शुक्रवार, 22 जून 2012

हिडिम्बा टेकरी और गंजों के लिए खुशखबरी ………… ललित शर्मा

हम बोधिसत्व नागार्जुन संस्थान के पिछले गेट से पहाड़ी पर चढने के लिए चल पड़े। इस पहाड़ी को स्थानीय लोग हिडिम्बा टेकरी कहते हैं। धूप बहुत तेज थी,  पहाड़ी के किनारे बहुत बड़ी झील है, जिसके नाम पर ही इस गाँव का नाम मनसर पड़ा। मनसर नाम मणिसर का अपभ्रंस है। इसे देखने से आभास होता है कि पहाड़ियों के बीच यह एक प्राकृतिक झील है। जिसमें बारहों महीने पानी रहता है। पहाड़ी की तरफ़ झील का उलट है, अर्थात झील लबालब भरने पर पानी की निकासी का मार्ग बना है। इसमें लोहे का गेट भी लगा है। पहाड़ी छोटी है पर चढाई खड़ी है। रास्ते में हमें रुक कर कुछ जलपान लेना पड़ा। उस दिन की गर्मी का अहसास करता हूँ तो आज भी उबल उठता हूँ। 
हिडिम्बा टेकरी से मनसर झील का नजारा
पहाड़ी पर चढते समय ही धरती पर पाषाण काल के मानव के रहने चिन्ह प्राप्त होते हैं। मिट्टी के बर्तनों की ठेकरियाँ और चकमक पत्थर के पाषाण कालीन औजार बिखरे पड़े हैं। कौन कितना उठाए और सहेजे। गर्मी से संध्या जी तो लाल हो गयी थी, पुरातात्विक धरोहरें देखने के मजे के साथ कष्ट भी था, लेकिन इस कष्ट का भी हर हाल में आनंद लेना था। पैट्रोल के बढे हुए रेट ने रोते-गाते भी मजा लेने को मजबूर कर दिया। पहाड़ी पर चढते ही एक चार दीवारी दिखाई दी। इसके भीतर एक बड़ी शिला पर लिखे हुए अभिलेख है, जो समय की मार से धुंधले हो गए, पढने मे  ही नहीं आया क्या लिखा है? वैसे भी हम कोई प्राचीन भाषा के विशेषज्ञ तो हैं नहीं जो पढ लेगें, पर आडी टेढी लाईने तो समझते हैं। 
समय की मार से धुंधले होते शिलालेख
इस स्थान से उपर पहाड़ी पर ईंटो की अंडाकार कलात्मक इमारत अभी भग्नावस्था में है। हम ईमारत पर चढते हैं, पर वैसा कुछ दिखाई नहीं देता जैसा भंते रामचंद्र ने बताया था। उनका कहना था कि यह एक बौद्ध मठ था, इसके आचार्य नागार्जुन थे। ईमारत में त्रिआयामी त्रिभुजों का निर्माण हुआ है। पूरी ईमारत पक्की ईंटो की बनी है। उपर जाने के लिए त्रिकोणी घुमावदार सीढियाँ बनी हैं। पहाड़ी के शिखर पर बनी हुई यह सुंदर संरचना है। ईमारत के चारों तरफ़ लाल पत्थर के शिवलिंग स्थापित हैं। जिन्हे अभी भी देखा जा सकता है। इससे पता चलता है कि यह एक शिवालय था। 
हिडिम्बा टेकरी के द्वादश शिवलिंगों मे से एक
पूर्व दिशा में एक टीन शेड बना हुआ है जिसके दरवाजे पर ताला लगा है। वहां पर पुरातत्व विभाग का कोई व्यक्ति नहीं मिला। अगर कोई पर्यटक ईमारत को नुकसान पहुंचा दे तो कोई देखने वाला नहीं है। पहाड़ी से मनसर कस्बे का सुंदर दृश्य दिखाई देता है। साथ ही मणिसर झील भी खूबसूरत दिखाई देती है। पूर्व दिशा में एक पहाड़ी पर भी ईमारत के चिन्ह दिखाई दिए। वहां जाने के लिए किसी दूसरे रास्ते का उपयोग होता है। इस पहाड़ी से उसका कोई संबंध नहीं है। हम मंदिर की उत्कृष्ट  कलाकारी को देखते रहे। समय कम था और हमें आगे भी जाना था। एक पेड़ के नीचे बैठ कर आराम किया। संग में लाए छाछ और फ़लों को उदरस्थ किया।
लू लग जाएगी, कुछ तो खा लीजिए
लौटते हुए मुझे ईमारत में एक दरवाजा दिखाई दिया, बाहर तो ईंटों की दीवाल है पर भीतर जाने पर पत्थरों को खोद कर बनाई गयी एक सुरंग दिखाई देती है। सुरंग का मुहाना भी ईटों से बनाया हुआ है। मै उसके भीतर उतरता हूं तो घुप्प अंधरा था। मोबाईल के टार्च की रोशनी में दीवाल से चिपकी हुई एक गोह (गोईहा) दिखाई दी। मैने आगे बढने का ईरादा त्याग दिया। क्योंकि शुरुवात में ही कुछ ऐसे चिन्ह दिखाई दे दिए कि आगे बढना जान जोखिम में ही डालना नजर आया। जैसे कभी अनजान गाँव के तालाब में गहरे नहीं जाना चाहिए वैसे ही अनजान जगह में सुरंग या पहाड़ी खोह को पूरी देख भाल कर जाना चाहिए। 
सुरंग का मुहाना
अनजान जगह पर भीतर जाने का विचार त्याग देना चाहिए। क्योंकि भालू जैसा प्राणी ऐसे स्थानों पर पाया जाता है। जो कि बड़ा खतरनाक होता है। साथ ही पहाड़ी पर तेंदुए भी विचरण करते हैं जो रहने के लिए ऐसे ही मुफ़ीद स्थानों की तलाश करते हैं। सुरंग में जाने पर सड़ांध आई, जिससे अहसास हो गया कि यह किसी मांसाहारी प्राणी का ठिकाना बन चुकी है। इससे दूर ही रहना सही होगा। भंते रामचंद्र ने बताया कि यह सुरंग 25-30 फ़ुट आगे तक जाती है, फ़िर बंद है। ऐसी ही एक सुरंग और भी है। उसका दरवाजा बंद है।
हिडिम्बा टेकरी का शीर्ष
दो लड़के भी चश्मा लगाए हमारे पीछे पीछे यहाँ आए थे। वे तो थोड़ी देर में ही कूद फ़ांद कर नीचे जाने लगे। मैने उन्हे रोक कर पूछा कि उन्होने यहाँ क्या देखा और समझा? दोनो यूवक महाविद्यालय के छात्र थे। उनका कहना था कि कुछ समय होने के कारण इसे देखने चले आए। अब यह क्या है और किसने बनाया है? इसके विषय में उन्हे जानकारी नहीं है। सरासर सच कहा दोनों ने, उनकी बातें सुनकर अच्छा लगा। पुरातात्विक पर्यटन स्थलों पर अधिकतर यही होता है। गाईड की व्यवस्था न होने पर पर्यटक को कुछ समझ ही नहीं आता कि वह क्या देख रहा है और क्यों देख रहा है? 
शिल्पियों द्वारा कलात्मक निर्माण
बिना गाईड के किसी भी स्थान के विषय में जानकारी नहीं मिल पाती। पर्यटक आता है और मुंह फ़ाड़े देखकर चला जाता है।थोड़े से पैसे खर्च करके किसी स्थान के विषय में सार्थ जानकारी मिल जाए तो घुमने का उद्देश्य पूरा हो जाता है।  हम भी सिर्फ़ देखकर यहाँ की जानकारी लिए बिना ही वापस चल पड़ते हैं। खड़ी चढाई से उतरते समय सावधानी रखने की जरुरत है। थोड़ा सा पैर फ़िसला नहीं कि एकाध हड्डी टूटने की गारंटी मानिए। हड्डी टूटने पर धरती पर यमराज के एजेटों का चक्कर पड़ सकता है। इसलिए हम संभल कर नीचे उतरे और नागार्जुन स्मारक संस्था में पहुचे। जहाँ हमारी मोटरसायकिलें खड़ी थी।
हिडिम्बा टेकरी पर यायावर- पुख्ता सबूत
संस्थान में एक स्थान पर लिखा था कि यहाँ गंजों के सिर में 10 दिन में शर्तिया बाल उगाए जाते हैं। इसे पढकर जानने की इच्छा हुई तो केयर टेकर प्रो रामचंद्र से ही हमने पूछा। उन्होने बताया कि बाल उगाने वाली दवाई वे ही देते हैं और शर्तिया 10 दिनों में बाल उग आते हैं। उनके पास आने वाले बहुत से लोगों का वे ईलाज कर चुके हैं। मैने मजाक में कहा कि शर्मा जी सिर के बगल के कुछ बाल उड़े हुए हैं उन्हे उगा दीजिए। इसका अनुभव हम भी ले लेते हैं। तो उनका कहना था कि हम सिर्फ़ 30 साल से कम उम्र वाले व्यक्ति के ही बालों का ईलाज करते हैं। इससे अधिक उम्र वालों के सिर पर पूरे बाल नहीं आते तथा यह ईलाज गर्मी के दिनों में नहीं करते। क्योंकि गर्मी में दवाई से सिर पर फ़ोड़े फ़ुंसी निकलने का डर रहता है। 
प्रो रामचंद्र उके (केयर टेकर)
इसलिए बरसात का मौसम सबसे अच्छा होता है बाल की फ़सल उगाने के लिए। साथ ही उन्होने अपनी फ़ीस 10,000/- अक्षरी दस हजार रुपए भी बता दी। लेकिन बाल उगाने का मजबूत दावा पेश किया। हमने उनका पता लिया। उन्होने बताया कि इस स्थान से दो किलोमीटर पर नालंदा जैसी एक सरंचना भी उत्खनन में प्राप्त हुई है। उसे आपको अवश्य देखना चाहिए। पहाड़ी पर उत्खनन में प्राप्त सामग्री को यहाँ स्थित एक भवन में रखा गया है। पर उसकी चाबी अरुण कु्मार शर्मा जी के पास ही है। इसलिए उसे खोला नहीं जा सकता। प्रो रामचंद्र से हम विदा लेकर अगले स्थान की ओर चल पडे। 
शिल्पियों द्वारा ईंटो से निर्मित त्रिआयामी भवन विन्यास
गंजे सर पर बाल उगाने वाले का पता है - प्रो रामचंद्र उके, केयर टेकर, बोधिसत्व नागार्जुन स्मारक संस्था व अनुसंधान केन्द्र, मनसर, तहसील रामटेक जिला नागपुर (महाराष्ट्र) मो. 09823214196, 08055397715। इनसे सम्पर्क कर अपने रिस्क से सिर पर बाल उगाएं। (मनसर के ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक पहलू पर मैने नागपुर से आने के बाद सिरपुर जाकर अरुण कुमार शर्मा जी से चर्चा की वह विवरण आपको आगामी पोस्ट में मिलगा।) आगे पढें

34 टिप्‍पणियां:

  1. यहाँ ठंडे मौसम में यात्रा करनी चाहिए मज़ा दुगना हो जाता और शरीर उबलता भी नहीं ? सबूत की जरुरत ही नहीं है पता है यायावर जरुर गया होगा

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  2. हिडिम्बा टेकरी के बारे में फोटोसाहित बहुत बढ़िया जानकारी दी यायावर जी ....आभार

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  3. बहुत बढ़िया ..... गाइड की बात आपने सही कही है लेकिन गाइड कितनी सही बात बताएगा यह नहीं पता ...

    30 साल से कम उम्र के गंजों के लिए खुशखबरी लाये हैं आप ॥

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  4. @संगीता स्वरुप जी

    गाईड उतना तो बता ही सकता है जितना हम नहीं जानते और फ़िर उसकी लच्छेदार भाषा का आनंद भी मिलेगा कुछ कपोल कल्पनाओं के साथ। :)

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  5. सुन्दर वर्णन .
    सही कहा , बिना गाइड के बस ईंट पत्थर ही नज़र आते हैं .
    फिर भले ही वो बस दिलचस्प कहानियां सुनाता रहे .
    गंज का इलाज ही गंजा कर देगा . :)

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  6. बढ़िया वृत्तांत......
    और अपन न ३० से कम हैं न गंजे....
    :-)

    सादर
    अनु

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  7. जय हो ..ललित भाई ...यायावरी ज़िंदाबाद । बहुत खूब परिचय कराया आपने ।बेहतरीन पोस्ट

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  8. आप इतनी रोमांचक, जोखिम और कष्टभरी यात्राएं करते हैं। इसके बाद उनका रोचक, सचित्र वर्णन प्रस्तुत करते हैं। हम पढकर आपके अनुभव में डूबकर उसका लुत्फ लेते हैं।
    आपका जितना आभार किया जाए कम है।
    पुरातत्वीय धरोहरों के प्रति आपका लगाव और चिंता भी वंदनीय है। सच में ये धरोहरें सहेजना जरुरी है पर जिम्मेदारों की सजगता ही सुप्त है तो कोई क्या कर सकता है।

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  9. श्री रामचंद्रजी (केयर टेकर) को अपने सिर के बालों का विस्तार करके अपनी दवा की प्रामाणिकता सिद्ध करना चाहिए।

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  10. यात्रा बहुत रोमांचक थी यदि उस वक़्त कुछ जानकारी मिल जाती तो आनंद दुगुना हो जाता कोई बात नहीं आपकी पोस्ट के माध्यम से ये कमी भी पूरी हो जाएगी... और हाँ मीनाक्षीजी आपकी बात से हम पूर्ण रूप से सहमत है देखिये रामचंद्र जी का चाँद सूरज की रौशनी में कितना चमक रहा है, शायद यह उपलब्धि उन्हें 30 वर्ष की आयु के बाद मिली होगी... :))

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  11. मगर उके जी को देखने पर पता चलता है कि उनके खुद के सिर के बाल गायब हो रहे हैं...
    लगता है वे ग्राहकों के सिर पर दस हजार की चंपत लगाते होगें :)

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  12. रोचक यात्रा वृत्तान्त..त्रिविमीय तो विशेष था..

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  13. aअच्छी रोचक जानकारी। धन्यवाद्

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  14. अच्छी और नई जानकारियां मिलती हैं आपकी इन ऐतिहासिक स्थलों की यात्रा वाली पोस्ट्स के ज़रिये...आभार

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  15. अद्भुत और सुन्दर यात्रा वृतांत .खुबसूरत .....

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  16. रोचक सुंदर जानकारी,,,के लिये ललित जी आभार,,,,,

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  17. सैलानी की कलम से सैलानी की ही यायावरी का आनंद साथ रहकर बिताया .आपने शब्दों को जीवंत कर दिया .....

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  18. एक दम मस्त जात्रा-संस्मरण दादा

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  19. गंज डाक्टर का पता नहीं देते तो अच्छा था, ना जाने कौन कौन अपने बाल उड़वायेगा !
    यह पहाड़ी रहस्यमय लगी और ना जाने कितना खजाना छिपाए है !

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  20. बहुत ही सुन्दर यात्रा वर्णन मजा आ गया पढकर और आपके लेखन अनुभव से हमने भी वहाँ कि सम्पूर्ण यात्रा कर लिए हैं, पर जो बाल उगाने का दावा कर रहे हैं वह पहले खुद क्यों अपने बाल नहीं उगा पा रहे हैं उनके तो खुद के बाल उड़े हैं ?
    आपने जो चित्र लगाया है उनका उसके आधार पर कह रहा हूं जो उसमें दिख रहा है ऊपर के बाल सफ़ेद के साथ उड़े भी हैं.

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  21. @ललित भैया मैंने पूरी तरह से पढ़ी है आपकी यह लेख और बाल उगाने वाले डॉक्टर कि बात कि वो सिर्फ ३० साल से कम के लोगों का ही ईलाज करते हैं पर उनको यह अनुभव महज १ या २ साल में नहीं हुआ होगा कम से कम उसको यह १० वर्ष तो जरुर लगे होंगे शर्तिया ईलाज करने कि गारंटी देने के लिए, सो हमने सोचा कि वो अपने ऊपर भी क्यों नहीं अपने दवा का उपयोग करते कम से कम पुरे ना सही कुछ तो आ ही जाते ना, खैर यह उनकी समस्या है कि करें या न करें पर मैं यह नहीं समझ पाया कि मेरी टिप्पणी कहाँ गयी जिसके लिए आपने मुझे रिप्लाई किया है अब इस टिप्पणी को लोग पढ़ेंगे तब तो समझ ही नहीं पायेंगे के मैंने ऊपर जो लिखा है उसका मतलब क्या है सो आप एक काम और करें आप इसको पढ़ कर उस पहले वाले टिप्पणी के पास इसको भी पहुंचा दे ताकि आप अपने रिप्लाई का जवाब भी पा कर समझ जाएँ और दूसरों को कोई भ्रम भी ना हो कि मैंने ऐसा टिप्पणी कैसे किया है. धन्यवाद

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  22. कई तालों की चाबी है अरुण कुमार शर्मा जी के पास.

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  23. हिडिम्बा भीम की पत्नी थी ...शायद यह स्थान पांडवों के अज्ञातवास का साक्षी रहा हो ... ऐतिहासिक या पुरातात्विक दृष्टिकोण से परिपूर्ण ऐसे स्थानों पर अनुभवी गाईड की आवशयकता होती है , इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए .
    भयंकर गर्मी में इस तरह के पर्यटन के लिए हौसला चाहिए ...
    हमेशा की तरह रोचक दास्ताँ यायावरी की !

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  24. रोचक जगह है। जानकारी के लिये धन्यवाद!

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  25. बहुत उत्कॄष्ट यायावरी वॄतांत, शुभकामनाएं.

    रामराम

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  26. बहुत उत्कृष्ट यात्रा वृतांत

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  27. मानसर में जो कुछ भी है, बौद्ध कालीन ही होंगे. शिवलिंगों की स्थापना प्राचीन नहीं रही होगी.सर पे बाल उगाने के लिए १०००० तो दिए जा सकते हैं परन्तु ३० वर्ष की आयु कहाँ से लायें. अच्छा लगा आप का साथ देकर.

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  28. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  29. रोचक जानकारी बहुत ही सुन्दर यात्रा वर्णन ..... ललित जी

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  30. बहुत बढ़िया यात्रा वृत्तांत है ललित जी ! दो वर्ष पूर्व हम भी गुजरात में ऐसे ही स्थान धौलावीर गये थे और हमें भी आपकी तरह ही अनुभव हुए थे ! ना तो गाइड की व्यवस्था थी ना ही उस स्थान पर बिखरी पड़ी पुरातन काल की मूल्यवान वस्तुओं के संरक्षण की कोई व्यवस्था ! वृत्तांत के साथ आपकी महत्वपूर्ण सलाहें भी याद रखने लायक हैं ! गंज का शर्तिया इलाज करने वाले रामचंद्र जी का पता आप न देते तो अच्छा था ! कई लोग बेवकूफ बनने से बच जाते ! रोचक संस्मरण के लिए आपका आभार !

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  31. इतिहास को नए आयाम देती आपकी यह श्रंखला .....! एक जीवंत इतिहास का सृजन हो रहा है ...दुसरे शब्दों में धर्मवीर भारती की तरह आँखों देखा हाल वयां किया जा रहा है ...! इतिहास का ...!

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