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संग्रहालय की कुछ मूर्तियाँ और लक्ष्मण मंदिर |
प्रारंभ से पढ़े
धसकुड़ से लौटते हुए रास्ते में मख्मल्ला और खरखरा नामक दो नाले मिले, बरसाती खेती में नालों का भी सिंचाई के लिए महत्वपूर्ण योगदान रहता है। यहाँ से लौटते हुए हमें लक्ष्मण मंदिर देखना था। जो हमारे रास्ते में ही था। मंदिर के मुख्य द्वार पर गाड़ी लगाने के बाद हमने मंदिर में प्रवेश किया। सामने ही अद्भुत दृश्य था, जिसे देखने के लिए देश विदेश के पर्यटक आते हैं। सिरपुर में अथाह पुरा सामग्री है, जिसे एक दो दिन में देखना संभव
नहीं है। लगभग 48 जगह पर उत्खनन हो चूका है। हम लक्ष्मण मंदिर पहुचे, यह
ईंटों का बना खूबसूरत भव्य मंदिर है। 7 फुट ऊँची चूना पत्थर (लाइम स्टोन)
की जगती पर पर स्थापित है। जगती में लेट्राईट का भी इस्तेमाल हुआ है, ऐसे लेट्राईट ब्लॉक के बने मकान मैंने कोंकण के रत्नागिरी इलाके में देखे थे।
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लक्ष्मण मंदिर - सिरपुर |
लक्ष्मण मंदिर का निर्माण मगध के राजा सूर्य वर्मन की
पुत्री, श्रीपुर के प्रतापी नरेश महाशिवगुप्त बालार्जुन की माता, हर्ष
गुप्त की पत्नी महारानी वासटा ने ईस्वी 650 में कराया था। मंदिर के मुख्य
द्वार पर शेषशैया में विष्णु प्रदर्शित है, कहते हैं जिस देवता को मंदिर
मंदिर समर्पित किया जाता था उसे द्वार शीश पर उत्कीर्ण किया जाता था। द्वार
पर विष्णु के अवतार, कृष्ण लीला के दृश्य, मिथुन दृश्य एवं द्वारपालों का
अंकन है। द्वार के दोनों तरफ चौखट में नृत्य करते मयूर अंकित होना मौर्यों
की उपस्थिति को प्रदर्शित करता है। मंदिर के गर्भ गृह में नागराज शेष की
बैठी हुयी सुन्दर रखी हुयी है। बाहरी दीवारों पर कूटद्वार, वातायन आकृति,
गवाक्ष, भारवाहकगण, गज, कीर्तिमुख एवं आमलक प्रदर्शित हैं।
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लक्ष्मण मंदिर - सिरपुर एवं कंठी ध्रुव |
यहाँ
पर हमारी भेंट 62 वर्षीय कंठी ध्रुव से होती है। ये लक्ष्मण मंदिर के केयर
टेकर है, आदित्य सिंह ने बताया की जितना सिरपुर के विषय में कोई पुराविद
नही जानता उससे अधिक कंठी ध्रुव जानते हैं, यह अतिश्योक्ति नहीं है। कंठी
के पिताजी श्रवण ध्रुव मंदिर उत्खनन के प्रारंभिक दिनों से ही यहाँ चौकीदार
थे, उनकी जगह पर कंठी को नौकरी दी गयी है। गुटखा चबाते हुए कंठी बताते है
कि - मंदिर उत्खन से पहले यहाँ घना जंगल था। यह मंदिर टीले में दबा हुआ
था। मेरी जानकारी में है जब इसकी खुदाई हुयी थी। तब से मैं यही पर रहता
हूँ। सिरपुर का मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की देख-रेख में है। मंदिर
के समीप जल का विशाल कुंड है। लक्ष्मण मंदिर 1952 में प्रकाश में आया था।
श्रीपुर नगर का उल्लेख व्हेनसांग ने अपने यात्रा वर्णन में किया है। मंदिर
स्थल पर पेड़-पौधे रोप कर सुन्दर बगीचे का निर्माण किया गया है। भारतियों के
प्रवेश के लिए 5 रूपये एवं विदेशियों के लिए 2 डालर का टिकिट रखा गया है।
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राजिवादित्य |
ईंटो
से बना यह मंदिर भारत में पुरातत्व की दृष्टि से विशिष्ट स्थान रखता है।
मंदिर निर्माण के विषय पर चर्चा हो रही थी। मुझे प्रतीत होता है कि मंदिर
निर्माण के पश्चात् ईंटों पर कलाकृतियाँ नहीं उकेरी गयी हैं। पहले इसका
प्रतिरूप बना कर मंदिर आकृति की मांग के अनुसार सांचों में ईंटे ढाली गयी
होंगी। उसके बाद मंदिर की परिकल्पना के अनुसार उन्हें जोड़ा गया होगा। मंदिर
निर्माण के पश्चात ईंटों को घिस कर वर्तमान स्वरूप दिया होगा। क्योंकि
ईंटो पर खुदाई करना असंभव है, यदि लगी हुयी ईंटों पर खुदाई के दौरान कोई
चूक हो जाये तो उसे खोद कर निकलना पड़ेगा और इससे समय के साथ आर्थिक नुकसान
भी होगा। लक्ष्मण मंदिर के वास्तुविद ने कमाल का काम किया है।
डॉ हेमु यदु की
किताब में महारानी वासटा को मंदिर का शिल्पी बताया गया गया है। यह तो तय
है की महारानी वासटा के धन से मंदिर का निर्माण हुआ होगा पर मंदिर का
शिल्पी होने की बात हजम नहीं होती। मैं मानता हूँ कि मंदिर को मूर्त रूप
देने वाला
वास्तुकार और शिल्पकार कोई अन्य ही होगा, जिसका नाम प्रकाश में
नहीं आया है।
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फोटो पॉइंट की यायावरी खोज |
मंदिर के पीछे दो संग्रहालय है, जिनमे सिरपुर
से उत्खनित मूर्तियाँ रखी हुयी हैं, राजीव ने लगभग सारी मूर्तियों के ही
चित्र ले लिए। जिसमे शिव लिंग पर उकेरी गयी 4 देवी, महिषासुरमर्दनी, बुद्ध, विष्णु,
नरसिंह, रथारूढ़ देव एवं अन्य ढेर सारी प्रतिमाएं रखी हुयी है। मुझे पहाड़ को खोद कर उसमे बनायीं हुयी गुफाओं
का प्रतिरूप बहुत पसंद आया। जिस तरह रामगढ की पहाड़ी पर सीता बेंगरा बनी
हुयी है वैसा कुछ दृश्य उसमे दिखाई देता है। संग्रहालय से निकलते हुए सूरज
सिर पर चढ़ चुका था। संग्रहालय लौटते हुए मुझे फोटो
के लिए एक लोकेशन दिखाई दे गया जहाँ से विष्णु मंदिर के साथ व्यक्ति की भी
फोटो आ सकती है। बगीचे में डली बेंच पर बैठ कर मैंने राजीव से चित्र लेने
कहा। दो-तीन बार में जैसा चाहता वैसा ही चित्र मिल गया। यहीं पर मैंने
राजीव का भी चित्र लिया। बहुत ही सुन्दर चित्र आया। भूख जोरों की लग चुकी थी, सिरपुर के एकमात्र होटल में फोन करके आदित्य सिंह
ने भौजी को खाना बनाने के लिए कह दिया था। यहाँ से निकल कर हम अब
सोनवानी भौजी के होटल में ही रुके।
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लक्ष्मण मंदिर - सिरपुर का मूर्ति शिल्प |
होटल झोपडी नुमा छोटा सा ही है, पर समय पर खाना मिल जाये वह बड़ी बात है। सुबह जब रेस्ट हाउस से चल रहे थे तो चौकीदार को दोपहर के खाने के लिए कहा तो उसने सिलेंडर ख़त्म होने की मज़बूरी बताई, बीमार केयर टेकर चन्दन साहू मजे से एक रूम में बैठ कर संगी-साथियों के साथ ताश खेल रहा था। होटल में प्रवेश करते ही तीन लोग (दो वृद्ध एवं 1 महिला) भोजन करते दिखाई दिए। आधुनिकवसना प्रौढ़ युवती ने जींस-कुर्ती धारण कर रखे थे। नैनों में कजरे के साथ दिल्ली वाला पेसल जुड़ा भी बांध रखा था। उसकी खाने की प्लेट में एक सुग्गा भी समोसे में चोंच मार रहा था। लगा कि पालतु है, बड़े इत्मिनान से समोसे का भोग लगा रहा था। हाव-भाव से लगा कि आधुनिकवसना प्रौढ़ युवती कोई पत्रकार या ब्यूटी पार्लर की मालकिन होगी। क्योंकि सिरपुर में पत्रकारों की उपस्थिति होते रहती है, यह कोई नयी बात नहीं थी। हमने भी हाथ मुंह धोकर खाना लगाने का हुक्म दिया।
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ग्रामीण होटल भोजन का इंतजाम |
खाना लगते तक मेरा ध्यान सुग्गे की तरफ था। तभी आधुनिकवसना प्रौढ़ युवती का फोन बजा और उसने चर्चा शुरू की। दो लाइनों में ही खुलासा हो गया, वह ब्यूटी पार्लर वाली थी। कह रही थी गोल्डन फेशियल से अच्छा डायमंड फेशियल होता है। डायमंड फेशियल से चेहरे पर चमक आती है, दुल्हन के लिए यही ठीक रहता है। गोल्डन फेशियल थोड़ी अधिक उम्र वालियों के सही रहता है। इससे धीरे-धीरे स्किन टाईट होती है। डायमंड फेशियल थोडा महंगा है, लेकिन दुल्हन के लिए वही उपयुक्त है। मशरूम फेशियल और पर्ल फेशियल भी किया जा सकता है, ओके डायमंड फेशियल, फायनल करती हूँ, तुम बता देना रायपुर में कहाँ आना है? मैं............को फोन कर दूंगी वो मुझे लेने आ जायेगा, लेकिन जल्दी वापस आउंगी, उन्हें बिना बताए आना है न...... अब मोबाईल पर बता देना............ मैं चले आउंगी............. टेक केयर। पर्स से एक थैला निकाला, अपने रुमाल से सुग्गे की चोंच पोंछी, उसे सहलाया, "किस" किया, सुग्गे का चेहरा डायमंड फेशियल की चमक से चमाचम हो गया। उसे थैले में रखा सहेज कर और सुग्गा धन्य हो गया ऐसी मालकिन पाकर ............
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सुग्गे वाली आधुनिकवसना प्रौढ़ युवती |
लो जी अपनी भविष्यवाणी सत्य हो गयी बिना पतरा देखे ही। अरे भाई घुमक्कड़ी सब सिखा देती है, किसकी क्या पहचान होती है, व्यक्ति की शक्ल, खानपान बोली-भाषा और उसका पहनावा बता देता है कि वह किस प्रदेश का रहने वाला है और क्या काम करता है? अब ये न पूछना कैसे होता है सब? घुमक्कड़ी करो और खुद जान जाओ। हमारा भोजन लग चुका था, गरमा गरम रोटियां, तुअर की दाल के साथ लौकी चना दाल की सब्जी। भूख के समय यह किसी तसमई से कम नहीं लग रही थी। भोजनोपरांत हम रेस्ट हाउस की और थोडा आराम करने के लिए चला पड़े। डट कर खाने के बाद बिस्तर की जरुरत थी। मैंने कहा कि राजीव भाई कच्चे ब्लॉगर ही निकले। कैसे -राजीव ने पूछा। अरे भाई ब्लॉगर को अपने ब्लॉग के लिए हर जगह सामग्री मिल जाती है। अगर पक्के ब्लॉगर होते तो सुग्गे के साथ सुग्गे वाली की भी फोटो होती :).... देखो हमने फोटो ले ली, न तुम्हे पता चला न सुग्गे वाली को। ब्लोगिंग में स्टोरी के साथ सबूत चाहिए भाई........ ही ही ही ही (हँसी,
महफूज अली से साभार) जारी है .....
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इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसिरपुर तो वाकई भंडार है अद्भुत पुरातात्विक महत्त्व की वस्तुओं का.
जवाब देंहटाएंमानना पड़ेगा भाई जी आप सिद्ध हस्त है सभी कला में और कण भी बड़े तेज हैं . सुन्दर चित्रों संग यायावरी
जवाब देंहटाएंललित जी. अच्छी और सार्थक जानकारी के लियें आभार..
जवाब देंहटाएंजितना ढूढ़िये उतना खजाना निकलता है..
जवाब देंहटाएंमैने इससे पहले केवल हेमकुंड साहिब के लक्ष्मण मंदिर के बारे में ही सुना था
जवाब देंहटाएं@अरे भाई ब्लॉगर को अपने ब्लॉग के लिए हर जगह सामग्री मिल जाती है।
जवाब देंहटाएंपंडित जी ये बात तो सत्य है.. पर शब्द कहाँ से आयें.
आपकी घुमक्कडी को प्रणाम कहाँ कहाँ से भारतीय सभ्यता की दर्शन करवा रहे हैं.. साधुवाद.
ज्ञानवर्द्धक पोसट ..
जवाब देंहटाएंकोई ब्यूटिशीयन नहीं ब्लॉगिंग में ..
आपसे ही फेशियल के बारे में भी जानकारी मिल गयी!!
बहुत खूब सैर करवाई आपने अपने साथ और यात्रा भी रोमान्च से भरपूर ...बेजोड़ शिल्पी से मुलाकात अच्छी लगी ... कंठी ध्रुव जी जैसे समर्पित लोग बहुत कम मिलते हैं ...आभार आपका ...इस जानकारीप्रद आलेख के लिए
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