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पहाड़ी ढलान पर थोड़ी सी जगह में बना हुआ घर, जहाँ पड़ोस ढूंढने के लिए भी दो किमी जाना पड़ता हो। चारों ओर प्रकृति की कृपा बरसती हो और तलहटी में नयार नदी बहती हो, ऐसी स्थान पर भीमदत्त कुकरैती जी का घर है। खड्ड में बहती नयार नदी एक स्थान पर जाकर गंगा में समाहित हो जाती है।
पहाड़ी ढलान पर थोड़ी सी जगह में बना हुआ घर, जहाँ पड़ोस ढूंढने के लिए भी दो किमी जाना पड़ता हो। चारों ओर प्रकृति की कृपा बरसती हो और तलहटी में नयार नदी बहती हो, ऐसी स्थान पर भीमदत्त कुकरैती जी का घर है। खड्ड में बहती नयार नदी एक स्थान पर जाकर गंगा में समाहित हो जाती है।
सपनों के घर के नीचे बहती नयार नदी |
घर के आस पास की क्यारियों में प्याज, मिर्च, सब्जियाँ, अदरक, फ़ल-फ़ूल एवं अनाज आदि जरुरत की सभी चीजें उगाई जाती हैं। बहुत कम सामान ही बाजार से खरीद कर लाना पड़ता है। गोबर खाद से उगी हुई फ़सल (जिसे आजकल आर्गेनिक कहा जाता है) का स्वाद ही अलग होता है और स्वास्थ्य के लिए लाभ प्रद भी होती है।
अलाव जलाकर ठंड भगाते पथिक अजय सिंह, धर्मवीर जी, किशोर वैभव, नीरज जाट |
सांझ हो रही थी, हल्की से हवा भी चलने लगी। पहाड़ों में इसे शीतलहर कहा जाता है। हल्की सी भी ठंडी हवा हाड़ कंपाने के लिए काफ़ी है। ठंड के मौसम में दिन भी जल्दी ही छिप जाता है और संक्राति का काल भी था। ठंड से बचने के लिए छत पर ही अलाव जला लिया और यहीं सभी इकट्ठे होकर गपियाने लगे। तब तक चाची ने खाना भी बना दिया। गरम गरम रोटी दाल सब्जी के साथ सभी ने भोजन कर लिया और नौ बजे ही बिस्तर के हवाले हो गए।
रात का भोजन एव प्रवचन |
सुबह का सूर्योदय हुआ तो सामने खाल (दो पहाड़ों के बीच की खाई) में बहती नदी में कोहरा छाया हुआ था। धूप चमकीली थी, हम ऊषा सेवन के लिए छत पर ही बैठ गए। जंगल में घर होने के कारण यहाँ जंगली जानवरों की भी आमदरफ़्त होती रहती है। जिनमें तेंदुए एवं सांभर प्रमुख हैं। बंदरों की फ़ौज भी दिखाई देती है। इन्होंने दो कुत्ते पाल रखे हैं, जो जरा सी आहट पर ही किसी के होने की सूचना दे देते हैं और रात भर चौकीदारी करते हैं।
सुरक्षा में तैनात छोटा भैरव |
पहाड़ की चढाई के कारण मेरे पैरों की हालत तो खस्ता थी और कहीं चलकर जाने का मन नहीं हो रहा था। नीरज, निशा, अजय, बीनु, धर्मवीर जी, वैभव आदि चाचा जी के निर्देशन में काकड़ (सांभर) देखने एवं उनकी फ़ोटो लेने चले गए। इस दौरान मैने गरम जल से स्नान कर नाश्ता भी कर लिया। ये सभी ग्यारह बजे तक लौट कर आए। तब तक रोटियां ठंडी हो चुकी थी।
सुबह की धूप का आनंद लेते हुए |
नीरज, निशा एवं अजय तीनों हरिद्वार जाना चाहते थे और हमें वापस दिल्ली लौटना था। समय कितनी जल्दी गुजर जाता है पता ही नहीं चलता। नदी से धुंध गायब हो चुकी थी और वह अब दिखाई देने लगी थी। मैं पहाड़ चढना नहीं चाहता था, सोच रहा था यहीं से नीचे उतर कर कोई गाड़ी लेकर गुमखाल तक पहुंच जाऊं। चढने के बजाय पहाड़ से उतरना मुझे सुविधाजनक लग रहा था, भले ही यह खड़ी उतराई थी, परन्तु जोर लगाना नहीं पड़ता।
पंडित भीमदत्त जी नए आलु के साग की तैयारी करते हुए |
खैर सभी ने भोजन करके चलने का निर्णय लिया। भीमदत्त जी ने क्यारी से ताजा आलू खोदे और उनकी सब्जी बनाई गई। भात खाने का मन था इसलिए चावल भी पकाए गए। भोजन करने के बाद चाचा जी (भीमदत्त जी) ने सबको परम्परागत तरीके से पुन: पधारने आमंत्रण के साथ विदा किया।
दोपहर का भोजन एवं वापसी की तैयारी |
अब हमको पुन उसी रास्ते से चलकर द्वारीखाल तक पहुंचना था। पहाड़ियों के लिए तो यह रोजमर्रा की जिन्दगी है, परन्तु हमारे जैसे मैदानी लोगों के कठिन काम है। आगे जाने के लिए चलना तो था ही, मन मार कर चल पड़े।
परम्परागत विदाई देते हुए पंडित भीमदत्त जी |
चीड़ के जंगल के बीच टेढी मेढी पगडंडी हमें बरसुड़ी गाँव लेकर जा रही थी। पहाड़ी से नीचे उतरने के बाद गाँव पहुंचने के लिए खड़ी चढाई ने हालत खराब कर दी। आखिर गाँव में घर तक पहुंचे और बाकी सामान लिया। गाँव के प्रवेश द्वार तक चाचा जी छोड़ने आए।
रास्ते में आगे बढते हुए थोड़ा ठहराव |
फ़ोटो खींचते, चिड़िया देखते हम आगे बढ गए। बीनू ने द्वारी खाल से गाड़ी बुला रखी थी। जो हमें आधे रस्ते से द्वारी खाल तक छोड़ती। गाड़ी को आए काफ़ी देर हो गई हो गई थी और ड्रायवर फ़ोन की घंटी पे घंटी बजाए जा रहा था…… जारी है, आगे पढें।
अगले भाग के इंतज़ार में...
जवाब देंहटाएंअगली कड़ी का इन्तजार है।
जवाब देंहटाएंआमदरफ़्त का क्या मतलब होता है ऐ पोस्ट और अच्छी है
जवाब देंहटाएंआवागमन, आना जाना।
हटाएंआना जाना लगा रहता है।
हटाएंमेरा प्रयास रहेगा कि कुछ वर्षों पश्चात आपका कई सफर में हमसफ़र रह सकूँ
जवाब देंहटाएंहमसफर हमराज भी होता है। 😃
हटाएंअगली पोस्ट का इंतजार रहेगा प्रभु
जवाब देंहटाएंमेरी जानकारी में काकड़ और सांभर अलग अलग होते हैं... काकड़ छोटा होता है, कुत्ते से थोडा ही बड़ा... जबकि सांभर नीलगाय जितना होता है... बाकी आपको ज्यादा पता है... मैं गलत हूँ तो मार्गदर्शन ज़रूर कीजिये इस बारे में...
जवाब देंहटाएंबीनू और चाचा जी ने काकड़ माने सांभर ही बताया था। बीनू के आने के बाद यह संदेह किलियर कर पोस्ट में सुधार कर देंगे।
हटाएंबीनू भाई के गांव की ख़ूबसूरती बहुत बढ़िया लगी
जवाब देंहटाएंकाफी रोचक यात्रा है.. अवइया अंक के अगोरा म सादर।
जवाब देंहटाएंआगे की पोस्ट का इंतजार रहेगा।
जवाब देंहटाएंबीनू जी के गाँव की पोस्ट जानकारियों से परिपूर्ण है। बहुत ही सुखद एहसास होता है आपकी पोस्ट पढ़कर और बहुत कुछ सिखने को भी मिलता है...।
जवाब देंहटाएंमैं भी अपनी यात्राओं पर ब्लोग लिख रहा हूँ। आपसे विनती है कि समय निकालकर आप इसे पढ़े..... और मार्गदर्शन ज़रूर कीजिये। www.mainmusafir.com (मैं मुसाफ़िर डॉट कॉम)
काफी रोचक यात्रा है.
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