गुरुवार, 27 सितंबर 2012

कमला बाई की कहानी, उसकी जुबानी

नागपुर से ट्रेन में सवार हुआ, आरक्षण था नहीं, नसीब में रायपुर तक का जनरल बोगी का ही सफ़र लिखा था। दूरी भी अधिक नहीं है, सिर्फ 5 घंटे का सफ़र यूँ ही कट जाएगा। भारी भीड़ के बीच बड़ी मशक्कत के बाद बोगी में घुस सका, चलने की जगह पर भी लोगों का सामान रखा हुआ था।
बड़ी जद्दोजहद के बाद बालकनी (उपर की सीट) पर पहुंचा। नीचे की सीटों पर छत्तीसगढ़ से कमाने-खाने बाहर गए परिवार बैठे थे। लम्बी सी एक महिला पहुंची, नीचे सीट न देखकर वह भी बालकनी में चढ़ने का प्रयास करने लगी, लेकिन सफल नहीं हो सकी।
सहायता के लिए मेरी और देखा तो मैंने उनका हाथ थाम कर चढाने की प्रयास किया, लेकिन सफलता नहीं मिली। फिर वह सामने की तरफ से सीट पर पैर रख कर बालकनी तक पहुचने में कामयाब हो गयी। अब सभी सवारियां कोच में ठंस चुकी थी। ट्रेन खुलने में एक घंटा और था।
उस अधेड़ महिला ने मुझसे पूछा कि कहाँ जा रहे हो? मैंने बताया "रायपुर", तो उसने बताया कि वह रायपुर के गर्ल्स डिग्री कालेज से पास आउट है। वर्ष पूछने पर वही वर्ष बताया जिसमे मैंने भी रायपुर से पढाई की थी। मेरे कालेज का नाम सुनकर बोली -" वह तो बड़ा ही फेमस कालेज है, और ठहाका लगा कर कहा - आप भी कभी लाइन मारने हमारे कालेज आते होगे? 
मैं सकपका गया :) कहीं पहचान तो नहीं गई, मैंने भी ठहाका लगा कर उसका साथ दिया और कहा - मेरे कालेज का रास्ता आपके कालेज से ही होकर जाता था। फिर वहां की कैंटीन और उसके साथ पुरानी भूली-बिसरी यादों में गोते लगाने लगे। उस समय के साथियों को याद करने लगे। चर्चा चलते रही।
मैं उसे पहचानने की कोशिश करने लगा। परन्तु पहचान नहीं पाया। उसने भी अपनी पहचान छुपा ली, मुझे कुछ नहीं बताया अपने बारे में। एक हाथ में सोने का कंगन और दूसरे हाथ में सोने की घडी पहने थी। सुहाग चिन्ह कहीं दिखाई नही दे रहे थे, चेहरे पर विधवा सी उदासी थी। मैंने अधिक जानना ठीक नहीं समझा। 
ट्रेन चल पड़ी थी, मैं सोचते रहा कि इस तरह बिंदास होकर किसी ने पुरे जीवन में ही नहीं पूछा कि कभी लाइन मारने हमारे कालेज आते होगे? उसके व्यक्तित्व को लेकर चिंतन चलते रहा। उसने बताया कि उसके परेंट्स नागपुर में रहते थे और वह गर्ल्स डिग्री कालेज के हास्टल में रहकर बायो की पढाई कर रही थी। 
इससे इतना ही जाहिर हुआ की वह बायो स्नातक है। अगले स्टेशन पर मेरे बगल की सीट खाली हुई। नीचे बैठी एक मोटी सी अधेड़ महिला उस पर चढ़ गयी। उसे ऊपर चढ़ने के लिए किसी भी सहायता जरुरत नहीं पड़ी। हाथो में सोने की मोटी-मोटी चूड़ियाँ पहन रखी थी, गले में सोने की चैन और कान में सोने के बुँदे भी। रंग धूप में पका हुआ था, चेहरे पर जीवन से संघर्ष की छाया स्पष्ट दिख रही थी। छुई-मुई नहीं, मेहनतकश महिला लग रही थी।
प्रदेश के लोग मिलने पर अपनी छत्तीसगढ़ी बोली में बात करने का लोभ नहीं छोड़ पाता। छत्तीसगढ़िया मिला और बात शुरू हो जाती है। महिला ऊपर की सीट पर बैठ कर अपने साथियों के साथ छत्तीसगढ़ी में बात करने लगी। इससे जाहिर हुआ कि सब जम्मू से से आ रहे हैं। मैंने सोचा कि महिला इतनी मोटी है कि वह मजदूरी नहीं कर सकती, अपने बेटे बहुओं के बच्चों की रखवारी करने साथ गई होगी।
मेरा ऐसा सोचना सही नहीं था। उससे पूछ बैठा कि वह जम्मू में क्या काम करती है? मेरा  पूछना ही था बस वह शुरू हो गयी, उसने अपने जीवन की कथा ही खोल कर रख दी। मैं मन्त्र मुग्ध उसे सुनता रहा।
"मैं जम्मू में अपना धंधा करती हूँ, देह भारी हो गई और उम्र भी बढ़ गई इसलिए शारीरिक श्रम के काम नहीं होते। महीने में 15 दिन जम्मू के पास बड़ी बम्हना में रहती हूँ, वहां बहुत सारे छत्तीसगढ़िया रहते हैं, उनको कपडे, सुकसी( सुखाई हुई मछली), गुड़ाखू, बाहरी, सूपा और भी बहुत सारे सामान ले जाकर बेचती हूँ, इससे ही मेरा गुजर बसर चलता है। बच्चों को पालने के लिए कुछ तो करना पड़ता है बाबू साहब। आप क्या करते हैं? उसने अपनी बात कहते हुए सवाल दाग दिया। मैंने बताया कि घुमक्कड़ हूँ और घुमक्कड़ी पर लिखता हूँ। वह समझ गई "पेपर लिखैया" है।
बाबू, मैंने भी सरपंची का चुनाव अपने गाँव सरसींवा से लड़ा है। फेर लोगों ने हरवा दिया। ढाई लाख खर्च हो गया। सब सगा लोग खा पी गए, रांड़ी दुखाही का खाने से कौन सा उनका भला होने वाला है? 22 बरस पहले मेरे धनी की मौत हो गई। 
मेरे पांचो लड़के छोटे थे। धनी के रहते कभी बाजार नहीं गई थी सब्जी लेने भी। मुझे बहुत चाहते थे, सिर्फ घर का ही काम करती थी। उनकी किडनी ख़राब हो गयी तो रायपुर के समता कालोनी के बड़े डाक्टर से उनका इलाज करवाया, सब गहना गुंथा बिक गया, लेकिन उन्हें बचा नहीं पाई।
बच्चों को पढाना बहुत जरुरी था, इसलिए नए सिरे से जिन्दगी शुरू की। मैंने पहला धंधा दारू बेचने का शुरू किया। उलिस-पुलिस थाना कभी देखा नहीं था। दारू के धंधे में अच्छी कमाई थी।
थाने वालों ने 6 बार छापा मार कर अपराध दर्ज किया, कोर्ट में पेशी में जाती थी। सब में बाइज्जत बरी हो गयी। बस वकील लोगों को डट के पैसा देना पड़ा। बड़े लड़के ने एम् ए किया, उससे छोटे ने बी ए। नौकरी नहीं लगी तो ड्राईवर बन गए। 
उससे छोटा लड़का पखांजूर से आई टी आई किया है और एक फैक्टरी में नौकरी कर रहा है। 5 बेटा और 3 बहु और 7 पोते -पोती हैं। पक्का घर और 6 दुकान बना दी हूँ, एक बेटे का व्यव्हार ठीक नहीं है इसलिए उसे अलग कर दिया। वह अलग रहता है, उसका महीने का राशन भेज देती हूँ, बहु को कह दिया है कि किसी चीज की कमी हो तो लिस्ट बना कर भेज दिया करे।
मैं रिक्शे में राशन भरवा कर भेज देती हूँ।  रानी कुंती ने 5 बेटों के लिए एक बेटे कर्ण को त्याग दिया था, मैंने भी 4 बेटों के लिए एक बेटे  को त्याग दिया। उसे अलग कर दिया। मेरी सम्पत्ती का बटवारा उसे मेरे मरने पर मिलगा, ऐसा फौती चढवाई तब पटवारी को लिखवा दी थी।
उसकी कहानी शुरू थी और मैं सुन रहा था। गाड़ी अपनी रफ़्तार से स्टेशन पर सवारी उतारते-चढाते चल रही थी। मेरी सफ़र की साथिन के जीवन के उतार चढाव भी कुछ इसी तरह जारी थे। उसने कथा जारी रखी। 
एक दिन थानेदार ने छापा मारा और कहा - कमला बाई अब दारू का धंधा बंद कर दो। तो मैंने कहा कि साहब अपने घर में झाड़ू बर्तन का काम दे दो। जिससे मैं अपने बच्चों को पाल सकूं। थानेदार साहब चुप हो गए। दारू का धंधा चालू रहा।
दिन भर आडर लिखती और रात को 12 बजे के बाद हाथ में लोहे की राड लेकर घर से चुपके से निकलती, गाँव से 3 किलो मीटर दारू की गाड़ी बुलवाती और रात भर में आडर का माल सप्लाई करके सुबह 4 बजे घर आकर चुपचाप सो जाती।
दारु का धंधा जरुर किया पर कभी भी दारु का एक छींटा मुंह में नहीं लिया। बच्चे बड़े  होने लगे तो मैंने दारू का धंधा खुद ही छोड़ दिया। कमाई तो बहुत थी पर ऐसा धंधा भी किस काम का जिससे बच्चे बिगड़ जाएँ।
गाँव के आस पास से काफी लोग जम्मू कमाने खाने जाते हैं, मैंने सोचा कि उनके लिए छत्तीसगढ़ में दैनिक जीवन में प्रयुक्त होने वाली जरुरत की चीजे वहां ले जाकर बेचूं तो अच्छी कमाई हो सकती है। तब से मैंने यह धंधा शुरू कर दिया।
यहाँ से जम्मू तक सामान ले जाने में समस्या बहुत आती है, लगेज में बुक करके ले जाने में बहुत खर्च होता है। सारी कमाई लगेज में ही खप जाती है। इसलिए सब सामान जनरल बोगी में ही भर देती हूँ, एक तरफ की लैट्रिन में सामान भर कर दरवाजा लगा देती हूँ और एक सीट पकड़ कर बैठ जाती हूँ।
पुलिस वाले सब पटे हुए हैं, कोई 10 तो कोई 20, ज्यादा से ज्यादा 50 रूपये देती हूँ। लेकिन कई बहुत मादर ....... होते हैं। तो उनसे उसी तरह निपटती हूँ, जस को तस। एक बार टी टी ने बहुत परेशान किया। पुलिस बुला लिया। जेल भेजूंगा कहने लगा, तो मैंने उसे समझाया कि जेल से बहर आउंगी तो धंधा यही करुँगी। तेरे से भी निपट लुंगी।
अकेली औरत देख कर धमकाता है क्या बे? मेरा भी नाम कमला बाई है। तेरे जैसे पता नहीं कितने देखे। हर महीने आती हूँ बीसों साल से तेरे को जो उखाडना है उखाड़ ले। मैं किसी से से नहीं डरती, कोई चोरी चकारी करुँगी तो डरूंगी। बाकायदा टिकिट लेकर गाड़ी में चढ़ती हूँ। फिर वह टीटी 200 में मान गया। पेट की खातिर सब करना पड़ता है। 
उसने ब्लाउज से बटुवा निकला, उसमे मतदाता पहचान पत्र और पैन कार्ड था। ये सब मैंने बनवा रखा है, भले ही पहली दूसरी क्लास पढ़ी हूँ पर हिसाब-किताब सब जानती हूँ, जो भी सामान उधारी में बेचती हूँ उसे डायरी में लिखती हूँ, हर महीने 5 तारीख तक जम्मू  जाती हूँ सामान लेकर और 20 तारीख तक सामान बेच कर उधारी वसूल कर घर आ जाती हूँ। 
अभी जम्मू में मेरी 2-3  लाख की उधारी बगरी है। वहां काम करने वालों को 7 से 15 तारीख तक तनखा मिलती है। उस समय मेरा वहां रहना जरुरी रहता है वर्ना उधारी डूब जाएगी। गांव में ए टी एम् है, वहां से बैंक में पैसा जमा करवा देती हूँ और यहाँ निकाल लेती हूँ। जम्मू में एक झोपडी बना रखी है, जिसमे टी वी कूलर सब है। खाना बनाने के सारे सामान की बेवस्था है।
कभी आप जम्मू आओगे तो अपने हाथ से बना कर खिलाऊंगी। मुझे उसके बटुए में दवाई दिखाई दी, तो उसने बताया कि बी पी की गोली है। बच्चेदानी का आपरेशन करवाया तब से खा रही है।बीपी की गोली के साथ नींद की गोली भी थी। कहने लगी इसे दिन में खाती हूँ तब अच्छा लगता है। अब आदत हो गयी है। 
जम्मू में सब लोग पहचानते हैं, किसी छत्तीसगढ़िया कोई समस्या होती है तो उसका निदान भी करती हूँ, उन्हें अस्पताल ले जाती हूँ, उधारी पैसा कौड़ी भी देती हूँ, किसी का रुपया पैसा घर भेजना रहता है तो अपने एकाउंट से भेज देती हूँ। 
गाँव में मेरा बेटा एटीएम् से रुपया निकल कर सम्बंधित के घर पहुंचा देता है। मेरे से जितना बन पड़ता है उतना कर भला कर देती हूँ। अब कुछ लोग कह रहे थे कि जम्मू आने के लिए भी लायसेंस लेना पड़ेगा। ऐसा होगा तो बहुत गलत हो जायेगा।
इस बात पर कई लोगों से मेरा झगडा भी हो गया। जम्मू से चलते हुए सेब लेकर आई हूँ, नाती पोते लोग इंतजार करते रहते हैं, दाई आएगी तो खई खजानी लाएगी अभी घर जाउंगी तो मेरे लिए नाती पोते पानी लेकर आयेगें, खाट पर पड़ते ही मेरे ऊपर चढ़ कर खूंदना शुरू कर देगें। देह का सारा दर्द मिट जायेगा। फिर नहा कर अपने आस पड़ोस में बच्चों को सेब दूंगी। नाती पोतों के संगवारी भी मेरे आने का इंतजार करते हैं।
गाडी दुर्ग स्टेशन पहुँच चुकी थी। कमला बाई की कहानी ख़त्म होने का ही नाम नहीं ले रही थी। उसके पैन कार्ड में यही नाम लिखा था "कमला बाई", फिर वह कहती है - मेरा बेटा रायपुर आया है, पुलिस में भरती होने। आज उसका नाप जोख है। 
वह कहता है कि पुलिस की ही नौकरी करेगा। कोई उसे पुलिस की नौकरी लगा दे तो 4 लाख भी खर्च करने को तैयार हूँ, एक बार अपने सगा थानेदार को 3 लाख रुपया दी थी, पर वह नौकरी नहीं लगा सका। 5 हजार रुपया काट कर बाकी वापस कर दिए।
5 बेटा हे महाराज, नोनी के अगोरा मा 5 ठीक बेटा होगे। अब एक गरीब की लड़की को पाल पोस रही हूँ, वही मेरी बेटी है। उसकी शादी करुँगी। जब तक जांगर चल रही है। जम्मू की यात्रा चलते रहेगी। मेरा गंतव्य समीप आ रहा था, कमला बाई का साथ छूटने का समय था।
उससे मोबाईल नंबर लिया और अपना कार्ड दिया। सामने बैठी महिला से कमला बाई ने पूछा कि वह कहाँ जाएगी? तो उसने कहा कि जहाँ फोन आएगा वहीँ उतर जाउंगी, बिलासपुर, जांजगीर, खरसिया इत्यादि। दोनो महिलाओं में कितना अंतर था। एक ने पूरी जीवन गाथा सुना दी और दूसरी ने पता ठिकाना भी नहीं बताया।
दो अनुठे पात्रों से मेरा सामना हुआ। कमला बाई के जीवन संघर्ष की गाथा सुनते हुए रायपुर कब पहुँच गया, पता ही नहीं चला। गाडी से उतरते हुए कमला बाई को सैल्यूट किया और कभी जम्मू में मिलने का वादा करके गंतव्य की ओर बढ़ लिया। आगे की स्टोरी पढने के लिए यहाँ क्लिक करें।

61 टिप्‍पणियां:

  1. दिल जीत लिया " कमलाबाई " ने हमारा भी उन्हे सलाम कभी कभी सफर भी यादगार बन जाते है आपकी ये पोस्ट पढ़ रहा था तो ऐसा लगता था की ये मेरी आंखो के सामने हो रहा है ...जम्मू ,रायपुर
    शानदार पोस्ट और मै ये भी कहूँगा की जनरल डिब्बे मे बैठकर जब आप कमला बाई से मिले तो ऐसा ही लगा होगा की भले ही मुझे आरक्षण नहीं मिला वरना " कमला बाई " से मुलाक़ात नहीं होती

    सलाम है कमला बाई को और आपको क्यू की आपकी लेखनी ने जकड़कर जो रखा लेखनी के प्रवाह मे हम भी बहते थे

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  2. एक संघर्षरत , जीवट महिला से साक्षात्कार ...धारा प्रवाह ..
    बहुत बढ़िया.

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  3. कमला बाई की कहानी ज़िंदगी को जीने की प्रेरणा देती है ... बढ़िया लेख

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  4. दुर्ग जल्दी आ गया वरना आगे भी कुछ और बताती ...:):) बहुत ही अच्छा ..

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  5. जीवट वाली महिला निकली कमला बाई , बिना प्रचार प्रसार के भी साहसी महिलाओं की कमी नहीं है !

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  6. बडी ही भयंकर कथा , अगर अनुराग कश्यप या वासेपुर जैसे निर्माताओ की नजर में आ गयी तो फिल्म बना डालेंगे वो भी बिना क्रेडिट के ,

    बढिया रचना

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  7. मुग्ध ( आपकी लेखनी की ताकत पर) और क्षुब्ध (व्यवस्था की विद्रूपता पर) हूँ ललित भाई - बहुत खूब
    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    http://www.manoramsuman.blogspot.com
    http://meraayeena.blogspot.com/
    http://maithilbhooshan.blogspot.com/

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  8. यदा कदा और ट्रेन की हर यात्रा पर याद आयेगी -एक थी कमला बाई.

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  9. ललित भाई...
    आपकी अब तक की लेखनी में सर्वश्रेष्ठ ....

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  10. जीवटता का प्रतिरूप लग रही थीं, कमलाबाई जी।

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  11. कमला बाई के साहस को नमन....शुरू से अंत तक उत्सुकता बनी रही, श्रेष्ठ लेखन... लाजवाब प्रस्तुति

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  12. जनरल बोगी में सफर का भी अलग ही मजा है...वरना कमला बाई की कथा नहीं मिल पाती.... ऐसी महिलाओं को कोई सम्‍मान दिलवाया जाना चाहिए...

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  13. ललित भाई जी जीवन इतना ही संघर्ष पूर्ण है हाँ हमारे चारों ओर एक अलग कहानी है . कमला बाई को प्रणाम और उसके अदम्य साहस को .

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  14. कमला बाई की कथा संघर्षमय भले ही हो प्रेरक भी है कि कैसे विषम परिस्तितियों से पार पाया जाता है ।रोचक तो है ही आप के लेकनी का कमाल है ।

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  15. यह कमलाबाई है या कोई वीरांगना? बडी अद्भुत महिला है। ऐसे लोगों के जीवट की कहानी आज की महिला को जरूर सुनानी चाहिए।

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  16. एक खुली किताब की तरह और एक चारों तरफ से बंद, दोनों चरित्र अनूठे|

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  17. जीवन जद्दोजहद, कभी संघर्ष जैसा, कभी खेल-सा.

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  18. जनरल बोगी में सफर का भी अलग ही मजा है
    आपका वृतांत पढ़कर ऐसा लगा जैसे हम ही आपके साथ बैठे सफर कर रहें हो

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  19. बहुत ही अच्छा लिखते हैं आप ।

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  20. कैसै हो गई चूक, नहि कर पाये पठन हम.
    बैठ गये बन मूक, लखि साहस उस देवि का.
    अपनी बोली, अपनी भाषा और ललित- लेखन की शैली
    ने सचमुच इस पर चार चांद लगॉ दिया है......बीलेटेड बधाई व आभार....



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  21. एक महिला के संघर्ष की उम्दा कहानी लिखी जनाब।

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  24. शुरू से अंत तक कुछ सोचने का समय ही नही मिला।शब्दों के जाल का आकर्षण बाहुबली 2 जैसा था।

    अच्छी यादें हमेशा याद रह जाती हैं।

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  25. शानदार कसी हुई पोस्ट । एक बार भी ध्यान हटने नहीं देती ।

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  26. वाह जी वाह ।
    जीवन में ऐसे कई पात्र मिलते है, जिन्हें सलाम करने को जी चाहता है ।
    जय हो कमला बाई की
    जय हो आपकी भी,जो हमे इनसे रु ब रु कराया ।

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  27. मेरा अपना मानना है कि भारत को अगर नजदीक से देखना और समझना है तो एक अच्छा जरिया है भारतीय रेल की जनरल बोगी

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  28. आज के समय मे इस तरह पाठ्य वस्तु देखते है तो खूद ब खूद दिल दिमाग खो जाता है ।इस तरह की संस्मरण बहुत कम मिलते है ।ऐसी सिर्फ मुन्शी प्रेम चन्द जी ने ही उपलब्ध कराया था ।

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  29. ऐसी बहुत सी कमलाबाई आप सदर स्टेशन पर देख सकते हैं, सामान लदवाते हुए, चलती गाड़ी से साथ ही लदते हुए, कुली धमकाते हुए सचमुच भारतीय नारी सब पर भारी

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  30. यह ज़िंदगी के खट्टे मीठे किस्से याद बन कर रह जाते है और फिर ऐसी किसी याद को याद करके हँसी आ जाती है चेहरे पे...कमला बाई की कहानी जानकर बहुत अच्छा लगा

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  53. बहुत ही प्रेरक व्यक्तित्व कमलाबाई छतीसगढिया माता की संपूर्ण छवि।

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