रायपुर स्टेशन पर वन विभाग की जड़ी बूटी दुकान |
रायगढ में रचना शिविर के आयोजित होने की मेल महीनों पहले प्राप्त हो चुकी थी। मैने भी शामिल होने की ठानी, क्योंकि इससे पहले होने वाले राजनांदगाँव और कोरबा शिविरों में अनुपस्थित रहा था। ठानने के पश्चात ही कहीं जाना हो सकता है, बिना ठाने कुछ नहीं। रामभरोसा सेन को भी कह दिया था महीने पहले चलने के लिए। 6 तारीख को 3 बजे हम रायगढ जाने के लिए अपने गाँव से चले। हमें जनशताब्दी एक्सप्रेस से रायगढ पहुंचना था। रेल्वे स्टेशन पर सरकारी जड़ी बूटी की दुकान खुले देख कर अच्छा लगा। बैठे-बैठे ट्रेन का इंतजार कर रहे थे तभी मेरे बगल में एक सज्जन आकर बैठे। अनायास ही उनसे चर्चा होने लगी। पता चला कि वे आर्ट होम के चित्रकला शिविर से आ रहे हैं। उनका नाम विजय बरठे है, मेरे गाँव में उनके कुछ रिश्तेदार भी रहते हैं। रायपुर की चित्रकला मंडली से परिचय है पर इनसे कभी मुलाकात नहीं हो पाई। चर्चा होते रही शताब्दी के इंतजार के साथ। स्टेशन पर भीड़ बढ चुकी थी, बगल में पुरी अहमदाबाद एक्प्रेस खड़ी थी। एक औरत और आधा आदमी दोनो ने मिल कर जनरल बोगी में लगभग 10 क्विंटल सब्जी चढा ली थी, सिपाही की देख रेख में।
चित्रकार विजय वरठे |
लो जी हमारी ट्रेन भी आ चुकी गोंदिया से, भीड़ को देख कर हमने प्राचीन देशी फ़ार्मुला अपनाया और एक सीट पर रुमाल डाल कर तीनों सीटों पर कब्जा कर लिया। हम तीनों को बैठने का स्थान मिल गया। शताब्दी चल पड़ी रायगढ की ओर। जब शताब्दी प्रारंभ हुई थी तो लोग ट्रेन की साफ़ सफ़ाई और 135 रुपया किराया देख कर इसकी टिकिट नहीं लेते थे। ट्रेन खाली जाती थी। 10 वर्षों में बहुत परिवर्तन हो गया, अब पैर रखने की जगह नहीं मिलती। खड़े खड़े जाना पड़ता है यात्रियों को। विजय वरठे जी से चर्चा होते रही उनके काम की। चित्रकला और नाटय कला दोनो से जुड़े हैं। रंगमंच पर भी काम किया है। उनसे संस्मरण सुनते रहे और शताब्दी आगे बढती रही। विजय चांपा स्टेशन में उतरे और हमने प्रमोद स्मृति संस्थान के निदेशक को फ़ोन लगाया व्यवस्था के विषय में जानने के लिए। तो उन्होने एक नम्बर दिया और फ़ारिग हो गए। मैने भाई साहब को फ़ोन लगा कर बुला लिया था, शताब्दी से कुछ और लोगों के रायपुर से आने की चर्चा थी। स्टेशन पहुंचने पर मैने निदेशक के दिए नम्बर पर फ़ोन किया तो उन्होने किसी कार्यकर्ता के स्टेशन पहुंचने की सूचना दी।
करोड़ी मल नगर अब जिंदल नगर |
फ़िर फ़ोन पर पता चला कि पंचायती धर्मशाला में इंतजाम किया गया है। यह धर्मशाला स्टेशन के गेट के पास ही है और सामने पथिक होटल है। जहाँ मैं पहले भी कई बार रुक चुका हूँ। धर्मशाला के काऊंटर पर पूछने पर काऊंटर वाले ने माकूल जानकारी नहीं दी और ये भी नहीं बताया कि साहित्यकार साथी यहाँ रुके हुए हैं। रात के 11 बज चुके थे। मैने रामभरोसा जी को बगल के होटल में खाना खाने कहा। तभी सड़क के उस पार तीन जाने पहचाने सज्जन दिखाई दिए। मैने जाकर उन्हे नमस्कार कहा, जवाब तो मिला, लेकिन अनमने मन से। शायद उन्होने पहचान कर भी उस वक्त पहचानना ठीक न समझा। उनकी मानसिकता वे जानें। वैसे मुझसे जो एक बार मिल लेता है उसे पहचान ही लेता हूँ। वे स्कार्पियो में बैठ कर निकल गए और मैं सड़क पर खड़ा रहा बिना माई बाप के। एक जिम्मेदार सज्जन को फ़ोन किया तो वे सितारों की उड़ान पर थे। उन्होने जो जवाब दिया वैसा कभी जीवन में सुना नहीं था। रायगढ शहर मेरे लिए नया नहीं। लेकिन जब किसी की व्यवस्था में आए है तो उनसे सम्पर्क करना ही पड़ेगा, मुड उखड़ गया, सोचा कि बेकार आए यहाँ, मन कसैला हो गया।
स्पेशल पंखा |
रचना शिविर के कोई हम मुख्य अतिथि तो थे नहीं जो हमें कोई परघाता और इंतजार करते रहता आने का। हम प्रशिक्षु थे, इसलिए रंगरुटों के साथ जो व्यवहार होना चाहिए वही हमारे साथ हुआ। पर हम ऐसे व्यवहार के लिए तैयार नहीं थे, क्योंकि इस उम्र में भी रंगरुटी ही की तो किस मतलब की। लेकिन जीवन में सभी तरह का अनुभव लेना चाहिए। हमेशा मीठे अनुभव झेलने वाले को कड़ुवा भी झेलने की हिम्मत होनी चाहिए। जो आमंत्रित थे वे होटल निकल लिए और जो निमंत्रित थे उन्हे धर्मशाला की शरण लेनी थी। मैने रामभरोसा जी से कहा कि आप रुकिए यहाँ पर तो वे भी वापस घर जाने की जिद करने लगे। मुझे भी उनके साथ धर्मशाला में रुकना पड़ा और भाई साहब को वापस जाने के लिए कहना पड़ा। कहते हैं ईश्वर जो करता है वह अच्छा करता है। वहाँ दो ब्लॉगर बंधु मिल गए। पहली बार मुलाकात हुई, एक ने पहचान लिया और एक सोते से उठ गए। बस फ़िर महफ़िल जम गयी। रात का भोजन किया ब्लॉगर मित्रों के साथ,कुछ हमारे गाँव के पास के मगरलोड के साहित्यकार भी थे। बाल गीतकार शंभुलाल शर्मा जी, अंजनी कुमार अंकुर जी एवं कृष्ण कुमार अजनबी से रात को ही मुलाकात हुई। बालगीत सुनकर मन प्रसन्न हो गया। कड़ुवाहट पीछे छुट गयी और काव्य का आनंद लेते रात के 2 बज गए। मच्छर न भागे, छत की तरफ़ देखा तो पंखा ही गायब था, किसी तरह सोने का प्रयत्न किया।
ब्लॉगर नील कमल वैष्णव और ललित शर्मा |
थोड़ी देर सोने के पश्चात 5 बजे उठे। बरसात हो रही थी, राम भरोसा जी स्नान के लिए गरम पानी ढूंढ रहे थे, मुझे गरम पानी की आवश्यकता थी। बाकी तो ठंडे पानी से नहा रहे थे। वहाँ खाना बनाने वालों से भरोसा भाई ने 25 रुपए बाल्टी में गर्म पानी जुगाड़ किया और उससे हम दोनो ने काग स्नान किया। रात शंभुलाल जी की बाल कविताओं का आनंद अभी तक आ रहा था। वे रात को बाल कवि रमेश तैलंग जी का इंतजार कर रहे थे। वे दिल्ली से आने वाले थे। सुबह छोले भटुरे और फ़्रेंच स्विट ब्रेड का नास्ता कर रहे थे तभी निदेशक महोदय के भी दर्शन हुए, उन्होने ऐसी बात कह दी कि रात की गुस्सा ठंडा होकर बर्फ़ में बदल गया। ब्लॉगर मित्र नीलकमल वैष्णव और लक्ष्मीनारायण लहरे "साहिल" के साथ मौज हो रही थी। हम नास्ता कर रहे थे, उधर फ़ेसबुक पर फ़ोटो लग रही थी। मतलब लाईव रिपोर्टिंग हो रही थी। सुबह पता चला कि जो कार्यक्रम अग्रवाल धर्मशाला में होने वाला था वह अब जंजघर में होगा। बारिश को देख कर लग रहा था कि कार्यक्रम प्रारंभ होने में अभी देर है। स्थान बदलने पर सारी तैयारियां नए सिरे से करनी पड़ती हैं।
उद्घाटन भाषण करते हुए डॉ बलदेव जी |
हम जंजघर पहुंचे तो जय प्रकाश जी फ़ाईल फ़ोल्डर सुधार रहे थे। बैनर पोस्टर लगाए जा रहे थे। प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान द्वारा प्रकाशित पुस्तकों का स्टाल लग रहा था। जय प्रकाश जी ने मुझे साहित्यकार पंजीयन काऊंटर की जिम्मेदारी सौंप दी। इस तरह के काऊंटरों पर बैठने का मुझे खासा अनुभव रहा है। लड़की की शादी में इसी तरह कन्यादान काऊंटर पर बैठना पड़ता है और पाई-पाई का हिसाब रखना पड़ता है। इसलिए मैने यह जिम्मेदारी सहर्ष ग्रहण कर ली। थोड़ी देर बाद हमारे रात वाले मुख्य अतिथि साथी पहुंच चुके थे। काउंटर पर पंजीयन आरंभ था। उद्घाटन सत्र प्रारंभ हुआ। मंच पर प्रमोद स्मृति संस्थान के अध्यक्ष विश्वरंजन जी, डॉ चितरंजन कर, डॉ सुशील त्रिवेदी, श्री राम परिहार, रमेश तैलंग, रोहिताश्व जी, प्रफ़ुल्ल कोलाख्यान, अशोक सिंघई उपस्थित थे। दीपदान के पश्चात रायगढ के स्कूली बच्चों ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया, तथा कार्यक्रम की औपचारिक शुरुआत हुई। उद्घाटन भाषण रायगढ के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ बलदेव जी द्वारा किया गया, उसके पश्चात संस्थान के अध्यक्ष श्री विश्वरंजन जी ने रायगढ से जुड़ी अपनी स्मृतियों पर चर्चा की। अतिथियों के उद्घाटन भाषण के पश्चात कई लेखकों की पुस्तकों का विमोचन हुआ और दोपहर के भोजन की घोषणा हो गयी। प्रथम सत्र सम्पन्न हुआ।
राम राम जी,
जवाब देंहटाएं"हम प्रशिक्षु थे, इसलिए रंगरुटों के साथ जो व्यवहार होना चाहिए वही हमारे साथ हुआ। पर हम ऐसे व्यवहार के लिए तैयार नहीं थे, क्योंकि इस उम्र में भी रंगरुटी ही की तो किस मतलब की।"
प्रयेक भाव को सरलता,सपष्टता और इमानदारी से यहाँ प्रस्तुत कर दिया!हर एक छोटी-बड़ी बात को आप पूरी तरह से अनुभव करते हो...ऐसा महसूस हुआ....!
कुँवर जी,
रायगढ़ राज में राग दरबारी ही अक्सर गूंजती है.
जवाब देंहटाएंबढ़िया अनुभव विवरण
जवाब देंहटाएंआपके उस आयोजन से जुड़े खट्टे मीठे अनुभव प्यारे लगे. आभार.
जवाब देंहटाएंबढिया विवरण।
जवाब देंहटाएंरायगढ़ के राग दरबारी का अनुभव राहुल सिंह जी को था ही अब आपने भी भुगत लिया ! देखना ये है कि सबक किसने लिया :)
जवाब देंहटाएंरोचक जानकारी, समारोह की।
जवाब देंहटाएंकुछ खट्टे अनुभव भी जरुरी होते हैं. मुझे मोरल ऑफ द स्टोरी लगा - जिसे लोग आभासी दुनिया कहते हैं वह असली दुनिया से ज्यादा इंसानी है.
जवाब देंहटाएंआपकी यात्रा जीवंत होती है ललित जी!! और उनका वर्णन सजीव!! शब्द सही इस्तेमाल किये मैंने.. कोइ बात नहीं दिल की बात शब्दों से नहीं समझी जाती!!
जवाब देंहटाएंरोचक जानकारी और अनुभव...
जवाब देंहटाएंvivran bahut acha laga!!
जवाब देंहटाएंरचना शिविर में प्रशिक्षण तो आपका तभी से प्रारम्भ हो चुका था जब आप ट्रेन में बैठे । और उसके बाद भी जो कुछ हुआ वह सब प्रशिक्षण का ही अंग था । अगर यह सब अनुभव एक रचनाकार को न मिले तो वह क्या खाक लिखेगा । फिर रचना वही होगी जो बड़े लेखक ए सी कमरों में बैठकर लिखते हैं । इस तरह का जीवंत वर्णन उसमें कहाँ से आयेगा । बधाई हो । वैसे इस बात से मुझे भी यह ख्याल आया कि मैं आज से 25 साल पहले अटेंड किये हुए अपने शिविरों के बारे में लिखूँ .. ठीक है ना ?
जवाब देंहटाएंआप जैसे खरी खरी लिखने वाले बहुत ही कम होते हैं। आपकी यह प्रतिबध्दता बनी रहे यही शुभकामना है।
जवाब देंहटाएंलिखिए शरद भाई, आपसे कुछ अनुभव मिलेगा। अगर पहले ही लिख देते तो बात कुछ और थी।
जवाब देंहटाएंइस उम्र में भी रंगरुटी ही की तो किस मतलब की
जवाब देंहटाएंसही है जी
समय के साथ-साथ रोचक होती रही रचना शिविर की यात्रा। हिन्दी ब्लॉगर्स की अभासी दुनिया वास्तविक जगत में बदलती जा रही है यह अच्छी बात है।
जवाब देंहटाएंबड़े भैया ललित जी नमस्कार
जवाब देंहटाएंमजा आ गया आपकी यात्रा वृतांत से लेकर रचना शिविर के प्रथम दिवस कि जानकारी पढ़ कर, सचमुच आपके साथ बिताते पल बहुत ही आनंद दायक रहे, वैसे रहने को तो वहाँ बहुत सारे प्रबुद्ध साहित्यकार थे पर अपने जैसे ब्लागर और वो भी ब्लागिंग के नम्बर वन ब्लागर से मिले तो आनंद चौगुना हो चुका था.
मैं भी आभार व्यक्त करना चाहूँगा वर्मा साहित्य संस्थान का जिनकी वजह से हम सभी एक जगह इकट्ठा हुए और मिलना हो पाया
बड़े भैया ललित जी नमस्कार
जवाब देंहटाएंमजा आ गया आपकी यात्रा वृतांत से लेकर रचना शिविर के प्रथम दिवस कि जानकारी पढ़ कर, सचमुच आपके साथ बिताते पल बहुत ही आनंद दायक रहे, वैसे रहने को तो वहाँ बहुत सारे प्रबुद्ध साहित्यकार थे पर अपने जैसे ब्लागर और वो भी ब्लागिंग के नम्बर वन ब्लागर से मिले तो आनंद चौगुना हो चुका था.
मैं भी आभार व्यक्त करना चाहूँगा वर्मा साहित्य संस्थान का जिनकी वजह से हम सभी एक जगह इकट्ठा हुए और मिलना हो पाया
ललित जी,
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा आपका यात्रा वृतांत पढ़कर। भाई विजय वरठे जी से मैं परिचित हूं। आपसे एक नम्र अनुरोध है कि उनका मोबाइल नम्बर मिल जाए, तो अपनी 26 साल पुरानी यादें ताजा कर लूं। मेरा मोबाइल नम्बर है 9977276257, आप मुझे जानते तो होंगे ही, न जानते हों, तो भी एक मित्र के नाते मेरा ये छोटा सा काम कर देंगे, तो आभारी रहूंगा।
डॉ महेश परिमल भोपाल