अशोक का रुपनाथ शिलालेख
सम्राट अशोक के शिलालेख उड़ीसा के समुद्र तट से लेकर अफ़गानिस्तान तक पाए जाते हैं। इन शिलालेखों से धर्मादेशों के साथ शासन व्यवस्था की भी महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। अशोक का यह शिलालेख तहसील बहोरीबंद के ग्राम पडरिया जिला कटनी में स्थित है जो कि जबलपुर से लगभग 83 किलोमीटर दूर है। सम्राट अशोक शिलोत्कीर्ण धर्मादेशों में एक तीसरी शताब्दी ईस्वीं पूर्व का शिलालेख यहां प्राप्त हुआ है। यह शिला लेख साढ़े चार फुट लंबा, और 1 फुट चौड़ा है तथा उसमें 6 पंक्तियां है। जिनके विषय में विश्वास किया जाता है कि वे ई0 पूर्व लगभग 232 में उत्कीर्ण की गई थी। धर्मादेश में स्थानीय बौद्ध संध को संबोधित किया गया है जिससे यह पता चलता है कि उसे जारी करने के ढाई वर्ष पूर्व महान् मौर्य सम्राट बौद्ध बन चुका था। उसका उद्देश्य संध के सदस्यों को उत्साही बनने तथा कर्तव्य परायण जीवन व्यतीत करने के लिये प्रोत्साहित करना था। उक्त शिलालेख ब्राम्हीलिपि तथा पाली भाषा में है।
रूपनाथ के शिलालेख का हिन्दी अनुवाद
सम्राट अशोक के शिलालेख उड़ीसा के समुद्र तट से लेकर अफ़गानिस्तान तक पाए जाते हैं। इन शिलालेखों से धर्मादेशों के साथ शासन व्यवस्था की भी महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। अशोक का यह शिलालेख तहसील बहोरीबंद के ग्राम पडरिया जिला कटनी में स्थित है जो कि जबलपुर से लगभग 83 किलोमीटर दूर है। सम्राट अशोक शिलोत्कीर्ण धर्मादेशों में एक तीसरी शताब्दी ईस्वीं पूर्व का शिलालेख यहां प्राप्त हुआ है। यह शिला लेख साढ़े चार फुट लंबा, और 1 फुट चौड़ा है तथा उसमें 6 पंक्तियां है। जिनके विषय में विश्वास किया जाता है कि वे ई0 पूर्व लगभग 232 में उत्कीर्ण की गई थी। धर्मादेश में स्थानीय बौद्ध संध को संबोधित किया गया है जिससे यह पता चलता है कि उसे जारी करने के ढाई वर्ष पूर्व महान् मौर्य सम्राट बौद्ध बन चुका था। उसका उद्देश्य संध के सदस्यों को उत्साही बनने तथा कर्तव्य परायण जीवन व्यतीत करने के लिये प्रोत्साहित करना था। उक्त शिलालेख ब्राम्हीलिपि तथा पाली भाषा में है।
अशोक का रुपनाथ शिलालेख |
(क) देवानांप्रिय ने ऐसा कहाः-
(ख) ढाई वर्ष और कुछ अधिक व्यतीत हुये मैं प्रकाश रूप से शाक्य था।
(ग) किन्तु मैनें अधिक पराक्रम नहीं किया।
(घ) किन्तु एक वर्ष और कुछ अधिक व्यतीत हुए जबकि मैंने संघ की यात्रा की है (तबसे) अधिक पराक्रम करता हूं।
(ड) इस काल में जम्बू दीप में जो देवता (मनुष्यों से) अमिश्र थे वे इस समय (मेरे द्वारा) (उनके साथ) मिश्र किये गये है।
(च) पराक्रम का ही यह फल है।
(छ) यह (केवल) उच्च पदवाले (व्यक्ति) से प्राप्त नहीं होता (किन्तु) क्षुद्र (व्यक्ति) से भी पराक्रम द्वारा विपुल स्वर्ग की प्राप्ति शक्य है।
(ज) और इस प्रयोजन के लिये श्रावण (उद्घोषणा) की व्यवस्था की गई जिससे क्षुद्र और उदार सभी पराक्रम करे और (मेरे) सीमावर्ती लोगा भी (इसे) जानें (और) यह कि यहीं पराक्रम चिरस्थायी हो।
(झ) यह प्रयोजन (मेरे द्वारा) अधिकाधिक बढ़ाया जायेगा, और विपुलतया बढ़ाया जायेगा कम से कम डेढ़ गुना बढ़ाया जायेगा।
(झ) इस विषय को अवसर के अनुकूल पर्वत पर उत्कीर्ण करावें और यहां जहां भी शिलास्तंभ हों, शिला-स्ंतभों पर लिखवायें।
(ट) और इस श्रावण (उद्घोषणा) के अक्षर के अनुसार (आप) सर्वत्र (एक अधिकारी) भेजें जहां तक आपके आहार (जिले) का विस्तार हो।
(ठ) यह श्रावण (उद्घोषणा) मेरे द्वारा यात्रा (व्युष्ट) के समय किया गया जब
(ड.) 256 पडाव (निवास) यात्रा में बीत चुके थे।
अशोक का धौली शिलालेख
भुवनेश्वर से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर धौली नामक टेकरी है, जहाँ पर मौर्य राजवंश के सम्राट अशोक द्वारा अंकित करवाए हुए कुल ३३ अभिलेखों में से एक प्राप्त हुआ हैं। यह ब्राह्मी शिलालेख अशोक ने स्तंभों, चट्टानों और गुफ़ाओं की दीवारों में अपने २६९ ईसापूर्व से २३१ ईसापूर्व चलने वाले शासनकाल में खुदवाए। ये आधुनिक बंगलादेश, भारत, अफ़्ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और नेपाल में जगह-जगह पर मिलते हैं और बौद्ध धर्म के अस्तित्व के सबसे प्राचीन प्रमाणों में से हैं। इस ब्राह्मी शिलालेख को 1837 में लेफ़्टिनेंट मार्कम किट्टो द्वारा ढूंढा गया था। इस शिलालेख में अशोक के चौदह अनुशासनों में से 11 को लिपिबद्ध किया गया है। कलिंग युद्ध के पश्चात अशोक का हृदय परिवर्तन हुआ, उसने जनसाधारण पर अपनी सहृदयता की छाप छोड़ने के उद्देश्य से इस आदेश का प्रचार करवाया। इसमें लिखा है कि -
1 - किसी पशु का वध न किया जाए और राजकीय पाकशाला एवं मनोरंजन उत्सव न किए जाएं।
2 - मनुष्यों एवं पशुओं के चिकित्सालय खुलवाए जाएं एवं उसमें औषधि की व्यवस्था की जाए। मनुष्यों एवं पशुओं की सुविधा के लिए मार्ग में छायादार वृक्ष लगवाए जाएं एवं राहगीरों के लिए जल की व्यवस्था कुंए खुदवा कर की जाए।
3 - राजकीय पदाधिकारियों को आदेश दिया गया कि प्रति पांच वर्ष पश्चात धर्म प्रचार के लिए जाएं।
4 - राजकीय पदाधिकारियों को आदेश दिया गया कि व्यवहार के सनातन नियमों यथा नैतिकता एवं दया का सर्वत्र प्रचार किया जाए।
5 - धर्ममहामात्रों की नियुक्ति एवं धर्म एवं नैतिकता का प्रचार प्रसार किया जाए।
6 - राजकीय पदाधिकारियों को स्पष्ट आदेश है कि सर्वलोकहितकारी कुछ भी प्रशासनिक सुझाव एवं सूचना मुझे प्रत्येक स्थान एवं समय पर दें।
7- सभी जाति एवं धर्मों के लोग सभी स्थानों पर रह सकें क्योंकि वे आत्म संयम एवं हृदय की पवित्रता चाहते हैं।
8-राज्याभिषेक के दसवें वर्ष अशोक सम्बोधि (बोध गया) की यात्रा कर धर्म यात्राओं का प्रारंभ किया जाए। ब्राह्मणों एवं श्रमणों का दर्शन एवं गरीबों के नैतिक कल्याण का प्रचार किया जाए।
9- दास तथा अनुचरों के प्रति शिष्टाचार का पालन करें, जानवरों के प्रति उदारता एवं ब्राह्मणो तथा श्रमणों के प्रति उचित व्यवहार करने का आदेश दिया गया।
10- अशोक ने घोषणा कि यश एवं कीर्ति के लिए नैतिकता होनी चाहिए।
11- धर्म प्रचारार्थ अशोक ने अपने विशाल साम्राज्य के विभिन्न स्थानों पर शिलाओं पर धम्म लिपिबद्ध कराया जिसमें धर्म संबंधी महत्वपूर्ण सूचनाओं का वर्णन है।
एक अन्य पृथक शिलालेख ;में अशोक तोशाली के महामत्तों को आदेश देता है कि सभी प्रजा मेरी संतान है, जिस प्रकार मैं अपनी संतान के लिए इच्छा करता हूं कि इहलोक एवं परलोक में उनकी सुख समृद्धि हो,उसी प्रकार सम्पूर्ण प्रजा के लिए मेरी यही इच्छा है। बिना उचित कारण के किसी को शारीरिक दंड, ईर्ष्या, क्रोध आदि दुर्गुणों से रहित निष्पक्ष मार्ग का अनुशरण करने का आदेश देता हूँ।
तोशाली के महामात्रों को आदेश है कि सीमांत राज्यों के लोगों के हित - कल्याण को ध्यान में रखा जाए एवं उनपर अनुग्रह की नीति अपनाई जाए।
अशोक का धौली शिलालेख
भुवनेश्वर से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर धौली नामक टेकरी है, जहाँ पर मौर्य राजवंश के सम्राट अशोक द्वारा अंकित करवाए हुए कुल ३३ अभिलेखों में से एक प्राप्त हुआ हैं। यह ब्राह्मी शिलालेख अशोक ने स्तंभों, चट्टानों और गुफ़ाओं की दीवारों में अपने २६९ ईसापूर्व से २३१ ईसापूर्व चलने वाले शासनकाल में खुदवाए। ये आधुनिक बंगलादेश, भारत, अफ़्ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और नेपाल में जगह-जगह पर मिलते हैं और बौद्ध धर्म के अस्तित्व के सबसे प्राचीन प्रमाणों में से हैं। इस ब्राह्मी शिलालेख को 1837 में लेफ़्टिनेंट मार्कम किट्टो द्वारा ढूंढा गया था। इस शिलालेख में अशोक के चौदह अनुशासनों में से 11 को लिपिबद्ध किया गया है। कलिंग युद्ध के पश्चात अशोक का हृदय परिवर्तन हुआ, उसने जनसाधारण पर अपनी सहृदयता की छाप छोड़ने के उद्देश्य से इस आदेश का प्रचार करवाया। इसमें लिखा है कि -
अशोक का धौली शिलालेख |
2 - मनुष्यों एवं पशुओं के चिकित्सालय खुलवाए जाएं एवं उसमें औषधि की व्यवस्था की जाए। मनुष्यों एवं पशुओं की सुविधा के लिए मार्ग में छायादार वृक्ष लगवाए जाएं एवं राहगीरों के लिए जल की व्यवस्था कुंए खुदवा कर की जाए।
3 - राजकीय पदाधिकारियों को आदेश दिया गया कि प्रति पांच वर्ष पश्चात धर्म प्रचार के लिए जाएं।
4 - राजकीय पदाधिकारियों को आदेश दिया गया कि व्यवहार के सनातन नियमों यथा नैतिकता एवं दया का सर्वत्र प्रचार किया जाए।
5 - धर्ममहामात्रों की नियुक्ति एवं धर्म एवं नैतिकता का प्रचार प्रसार किया जाए।
6 - राजकीय पदाधिकारियों को स्पष्ट आदेश है कि सर्वलोकहितकारी कुछ भी प्रशासनिक सुझाव एवं सूचना मुझे प्रत्येक स्थान एवं समय पर दें।
7- सभी जाति एवं धर्मों के लोग सभी स्थानों पर रह सकें क्योंकि वे आत्म संयम एवं हृदय की पवित्रता चाहते हैं।
8-राज्याभिषेक के दसवें वर्ष अशोक सम्बोधि (बोध गया) की यात्रा कर धर्म यात्राओं का प्रारंभ किया जाए। ब्राह्मणों एवं श्रमणों का दर्शन एवं गरीबों के नैतिक कल्याण का प्रचार किया जाए।
9- दास तथा अनुचरों के प्रति शिष्टाचार का पालन करें, जानवरों के प्रति उदारता एवं ब्राह्मणो तथा श्रमणों के प्रति उचित व्यवहार करने का आदेश दिया गया।
10- अशोक ने घोषणा कि यश एवं कीर्ति के लिए नैतिकता होनी चाहिए।
11- धर्म प्रचारार्थ अशोक ने अपने विशाल साम्राज्य के विभिन्न स्थानों पर शिलाओं पर धम्म लिपिबद्ध कराया जिसमें धर्म संबंधी महत्वपूर्ण सूचनाओं का वर्णन है।
एक अन्य पृथक शिलालेख ;में अशोक तोशाली के महामत्तों को आदेश देता है कि सभी प्रजा मेरी संतान है, जिस प्रकार मैं अपनी संतान के लिए इच्छा करता हूं कि इहलोक एवं परलोक में उनकी सुख समृद्धि हो,उसी प्रकार सम्पूर्ण प्रजा के लिए मेरी यही इच्छा है। बिना उचित कारण के किसी को शारीरिक दंड, ईर्ष्या, क्रोध आदि दुर्गुणों से रहित निष्पक्ष मार्ग का अनुशरण करने का आदेश देता हूँ।
तोशाली के महामात्रों को आदेश है कि सीमांत राज्यों के लोगों के हित - कल्याण को ध्यान में रखा जाए एवं उनपर अनुग्रह की नीति अपनाई जाए।
बहुत अच्छी जानकारी गुरूदेव
जवाब देंहटाएंNice
जवाब देंहटाएं