कुकुर कोटना से आगे बढ़ने पर मुझे सूखी हुई वह घास दिखाई दी, जिसे मेले ठेले में लोग संजीवनी बूटी कह कर बेचते हैं। यह सूखी घास पानी में डालने पर फ़िर से हरी हो जाती है। रामकुमार ने बताया कि इसे भठेलिया (लाल खरगोश) चारा कहते हैं, यह भठेलियों का भोजन है।
|
भालुओं का भोजन |
यहां से हम आगे बढे ही थे कि मुझे पत्तों में सरसराहट की आवाज सुनाई दी, मुड़ कर देखा तो एक बड़ा किंग कोबरा सरसराते हुए निकल रहा था। उसकी लम्बाई भी सात आठ फ़ुट रही होती, इसे गंउहा डोमी कहा जाता है। मैने साथियों को आवाज दी तो उन्होने उसे दूर भगा दिया।
|
जंगल का भठेलिया चारा, शहर की संजीवनी बूटी |
नदी के कुछ स्थानों पर गांव वालों ने मछली पकड़ने का ठिकाना बना रखा है, उस ठिकाने पर कोई दूसरे गांव वाला मछली नहीं पकड़ सकता है, यह जंगल का अघोषित नियम है। सब गांव वालों का अपना-अपना दहरा है। आगे बढ़ने पर चट्टानें बड़ी होती जाती हैं। इस स्थान को मासुल कहा जाता है। मासुल पहुंच कर नदी एक छोटे से झरने का रुप ले लेती है।
|
तिहारु राम सोरी बीज साफ़ करते हुए |
यहाँ पर तिहारुराम कुछ फ़ल तोड़ लाया। उनको फ़ोड़ कर नदी के जल में बीजों को धोया और मेरे को खाने के लिए दिए। बीज देते वक्त उसके मन में प्रकट हो रहे भावों को मैं देख रहा था, ये वही भाव थे जो जिस भाव से सबरी ने रामचंद्र को बेर खिलाए थे। नितांत निश्छल प्रेमिल मुस्कान के साथ उसने बीज मेरी ओर बढाए। बीजों के उपर लगे गुदे का स्वाद कुछ कुछ सीताफ़ल के जैसे था। मैं उस फ़ल का नाम भूल गया, परन्तु स्वाद अभी तक याद है।
|
भालु के पंजो के निशान |
मासुल बहुत बीहड़ दिखाई देता है। पत्थरों के बीच की गुफ़ाएं भालुओं एवं अन्य जंगली जानवरों के छिपने के लिए आदर्श स्थान है। कउहा (अर्जुन) के ऊंचे पेड़ों पर मधुमक्खियों के बड़े बड़े छत्ते लटक रहे थे और पेड़ों पर भालूओं के पंजो के निशान भी। नीचे देखने पर नदी की रेत में भालुओं के पंजो के निशान दिखाई दिए। नदी के पार तीन भालु विचर रहे थे। साथियों ने मुंह से आवाज निकाल कर उन्हें भगाया क्योंकि हमें मासुल से उतर कर नदी पार करनी थी।
|
मासुल से खारुन नदी का नजारा |
मासुल इस ट्रेकिंग का बहुत ही सुंदर एवं मनोरम स्थल है। यहाँ आकर मन रम गया। एक चट्टान काफ़ी ऊंचाई पर लगभग 12 फ़ुट तक बाहर निकली हुई है। उस पर बैठकर नदी का दृश्य आनंददायक दिखाई देता है। तिहारु राम ने मासुल नाम के विषय में बताया कि यह स्थान गहरा होने के कारण यहाँ से मछलियां ऊपर नहीं चढती। लोग यहां पर मछली मारने के लिए आते हैं। एक दिन पानी रोकने के लिए लकड़ी का लट्ठा ढूंढने लगे तो समीप ही दीमक लगा लट्ठा मिल गया। उन्होंने उठाकर उसे काम में ले लिया।
|
अर्जुन के वृक्ष पर भालु के पंजों के निशान |
कुछ देर बात लट्ठे में हलचल हुई तो पता चला कि मासुल सर्प है। मासुल सर्प आलसी होने के कारण एक स्थान पर ही पड़ा रहता है। उसके मुंह के सामने जो कीड़े मकोड़े आ जाते हैं उन्हें खाता है। यहाँ तक कि उस दीमक भी चढ़ जाती है। उस दिन के बाद इस स्थान का नाम मासूल पड़ गया। कुछ देर यहां बैठकर भालुओं को भगाने के बाद हम धीरे-धीरे नदी में उतरे, क्योंकि आगे भालुओं का खतरा था।
|
मासुल का नजारा |
नदी पार करके आधा किमी चलने के बाद खैरडिगी गांव का खार (खेत) आ गया। हमने गांव में पहुंच कर एक के घर में चाय बनवा कर पी। अब लौटने के लिए कोई साधन नहीं मिला। हमारी गाड़ी कंकालीन मंदिर में ही खड़ी थी। अब फ़िर पैदल चलकर लौटने के अलावा कोई चारा नहीं था। हमने नदी का साथ छोड़ दिया और उसके बगल से चरवाहों वाले रास्ते से कंकालीन लौटने लगे। फ़िर उबड़-खाबड़ रास्ते का सामना किया।
|
खारुन ट्रेकिंग का सुंदरतम स्थान मासुल |
दिन ढलने से पहले हम कंकालीन पहुंच जाना चाहते थे। ट्रेकिंग के शौक ने आज खूब पैदल चला दिया था। दो घंटे लगातार चलने के बाद कंकालीन मंदिर दिखाई देने लगा और सूरज भी ढल रहा था। मन में खुशी थी कि आज हमने खारुन नदी की कठिन ट्रेकिंग कर ली थी।
|
उबड़ खाबड़ पत्थरों के बीच से मार्ग बनाते हुए वापसी |
थकान बहुत अधिक हो गई थी, तिहारु राम सोरी भी नाहर डबरी से हमारे साथ लौट आया था। मैने उन्हें कुछ पैसे दिए और हम घर लौट आए कि बाकी ट्रेकिंग दो चार दिन बाद शुरु करेंगे। सुबह उठकर देखा कि दोनों पैरों के अंगुठे नीले हो कर फ़ुल गए हैं। देखते ही घबराहट बढ गई। तुरंत डॉक्टर के पास दौड़ा उसने दवाईयाँ दी। डर रहा था कि कहीं गैंगरिन न हो जाए।
|
पैरों की हालत: अंगुठे के साथ दो अंगुलियों के नाखून भी नीले हो गए |
तीन महीने बाद एक पैर के अंगुठे का नाखून थिम्पू में निकला और दूसरा दिल्ली में तथा आगे की ट्रेकिंग पर विराम लग गया। मेरा मानना है कि लोग पहाड़ों पर जाते हैं ट्रेकिंग के लिए, परन्तु छत्तीसगढ़ में ऐसे स्थानों की कमी नहीं है, जहाँ आप अपना रोमांचक शौक पूरा न कर सें। कभी आप भी ट्रेकिंग करके देखिए।
शर्मा जी बहुत ही रोचक यात्रा वृतांत और साथ साथ में सुन्दर तस्वीर और भी रोचक बना देते है।
जवाब देंहटाएंपर आपके नाखुन तो वास्तव में ही नीले पड गये इनका इलाज करवाओ नहीं तो नाखुन खराब हो सकते है।
बहुत ही शानदार वर्णन , छत्तीसगढ़ में ट्रेकिंग भी अच्छा अनुभव दे सकता है भगवान राम ने वनवास में यहां विचरण किया है
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही रोमांचक वर्णन है
जवाब देंहटाएंहाथ—गोड़ ल बचाके.. ट्रेकिंग—ब्रेकिंग करव सर जी.
जवाब देंहटाएंललितजी आपका भाट वाला वृतान्त पढ़ा बहुत जानकारी मिली ओर उत्सुकता भी।
जवाब देंहटाएंमुझे हमारे भाट के विषय में जानकारी कहाँ से मिलेगी जिससे में मेरे पूर्वजों के बारे में जान सकू ।
आप ने लिखा है सभी भाटों का सम्मलेन हुआ था उसका कोई रिकार्ड मिल सकता है या अन्य कोई स्थान जहाँ मुझे यह जानकारी मिल सकती हो तो बताने की कृपा करे
My email id yatin.24gupta@gmail.com
Mob. No. 8120400855
Whatsapp no. 8120400855
ललितजी आपका भाट वाला वृतान्त पढ़ा बहुत जानकारी मिली ओर उत्सुकता भी।
जवाब देंहटाएंमुझे हमारे भाट के विषय में जानकारी कहाँ से मिलेगी जिससे में मेरे पूर्वजों के बारे में जान सकू ।
आप ने लिखा है सभी भाटों का सम्मलेन हुआ था उसका कोई रिकार्ड मिल सकता है या अन्य कोई स्थान जहाँ मुझे यह जानकारी मिल सकती हो तो बताने की कृपा करे
My email id yatin.24gupta@gmail.com
Mob. No. 8120400855
Whatsapp no. 8120400855
पहाड़ी रस्ते, छोटी छोटी घाटियां और नदी सभी रोमांचकारी होते हैं लेकिन यात्रा सरल नहीं होती, विशेषकर शहरी लोगों के लिए... बहुत अच्छी रोमांचकारी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंखतरनाक कोबरा जैसे सर्प और भालुओं से भरा जंगल, कठिन रास्ते और चढ़ाई से पैर के नाख़ून का नीला पड़ जाना और उसके बाद भी उस यात्रा को "मासूल : खारुन नदी की रोमांचक यात्रा" जैसा संबोधन देकर विवरण इतनी सुन्दर शैली और चित्रों के माध्यम से हम सबके लिए उपलब्ध कराना सचमुच बहुत हिम्मत का काम है ... यायावर और यायावरी दोनों को सलाम व ढेरों शुभकामनाएं ....
जवाब देंहटाएंरोचक....
जवाब देंहटाएंरोचक+रोमांचक
जवाब देंहटाएंरोमांचक यात्रा.. जंगल में भालू के निशान देखकर और भी रोमांचकारी यात्रा हो गई है।
जवाब देंहटाएंromanchak !
जवाब देंहटाएं