अलख निरंजन, अलख निरंजन” सुनकर मैने सर उठाकर देखा, एक बाबा जी और उनका चेला मेरे सामने खड़े थे। बाबा जी नंगधड़ंग, जटाधारी और लिंग पर सांकल बांध रखी थी, उसमें एक ताला लटका रखा था, एक कमण्डल और एक थैली लटका रखी थी। कम उमर चेला कोपिन धारी था। दोनो मेरे सामने खड़े थे। मेरा लिखने में ध्यान होने के कारण उनके आगमन का आभास नहीं हुआ। मैने उनकी ओर देखा।
“अलख निंरजन बच्चा” कुछ ध्यान में थे,मुझे लगता है कुछ परेशानी है।“-बाबा जी बोले।
मैने भी सोचा बाबा जी को कैसे पता चला कि मैं कुछ परेशानी में हूँ। परेशानी और मेरा साथ तो चोली दामन का है।एक खत्म नहीं होती, दुसरी चली आती है।
“कहिए महाराज, क्या सेवा करुं”-मैंने उत्तर दिया
“वत्स चेहरे से चिंता की रेखाएं मिट जाएंगी, दो महीने के बाद शुभ दिन आने वाला है, अवश्य ही तुम्हारा कल्याण होगा,ये हमारा वचन है।“
“मैं खुश हूँ महाराज, मुझे किसी भी तरह का शोक नहीं है, बस ईश्वर की कृपा बनी रहे।”
“खुश ही रहोगे बच्चा, लो प्रसाद लो, संकोच मत करो”- कहते हुए बाबा जी ने अपनी झोली में भभूत निकाल कर दी।
मैने उनसे भभूत लेकर पुड़िया बांध कर रख ली। तब बाबा जी फ़िर बोले-“ बच्चा कुछ दक्षिणा करो, तो बाबा लोग भी चलते हैं”- मेरी जेब में एक 50 का नोट था, जिसे कई दिनों से संभाल कर रखा था कि कभी एन वक्त पर काम आ जाएगा।
“देर न करो बच्चा, तुम्हारी जेब में 50 का नोट है, हमें मालूम है, और तुम क्या सोच रहे हो ये हम जानते भी हैं, संशय मत रखो और वह नोट हमें दे दो। तुम्हारा कल्याण होगा।“
ये तो बड़ा आश्चर्य हो गया, मेरी जेब में 50 का नोट है बाबा जी कैसे जान गए? जरुर कोई पंहुचे हुए महात्मा हैं, मैने सोचा। अब दे ही देता हूं 50 रुपए, मेरी जरुरतों को पूरा करना होगा तो भगवान चिंता करेंगे मेरी। लेकिन कहीं दादी को पता चला तो मार-मार कर छड़ी मेरी चमड़ी उधेड़ देगी। मैनें इधर-उधर देखा, जब कोई नहीं दिखा तो 50 का नोट बाबा जी के हाथ पर धर दिया, बाबा जी खुश हो कर ढेर सारा आशीर्वाद दिया और जैसे ही 5 डग भरे, तभी दादी का प्रवेश हो गया। वह अपनी लाठी टेकते हुए अंदर आई और बहुत गुस्से में थी।
“अरे! मुस्टण्डों तुम्हे बच्चे से 50 रुपया लूट कर ले जाते शर्म नहीं आई, अभी वापस करो रुपए।“ इतना सुनते ही दोनो बाबा जी तो दौड़ लिए, दादी बकते हुए उनके पीछे-“ एक बार मेरे हाथ बस लग जाओ, तुम्हारे सात जन्मों की कसर निकाल रख दुंगी, कभी दुबारा इस ओर मुंह करके देखोगे भी नही, नासपीटों को हमारा घर ही मिलता है।“
जब बाबा जी हाथ नहीं आए तो दादी ने मूड़ कर मुझे दो डंडे लगाए,-“ यूँ ही लुटाता रहे गा कि कुछ कमायेगा भी, तुझे मालूम है आगे कितनी बड़ी जिम्मेदारियाँ सर पर खड़ी हैं, ये मोडे तेरा कल्याण कर जाएंगे।आज तो तेरी हड्डी पसली एक करके छोड़ुंगी।“
“दादी मुझे छोड़ दो, अब फ़िर ऐसी गलती नहीं करुंगा।“मैने कानों को हाथ लगाते हुए कहा। दादी वापस घर के अंदर चली गयी। बाद में पता चला कि मेरी करतूत को माँ देख रही थी, उसने दादी को भेजा था कि-“देखो तुम्हारा सपूत क्या कर रहा है।“
दादी को रुपए पैसे का महत्व पता था, दादा जी की मृत्यु के बाद घर का बोझ उन पर ही आ पड़ा था। थोड़े से खेतों के भरोसे घर गृहस्थी को चलाना कठिन काम है,उन्होने जैसे तैसे करके अपने 5 बच्चों को पाला था। फ़िर उन्होने कुछ सुख के भी दिन देखे थे। जब भी सबको दूध देने का समय आता तो मुझे एक प्याला दूध का ज्यादा ही देती थी और कहती थी दूध पीकर मेरा बेटा जल्दी बड़ा होगा। कभी मेरी बदमाशियों को छुपाते हुए पिताजी से लड़ भी जाती थी।
एक बार बरसात के महीने में दादी की तबियत खराब हो गयी, उन्हे उल्टी और दस्त शुरु हो गए, रात के समय मुसलाधार गिरते पानी में मैं डॉक्टर लेकर आया, उसने इलाज किया। कुछ दिनों में वह ठीक हो गयी। लेकिन उतनी ठीक नहीं हुई जितनी पहले थी। दिनों दिन कमजोर होते जा रही थी। अब तो उनका बिस्तर से उठना भी मुस्किल हो गया था। घर वाले सब चिंता में थे कि दादी अब नहीं बचेंगी। तभी एक रात पिताजी को असमय हृदयाघात हो गया और वे चल बसे। अचानक एक अनचाही विपदा आन पड़ी जिसके बारे में किसी ने नहीं सोचा था कि ऐसा भी हो सकता है। एक पहाड़ सा ही टूट पड़ा। दादी खाट से लाठी के सहारे उठ कर खड़ी हो गयी थी फ़िर हमारे खानदान का सहारा बनने के लिए। जैसे गाय अपने बछड़े के प्राण पर आया संकट देख कर सिंह से भी लड़ जाती है ठीक उसी तरह……….।
इस तरह दादी के सामने आई असमय जिम्मेदारी ने उनके प्राण फ़िर लौटा दिए। वे हमेशा घर के बारे में सोचती रहती, हमारी पढाई की चिंता करती, कुछ सालों में हम सब पढ लिख कर काम पर लग गए थे। सभी की शादियाँ हो चुकी थी। लेकिन दादी ने अभी भी घर की कमान नहीं छोड़ी थी। वह मुस्तैद थी अपनी ड्युटी पर। लेकिन काल कब किसे मौका देता है, एक बार उसने फ़िर खाट पकड़ ली, जीवन के झंझावातों से वह बहुत टकराई और उन पर विजय पाई थी। लेकिन अब समय की मार ने उसे असक्त कर दिया था। वह खाट से नहीं उठ पाई, खाना धीरे-धीरे कम होकर एक दिन छूट गया।
उसने मुझे बुलाया और लेटे ही लेटे मेरा हाथ पकड़ कर अपने सीने से लगाया और मुझे अपने पास बैठने कहा और बोली-“जो मैं कह रही हूँ उसे ध्यान से सुन, तू बहुत भोला है, ये दुनिया जालिम है, लेकिन जानती हूँ जिसका कोई नहीं होता उसका भगवान होता है। तेरे साथ भी वही है, किसी बात की चिंता मत करना, तेरे पास किसी चीज की कमी नहीं है और आगे भी नहीं रहेगी। अब तुझे परिवार की जिम्मेदारी ढंग से संभालनी पड़ेगी। सभी को लेकर चलना पड़ेगा और मुझे मालूम है, तू इस काबिल है। मेरा आशीर्वाद सदा तेरे साथ है।“- इतना कहने के बाद दादी फ़िर कभी नहीं बोली………वह जीवन की लड़ाई जीत चुकी थी……!
“अलख निंरजन बच्चा” कुछ ध्यान में थे,मुझे लगता है कुछ परेशानी है।“-बाबा जी बोले।
मैने भी सोचा बाबा जी को कैसे पता चला कि मैं कुछ परेशानी में हूँ। परेशानी और मेरा साथ तो चोली दामन का है।एक खत्म नहीं होती, दुसरी चली आती है।
“कहिए महाराज, क्या सेवा करुं”-मैंने उत्तर दिया
“वत्स चेहरे से चिंता की रेखाएं मिट जाएंगी, दो महीने के बाद शुभ दिन आने वाला है, अवश्य ही तुम्हारा कल्याण होगा,ये हमारा वचन है।“
“मैं खुश हूँ महाराज, मुझे किसी भी तरह का शोक नहीं है, बस ईश्वर की कृपा बनी रहे।”
“खुश ही रहोगे बच्चा, लो प्रसाद लो, संकोच मत करो”- कहते हुए बाबा जी ने अपनी झोली में भभूत निकाल कर दी।
मैने उनसे भभूत लेकर पुड़िया बांध कर रख ली। तब बाबा जी फ़िर बोले-“ बच्चा कुछ दक्षिणा करो, तो बाबा लोग भी चलते हैं”- मेरी जेब में एक 50 का नोट था, जिसे कई दिनों से संभाल कर रखा था कि कभी एन वक्त पर काम आ जाएगा।
“देर न करो बच्चा, तुम्हारी जेब में 50 का नोट है, हमें मालूम है, और तुम क्या सोच रहे हो ये हम जानते भी हैं, संशय मत रखो और वह नोट हमें दे दो। तुम्हारा कल्याण होगा।“
ये तो बड़ा आश्चर्य हो गया, मेरी जेब में 50 का नोट है बाबा जी कैसे जान गए? जरुर कोई पंहुचे हुए महात्मा हैं, मैने सोचा। अब दे ही देता हूं 50 रुपए, मेरी जरुरतों को पूरा करना होगा तो भगवान चिंता करेंगे मेरी। लेकिन कहीं दादी को पता चला तो मार-मार कर छड़ी मेरी चमड़ी उधेड़ देगी। मैनें इधर-उधर देखा, जब कोई नहीं दिखा तो 50 का नोट बाबा जी के हाथ पर धर दिया, बाबा जी खुश हो कर ढेर सारा आशीर्वाद दिया और जैसे ही 5 डग भरे, तभी दादी का प्रवेश हो गया। वह अपनी लाठी टेकते हुए अंदर आई और बहुत गुस्से में थी।
“अरे! मुस्टण्डों तुम्हे बच्चे से 50 रुपया लूट कर ले जाते शर्म नहीं आई, अभी वापस करो रुपए।“ इतना सुनते ही दोनो बाबा जी तो दौड़ लिए, दादी बकते हुए उनके पीछे-“ एक बार मेरे हाथ बस लग जाओ, तुम्हारे सात जन्मों की कसर निकाल रख दुंगी, कभी दुबारा इस ओर मुंह करके देखोगे भी नही, नासपीटों को हमारा घर ही मिलता है।“
जब बाबा जी हाथ नहीं आए तो दादी ने मूड़ कर मुझे दो डंडे लगाए,-“ यूँ ही लुटाता रहे गा कि कुछ कमायेगा भी, तुझे मालूम है आगे कितनी बड़ी जिम्मेदारियाँ सर पर खड़ी हैं, ये मोडे तेरा कल्याण कर जाएंगे।आज तो तेरी हड्डी पसली एक करके छोड़ुंगी।“
“दादी मुझे छोड़ दो, अब फ़िर ऐसी गलती नहीं करुंगा।“मैने कानों को हाथ लगाते हुए कहा। दादी वापस घर के अंदर चली गयी। बाद में पता चला कि मेरी करतूत को माँ देख रही थी, उसने दादी को भेजा था कि-“देखो तुम्हारा सपूत क्या कर रहा है।“
दादी को रुपए पैसे का महत्व पता था, दादा जी की मृत्यु के बाद घर का बोझ उन पर ही आ पड़ा था। थोड़े से खेतों के भरोसे घर गृहस्थी को चलाना कठिन काम है,उन्होने जैसे तैसे करके अपने 5 बच्चों को पाला था। फ़िर उन्होने कुछ सुख के भी दिन देखे थे। जब भी सबको दूध देने का समय आता तो मुझे एक प्याला दूध का ज्यादा ही देती थी और कहती थी दूध पीकर मेरा बेटा जल्दी बड़ा होगा। कभी मेरी बदमाशियों को छुपाते हुए पिताजी से लड़ भी जाती थी।
एक बार बरसात के महीने में दादी की तबियत खराब हो गयी, उन्हे उल्टी और दस्त शुरु हो गए, रात के समय मुसलाधार गिरते पानी में मैं डॉक्टर लेकर आया, उसने इलाज किया। कुछ दिनों में वह ठीक हो गयी। लेकिन उतनी ठीक नहीं हुई जितनी पहले थी। दिनों दिन कमजोर होते जा रही थी। अब तो उनका बिस्तर से उठना भी मुस्किल हो गया था। घर वाले सब चिंता में थे कि दादी अब नहीं बचेंगी। तभी एक रात पिताजी को असमय हृदयाघात हो गया और वे चल बसे। अचानक एक अनचाही विपदा आन पड़ी जिसके बारे में किसी ने नहीं सोचा था कि ऐसा भी हो सकता है। एक पहाड़ सा ही टूट पड़ा। दादी खाट से लाठी के सहारे उठ कर खड़ी हो गयी थी फ़िर हमारे खानदान का सहारा बनने के लिए। जैसे गाय अपने बछड़े के प्राण पर आया संकट देख कर सिंह से भी लड़ जाती है ठीक उसी तरह……….।
इस तरह दादी के सामने आई असमय जिम्मेदारी ने उनके प्राण फ़िर लौटा दिए। वे हमेशा घर के बारे में सोचती रहती, हमारी पढाई की चिंता करती, कुछ सालों में हम सब पढ लिख कर काम पर लग गए थे। सभी की शादियाँ हो चुकी थी। लेकिन दादी ने अभी भी घर की कमान नहीं छोड़ी थी। वह मुस्तैद थी अपनी ड्युटी पर। लेकिन काल कब किसे मौका देता है, एक बार उसने फ़िर खाट पकड़ ली, जीवन के झंझावातों से वह बहुत टकराई और उन पर विजय पाई थी। लेकिन अब समय की मार ने उसे असक्त कर दिया था। वह खाट से नहीं उठ पाई, खाना धीरे-धीरे कम होकर एक दिन छूट गया।
उसने मुझे बुलाया और लेटे ही लेटे मेरा हाथ पकड़ कर अपने सीने से लगाया और मुझे अपने पास बैठने कहा और बोली-“जो मैं कह रही हूँ उसे ध्यान से सुन, तू बहुत भोला है, ये दुनिया जालिम है, लेकिन जानती हूँ जिसका कोई नहीं होता उसका भगवान होता है। तेरे साथ भी वही है, किसी बात की चिंता मत करना, तेरे पास किसी चीज की कमी नहीं है और आगे भी नहीं रहेगी। अब तुझे परिवार की जिम्मेदारी ढंग से संभालनी पड़ेगी। सभी को लेकर चलना पड़ेगा और मुझे मालूम है, तू इस काबिल है। मेरा आशीर्वाद सदा तेरे साथ है।“- इतना कहने के बाद दादी फ़िर कभी नहीं बोली………वह जीवन की लड़ाई जीत चुकी थी……!
दादी की सीख हमेशा याद रखिये..अनुभव की पाठशाला से सीखा उनका ज्ञान आपको हमेशा राह दिखायेगा. संस्मरण पढ़कर अपनी दादी की याद हो आई. जरा भावुक हो गया. दादी की पुण्य आत्मा को नमन!!
जवाब देंहटाएंदादीजी का आशीर्वाद ले ब्लॉग-ब्लॉग डोल रहे हो ललित शर्मा जी मूंछों वाले। तभी घणी सारी टिप्पणियों और पोस्टों का जखीरा लगा हुआ है।
जवाब देंहटाएंदादी ..........कहानी नही ...सच्चाई .....ये दादीयाँ ....भी न...
जवाब देंहटाएंअम्माँ की याद दिला दी ...हर पल मेरा इन्तजार कर रही है भारत में
जवाब देंहटाएं.... bahut sundar, behatreen kahaanee !!!
जवाब देंहटाएंदादी ...कहानी ...ज़िंदगी की सच्चाई से रु-ब-रु करा रही है ...अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंश्री कृष्ण जन्माष्टमी की बधाई !
जवाब देंहटाएंजय श्री कृष्ण !!
ताले का कमाल देखा ?.... मिनटों मे पचास रूपए कमा लिए बाबा ने ... कुछ बाबा जी से भी सीखिए ...ज्यादा संवेदना के चक्कर मे ही तो ठगे जाते हैं
जवाब देंहटाएंbahut badhiya daadi ki kahaani.
जवाब देंहटाएंदादी मां को नमन.
जवाब देंहटाएंजन्माष्टमी की बहुत बहुत शुभकामनायें।
dadi kee seekh men jeevan ka falsafa hai aur ta umr ka anubhav.
जवाब देंहटाएंआप लकी है आपने अपनी दादी देखी और उनके साथ समय बिताया उनसे काफी कुछ सीखा लेकिन मैंने तो अपनी दादी देखी ही नहीं इसलिए कुछ कह नहीं सकती ! माफ़ कीजियेगा !
जवाब देंहटाएंदादी तो बस दादी ही होती है, याद दिला दी आज आपने.
जवाब देंहटाएंजन्माष्टमी की बहुत बहुत शुभकामनायें
रामराम.
हमारे पड़ोस में भी एक ऐसी ही दादी रहती है, देख कर लगता है, अपने ज़माने में क्या औरत रहीं होंगी, उस जमाने में एक औरत हो कर परिवार को पालना तो बहुत बड़ी बात थी.
जवाब देंहटाएं"बुजुर्गों की सीखें स्ट्रीट लाइट होती हैं, जो जीवन की राहों का अन्धेरा हर लेती हैं. "
जवाब देंहटाएंआपको प्रणाम और जन्माष्टमी की बधाई
दादी तो बस दादी ही होती है,
जवाब देंहटाएंआपको और आपके परिवार को कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ
जन्माष्टमी के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
जवाब देंहटाएंवास्तविक ज़िन्गादगी के सच्चे अनुभवों से भरी दादी की कहानी ......सच पूरी जिंदगी याद रहती है !
जवाब देंहटाएंजन्माष्टमी की बहुत बहुत शुभकामनायें
दिल को छू लेने वाली एक संवेदनशील कहानी .
जवाब देंहटाएंबहुत -बहुत बधाई
दिल को छू लेने वाली एक संवेदनशील कहानी .
जवाब देंहटाएंबहुत -बहुत बधाई
आपकी दादी सचमुच महान थी | ऐसी दादी भगवान सभी बच्चो को दे |
जवाब देंहटाएंसच्ची-अच्छी और एक संवेदनशील कहानी । भावना प्रधान लेखन, सुन्दर प्रस्तुति करण । दादी जी को नमन ।
जवाब देंहटाएंएक दिलकश और संवेदनशील कहानी .
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत अभिनन्दन !
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एक ब्लॉग में अच्छी पोस्ट का मतलब क्या होना चाहिए ?
ਮੂਛਾਂ ਵਾਲੇ ਬਾਉ ਜੀ ਨੂ ਸਤ ਸ੍ਰੀ ਅਕਾਲ!
जवाब देंहटाएंਕਹਾਨੀ ਦੀ ਦਾਦੀ ਸਚ ਮੇਂ ਸੀਗੀ ਕਮਾਲ!
ਬਾਬਾ ਲੋਕੀਂ ਦਾ ਹੈ ਅੱਜ ਬੜਾ ਹੀ ਮਾੜ੍ਹਾ ਹਾਲ!
ਬੈਚਲਰ ਪੋਹਾ ਕਦੋ ਖਾਓਗੇ ਹੁਣ ਰਹੰਦਾ ਹੈ ਇਹੀ ਸਵਾਲ!
@Coral
जवाब देंहटाएंआवश्यक नहीं है कि किसी ब्लॉग में आपको सारी ही पोस्ट अच्छी लगें।
जो अच्छी लगी उसे अच्छी कह दिया।
Wonderful Information you have given in this blog. Thanks
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