रविवार, 1 जून 2014

अचानकमार : वनवासी की यात्रा

काफ़ी दिन हो गए थे जंगल की ओर गए, जैसे जंगल मेरा घर है जो हमेशा बुलाता है। कहता है आ लौट आ, मिल ले आकर मुझसे। अब पहले जैसा नहीं रहा, जैसा तू छोड़ कर गया था। जीर्ण-शीर्ण हो गया हूँ, कहीं ऐसा न हो जब तक तू लौट कर आए मैं फ़ना हो जाऊँ। जंगल की गुहार मुझ तक हमेशा पहुंचती है पर कांक्रीट के घरों में जंगला बंद होने के बाद यह गुहार द्वार पर बैठे चौकीदार तक पहुंच कर लौट जाती है। जब गर्मी से धरती तपने लगती है और देह से प्राण निर्वासित होने के लिए मचलता है, तब जंगल की याद आती है। मन कहता है कहाँ है मेरा जंगल? मेरा अपना जंगल। अंतर से आवाज आती है, आ लौट चलें फ़िर जंगल की ओर। मैं भी एक वनवासी हूँ, अब शहरवासी हो गया तो क्या हुआ। वनवासी की फ़क्कड़ी और यायावरी अभी भी मेरी रगों में दौड़ती है। भीतर का वनवासी यदा-कदा सक्रीय हो जाता है और फ़िर दौड़ पड़ता हूँ अपने पुराने घर की तरफ़। 
अचानकमार का वन मार्ग
जंगल ने जैसे ही आवाज दी वैसे ही तुरंत चल पड़े अचानकमार जंगल की ओर। बिलासपुर में प्राण चड्डा जी (अचानकमार जंगल के रक्षक एवं पर्यावरण प्रेमी) को फ़ोन लगा कर सूचना दी। वे तुरंत तैयार हो गए। बोले - यार जल्दी निकलो रायपुर से, मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ। जैसे तैसे करके रायपुर से 12 बजे से पहले नहीं निकल सके। आधे घंटे बाद चड्डा जी पुन: डांट पिलाई, अभी तक नहीं निकले हो। जल्दी निकलो और नांदघाट पहुंच कर फ़ोन लगाओ तब तक मैं तैयार हो जाऊंगा। बिलासपुर मार्ग पर यातायात का प्रवाह अधिक रहता है इसलिए गाड़ी थोड़ी देखभाल कर हांकनी पड़ती है क्योंकि बड़े ट्रेलर और सीमेंट के कैप्सुलों के ड्रायवर महाजंगली हैं, इनसे बचकर चलना पड़ता है।
परलोक वाहक
सफ़र धीरे-धीरे कट रहा है और मील के पत्थर पीछे छूटते जा रहे हैं। जब मिलन की उत्कट आकांक्षा हो और चित्त बेचैन हो तो सफ़र भी व्यग्रता से कटता है। हम चल रहे थे अपने ठिकाने जंगल की ओर। जंगल से गुजरते हुए जब कुल्हाड़ियों की ठक-ठक की आवाज सुनाई देती है तो समझ जाता हूँ यहीं कहीं आस पास जंगल का रक्षक "वन रक्षक" भी होगा, जो लौटने वाली कुल्हाड़ियों को गिन कर हरे-लाल नोटों से अपनी जेब गर्म कर कर्तव्य निर्वहन कर रहा होगा। जब रक्षक ही भक्षक बन जाए तो कौन हवाल। बस इन्हीं नोटों के लालच ने जंगल को उजाड़ दिया, नंगा कर दिया डुंगरियों को, जो कभी आसमान से होड़ लगाए वृक्षों को देखकर एक माँ के जैसे आनंदित होती थी। आज उनसे यह आनंद भी छिन गया। 
बारी घाट से सुंदर नजारा
जंगल कटने से सारी प्रकृति असंतुलित हो गई है। पर्यावरण संतुलन बिगड़ रहा है, मौसम के चक्र में परिवर्तन दिखाई दे रहा है। सूरज की तपन बढ गई है। सूरज की गर्मी से सड़क पर लगा कोलतार भी पिघलने लगा है। दूर से मृगमरीचिकाएँ भी दिखाई दे रही हैं। पर्यावरण संतुलन बिगड़ने और सूरज की गर्मी पर केवल कृष्ण शर्मा की कविता कहती है -
जब अत्याचारी हो जाए सूरज
सूख जाएं नदियां
वीरान हो जाए धरती
और लगे कि सब कुछ खत्म हो गया
तब तुम
उन बीजों के बारे में सोचना
जो हालांकि हैं,
पर नजर नहीं आते।
उस बारिश के बारे में सोचना
जो होनी ही है,
किसी न किसी रोज
और सोचना अपने बारे में

सड़क की तपन और मृगमरीचिकाओं के पीछे दौड़ते हुए बिलासपुर पहुंच जाते हैं। चड्डा जी हमारा इंतजार कर रहे होते हैं। सिर पर सूरज कहर ढा रहा है पर जंगल की ओर जाने की उत्कट आकांक्षा ने तपन का प्रभाव कम कर दिया है। आगे का सफ़र चड्डा साहब के निर्देशन में तय होना था। उन्होनें नेवीगेटर की सीट संभाल ली और हम आगे बढ गए। साथ में उन्होनें डेढ लीटर दूध की बोतल भी रखी हुई थी। जाहिर था कि आगे चलकर इसका उपयोग करना है।
फ़ार्म हाऊस में बेंगवा (बड़ा मेंढक)
रास्ते में चड्ढा जी ने बताया कि एक फ़ार्म हाऊस में चाय पानी की व्यवस्था कर रखी है। वहाँ चलकर थोड़ा विश्राम करेगें और चाय पानी के साथ आम ग्रहण कर आगे चल पड़ेगें। अचानकमार में रात्रि विश्राम प्रतिबंधित होने के कारण हमने अमरकंटक में रात रुकना तय किया। वहाँ कल्याण आश्रम में फ़ोन द्वारा सूचित कर ठहरने की व्यवस्था कर दी गई थी। अचानकमार से हमें अमरकंटक जाना था। चड्डा साहब ने आम्रवन में 7 पेटी आमों की व्यवस्था कर रखी थी। जिसमें तीन पेटी हम सबके लिए और 4 पेटी कल्याण आश्रम के बाबाजियों के लिए। हमने आम्रवन में "गुरुजी की ठंडाई" की बोतल भरी रखी थी। उसे दूध में घोलकर हमने ठंडाई बनाई और दो-दो गिलास उदरस्थ किए तथा रास्ते के लिए ठंडाई बोतल में भर कर रख ली। 
अचानकमार नाका (आवक-जावक एन्ट्री)
अचानकमार के जंगल में रात रुकने की कोई व्यवस्था नहीं है तथा जो एकलौता विश्रामगृह छपरवा में था उसे भी बंद कर दिया गया। जब से इसे टायगर रिजर्व बनाया है तब से जंगल के भीतर होने वाली अवैध गतिविधियों में काफ़ी कमी आई है। उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद वन विभाग का अमला काफ़ी सक्रीय दिखाई देता है। कोटा और केंवची की तरफ़ से आने वाले प्रत्येक वाहन का नम्बर, चालक का नाम तथा आने का उद्देश्य सभी दर्ज किया जाता है। अचानकमार जंगल में बारी घाट से लेकर केंवची तक के मार्ग में किसी भी कम्पनी का मोबाईल फ़ोन काम नहीं करता। सबका नेटवर्क बंद होता है। भारीवाहनों का प्रवेश शाम 6 बजे से लेकर सुबह 6 बजे तक वर्जित है तथा उन्हें वन में वाहन खड़ा करने की भी मनाही है। प्रवेश करने वाले वाहन की निर्मग स्थान के नाके पर भी एन्ट्री की जाती है।
अचानकमार रिजर्व फ़ारेस्ट में
लगभग 4 बजे रहे थे, गर्मी के दिनों में भी शाम के समय जंगल में मौसम सुहाना हो जाता है, खासकर अचानकमार के जंगल में ठंडी बयार बहने लगती है। कभी-कभी पानी की फ़ुहारें भी मौसम को बदल देती हैं। जैसे किसी सद्यस्नाता वनवासिन ने स्नानोपरांत गेसुओं को झटका हो और रिमझिम फ़ुहारें बरसने लगी हो। पक्षियों की चहक ऐसे लगती है जैसे फ़ुहारों से आनंदित हो जंगल से सारे पक्षी चहक कर स्वागत करने लगे हों। पक्षियों की तरह-तरह की बोलियाँ और जंगली फ़ूलों की सुगंध मन को मोह लेती है। अभी वन में सिर्फ़ वृक्ष ही दिखाई दे रहे हैं, उनके नीचे सूखे पत्तों की एक तह बिछी हुई है। इस समय जंगल में पैदल भ्रमण करने पर सर्पादि जहरीले कीटों का अधिक डर नहीं होता। क्योंकि धरती साफ़ दिखाई देती है। बरसात के दिनों में वनस्पतियाँ घास, झाड़ियां एवं वृक्षों के तीन स्तर पर विभाजित दिखाई देती हैं। घास होने के कारण कीटादि दिखाई नहीं देते और उनके दंश का खतरा रहता है। सफर जारी है ……… आगे पढ़ें  

9 टिप्‍पणियां:

  1. हमविचार होने के कारण यात्रा न केवल सुखद होती है अपितु उदेश्य भी निहित होता है, .फिर राह में बजरंग केडिया के बगीचे के रसीले आम ने सोने में सुहागे का काम किया और ये यात्रा यादगार हो गई ..!!

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  2. मन जंगल सा अस्त व्यस्त हो,
    पर फिर भी फैली हरियाली।

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  3. आप और चड्ढा जी के साथ कोई भी सफर सुहाना हो सकता है, फिर अगर मोहनभांठा से गुजरना हो इस मौसम में तो क्‍या कहने.

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  4. सुन्दर वन यात्रा उस मेंढक का छोटा भाई यहाँ घूम रहा है

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  5. सचमुच प्रकृति की गोद और माँ का आँचल किसे नही भाता ... सार्थक सन्देश देती सुन्दर वन यात्रा। … बढ़ते रहिये। शुभकामनाएं

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