बैगलोर फ़ोर्ट से चलकर दो चार चक्कर काटने के बाद हम बैगलोर पैलेस पहुंच गए। पहले तो किसी स्कूल का सूचना फ़लक दिखने पर संशय हुआ कि गलत स्थान पर आ गए, परन्तु द्वारपाल द्वारा बताया गया कि हम सही स्थान पर हैं और यही प्रवेश द्वार है। बैंगलोर पैलेस का कैम्पस बहुत बड़ा है, भीतर प्रवेश करने पर दूर से ही ट्यूडर शैली की मीनारों वाली इमारत दिखाई देने लगी। पैलेस नामधारी इस सुंदर इमारत को देखकर लगा कि किसी ब्रिटिश इमारत को देख रहे हैं। शाय्द भारत में यह इकलौती इमारत है जो गोथिक शैली में निर्मित हुई है। पेड़ की छाया ढूंढकर कार खड़ी की। धूप बहुत अधिक हो गई थी और बैंगलोर की सड़कों पर चक्कर काटते हुए दिमाग भी खराब हो चुका था। दूर से देख कर ही लग रहा था कि यह स्थान किसी की निजी संपत्ति है।
ट्यूडलर गोथिक शैली का बैंगलोर पैलेस |
पैलेस के मुख्यद्वार के बांई तरफ़ रिशेप्शन बना हुआ है, यहाँ पैलेस भ्रमण करने वालों के लिए टिकट बेची जाती है। प्रति भारतीय शायद 285 रुपए लिए जाते हैं (इसके विषय में पाबला जी के ब्लॉग से पता चलेगा, क्योंकि टिकट के पैसे उन्होंने ही दिए थे।) कैमरे का चार्ज छ: सौ रुपए से अधिक है, तथा मोबाईल से भी फ़ोटो लेने पर लगभग 300 रुपए देने होते हैं। यहाँ आडियो डिवाईस दिया जाता है, जो कई देशी विदेशी भाषाओं में है। हमने हिन्दी वाला लिया, हेड फ़ोन लगाकर सुनते हुए सारा महल घूम जा सकता है। स्वागत कक्ष से लगा हुआ राजा का दरबार है। यहाँ आठ दस सीसी कैमरे लगे हुए हैं। वैसे भी सारे महल में कैमरों का जाल बिछा हुआ है।
महल का सुसज्जित भीतरी भाग |
हमने पहले कक्ष से भ्रमण प्रारंभ किया, यहां वाड़ियार राजाओं की तश्वीरे लगी हैं और तत्कालीन अखबारों एवं लंदन की पत्रिकाओं में प्रकाशित समाचारों एवं आलेखों की प्रतियाँ फ़्रेम करके लगाई हुई हैं। यह राजा का आगंतुक कक्ष था। यहां हमने भी बैठकर कुछ चित्र खिंचवाए। इस दूमंजिले पैलेस में कई कक्ष हैं और यह आयताकार बना हुआ है। कक्षों में से कई बंद हैं। सारे स्थानों पर वाडियार राजाओं के वैभव एवं उनके शिकार के कारनामों को प्रदर्शित किया गया है। एक स्थान पर शेर एवं हाथी के पैर के बने स्टूल रखे हुए हैं।
हाथी के पैरों के स्टूल |
मुझे एक चीज पसंद आई, यहां के राजाओं को हार्स पोलो खेलने का शौक था। तो उनकी ऊंचाई के हिसाब से ड्रेस बनाई जाती थी और उनका वजन भी तोला जाता था। वजन तोलने के विशेष तौर पर एक कुर्सी बनाई गई है, जिस पर बैठने के बाद हार्स राईडर का वजन किया जाता था। शायद वजन का कोई संबंध हार्स पोलो खेल से हो, यह मुझे पता नहीं। पर वजन तोलने के लिए लकड़ी की बनाई हुई मशीन लाजवाब है। इसके साथ ही इससे बगल में खड़े होने पर ऊंचाई भी नापी जाती थी।
हार्स पोलो के जॉकी इसी मशीन पर अपना वजन तोलते थे। |
बैंगलोर पैलेस वाड़ियार राजाओं ने सेंट्रल हाई स्कूल के तत्कालीन प्राचार्य रेव जे गैरेट से खरीदा था। इसका निर्माण 1862 में प्रारन्भ हुआ। इस बीच 1873 में मैसूर के युवा राजकुमार चामराजा वाडियार ने इसे जॉन रॉबर्ट्स और लाजर से चालिस हाजर की रकम देकर खरीद लिया और अपनी इच्छा अनुसार इसका नवीनीकरण करवाया। यह महल पैतालिस हजार वर्ग फ़ुट में निर्मित है तथा इसका प्रांगण 454 एकड़ का है। इसकी ट्यूडर शैली में कलात्मकता को बरकरार रखा गया। इसकी अंदरुनी साज सज्जा में काष्ठ में फ़ूल पत्तियों की नक्काशी की गई है तथा फ़र्नीचर विक्टोरियन शैली में ही बनाया गया है। महल की सम्पत्ति को लेकर कई वर्षों तक उत्तराधिकारियों में कानूनी विवाद चलता रहा।
एक झलक बैंगलोर पैलेस के साथ |
नीचे तल में एक फ़व्वारा लगा हुआ है, इसे फ़्लोरोसेंट नीचे सिरेमिक टाईल्स से सजाया गया है तथा खुले आंगन में ग्रेनाईट की बेंच बनाई हुई हैं, इन पर बैठकर फ़व्वारे का आनंद लिया जाता था। ऊपर की मंजिल में राजा का दरबार हाल बना हुआ है। यहां बैठकर वे अपनी विधानसभा को संबोधित करते थे एवं पदाधिकारियों से चर्चा करते थे। पैडियों के साथ चित्र लगाए हुए हैं तथा इसे गोथिक शैली से सजाया गया है। यहाँ सोने की फ़्रेम का एक आदमकद आईना भी लगा हुआ है। इस तरह पैलेस का एक चक्कर लगाकर हम एक घंटे में बाहर आ गए। महल के आस पास के विशाल मैदान का अब व्यवसायिक उपयोग किया जा रहा है। शादि विवाह एवं अन्य कार्यक्रमों के लिए इसे किराए में दिया जाता है।
विजय माल्या के यु बी मॉल के फ़ुड कोर्ड में कर्जा वसूलते हुए दो हाकड़ |
यहां से निकलने पर धूप प्रचंड हो चुकी थी और हमें भूख भी लग रही थी। हमने दक्षिण भारतीय खाने के रुप में दही चावल खाया। इसके बाद विजय माल्या से पैसा वसूलने उसके यु बी माल की ओर चल दिए। यु बी मॉल में शायद दफ़्तर अधिक हैं और यहां कि दुकानों काफ़ी मंहगा सामान है। विशेषकर लोग यहां के फ़ुड कोर्ट में व्यंजनों का आनंद लेने आते हैं। हमने भी एक विदेशी नाम वाला शरबत पिया। उसके बाद अपने होटल आ गए। कल हमें हम्पी की यात्रा करनी थी। आगे पढ़ें…
ये देखना तो बड़ा मंहगा पड़ता है | क्या वो स्टूल असली हाथी के पैरों के बने थे ललित जी ?
जवाब देंहटाएंबिल्कुल असली
हटाएंहाथी के पैर के स्टूल!
जवाब देंहटाएंखूबसूरत है महल मगर महँगा भी!
क्या यह सम्पत्ति अभी निजी है ?
जवाब देंहटाएंअथवा किसी संस्थान के अधिकार मे है ।
वाडियार के उत्तराधिकारी की संपत्ति है।
हटाएंजनकारीवर्धक ब्लॉग ��
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमहल की भव्यता का क्या कहना!
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक जानकारी। शानदार भव्यता...
जवाब देंहटाएंभव्य महल के इतिहास के साथ ही बढ़िया जानकारी..
जवाब देंहटाएंGrade 1
जवाब देंहटाएंब्लॉग