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बरसुड़ी से हम द्वारीखाल की ओर चल रहे थे, पहाड़ों में पैदल चलना सामान्य सी बात है, पर हमारे लिए यह असामान्य हो रहा था। सैकिल चलाए ही तीस बरस बीत गए और पैदल चलने का मौका कभी कभी आता है, वरना वाहनारुढ़ ही रहते हैं। मैं धर्मवीर जी एवं किशोर हम तीनों एक साथ चल रहे थे, दिन ढल रहा था।
बरसुड़ी से हम द्वारीखाल की ओर चल रहे थे, पहाड़ों में पैदल चलना सामान्य सी बात है, पर हमारे लिए यह असामान्य हो रहा था। सैकिल चलाए ही तीस बरस बीत गए और पैदल चलने का मौका कभी कभी आता है, वरना वाहनारुढ़ ही रहते हैं। मैं धर्मवीर जी एवं किशोर हम तीनों एक साथ चल रहे थे, दिन ढल रहा था।
पहाड़ों की साँझ |
किशोर की भी हमारे जैसी कहानी थी। कुल मिलाकर हम धीरे धीरे सरकते हुए चल रहे थे। अंतिम की चढाई खड़ी थी, जहाँ गाड़ी खड़ी, आखिरकार पहुंच ही गए, ड्रायवर जला भुना दिखाई दे रहा था, जिस पर बीनू भाई ने पहले पहुंचकर कुछ जलार्पण किया था।
धीरे धीरे मंजिल की ओर |
हम द्वारी खाल पहुंच गए, नीरज, अजय एवं दीप्ति हमसे पहले पहुंच चुके थे। हमको दिल्ली जाना था। गुमखाल या कोटद्वार तक जाने के लिए कोई टैक्सी नहीं मिल रही थी। बीनू भाई टैक्सी के जुगाड़ में भटक रहे थे और इधर नीरज मेरा मन भटका रहा था, कह रहा था कि उनके साथ चलें हरिद्वार, कल आपको फ़्लाईट के टाईम तक दिल्ली पहुंचा देंगे।
प्रकृति का सौंदर्य |
मेरी मान्यता है कि जिस ग्रुप के साथ जाओ, उसी के साथ लौटो। पर बीनू भाई ने छूट दे दी। कहा कि मैं नीरज के साथ जा सकता हूँ। मेरा बैग भी कार में रखवा दिया और हम हरिद्वार की ओर चल पड़े और वे दिल्ली। रात साढे दस बजे हरिद्वा पहुंचे। यहाँ हमें पंकज शर्मा जी से मिलना था। उनका ठिकाना नीरज को पता था। हम ठिकाने पर पहुंचे, वहां पंकज जी के भ्रात अनंत शर्मा जी भी मिले।
नीरज जाट एवं पंकज शर्मा |
ठंड के मौसम में बड़ी गर्मजोशी से भेंट हुई, होटल का कमरा खुलवा दिया गया। हमने सामान रखा और भोजन के लिए चल दिए। भोजन करने के पश्चात सोते हुए रात के एक बज गए। सुबह सात बजे हमें दिल्ली के लिए चलना था पर हम पौने आठ बजे चले। अनंत शर्मा जी ने हर की पौड़ी का गंगा जल भेंट, मेरे लिए इससे बड़ी भेंट दुनिया में और कोई नहीं हो सकती।
हरिद्वार में पंकज शर्मा एवं अनंत शर्मा बंधुओं के साथ |
हम सपाटे से दिल्ली की ओर चल पड़े, परन्तु ट्रैफ़िक में नाड़ी ठंडी हो गई। एक बजे हमने शाहदरा से मैट्रो पकड़ी, नीरज को ड्यूटी ज्वाईन करनी थी। दीप्ति कह रही थी खाना खाकर जाना, मुझे एक एक मिनट भारी हो रहा था, किसी तरह एयरपोर्ट पहुंच जाऊं वरना दिल्ली में ही रह जाऊंगा। आखिर दस मिनट में नीरज हाजरी लगाकर आ गया।
चीलगाड़ी का सवार घर की ओर |
हम अजमेरीगेट, फ़िर नई दिल्ली गए मैट्रो से। नीरज मुझे नई दिल्ली मैट्रो में बैठाकर आया जो एयरोसिटी जाती। नई दिल्ली से एयरपोर्ट के स्पेशल मैट्रो चलती है। जो सत्रह मिनट में एयरोसिटी पहुंचा देती है। कार से हम दो घंटे में नहीं पहुंच सकते। आखिर मैं एयरपोर्ट पहुंच गया समय से। चेक इन करके आधे घंटे बाद हवाई जहाज में बैठकर अपने घर की उड़ चला बरसुड़ी की यादें लिए……
बरसुडी की अविस्मरणीय यात्रा की शानदार समाप्ति।
जवाब देंहटाएंदोबारा आइयेगा तो बताना मैं भी चलूंगा।
जवाब देंहटाएंभाई जी अब तक आपके साथ की गई यह यात्रा हमेशा याद रहेगी और बीनू जी का गांव भी ।
जवाब देंहटाएंभाई जी अब तक आपके साथ की गई यह यात्रा हमेशा याद रहेगी और बीनू जी का गांव भी ।
जवाब देंहटाएंभाई जी एरोप्लेन की ही गति कि यात्रा लगी....
जवाब देंहटाएंहम पहले जा चुके हैं बीनू के गाँव तो एक एक पल को पुनह महसूस कर पाए...
जय सिया राम
यह यात्रा बहुत अच्छी रही। पहाड तो वैसे भी पंसद होते है लेकिन जब कोई अपना, अपने गांव लेकर जाए। तब पहाड की जिंदगी को बहुत नजदीक से देखा व महसूस किया जाता है। बीनू भाई का गांव आज हर कोई जानने लगा है। और आपके इस लेख नें तो गांव के पूरे दर्शन ही करा दिए।
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