सुंदरबन एक मैन्ग्रोव का जंगल है, जहाँ के
रॉयल बंगाल टायगर प्रसिद्ध हैं। इसका चालिस प्रतिशत भाग हिन्दुस्तान में एवं साठ प्रतिशत भाग बंगलादेश में है। कई वर्षों से सुंदरबन जाने की प्रबल इच्छा थी। पर संयोग वर्ष 2017 के जनवरी के माह के अंतिम सप्ताह में बना।
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सुंदरबन के यात्री प्रवीण सिंह, ललित शर्मा, राजुदास, ज्ञानेन्द्रा पाण्डेय, निखिलेश, दिगेश्वर एवं अनिल रावत |
इस तरह हम लोगों की टीम सुंदरबन तैयार हो गई, बलौदाबाजार से निखिलेश त्रिवेदी, प्रवीण सिंह, दिनेश ठाकुर, बिलासपुर से प्राण चड्डा, रायपुर से ज्ञानेन्द्र पाण्डेय, अनिल रावत एवं कवर्धा से राजुदास मानिकपुरी सुंदरबन जाने के लिए तैयार हुए। लिस्ट में कुछ नाम और भी थे परन्तु आकस्मिक कार्यों के कारण वे नहीं जा सके।
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विद्यासागर सेतु हावड़ा की सुबह |
छब्बीस जनवरी को हम लोग ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस से हावड़ा के लिए रवाना हुए। अगली सुबह हावड़ा में हमारे टूर आपरेटर तैयार सुमंत बसु सारी तैयारियों के साथ मौजूद थे। हम हावड़ा से सात बजे सुंदरबन के लिए चल पड़े। हमारा पहला पड़ाव कनिंग था। इसके बाद हम सुंदरबन के ग्राम झाड़खाली पहुंचे।
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प्राण चड्डा जी सुन्दरबन में |
यहाँ सोमनाथ दा के होम स्टे रिसोर्ट में हमारा ठहराव था। झाड़खाली वैसे तो छोटी जगह है, परन्तु यहाँ से सुंदरबन के लिए बोट मिलती हैं और जेट्टी भी है। यहाँ से सुंदरबन की सफ़ारी कराई जाती है। दोपहर एक बजे हम नहा धोकर तैयार हुए और भोजन के पश्चात आराम करके झाड़खाली के चिड़ियाघर देखने गए।
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ज्ञानेन्द्र पाण्डेय, कुछ खरीदा जाए |
झाड़खाली में एक चिड़ियाघर बनाया गया है, जिसमें दो रायल बंगला टायगर को रखा गया है। जाली में बंद टायगर की फ़ोटो खींचने में बड़ी तकलीफ़ होती है। दो जालियों के बीच फ़ोकस करके फ़ोटो लेना बहुत ही कठिन काम है।
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अनिल रावत एवं राजुदास मानिकपुरी |
जू में बनाई गई नहर में कुछ मगरमच्छ भी छोड़े हुए हैं। हमने इन सबकी फ़ोटोग्राफ़ी की और फ़िर जेट्टी तक घूमने गए। जेट्टी पर कुछ फ़ोटो खींच कर लौट आए। इस दिन हमारे साथ कोलकाता से आया हुआ एक जोड़ा नबारुन दत्ता एवं श्रीदत्ता भी ठहरे हुए थे। दोनो स्वभाव से मिलनसार लगे। इन्होने हम लोगों से दोस्ती गांठ ली।
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झाड़खाली जू का मगरमच्छ |
रात को हमारे लिए बाऊल नृत्य गान का आयोजन किया गया था। हमने रात को बाऊल नृत्य गान का आनंद लिया। बाऊल नृत्यगान वैष्णव पंथी कृष्ण भक्ति पर आधारित है। धीमे साज पर एकतारा के साथ गाया जाता है तो ऐसा लगता है कि गायक एकदम डूब कर गा रहा है।
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रायल बंगाल टायगर पिंजरे में |
सोमनाथ दा ने भोजन में सभी तरह की तैयारी कर रखी थी। जिसमें सामिष एवं निरामिष दोनो भोजन था। होम स्टे में एक फ़ायदा यह होता है कि घरेलू भोजन कराया जाता है, जिसमें नमक, मिर्च एवं तेल की मात्रा सही होती है। अधिक तेल और ग्रेवी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक ही हैं।
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तन्मयता से फ़ोटोग्राफ़ी दिनेश ठाकुर |
सुंदरबन के आसपास के गाँव के कुछ लोग पर्यटन व्यवसाय से भी जुड़ गये हैं, जिससे कुछ आमदनी हो जाती है अन्यथा मांझी की नाव समुद्र के ज्वार भाटा का आंकलन कर सुरक्षित समय में खाना पानी लेकर मछली मारने निकल जाती है। इनकी नाव में खाना बनाने के लिए चूल्हा भी होता है। जाल डालने के बाद चूल्हे पर माछ भात तैयार कर लेते हैं और दो-चार दिन मछली मारने के लिए दूर तक निकल जाते हैं।
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मांझी की नाव एव किनारा |
इसे हैरिटेज साइट घोषित करने के कारण बफ़र जोन में भी पक्की छत का मकान बनाना वर्जित है। अधिकांश घरों में फ़ूस के छप्पर दिखाई देते हैं। बांस की खप्पचियों की दीवार बनाकर उसकी दोनो तरफ़ से मिट्टी की छबाई कर दी जाती है एवं फ़ूस की छत की ढलान अधिक होती है जिससे उसमें पानी नहीं ठहरता। मार्च के अंतिम सप्ताह से यहाँ गर्मी प्रारंभ हो जाती है। जो जुलाई अगस्त तक जारी रहती है। ऐसे समय में फ़ूस की छत एवं मिट्टी की दीवारें वाताकूलन का कार्य करती हैं।
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सुंदरबन के साथी नबोरुन दत्ता, श्री दत्ता एवं राजुदास मानिकपुरी |
घर के भीतर खाना बनाने के लिए चुल्हा, पकाने के चार बर्तनों के साथ चार-छ: बर्तन, बांस का मचान जैसा सोने का जुगाड़ एक नाव एवं मछली पकड़ने का जाल, यही इनकी कुल पूंजी है। फ़ारेस्ट एक्ट प्रभावी होने के कारण यहाँ बिजली नहीं है, बिजली की पूर्ति के लिए यहाँ सौर्य उर्जा का सहारा लिया जाता है। जिससे एक सीएफ़एल जला लेते हैं एवं मोबाईल इत्यादि चार्ज कर लिया जाता है। घरों के आस पास छोटे छोटे तालाब हैं, जिनमें बरसात का मीठा पानी जमा किया जाता है और उनमें मछली पालन किया जाता है। साथ निस्तारी के लिए इस जल का उपयोग किया जाता है।
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रात्रिकालीन आयोजन बाऊल नृत्यगान सभा |
पशुओं की संख्या कम ही है, इसलिए गांव में दूध उपलब्ध नहीं हो पाता। बकरियों के अधिक यहाँ कुत्तों की संख्या दिखाई दी। इसको पालने का कारण भी यह है कि हिंसक जानवरों के गाँव की ओर आने की चेतावनी कुत्ते पहले ही दे देते हैं। जिससे ग्रामीण अपने जान माल की सुरक्षा का प्रबंध कर लेते हैं। नहीं तो क्या पता, सुंदरबन के छुट्टे आदमखोर बाघ कब किसका लिल्लाह पढवा दें और बॉडी भी न मिले। बाऊल नृत्य के पश्चत हम भोजन करके सोने चले गए। अगले दिन सुबह नौ बजे से हमें सफ़ारी पर जाना था। जारी है … आगे पढें…
नोट: यह यात्रा 26 जनवरी 2017 से 30 जनवरी 2017 के बीच की गई।
अब तक सुंदरवन पर ब्लॉग नही देखा था, मेरी भी लिस्ट में है पर आज तक नही जा पाया हूँ।
जवाब देंहटाएंचलती का नाम गाड़ी ब्लाॅग पर 2010 में लिख चुका हूँ सुंदरबन।
हटाएंअगले भाग की प्रतीक्षा में...सुंदरबन एक अलग तरह की जगह है घुमने के लिए बहुत ही बढ़िया जानकारी...
जवाब देंहटाएंअगले भाग की प्रतीक्षा रहेगी गुरूदेव
जवाब देंहटाएंयात्रा तो बढ़िया ही होती है फिर मनपसन्द हो तो क्या कहने अगले भाग का इंतजार
जवाब देंहटाएंललित जी, आपके यात्रा संस्मरणों को पढ़कर और सजीव चित्रों को देखकर हम भी यात्रा का एक अनकहा आनंद उठा लेते हैं, जो शायद वैसे तो संभव न हो पायेगा कृपया इसी तरह अपने अनुभवों को साझा करते रहिये जीवनसूत्र की और से साभार
जवाब देंहटाएंबेहद सजीव संस्मरण। इसे पढ़कर हम अपने यात्रा के लिए भी तैयारी सोच रहे थे। कैनिंग तक तो रेल भी चलती है। ये सोमनाथ दा कौन है?? नेता या और कोई??
जवाब देंहटाएंसुंदरबन ! अहा ! मजा आने वाला है ! बाऊल नृत्य क्या केवल पुरुष ही करते हैं ?
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