यह सत्य घटना है, इसका नजारा हमने देखा है. इस घटना का किसी जीवित या मृतक के साथ कोई संबंध नहीं है. कभी-कभी आदमी ज्यादा होशियारी के चक्कर में दही के धोखे में कपास खा जाता है और ऐसा सबक मिलता है कि जीवन भर याद रखता है. इसी तरह की एक घटना का वर्णन इन पंक्तियों में है.
एक दिन की बात है
हम चौक के पान ठेले पर शाम को खड़े थे
और भी दो चार लोग बतिया रहे थे.
बातों के घूँसे चला रहे थे
और सरकार को लतिया रहे थे.
बगल में कुछ शोहदे भी खड़े थे
जो अभी नए-नए अंडे फोड़ कर बाहर निकले थे.
नए पंखों से उड़ने को बेकरार
पंख फडफड़ा कर एकदम हुए तैयार,
मर्दानगी का जोश उफान पर था,
इसलिए उनका जमघट पान की दुकान पर था.
हम पहले भी ऐसे कईयों को पीट चुके थे
उनको सबक सिखा चुके थे.
अब हमने सोचा कि आज तमाशा ही देखें,
हमें भी कुछ लिखने का सामान मिल जायेगा
नही तो चाय पानी का ही खर्चा निकल जायेगा.
इतने में देखा कि हीरो होंडा पर
दो पुरुष जैसी नारियां सवार होकर सामने से निकली,
तभी एक लड़के की जबान फिसली,
उसने जोर से सीटी बजाई,
बाकी लड़कों ने भी साथ दिया
और हाँ में हाँ मिलाई,
मतलब क्रम से सीटी बजाई,
वो सवार कुछ दूर चले गए थे
उन्हें सीटी की आवाज दी सुनाई,
सुनते ही अपनी मोटर सायकिल घुमाई,
जैसे ही वो पास आए
सारे लड़के रह गए हक्के-बक्के
वो ना नर थे, ना नारी थे, वो थे छक्के.
एक बोला बताओ किसने सीटी बजाई,
हम हैं बहन जैसे भाई
आज किसकी शामत है आई,
क्या तुमको चाहिए माँ जैसी लुगाई
इतना सुनते ही वो दल खिसक गया
सीटी बजाने वाला लड़का फँस गया.
क्या बताऊँ वहां का आँखों देखा हाल,
दोनों छक्कों ने उस "नवोदित मर्द" का
मार-मार कर दिया बुरा हाल.
बीच चौराहे पर उसका तमाशा बना डाला,
कपडे फाड़ कर नंगा कर डाला,
वो मर्द बार-बार छक्कों से कर रहा था गुहार,
एक छक्का उसे पीछे से था पकडे
दूसरा कर रहा था प्रहार,
लड़का बोल रह था मुझे छोड़ दो
सीटी जिसने मारी थी वो तो भाग गया
उसे पकडो और उसका सर फोड़ दो,
तभी एक छक्का बोला
क्यों फिर लेगा छक्कों से पंगा
साले बड़ा मर्द बनता फिरता है
हो गया ना नंगा,
मर्दानगी का नशा उतर गया
की थोडा और उतारू
तेरी सलमान कट जुल्फे
थोडी उस्तरे से सुधारू
उस लड़के को सांप सूंघ गया
वो थूक गटक के लील गया
सर-ए-आम मार खा-खा के
पूरा अन्दर तक हिल गया.
फिर हिम्मत करके बोला
माई-बाप अब तो छोड़ दो
फिर कभी किसी को देख के
सीटी नहीं बजाऊंगा
अब मैं समझ गया, अब मैं समझ गया
एक छोटी सी सीटी की इतनी बड़ी सजा
कभी भी नहीं पाई है
क्या पता कौन सा सवार
बहन जैसा भाई है........
बहन जैसा भाई है.........
धासूं रचना
जवाब देंहटाएं... prasanshaneey rachanaa, badhaai !!!
जवाब देंहटाएंग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है
जवाब देंहटाएं...बाजा फ़ाड दिये हो ललित भाई ... पर किसका ... समझ नहीं आ रहा है !!!
जवाब देंहटाएंall iss welll.
जवाब देंहटाएंall iss welll .... superb,nice,sweet.
जवाब देंहटाएंसुन्दर...अति सुन्दर...
जवाब देंहटाएंइन बहन जैसे भाईयों से जितना दूर रहा जाए...उतना ही अच्छा है
बहुत बढिया!
जवाब देंहटाएंvyangyaatmak rachnaa, bahut sundar.
जवाब देंहटाएंमर्दानगी के ऐसे जोश के उफान में यही स्वाभाविक दृश्य बनता है.
जवाब देंहटाएंवाह! आज कि इस रचना ने तो कमाल कर दिया............ बहुत ही शानदार..........
जवाब देंहटाएंवाह! आज कि इस रचना ने तो कमाल कर दिया............ बहुत ही शानदार..........
जवाब देंहटाएंकविता, शेरो शायरी, गजल इत्यादि के बारे में अपना तो बस यही फंडा है की जो समझ आ जाए वो बढ़िया है. अपनी इस नजर से तो ये वाली बेहतरीन है..
जवाब देंहटाएंहे राम !
जवाब देंहटाएं:)
शानदार रचना !
जवाब देंहटाएंहा-हा-हा
जवाब देंहटाएंआज तो जीईईईईईईईईइस्सस्स्सस्स्स्ससससा आग्या जी
प्रणाम
इस तरह के सड़क छापों, जिनके हाथ पैर मे दम नही, हम किसी से कम नहीं, को ऐसे ही सबक सीखने को मिलना चाहिए।
जवाब देंहटाएंपिछले शनिवार को आपसे बात हुई। उसी समय "बीसदिनाबंद" फोन चालू हो गया। उनको कैसे पता चला कि आप को पता चल गया है और अब उन्हें पता चलने वाला है?
गजब है यार !!!!!!!!!!!!!
क्या बताऊँ वहां का आँखों देखा हाल,
जवाब देंहटाएंदोनों छक्कों ने उस "नवोदित मर्द" का
मार-मार कर दिया बुरा हाल.
:) :) आज तो गज़ब के तेवर हैं ...बहुत बढ़िया ..
बहुत मजेदार रचना है |
जवाब देंहटाएंनवोदित मर्द की जब हो गई कसके सुटाई .... गजब का लिख्खें है भाई ... वाह वाह
जवाब देंहटाएंहा हा हा ...सही अंजाम उन सीटी वालों का ...गज़ब लिखा है आज तो.
जवाब देंहटाएंvaah क्या सीन है ?
जवाब देंहटाएंमजेदार भी और सबक सिखाऊ भी ।
जवाब देंहटाएंसड़क छाप मजनुओं का बढिया जुलुस निकाला छक्कों ने।
जवाब देंहटाएंअरे भैया! ये छक्के नहीं आज की दुनिया मे महामर्द हैं।
इनको देख कर तो अच्छे अच्छों की घिग्गी बंध जाती है।
तेरी सलमान कट जुल्फे
जवाब देंहटाएंथोडी उस्तरे से सुधारू
नए कप्तान को यह अभियान चलाना चाहिए
इन मजनुओं की जुल्फ़ों पर उस्तरा चलाना चाहिए
आपकी कविता आज के समाज का आईना है।
जवाब देंहटाएंजो समाज में घट रहा है उसे आपने कविता में कह दिया।
आपकी कविता आज के समाज का आईना है।
जवाब देंहटाएंजो समाज में घट रहा है उसे आपने कविता में कह दिया।
अब तो बेचारा जीवन भर सीटी न बजायेगा...
जवाब देंहटाएंकहाँ फंस गया!!
आपकी कविता आज के समाज का आईना है।
जवाब देंहटाएंजो समाज में घट रहा है उसे आपने कविता में कह दिया।
बहुत खूबसूरत रचना। वाह क्या कहने हैं आपकी लेखनी के। आपने अपनी इस लेखनी के माध्यम से सड़क-छाप मजनुओं की तो पूरी बोलती ही बंद कर दी। इस खूबसूरत रचना के लिए आप बधाई के पात्र हैं।
जवाब देंहटाएंhttp://wwwhindimeriawaz.blogspot.com/
सुखद अंत!!
जवाब देंहटाएंzabardast rachnaa
जवाब देंहटाएंबहुत ही जबरदस्त, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम
बहुत सुंदर कविता जी,
जवाब देंहटाएंहा-हा-हा aanand-dayak kavitaa. hasya aur vyangya dono hai...
जवाब देंहटाएंगज़ब
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना, छत्तीसगढ मीडिया क्लब में आपका स्वागत है.
जवाब देंहटाएंसही सीटी बजी जी।
जवाब देंहटाएंमजा आ गया।
सीटी तो अच्छी बज गयी।
जवाब देंहटाएंयादगार रचना
हा हा हा हा
जवाब देंहटाएंइस एक कविता में ,कहानी, ह्यूमर,रोमांच सबका रस समाहित है....ओह आनंद आ गया पढ़कर...
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना....वाह !!!!