खजुराहो के विश्वनाथ मंदिर में शिल्पकार ने स्त्री के पैर के तलुए में गड़ी शूल देखते एवं उसे निकालते हुए चिकित्सक का प्रदर्शन किया है। यह इस मंदिर का महत्वपूर्ण शिल्प है। घर-बार दैनिक जीवन में कार्य करते हुए शूल गड़ना सहज बात है, परन्तुं वह शूल किसी कोमलांगी को गड़ जाए तो उसकी वेदना उतनी ही अधिक होती है, जितनी महत्वपूर्ण रुपसी है।
पहले शिल्प में स्त्री पैर में गड़े हुए कांटे (शूल) का निरीक्षण कर रही है, शूल की पीड़ा उसके चेहरे से परिलक्षित हो रही है। शूल हृदय में गड़ा हो या पैर के तलुए में, चैन कहाँ लेने देता है, पीड़ा का निवारण कोई उपयुक्त पात्र ही कर सकता है। हृदय का शूल निकलना तो कठिन होता है, पर तलुए के शूल के लिए चिकित्सक आवश्यकता होती है।
अगले शिल्प में देवांगना चिकित्सक से शूल निवारण करवा रही है, इस शिल्प में उसका ध्यान शूल पर है और चेहरे से निराकरण का शांत भाव झलक रहा है। चिकित्सक भी आधुनिक ही है, वह औजार से कांटे को निकाल रहा है, इसके कंधे पर लटके बैग (चिकित्सक पेटी) से जाहिर होता है। वर्तमान में भी इस तरह के बैग का चलन बना हुआ है।
रोचक... क्या क्या ढूँढ निकालती हैं आपकी तेज निगाहें....
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