17. कहाँ हाथी और कहाँ इंसान -सचमुच रोमांचक गाथा रही !

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  18. उनका आक्रोशित होना .. और आपका इतनी रोचकता से उसे शब्‍दो में उतारना ... बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

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  19. बहुत ही बढ़िया चित्रमय प्रस्तुति....

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  20. बहुत रोमंचिक प्रस्तुति.....

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  21. सुंदर चित्रकथा ललित जी !

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  22. अत्यंत रोमांचक विवरण। एक सांस में पूरा पढ़ लिया। ऐसा लगा जैसे हम भी आपके साथ थे।

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  23. गज़ब...
    अच्छा लगा पढ़ कर ...
    दंतैल हाथी से मुलाक़ात...
    bahut hi romanchak yartra sansmaran .........maja aa gya padhkar ...

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  24. वाह लेकिन काफी रोमांचक क्षण रहे होंगे जब जंगली हाथी को सामने देखा तो....बिचारा हाथी डर गया होगा

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