शनिवार, 5 अक्तूबर 2013

कुल्हड़ का वामन अवतार : चुनारगढ़

तीन तिकट-महा विकट  
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जैविक घड़ी ने संकेत दे दिया कि जागने का समय हो गया है, 4 बजे भोर में ही आँख खुल गई। सबसे पहले मैं स्नानादि से निवृत्त होकर तैयार हुआ तब पाबला जी और गिरीश भैया को जगाया गया। साढे 4 बजे हम स्वागत कक्ष में पहुंचे तो किवाड़ों पर ताला लटका हुआ था। काऊंटर न कोई बंदा, न बंदे की जात। आवाज देने पर भी कोई नहीं आया। वहीं 3-4 बंदे सोए थे लेकिन आवाज सुनकर कोई चुस्का ही नहीं। सभी मकरासनस्थ थे। एक को उठाने पर उसने कहा कि वह ड्रायवर है। फ़िर रात को जिस छोकरे ने खाना खिलाया था वह सोया हुआ दिखाई दिया। उसे उठाया गया, जागा हुआ तो वह पहले से था, पर मकरासन कर रहा था। पता चला कि स्वागताधिकारी अस्नान के लिए गए हैं। उनके आने पर किवाड़ खुले और हम 5 बजे बनारस के लिए रवाना हुए। जीपीएस को बता दिया गया था कि बनारस जाना है।

चुनार की वादियों का सौन्दर्य 
कुछ दूर मुख्य मार्ग पर चलने के बाद जीपीएस ने सिंगल रोड़ पर गाड़ी मोड़ दी। हम आगे बढते रहे। कुछ देर बात मील के पत्थर चुनार का पता बताने लगे। पहाड़ियों के बीच गाड़ी चली जा रही थी। छोटे-छोटे गाँव के साथ कुछ कस्बे भी थे। हमें बनारस जाना था इसलिए अधिक ध्यान नहीं दिए। रास्ते में गंगाजी किनारे कुछ भगवे वस्त्रधारी दिखाई दिए। साथ एक बड़ी गाड़ी भी। जिसमें श्वेतवस्त्रधारी भी थे। नदी के किनारे खड्ड में उतर रहे थे। वहाँ पर कोई मंदिर था तथा किसी आयोजन के संकेत दिखाई दे रहे थे। वहाँ से आगे चलने पर शक्तेसगढ नामक आश्रम दिखाई दिया। वे सभी साधू इस स्थान पर ही रहते हैं। कुछ कमंडलधारी आयोजन स्थल की बढते दिखाई दे रहे थे।

निर्माण सामग्री स्थल 
इस स्थान पर प्राकृतिक भूदृश्यावली मनमोहक है। चारों तरफ़ पहाड़ियाँ और उसके बीच मैदान से चलती हुई चेचक के धब्बेधारी बलखाती सड़क के दोनो तरफ़ खेतों में लहलहाती हुई फ़सल मनोहारी थी। आगे चलकर यह सड़क दो पहाडियों के बीच से निकलती है। इस पड़ाड़ी के चट्टानों पर मुझे निर्माण सामग्री के लिए पत्थर निकालने के संकेत दिखाई दिए। हो सकता है कि गढ़ के निर्माण के लिए पत्थर यहीं से निकाले गए होगें। प्राचीन काल में चट्टान तोड़ने के लिए सबसे पहले चट्टान में लंबवत 3-4 इंच के सुराख किए जाते थे फ़िर सूखी लकड़ियों को ठोक कर उसमें पानी दिया जाता था। लकड़ी फ़ूलने पर चट्टान में दरार पड़ जाती थी फ़िर उसे वहाँ से अलग कर लिया जाता तथा निर्माण सामग्री की मांग के अनुसार इसी तरह चौरस करके उपयोग में लाया जाता था।

पहाड़ियों के बीच सर्पीली सडक
जब से चुनारगढ का मील का पत्थर देखा तो प्रौढ़ता को प्राप्त सड़क के चेचक के धब्बे दिखाई देने बंद हो गए, सड़क अब किसी नवयौवना सी खूबसूरत दिखाई देने लगी थी। खोपड़ी में एक-एक करके बाबू देवकी नंदन खत्री के उपन्यास 'चंद्रकांता" के दृश्य चलचित्र की तरह दिखाई देने लगे। चंद्रकांता, चपला, कुमार विरेन्द्र सिंह, एयार तेज सिंह, क्रूर सिंह, नौगढ़, लखलखा इत्यादि के साथ तिलस्म भी सामने था। जीपीएस ने अगर छोटा रास्ता न बताया होता तो हम इधर आते ही नहीं। जीपीएस वाली बाई को धन्यवाद दिया क्योंकि इसके सुझाए रास्ते के कारण हम चुनार गढ़ देख सकेगें। उपन्यास की पृष्ठभूमि में बताए गए दृश्यों से इस इलाके की तुलना करते हुए चारों तरफ़ खोजी नजरें घूम रही थी। सामने पहाड़ी पर एक गुफ़ा सदृश्य संरचना दिखाई दे रहे थे। जिसमें तराशे हुए स्तम्भ भी दिखाई दे रहे थे। लेकिन हमारे पास इतना समय नहीं था कि रास्ते में दिखने वाली प्रत्येक चीज को परखते चलें।

लिप्टन टाइगर  
सुबह जब से हम चले थे, तब से चाय नहीं पी थी। वैसे भी मैं दिन में सिर्फ़ 2 बार ही चाय पीता हूँ। चाय के स्वाद का तो पता नहीं पर मैने इसे सुबह और शाम से जोड़ रखा है। जब चाय मिल जाती है तो लगता है कि सुबह हो गई और शाम की चाय सांझ होने एवं सूरज के अस्ताचलगामी होने की सूचना देती है। इसके अतिरिक्त मुझे फ़िर कभी भी चाय की दरकार नहीं होती। हाँ पाबला जी अवश्य तीन चार बार पीते हैं। खरामा-खरामा चल कर हम चुनार नगरी पहुंच गए। जीपीएस ने सीधे हाथ की तरफ़ मुड़ने कहा, मुड़ने पर एक होटल दिखाई दिया। पर चुनारगढ़ कहीं दिखाई नहीं दिया। हमने होटल के सामने गाड़ी खड़ी कर ली। चाय के साथ चुनारगढ़ के विषय में पूछताछ का उद्देश्य भी पूरा होने की संभावना थी।

चुक्कड़धारी
चाय की दूकान में बूढे बाबा बैठे थे, साथ ही चुक्कड़धारी कुछ हमारे जैसे निठल्ले भी। गिरीश भैया के चेहरे पर नौगजी मुस्कान झलक रही थी। जिससे देख कर लग रहा था कि हिरण्यगर्भ की मुस्कान से देह तरोतजा है। कम शक्कर की तीन चाय बनाने का आदेश देकर हमने कुर्सियां संभाल ली। पाबला जी को दो कुर्सियों की जरुरत पड़ती है। मेरा तो अब 1 से ही काम चल जाता है। जब से साले की शादी में तीन कुर्सियां टूटी हमने अपना वजन कम कर लिया। चुक्कड़ में चाय आ गई। चुक्कड़ याने कुल्हड़ का वामनअवतार, इसमें चाय कम ही आती है। पाबला जी ने डबल चुक्कड़ लिए। पूछने पर पता चला कि चुनारगढ़ यहाँ से 3 किलोमीटर की दूरी पर है। जहाँ जाने के लिए रेल्वे लाईन पार करनी पड़ेगी।

चुनारगढ़ का कब्रिस्तान 
चाय पीकर हम चुनारगढ़ की ओर बढे। रेल्वे लाईन पार करने के बाद यह रास्ता चुनार गांव के बीच से जाता है। जीपीएस ने फ़िर नया मार्ग चुन लिया था। थोड़ी देर बाद पहाड़ी पर चुनारगढ़ दिखाई देने लगा। गढ़ की प्राचीर दूर से ही दिखाई दे रही थी। यद्यपि इसके आस-पास बस्ती बस चुकी है। गढ़ तक जाने के लिए पक्का मार्ग बना हुआ है। जैसे जैसे उपर चढते जाते हैं गंगा नदी दिखाई देने लगी है। इस स्थान पर गंगा का पाट भी चौड़ाई लिए हुए दिखाई देता है। उपर चढते समय बांयी तरफ़ अंग्रेजों के कब्रिस्तान जैसी संरचना दिखाई दी। जिसमें कब्रों पर बने हुए चिन्ह, क्रास दिखाई दे रहे थे। मैने अनुमान लगाया कि यह गढ़ अंग्रेजों के कब्जे में भी रहा होगा।

नेपाल यात्रा की आगे की किश्त पढें। 

15 टिप्‍पणियां:

  1. धन्य हो गए सुबह-सुबह चुक्कड़ याने कुल्हड़ का वामनअवतार देखकर … :) देखते हैं चुनारगढ़ का तिलस्म आपको कहाँ लेकर जाता है, बढ़ते रहिए ... नवरात्री की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ...

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  2. नुक्‍कड़ वाले पढ़ा रहे हैं पाठ चुक्‍कड़
    इसलिए कर दिया इलाज सरकार ने
    देश के भुक्‍खड़ का
    इसे चारा घोटाले के मुख्‍य अभिनेता से
    जोड़कर न देखा जाए

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  3. कुल्हड़ का वामनावतार चुक्कड़ एक नया शब्द हाथ लगा । आप की वर्णन शैली रोचक है ।

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  4. चट्टानों को तोड़ने के लिये यही विधि दक्षिण में भी अपनाया गया है। आपकी पारखी दृष्टि तो चट्टानों में भी इतिहास ढूढ़ लेती है।

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  5. सुन्दर यात्रा वर्णन । बेहतरीन तस्वीरें ।

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  6. तिलिस्मी यात्रा!गंगा किधर से दिखीं इसी उलझन में हूँ

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - रविवार - 06/10/2013 को
    वोट / पात्रता - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः30 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra


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  8. चुनारगढ और चुक्कड
    मजा आ गया :-)

    प्रणाम

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  9. मकरासन का मुकाबला खड्गासन और ललितासन से.

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  10. मस्त रहा सफ़र
    चलते रहिये , हम तो हैं ही साथ साथ

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  11. भयंकर ज़बरदस्त। कुल्हड़ में चाय पीने का मन होने लगा. यादगार यात्रा वृतांत

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  12. चुनार का प्रवास वर्णन बढिया है। बचपन में हमारे यहां चुनार के मिट्टी के शेर हुआ करते थे बहुत सुदर उनकी याद आ गई।

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  13. अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा ! जीवन यही है

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