मित्रों कल की चर्चा में मैंने एक अपनी सहपाठी की चर्चा की थी, लेकिन पता नहीं मेरे से क्या गलती हो गई, पोस्ट के विषय में तो कोई टिप्पणी नहीं आई, उसकी चर्चा गौण हो गई और सबके निशाने पर मेरी मूंछे ही आ गई.
सबने मेरी मूछें ही खींची. मैं भी खुश हुआ चलो किसी काम तो आई, नही तो इतने साल से इनको फालतू ही घी पिला रहा था, आज मैं विषयांतर करके मुछों पर ही कहना चाहता हूँ.
चलो जब लोग मनोरंजन के मूड में हैं तो यही सही. कल की टिप्पणियों की बानगी का मजा लीजिये .
पी.सी.गोदियाल ने कहा… झूट बोल रहे है आप, अगर लड़कियों के साथ पढ़े होते तो इतनी डरावनी मूछे नहीं रखी होती आपने :)))
खुशदीप सहगल ने कहा… ललित जी,खामख्वाह इतना टंटा किया...आप मूछों पर ताव देकर एक बार खुद ही लड़की के चाचा के सामने जाकर खड़े हो जाते...न अपने भूतों के साथ सिर पर पैर रखकर भाग खड़ा होता तो मेरा नाम नहीं...वैसे आपकी पोस्ट पर एक बात और कहना चाहूंगा...इश्क और मुश्क लाख छुपाओ, नही छिपते....कहीं ये भी तो वही...खैर जाने दो...जय हिंद...
जी.के. अवधिया ने कहा… बहुत ही अच्छी श्रृंखला चला रहे हैं आप! बीच की कुछ कड़ियाँ नहीं पढ़ पाया हूँ। आज की कड़ी को पढ़ा है और प्रतीक्षा है अगली कड़ी की। टिप्पणियों में मूँछ की बातें पढ़ कर अखर रहा है कि पूरी तरह से सफेद हो जाने के कारण हमें 'क्लीनशेव्ड' बनना पड़ा, वरना हम भी आदमी थे मूँछो वाले।
आज मुछों की ही चर्चा करते है, बाकी विषय पर कल चर्चा करेंगे. भाई मुछों का लाभ भी है तो नुकसान भी है, बिना परिचय पत्र दिखाए ही लोग जान जाते हैं फौजी है.
इसका एक लाभ मुझे ये मिला की सफ़र में कहीं भी तकलीफ नही होती. मेरी मुछों के लिए एक सीट हमेशा रिजर्व रहती है, ट्रेन हो या बस.अगले बैठा ही लेते हैं. लेकिन सवारियों से बात नहीं होती.
एक बार मैं दिल्ली तक चला गया मेरे साथ की सवारियों ने बात नहीं की. जब तक मैंने उनसे बात शुरू नहीं की, उन्होंने सोचा कि पता नहीं किस मूड का आदमी है. दिखता भी बड़ा खतरनाक है. दूर ही रहो तो भलाई है.
एक बार हमारे मित्र विश्वनाथन जी और मैं त्रिवेंद्रम जा रहे थे. तो रायपुर से लेकर चेन्नई तक कई जगह फिक्स है जहाँ हिजडे लोग सवारियों को परेशान करते हैं.
पहला चरण गोंदिया से नागपुर तक है. यहाँ हिजडे आये और सबको परेशान करने लगे. विश्वनाथन जी बोले" यार ये आ गये परेशान करेंगे". मैंने कहा "कोई परेशानी नहीं है ये आपके पास फटकेंगे ही नही." उसके बाद वे आये और देखा, बिना कुछ बोले ही निकल गए.
विश्वनाथन जी देखते रहे.उसके बाद चंद्रपुर बल्लारशाह के पास फिर आ गए और बिना कुछ बोले हमारे पास से निकल गये, उसके बाद चेन्नई से पहले आये और फिर बिना कुछ बोले निकल गये,
विश्वनाथन जी को आश्चर्य हुआ कि चार प्रदेशों के गुजरने के बाद भी हिजडे पास में नहीं आये.बोले यार गजब हो गया नहीं तो ये साले परेशान कर डालते हैं.
क्या बात है? जो आपको देख कर ही भाग जाते हैं. मैंने कहा कि"मुछों की कदर करते हैं.शायद इसीलिए" और आगे मुझे मालूम नहीं-- हो सकता है, ऐसा क्यों होता है "खुशदीप सहगल" ही कोई प्रकाश डाल पायें.
इसका एक लाभ मुझे ये मिला की सफ़र में कहीं भी तकलीफ नही होती. मेरी मुछों के लिए एक सीट हमेशा रिजर्व रहती है, ट्रेन हो या बस.अगले बैठा ही लेते हैं. लेकिन सवारियों से बात नहीं होती.
एक बार मैं दिल्ली तक चला गया मेरे साथ की सवारियों ने बात नहीं की. जब तक मैंने उनसे बात शुरू नहीं की, उन्होंने सोचा कि पता नहीं किस मूड का आदमी है. दिखता भी बड़ा खतरनाक है. दूर ही रहो तो भलाई है.
एक बार हमारे मित्र विश्वनाथन जी और मैं त्रिवेंद्रम जा रहे थे. तो रायपुर से लेकर चेन्नई तक कई जगह फिक्स है जहाँ हिजडे लोग सवारियों को परेशान करते हैं.
पहला चरण गोंदिया से नागपुर तक है. यहाँ हिजडे आये और सबको परेशान करने लगे. विश्वनाथन जी बोले" यार ये आ गये परेशान करेंगे". मैंने कहा "कोई परेशानी नहीं है ये आपके पास फटकेंगे ही नही." उसके बाद वे आये और देखा, बिना कुछ बोले ही निकल गए.
विश्वनाथन जी देखते रहे.उसके बाद चंद्रपुर बल्लारशाह के पास फिर आ गए और बिना कुछ बोले हमारे पास से निकल गये, उसके बाद चेन्नई से पहले आये और फिर बिना कुछ बोले निकल गये,
विश्वनाथन जी को आश्चर्य हुआ कि चार प्रदेशों के गुजरने के बाद भी हिजडे पास में नहीं आये.बोले यार गजब हो गया नहीं तो ये साले परेशान कर डालते हैं.
क्या बात है? जो आपको देख कर ही भाग जाते हैं. मैंने कहा कि"मुछों की कदर करते हैं.शायद इसीलिए" और आगे मुझे मालूम नहीं-- हो सकता है, ऐसा क्यों होता है "खुशदीप सहगल" ही कोई प्रकाश डाल पायें.
अवधिया जी ने अपना दर्द बताया कि पहले भी हम मूंछ वाले थे, लेकिन पकने के कारण अब क्लीन सेव हो गये हैं मूंछे मुंड ली है,
आपने नया टेम्पलेट चढाने के लोभ में पुराने टेम्पलेट के विजेट उड़ा दिये.लेकिन इस विजेट की जरुरत पड़ते रहती है और जल्दी से आप उसका html ढूंढे और लगायें.क्या बताऊँ?
मूंछो का पकना ये दर्शाता है कि आपके पास इस दुनिया कितना अनुभव है और आपने जीवन भर की कमाई को एक झटके में साफ कर दिया. मैं सोच रहा हूँ की मूछें सफ़ेद नहीं हो रही है. क्योंकि पकी मुछों का भी तो लाभ लेना है.
मैं चाहूँगा कि इस विषय पर अवधिया जी ही अपने अनुभव लिखे एक पोस्ट में तो हमें भी लाभ मिलेगा-"मूछों से पहले और मूंछों के बाद"
आपने नया टेम्पलेट चढाने के लोभ में पुराने टेम्पलेट के विजेट उड़ा दिये.लेकिन इस विजेट की जरुरत पड़ते रहती है और जल्दी से आप उसका html ढूंढे और लगायें.क्या बताऊँ?
मूंछो का पकना ये दर्शाता है कि आपके पास इस दुनिया कितना अनुभव है और आपने जीवन भर की कमाई को एक झटके में साफ कर दिया. मैं सोच रहा हूँ की मूछें सफ़ेद नहीं हो रही है. क्योंकि पकी मुछों का भी तो लाभ लेना है.
मैं चाहूँगा कि इस विषय पर अवधिया जी ही अपने अनुभव लिखे एक पोस्ट में तो हमें भी लाभ मिलेगा-"मूछों से पहले और मूंछों के बाद"
एक दिन मैं और मेरा एक सिन्धी दोस्त रायपुर रेलवे स्टेशन के सामने क्राकरी की होल सेल दुकान में गए. मुझे घर से फोन आया था कि कप लेकर आना. हम दुकान में गए. तो एक लगभग २५ साल का लड़का बैठा था,
मैंने कहा-जरा कप दिखाना,
वो बोला-सर अभी तो पापा नहीं है. मुझे रेट नही मालूम एकाध घंटे में आ जायेंगे फिर ले जाना.
हमें रेल का रिजर्वेशन भी करवाना था तो सोचा पहले वो ही काम कर लेते हैं. हम एक घंटे बाद वापस आये तो उस लड़के का बाप बैठा था.
मैंने कहा क्राकरी देखाओ. तो वो बोला "सर मेरा लड़का तो अभी नहीं है क्राकरी का रेट तो उसी को मालूम है. आप एक घंटा के बाद आना और ले जाना. हम लेट हो चुके थे/
हमको क्राकरी नहीं मिली. बिना क्राकरी के ही वापस आना पडा. रस्ते में दोस्त ने बताया कि" भैया वो आपको थानेदार समझ के व्यवहार कर रहे थे सोचते होंगे कि फ्री में ले जायेगा और पैसा भी नहीं देगा.
कभी कभी ये नुकसान भी उठाना पड़ता है मुछों के कारण.
मैंने कहा-जरा कप दिखाना,
वो बोला-सर अभी तो पापा नहीं है. मुझे रेट नही मालूम एकाध घंटे में आ जायेंगे फिर ले जाना.
हमें रेल का रिजर्वेशन भी करवाना था तो सोचा पहले वो ही काम कर लेते हैं. हम एक घंटे बाद वापस आये तो उस लड़के का बाप बैठा था.
मैंने कहा क्राकरी देखाओ. तो वो बोला "सर मेरा लड़का तो अभी नहीं है क्राकरी का रेट तो उसी को मालूम है. आप एक घंटा के बाद आना और ले जाना. हम लेट हो चुके थे/
हमको क्राकरी नहीं मिली. बिना क्राकरी के ही वापस आना पडा. रस्ते में दोस्त ने बताया कि" भैया वो आपको थानेदार समझ के व्यवहार कर रहे थे सोचते होंगे कि फ्री में ले जायेगा और पैसा भी नहीं देगा.
कभी कभी ये नुकसान भी उठाना पड़ता है मुछों के कारण.
मूँछ वाले तेरा जवाब नहीं ... :-)
जवाब देंहटाएंअजी रंगे हुए सियार हैं हम तो, सिर के बाले काले करवा लिये हैं। नहीं तो हमारी मूँछ तो कया सिर और दाढ़ी के बालों में से भी कोई एक काला बाल दिखा के बताये!
अवधिया जी हमको तो आपके अनुभवों का ईंतजार है, एक पोस्ट का मसाला जो दे रहे है। हा हा हा हा, आज की ये पोस्ट आपको ही अर्पित है।
जवाब देंहटाएंYkfyr th vki viuh eqNksa ds ckjs pkgs tks dgsa
जवाब देंहटाएंIkj eqNksa esa vki fdlh jktiqr jktk ls de ugha
Ykxrs gSa
@ आनंद-मित्र ये कौन कौन से ग्रह की भाषा है,दुर्गा कालेज मे तो हमको ये नही पढाई गयी, हो सकता है कोई नया कोर्स आ गया हो-या सीधा उड़न तश्तरी से लेकर आये हो,आज एक साल मे पहली बार इस तरह का मजाक मेरे ब्लोग पर किया गया है, इसको स्पष्ट करो क्या लिखा है। नही तो मेरे लिए मद्रासी मे लिखि गाली जैसा ही है जिसका कोई मतलब नही है।
जवाब देंहटाएंYkfyr th vki viuh eqNksa ds ckjs pkgs tks dgsa
Ikj eqNksa esa vki fdlh jktiqr jktk ls de ugha
Ykxrs gSa
अगर थोडा कोम्प्रोमैज कर्लेवें तो मूंछों से लाभ ही है! राजस्थान गए ललित जी को बस में तो एक औरत ने देखा झट से घुंघट निकाल लिया ससुर बोला : अरे मैं तेरा ससुर तेरे साथ बैठा हूँ मुझसे घूँघट नहीं निकाला ये अनजान आदमी से घूँघट निकाल रही हो क्यों? औरत बोली आप मैं और मेरे में क्या फर्क है आप भी सफाचट मैं भी !!! असली मर्द तो यह आया है !!! बढिया मूंछो का ताव है भाई ललितजी !!!
जवाब देंहटाएंथानेदार...हाहाहाहाहाहाहाहाहा । इससे आगे अब क्या कहूँ ।
जवाब देंहटाएंमूंछें स्त्रीलिंग होते हुए भी मर्दों की शान है,
जवाब देंहटाएंकुछ लोग मूंछें बढा के, अच्छी तरह सजा के,
अपना व्यक्तित्व फौजी कि तरह बना के
चले जाते हैं फौज में, और किसी मूंछवाले नसीब में
लिखा होता पान की दुकान है .
निखर रहा है आपका व्यक्तित्व,
भाई ललित आप तो ताने रहिये अपनी मूंछें
क्या फरक पड़ता है इससे कि कोई
आपको पूंछें या ना पूंछें
ललित भाई,
जवाब देंहटाएंहिजड़े क्यों भाग गए...ये तो पता नहीं...पर आप जैसी ही रूआबदार मूछों वाले हरियाणा के एक ताऊ का किस्सा याद
आ गया...ताऊ ने नई नई फटफटिया सीखी...एक दिन फटफटिया पर हवा हवाई हुए जा रहे थे कि सामने से एक बुढ़िया आ गई...लाख ब्रेक लगाते लगाते भी फटफटिया बुढ़िया से जा भिड़ी...गनीमत रही कुछ ब्रेक लग गेए थे और बुढ़िया सिर्फ सड़क पर गिरी ही...चोट-वोट नहीं आई....बुढ़िया ने उठते हुए कहा...अक्ल के दुश्मन, तेरिया इतनी घणी घणी मूछां, तैणे शर्म ना आवे, ब्रेक ना लगा सके से....ताऊ झट से बोला...ताई पहला मैणे ये बता कि के मेरिया मूछां में ब्रेक लाग रे से....
जय हिंद...
जय हिंद...
मूछें हो तो नत्थू सारी लल्लू लाल जैसी वर्ना……………………
जवाब देंहटाएंललित भाई,
जवाब देंहटाएंखुश हो जाइए...ये आनंद जी इस दुनिया के वासी नहीं है...ये लगता है दूसरी दुनिया के प्राणी यानि एलियन हैं...इन्होंने कोई कूट संदेश भेजा है...संदेश आ गया है...अब बहुत जल्द एलियंस भी हमारे बीच होंगे...और एलियंस को दुनिया से मिलवाने का श्रेय आपको जाएगा...
जय हिंद...
ललित जी!
जवाब देंहटाएंपोस्ट बहुत बढ़िया लगाई है।
इसकी चर्चा यहाँ भी है-
http://anand.pankajit.com/2009/11/blog-post_1977.html?showComment=1258030352691#c4964755205651305557