महानदी का विहंगम दृश्य |
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भोर में ही नींद खुल गई, रेस्ट हाउस कुछ भुतहा सा लगा, हो क्यों न? जब सिरपुर में इतने मुर्दे उत्खनित होकर जीवंत हो रहे हैं तो भुतहा लगना स्वाभाविक है। कोई चुड़ैल सपने में नहीं आई पर भारीपन अत्यधिक था। राजीव थक कर खर्राटे ले रहे थे, जैसे-तैसे 6 बजाए घड़ी ने तो थोड़ा उजाला हुआ। सुबह की चाय का इंतजाम आदित्य सिंह के घर से होना था, रेस्ट हाउस का चौकीदार उनके घर से चाय ले आया था। रेस्ट हाउस के प्रबंधन पर गुस्सा आ रहा था कि सुबह की चाय का इंतजाम भी नहीं कर सकते। चौकीदार ने चाय दी और हम बिस्तर से उठ गए। उसे नहाने के लिए गर्म पानी का हुकुम सुनाया तब तक राजीव के साथ गपशप चलती रही। कुछ दिनों पूर्व राजीव नालंदा और बोध गया घूम कर आए हैं, वहीं के किस्से चल रहे थे। राजीव ठन्डे पानी से नहाये और हम आदतानुसार गर्म पानी से। सामने ही चित्रोत्पला गंगा प्रवाहित हो रही थी पर ठंडे पानी में स्नान करने का मन नहीं बना।
भोर में ही नींद खुल गई, रेस्ट हाउस कुछ भुतहा सा लगा, हो क्यों न? जब सिरपुर में इतने मुर्दे उत्खनित होकर जीवंत हो रहे हैं तो भुतहा लगना स्वाभाविक है। कोई चुड़ैल सपने में नहीं आई पर भारीपन अत्यधिक था। राजीव थक कर खर्राटे ले रहे थे, जैसे-तैसे 6 बजाए घड़ी ने तो थोड़ा उजाला हुआ। सुबह की चाय का इंतजाम आदित्य सिंह के घर से होना था, रेस्ट हाउस का चौकीदार उनके घर से चाय ले आया था। रेस्ट हाउस के प्रबंधन पर गुस्सा आ रहा था कि सुबह की चाय का इंतजाम भी नहीं कर सकते। चौकीदार ने चाय दी और हम बिस्तर से उठ गए। उसे नहाने के लिए गर्म पानी का हुकुम सुनाया तब तक राजीव के साथ गपशप चलती रही। कुछ दिनों पूर्व राजीव नालंदा और बोध गया घूम कर आए हैं, वहीं के किस्से चल रहे थे। राजीव ठन्डे पानी से नहाये और हम आदतानुसार गर्म पानी से। सामने ही चित्रोत्पला गंगा प्रवाहित हो रही थी पर ठंडे पानी में स्नान करने का मन नहीं बना।
सिरपुर भ्रमण की तैयारी |
चौकीदार को नाश्ते के लिए भेजा और हम आदित्य सिंह की प्रतीक्षा करने लगे। वे सुबह 7 बजे आने का अहद कर गए थे, पर पहुंचे नहीं। चौकीदार गर्म पकोड़े और समोसे लेकर आया, राजीव रंजन का उपवास था, नौरात्रि प्रारंभ हो चुकी थी राजीव ने पूरे नौ दिन फलाहार करने का व्रत ले रखा था। नास्ते और भोजन की डरकर हमें ही थी। नास्ता करने के बाद सुस्ती आने लगी, सोने का मन करने लगा। तभी आदित्य सिंह पहुच गए, प्रभात सिंह की जिम्मेदारी उन्हें ही संभालनी थी। हमने सिरपुर भ्रमण का श्रीगणेश सुरंग टीला से करना उपयुक्त समझा। सुरंग टीला रेस्ट हाउस से लग कर ही है।यह शिवालयों का समूह है, प्रथम दृष्टया क़रीब साढ़े चार मीटर ऊंचे अधिष्ठान पर स्थित सुरंग टीला मिश्र के किसी पिरामिड से कम नहीं लगता जिसने चित्रों में पिरामिड देखा है उसे वह उतना ही विशाल लगता है। यह पंचायतन शैली का पश्चिम मुखी मंदिर है।
सुरंग टीला |
इतिहास को समझने में किंवदन्तियो, जनश्रुतियों एवं कहावतों की बड़ी भूमिका होती है। सुरंग टीला के विषय में किंवदंती है कि प्राचीन काल में यहाँ महल था, यहाँ की रानी नदी में प्रतिदिन कमल पुष्प पर बैठ कर नहाती थी। एक बार उसने प्रजा पर अनावश्यक कर लगा दिया। जिससे प्रजा परेशान हो गयी। दुसरे दिन जब वह नहाने गयी तो कमल पुष्प पर बैठते ही डूब गयी। उसके बाद शत्रु राजा ने आक्रमण करके सब तहस-नहस कर दिया। दूसरी किंवदंती थी कि इस टीले में इतना धन गड़ा है जिससे सारे संसार का ढाई दिन का खर्च चलाया जा सकता है। इसके बाद धन के लुटेरे इस टीले से धन प्राप्त करने की कोशिशो में लगे रहे। यह खबर रायपुर में स्थित अंग्रेज मिस्टर चिशाम तक पहुची। उसने मजदुर लगा कर इस टीले की खुदाई प्राम्भ की। वह टीले को बीच से गहरा करवाते रहा।टीला गहरा होने पर भीतर एक मजदुर की मौत हो गयी। घबरा कर चिशाम ने खुदाई बंद करवा दी। कालांतर में वही गड्ढा सुरंग में तब्दील हो गया और लोग इसे सुरंग टीला कहने लगे।
मंडप एवं विष्णु-शिव तांत्रिक मंदिर |
मंदिर प्रांगण में पवेश करते ही 32 स्तंभों का विशाल महामंडप दिखाई देता है, इसके बाद अन्तराल एवं फिर 43 सीढियों की चढ़ाई चढ़ कर मंदिर समूह तक पंहुचा जाता है। इसका निर्माण 7वीं शताब्दी में यहां के प्रतापी शासक महाशिवगुप्त बालार्जुन ने कराया था। सामने से सीढियों को देखने पर अहसास होता है कि कभी यह मंदिर भूकंप आदि से ढहा होगा। लेकिन इसकी सीढियों की बनावट नौकाकार है, जिसके कारण दूर से सीढियाँ दबी हुई दिखाई देती हैं, काली मिटटी में नींव होने के कारण सामने की कुछ सीढियाँ धंस गयी होंगी, ऐसा मेरा अनुमान है। अंतराल में हाथी-घोड़े बांधने के लिए पत्थर के खूंटे लगे हैं। अधिष्ठान पर स्थित मंदिरों में 4 शिवलिंग हैं और 1 गणेश जी का मंदिर है। मंदिरों के स्तंभों पर सुन्दर मूर्तियाँ उकेरी गयी हैं।यही के एक स्तम्भ पर कुटिल नगरी लिपि में शिल्पकार का नाम "ध्रुव बल" उत्कीर्ण है। यह मंदिर समूह तीन खंड में है लेकिन आपस में जुड़ा हुआ है।ऐसा इसे भूकंप से बचाने के लिए बनाया गया है।
सुरंग टीला से पुजारी आवास एवं तालाब का दृश्य |
दक्षिण दिशा में पुजारी का घर है, जिसके पीछे तालाब है, वास्तु आधारित निर्माण में दक्षिण दिशा में पुजारी का घर एवं उसके साथ लगा हुआ कुआँ या तालाब होता है। आग्नेय कोण में पाकशाला है, साथ यहाँ पर एक ही अधिष्ठान पर युगल मंदिर भी स्थापित है, एक तरफ विष्णु एवं दूसरी तरफ शिवालय है, बीच के खाली स्थान में उत्खननकर्ता अरुण शर्मा ब्रम्हा का स्थान कहते है और इसे तांत्रिक मंदिर मानते हैं। शैव एवं वैष्णव सम्प्रदायों के में मंदिर एक ही अधिष्ठान पर स्थापित होना बड़ी बात है। हो सकता है कि किसी ने बाद में विष्णु की मूर्ति ला कर स्थापित कर दी होगी। यदि हम तांत्रिक मंदिर मान भी ले तो शिव के साथ शक्ति की उपासना होती है। अघोरपंथी तांत्रिक क्रियाएं करते हैं, लेकिन वैष्णव संप्रदायी अपने को सतोगुणी मानते है और तंत्र क्रिया नहीं करते। छत्तीसगढ़ में गौरी के साथ गौरा की पूजा होती है। अनुमान है कि वहां शिव के साथ शक्ति रही होगी या फिर उसके तांत्रिक मंदिर होने का अनुमान गलत होगा।
ललितादित्य - राजीव रंजन सुरंग टीला पर |
प्रभात सिंह ने बताया कि जब इस टीले का उत्खनन प्रारंभ किया गया तो कोई भी मजदुर मृत्यु के भय से उत्खनन के लिए तैयार नहीं हुआ। तब अरुण कुमार शर्मा जी ने स्वयं कुदाल से खुदाई प्राम्भ की तब मजदूरों को विश्वास हुआ और यहाँ उत्खनन प्राम्भ हुआ। सुरंग टीले के पंचायतन शैली के मंदिर का निर्माण वास्तु शास्त्र मयमत्तम के आधार पर हुआ है, देव शिल्पी विश्वकर्मा के 5 पुत्रों (मनु,मय, त्वष्टा, देवज्ञ, शिल्पी ) में से दुसरा पुत्र मय कुशल शिल्पी था। इसने ही मयमत्तम नामक शिल्पशास्त्र की रचना की थी। जिसे अब रावण के श्वसुर मय राक्षस के साथ जोड़ दिया जाता है। सुरंग टीला के स्तम्भों पर नायिकाएँ, मिथुन युगल और लघुकाय द्वारपाल उत्कीर्ण हैं। एक स्तम्भ का निरीक्षण करते हुए मुझे गर्भवती स्त्री की मूर्ति प्राप्त हुई। इस तरह मूर्ति भोरमदेव एवं मदवा महल में भी दिखाई देती है। गर्भवती स्त्री को स्तम्भ में स्थान देने के पीछे शिल्पकार की क्या मंशा रही होगी इसका पता नहीं चलता है या उस समय की कोई महत्वपूर्ण घटना होगी जिसे शिल्पकार ने स्तम्भ में स्थान दिया है।
गर्भवती स्त्री की प्रतिमा, अप्सराएँ और योनी पीठ पर धारा लिंग |
सुरंग टीला से धारा लिंग (धाराशिव) के साथ अत्यंत दुर्लभ 16 कोणीय योनीपीठ मूल स्थिति में मिली है। पुरातत्वविद ए.के. शर्मा ने बताया कि पुरातनकाल में भगवान शंकर की प्रतिमा नहीं बनाई जाती थी तथा शिवलिंग की ही पूजा की जाती थी. इसलिए, सिरपुर में भी उत्खनन से ज्यादातर शिवलिंग ही मिले है. वहीं, प्रतिमाओं में केवल भैरव व नटराज की ही मूर्ति प्राप्त हुई है. मयमत्तम के ग्रंथ का हवाला देते हुए ए.के. शर्मा ने बताया कि शिवलिंग का निर्माण 4 रंग के पत्थरों से किया जाता है. प्रथमत: पत्थर पुरुष पत्थर होना चाहिए. पुरुष पत्थर से मतलब संबंधित चट्टान महीन कणों से बना हो तथा उसमें एकरुपता हो. पूरा पत्थर एक ही रंग का हो. उसमें यदि शिवलिंग के आकार की धारियां बनी हों, तो ज्यादा अच्छा है. उन्होंने बताया कि एक ऐसा विशाल काला शिवलिंग सिरपुर के एक शिव मंदिर से प्राप्त हुआ है. सफेद शिवलिंग की स्थापना ब्राह्मण, लाल रंग के क्षत्रिय, पीले रंग के वैश्य व काला शिवलिंग की स्थापना शुद्र करते थे. लेकिन, स्थापना के बाद सभी रंगों के शिवलिंगों की पूजा पूरा समुदाय करता है।पंचायतन शिवमंदिर याने सुरंग टीला की सैर के वक्त आदित्य सिंग ने हमारा बहुत ज्ञान वर्धन किया। यहाँ से उनके साथ हम "धसकूड़" की और चल पड़े। ...... जारी है ...... आगे पढ़ें
आप के लेख को पढ़कर बहुत अच्छा लगा. हमारी संस्कृति कितनी समृद्ध थी, इसी से पता चलता है. चित्र अलग-अलग ही हों, कोलाज सा न हो और मूल साइज के ही हों तो देखने में और भी आनन्द आता है.
जवाब देंहटाएंआपकी तरह घूम तो सकते नहीं ..
जवाब देंहटाएंलेख पढकर ही आनंद और ज्ञान दोनो प्राप्त कर लेते हैं हमलोग ..
इसी तरह घमते और लिखते रहिए .. हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं !!
नयी जगह पढी
जवाब देंहटाएंजय जय जय जय, जय घुमक्कड़ी...
जवाब देंहटाएं@भारतीय नागरिक
जवाब देंहटाएंकोलाज बनाना भी मजबुरी है। एक पैराग्राफ मे एक ही फोटो आती है और दिखाना बहुत कुछ रहता है। इसलिए सुविधानुसार कार्य करना पड़ता है।
सिरपुर स्थापत्य और अपनी समृद्ध कला के लिए मशहूर और आपकी सुन्दर जानकारी ने मन को ललचा दिया . भ्रमण का मन बना लिया.
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आने का सुअवसर आया ..अभी तक यात्रा जारी है ,,चलिए कुछ विराम के बाद हम भी चल पड़ते है ..धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा लेख को पढ़कर लिखते रहिए सुन्दर जानकारी प्राप्त........
जवाब देंहटाएंसुरंग टीला बहुत ही भव्य मंदिर है
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