हमारी सुबह देर से हुई, बाकी साथी तैयार होकर चले गए और हम अलसाए पड़े थे। 11 बजे उदयपुर जनपद मुख्यालय में संगोष्ट्री प्रारंभ होनी थी, समय पर पहुंचना ही ठीक होता है। स्नानाबाद नाश्ता करने लिए बाहर जाना पड़ा क्योंकि आर्यन होटल में किचन नहीं है। रुम सर्विस का भी सत्यानाश है। थोड़ी देर में हमारी गाड़ी आ गयी। अनिल तिवारी और बाबु साहब के साथ हम रामगढ पहुचे। वहां राहुल सिंह एवं के पी वर्मा पहुंच चुके थे। साथ में देवनारायण सिंह जी की सुपुत्री भी थी। युवा एसडीएम तीर्थराज अग्रवाल के निर्देशन में कार्य चल रहा था। जनपद के सामुदायिक भवन में संगोष्ठी का उद्घाटन सत्र प्रारंभ हुआ। दीप प्रज्जवल ने के प्रश्चात उपस्थित मुख्यातिथियों के उद्घाटन उद्बोधन के पश्चात "आषाढस्य प्रथम दिवसे" शोध संगोष्ठी प्रारंभ हुई। दो विद्वानों ने अपने शोध पत्र पढे तभी भोजन की घोषणा हो गयी। हम रेस्टहाउस के भोजन स्थल पर आ गए। थोड़े अंतराल के पश्चात संगोष्ठी पुन: प्रारंभ होनी थी।
डॉ केपी वर्मा |
छत्तीसगढ की समृद्ध पुरातात्विक एवं सांस्कृतिक विरासत
सिरपुर का मूर्ति शिल्प |
माता कौशल्या की जन्मभूमि
माता कौशल्या की जन्मभूमि चंदखुरी (चन्द्रपुरी) में तीजा उत्सव |
हसदा (हसदपुर) एक परिचय
छत्तीसगढ में अनेकों ऐसे स्थान है जहाँ तक हम पहुंच नहीं पाए हैं और पहुंच गए हैं तो उसके ऐतिहासिक महत्व के विषय में जानकारी नहीं है। ऐसे ही एक स्थान हसदा (प्राचीन नाम हसदपुर) के विषय में जिक्र करना चाहूंगा। मेरा आलेख हसदा पर ही केंद्रित है।हसदा लगभग 5000 हजार की आबादी का गाँव है। जहाँ साहू, सतनामी, जातियों का बाहुल्य है। हसदा रायपुर जिले की अभनपुर तहसील में रायपुर राजिम मार्ग पर अभनपुर से 10 किलोमीटर पूर्व दिशा में 21N05, 81E46 पर स्थित है तथा कृषि उत्पादन की दृष्टि से समृद्ध ग्राम है। धान एवं चने की खेती होती है, रबी फ़सल के लिए भी पानी उपलब्ध है।
800 से 1000 वर्ष पुराना पीपल
हसदा में एक प्राचीन पीपल का वृक्ष है जिसकी उम्र लगभग 800 वर्ष है। जहाँ प्राचीन पीपल का वृक्ष है वह मालगुजार की पुरानी बखरी है। बखरी लगभग 3-4 एकड़ की होगी, इसमें एक राम मंदिर बना है और उसके पीछे पीपल का विशाल वृक्ष है। पीपल के नीचे एक प्लेटफ़ार्म बनाकर झोंपड़ी नुमा छाया बनी है। वृक्ष के नींचे एक बहुत बड़ी बांबी है और वहीं पर हनुमान जी का छोटा सा दक्षिण मुखी मंदिर भी बना है। सामने एक वलयाकार हवनकुंड है जिसमें पूजा के फ़ूल चढाए हुए हैं। पीपल के नीचे दीप जलाने के लिए टीन का कांच लगा आयताकार डिब्बा रखा है। बखरी में नाना फ़ड़नवीस रहते है, वे मालगुजार के संबंधी है और हसदा उनका पैतृक गांव है।
राजा गोपीचंद की तपस्थली
बाजीराव पेशवा के छोटे भाई चिमना जी अप्पा जब बंगाल पर आक्रमण करने के लिए आए थे तब नाना फ़ड़नवीस के पूर्वज चिमना जी साथ यहाँ पहुचे। छत्तीसगढ पहुचने पर चिमना जी अप्पा को अपने भाई बाजीराव पेशवा की बीमारी की सूचना मिली तो वे लौट गए और उनके पूर्वज यहीं रह गए। नाना फ़ड़नावीस की उम्र लगभग 80 वर्ष है, वे गाँव के हायर सेकेंडरी स्कूल से प्राचार्य पद पर रहते हुए सेवानिवृत हुए हैं। उन्होने बताया कि यह पीपल का वृक्ष लगभग 800 से 1000 वर्ष पुराना है। उनके गुरुजी स्वामी विकासानंद जी ने बताया था कि इस वृक्ष के नीचे बंगाल के राजा गोपीचंद ने तपश्चर्या की थी। राजा गोपीचंद नौ नाथों में जालंधर नाथ के शिष्य थे एवं राजा भृतहरि के भानजे थे। छत्तीसगढ में भरथरी लोक गाथाओं के रुप में प्रचलित है।
किलानुमा संरचना
कहते हैं पहले यहाँ किला था। गाँव के चारों ओर खाई थी। जिसके अवशेष अभी भी दिखाई देते हैं। इस खाई की तसदीक मैने की, गांव के अन्य निवासियों से भी जानकारी प्राप्त की। जहाँ खाई थी वहां अब खेत हैं। किन्तु खाई के चिन्ह अभी भी स्पष्ट दिखाई देते हैं। यहां के खेत खाई के हिसाब से गोल बने हुए हैं और इन खेतों को ग्राम वासी अभी भी खइया कहके ही बोलते हैं। हसदा गाँव में 7 तालाब हैं। इससे जाहिर होता है कि कोई बड़ी आबादी पहले यहाँ निवास करती थी और किसी राजा या मालगुजार ने उनकी निस्तारी के लिए तालाब खुदवाए होगें या किले के परकोटे की खाई ने तालाबों का रुप ले लिया होगा।
प्राचीन महामाया मंदिर
उन्होने बताया कि खइया की तरफ़ महामाया का एक प्राचीन मंदिर है। हम मंदिर देखने गए। महामाया मंदिर में देवी के साथ भैरव भी विराजमान हैं। कुछ वर्षों पूर्व महामाया के पक्के मंदिर की जगह कच्चे मिट्टी की कुरिया का निर्माण था। अब पक्का मंदिर बना दिया गया है। यहाँ नित्य पूजा होती है, महामाया का मंदिर यहाँ कब है इसकी कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं है।
स्वामी विकासनंद (लाम्बे महाराज) का आश्रम
हसदा की बखरी में स्वामी विकासानंद का आश्रम है, वे नागपुर से यहाँ आकर निवास करते थे। शांत हो जाने के पश्चात उनके प्रयोग का सामान आज भी यथावत रखा हुआ है। उनके पूजा करने का कमरा भी उसी रुप में है जैसा पहले था। इनके कई आश्रम बताए जाते हैं। नागपुर और जबलपुर के गुवारीघाट के आश्रम प्रमुख है। उन्होने बखरी में एक राम मंदिर का भी निर्माण कराया। कमरछठ के दिन हसदा की समस्त महिलाएं बखरी में ही कमरछठ की पूजा करने आती हैं। इस स्थान पर कमरछठ की पूजा करने की परम्परा बरसों से चली आ रही है।
सितम्बर 1666 ईस्वीं में शिवाजी का आगमन
कुछ शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया है कि औरंगजेब की कैद से जब शिवाजी राजे भागे तो वे आगरा से इटावा, अलाहाबाद, मिर्जापुर, दुधिनगर, अम्बिकापुर, रतनपुर, रायपुर, हसदा, चंद्रपुर होते हुए पुणे गए थे। क्योंकि अन्य मार्गों पर मुसलमानों का कब्जा था तथा इस मार्ग पर तीर्थयात्री देवियों के दर्शन के लिए आते थे। कहते हैं इसी मार्ग से शिवाजी छिपते हुए पुणे गए थे। संभवत: शिवाजी सितम्बर माह सन 1666 ईसवीं में हसदा आए थे। आगरा से निकल कर शिवाजी के चंद्रपुर आने का उल्लेख चंद्रपुर दर्शन पत्रिका में उल्लेखित है। चंद्रपुर के इतिहासकार दत्तात्रेय नानेरकर एवं अशोक ठाकुर इसकी पुष्टि करते हैं।
प्रारंभिक जानकारियों से प्रतीत होता है कि हसदा का इतिहास से गहरा नाता है, क्योंकि 8 किलोमीटर दूर महानदी चित्रोत्पला गंगा बहती है और कुलेश्वर (उत्पलेश्वर) महादेव का मंदिर एवं राजीव लोचन भगवान का मंदिर स्थित है। हसदा की भौगौलिक स्थिति से तो पता चलता है कि अवश्य ही यहाँ इतिहास के कुछ पन्ने समय की गर्द में दबे पड़े हैं जिन्हे सामने लाना चाहिए। जिससे छत्तीसगढ के पुरातात्विक एवं गौरवमयी इतिहास में एक कड़ी और जुड़ जाएगी। विस्तार पूर्वक प्रामाणिक जानकारी उत्खनन एवं शोध के पश्चात ही मिल सकती है।
शोध-पत्र प्रस्तुत करने के पश्चात हम महेशपुर के लिए चल पड़े। जारी है…………
बहुत अच्छी जानकारी
जवाब देंहटाएंललित जी , आप इतना अच्छा यात्रा वृतांत लिखते है कि क्या कहे . पढते वक्त ऐसा ही लगता है कि , हम भी वही है ..
जवाब देंहटाएंमैं भी विजय जी की बात से सहमत हूँ ....मानो आपके साथ साथ हम भी यही घूम रहे हैं ...
जवाब देंहटाएंगहन अध्यन और ऐतिहासिक जानकारियों से परिपूर्ण सुन्दर आलेख...शोध पत्र प्रस्तुतीकरण हेतु बधाई और शुभकामनायें...
जवाब देंहटाएंज्ञान वर्धक यात्रा वृतांत
जवाब देंहटाएंप्रिय श्री ललित जी ,
जवाब देंहटाएंजनसाधारण उपयोगी शोधपत्र लेखन में आपका साधिकार बौद्धिक हस्तक्षेप एवं कौशल प्रशंसनीय है !
मुझे स्मरण है कि पिछली बार जब आपने इसे अपने ब्लाग पर बतौर यात्रा वृत्तान्त लिखा था तब भी आपको बुद्धिजीवियों और शोधपरक लेखन करने वाले मित्रों की ओर से भूरि भूरि प्रशंसा का प्रतिसाद मिला था !
आपको प्रदाय किया गया प्रमाणपत्र देखा , उसमें अंकित आपका नाम किसी सुलेखक की कृति नहीं लगा , यह कृत्य आयोजन समिति का चलताऊ रवैय्या प्रतीत हो रहा है ! प्रतीति पे दुःख हुआ !
एतिहासिक जानकारी देता सुंदर रोचक आलेख,,,,
जवाब देंहटाएंराष्ट्रिय शोध संगोष्टि में शोध पत्र -छत्तीसगढ की सांस्कृतिक विरासत: हसदपुर। प्रस्तुत करने के लिए बधाई!! छत्तिसगढ़ के पुरातात्विक गौरव में यह आपका योगदान स्तुत्य है।
जवाब देंहटाएंवाह देखने में तो बहुत बड़िया इंतज़ाम किया दिख रहा है
जवाब देंहटाएंइतिहास के रत्नों को समेटे यह क्षेत्र..
जवाब देंहटाएंएक जीवंत और अनुभव आधारित इतिहास लिखा जा रहा है .....भूत , वर्तमान का अनूठा संगम .....निश्चित रूप से आने वाली पीढ़ियों के लिए ही नहीं , बल्कि आज के व्यक्तियों के लिए भी जानकारी पूर्ण कार्य कर रहे हैं आप ...!
जवाब देंहटाएंइस तरह की रचनाएं ब्लॉग जगत की धरोहर हैं।
जवाब देंहटाएंपुरातन संबंधी नवीन जानकारियों को फिर से पढ़ना अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंविस्तृत वर्णन ! ऐतिहासिक जगह ! पीपल की ठंडी छाँव ! मजेदार यात्रा ! सुहानी गर्मी ! क्या बात हैं ? चलते रहो ..हम साथ -साथ हैं
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