एक पंडित जी श्रीमद भागवत प्रवचन कर रहे थे, उन्होने अपने प्रवचन में कहा कि-“ बैंगन नहीं खाना चाहिए। इससे स्वास्थ्य की हानि है। उस दिन प्रवचन में पंडिताईन भी आई थी। उसने भी सुना था।
एक जजमान अपने खेत से बैंगन ले आया पंडित जी के लिए। बैंगन देख कर पंडिताईन को याद आ गया कि महाराज ने बैंगन खाने की मनाही की है। सो उसने बैंगन महरी को दे दिए। शाम को महाराज आए जब भोजन करने लगे तो उन्होने थाली में बैगन का भर्ता नही देखा।
पंडिताईन से बोले कि-“ बैगन का भर्ता नहीं बनाया क्या?”
पंडिताईन ने बताया कि- “बैगन तो मैने महरी को दे दिए।“
महाराज बोले क्यों?
पंडिताईन ने कहा-“आपने ही कहा था प्रवचन में कि बैगन खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। सो मैने महरी को दे दिए।
पंडित जी बोले-“ अरे पगली,वो तो प्रवचन की बात थी और उसे सुनने वालों को अमल करना था। अपने लिए थोड़ी कहा था कि घर में बैंगन मत बनाना।“ इसे कहते हैं कथनी और करनी में फ़र्क।
एक जजमान अपने खेत से बैंगन ले आया पंडित जी के लिए। बैंगन देख कर पंडिताईन को याद आ गया कि महाराज ने बैंगन खाने की मनाही की है। सो उसने बैंगन महरी को दे दिए। शाम को महाराज आए जब भोजन करने लगे तो उन्होने थाली में बैगन का भर्ता नही देखा।
पंडिताईन से बोले कि-“ बैगन का भर्ता नहीं बनाया क्या?”
पंडिताईन ने बताया कि- “बैगन तो मैने महरी को दे दिए।“
महाराज बोले क्यों?
पंडिताईन ने कहा-“आपने ही कहा था प्रवचन में कि बैगन खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। सो मैने महरी को दे दिए।
पंडित जी बोले-“ अरे पगली,वो तो प्रवचन की बात थी और उसे सुनने वालों को अमल करना था। अपने लिए थोड़ी कहा था कि घर में बैंगन मत बनाना।“ इसे कहते हैं कथनी और करनी में फ़र्क।
संसार में छद्म वेशी ऐसे बहुत से लोग हैं जिनकी कथनी और करनी में जमीन-आसमान का अंतर है। दिन में चेहरे कुछ दिखाई देते हैं और रात में सिर पर सींग उग आते है। देव से दानव बनने में सिर्फ़ पल का ही फ़र्क रहता है। जिसमें साहस है वही सच को सामने रखता है।
जब से ब्लॉग जगत में आया हूँ सुन रहा हूँ कि ब्लॉग व्यक्तिगत डायरी है। अगर लोग नहीं जानते कि व्यक्तिगत डायरी किस तरह लिखी जाती है तो सुन लें। व्यक्तिगत डायरी दोहरे चरित्र वाले कायर लोग लिख नहीं सकते। क्योंकि डायरी में उनका असली रुप नजर आ जाता है, अगर वह सच लिख देता है तो उसके चेहरे पर लगा हुआ स्वर्ण मंडित मुखौटा उतर जाता है।
उसका अपना जीवन भर का स्वर्ण मृग की भांति चमकाया हुआ झूठा प्रभा मंडल छिन्न-भिन्न हो जाता है लोग असलियत जान जाते हैं तो वह मामा मारीच ही दिखाई देता है। दुनिया मारीचों से भरी पड़ी है। इसलिए डायरी लिखना उनके लिए दूर की कौड़ी है।
जब से ब्लॉग जगत में आया हूँ सुन रहा हूँ कि ब्लॉग व्यक्तिगत डायरी है। अगर लोग नहीं जानते कि व्यक्तिगत डायरी किस तरह लिखी जाती है तो सुन लें। व्यक्तिगत डायरी दोहरे चरित्र वाले कायर लोग लिख नहीं सकते। क्योंकि डायरी में उनका असली रुप नजर आ जाता है, अगर वह सच लिख देता है तो उसके चेहरे पर लगा हुआ स्वर्ण मंडित मुखौटा उतर जाता है।
उसका अपना जीवन भर का स्वर्ण मृग की भांति चमकाया हुआ झूठा प्रभा मंडल छिन्न-भिन्न हो जाता है लोग असलियत जान जाते हैं तो वह मामा मारीच ही दिखाई देता है। दुनिया मारीचों से भरी पड़ी है। इसलिए डायरी लिखना उनके लिए दूर की कौड़ी है।
कोई व्यक्ति अगर ईमानदारी से डायरी लिखता है, उससे बड़ा संत और कोई दूसरा नहीं हो सकता। एक ईमानदार डायरी लेखक ने अगर कभी दुनियावी दृष्टि में कोई गलत कार्य किया होगा तो उसे अवश्य ही लिखा होगा।
यदि फ़िर कभी कुछ माह साल के बाद डायरी के उस पन्ने पर जाएगा तो उसे पढकर आत्म अवलोकन करना पड़ेगा कि उस दिन वह सही था या गलत। अगर वह गलत था तो अवश्य ही उसे ग्लानि होगी और उस गलती पुन: दुहराने की कोशिश नहीं करेगा।
उस दिन की घटना उसे हमेशा परिष्कृत करती रहेगी उसके व्यक्तित्व को मांजती रहेगी। उसके सफ़लता के मार्ग में एक मील का पत्थर साबित होगी। क्योंकि मनुष्य वही होता है जो अपने द्वारा की गयी गलतियों को सुधार कर पुन: आगे का सफ़र तय करता है।
जीते जी कोई भी व्यक्ति अपनी डायरी किसी को भी पढने नहीं देता है, अपना भेद किसी पर खुलने नहीं देता, मरने के बाद ही उसकी डायरी खुलती है। जिसे उसके परिजन, बेटे-बेटी,पत्नी, भाई और,मित्र आदि पढते हैं। डायरी से व्यक्ति के विषय में वह जानते हैं जिससे वे जीवन भर अनभिज्ञ थे। उसके बाद ही गुण भेद के हिसाब से गणना करते हैं कि वह अच्छा था या बुरा। उसने कितना सच लिखा है डायरी में और जीवन में कितनी झूठ बोली है और क्या क्या छिपाया?
अगर कोई ब्लॉग पर डायरी लिखता है तो मैं उससे बड़ा महान किसी और को नहीं समझता। क्योंकि वह अपने जीवन के विषय में जीते जी लिख रहा है और उसे सार्वजनिक कर रहा है। कुछ ही लोग होते है जिनमें यह साहस होता है जो मुखौटा नहीं ओढते और लेहड़ों से दूर अलग ही धूनी रमाते हैं। वे मुझे अच्छे लगते हैं।
खान-पान आचार-विचार, व्यवहार देश-काल-परिस्थिति के हिसाब से तय होते हैं। आप जिस वातावरण में रहते हैं उसका प्रभाव आपके जीवन पर अवश्य ही पड़ता है। मेरे अंदर एक यायावर की आत्मा है। मैंने अपने को घुमक्कड़ ही पाया है।
जीवन में एक मजदूर से लेकर अति विशिष्ट लोगों के साथ रहने का मौका मिला। जिससे दुनिया को करीब से समझने का मौका मिला। दुनिया को जानने का प्रयास मैने अपने विद्यार्थी जीवन से किया है।
लाखों किलोमीटर की यात्राएँ आज तक की होंगी। तरह-तरह भोजन का स्वाद लिया होगा और कभी भोजन की तलाश में भटका भी होऊंगा।
कुछ लुटेरे भी मिलें होंगे तो कुछ सदचरित्र भगवान सदृश्य व्यक्ति भी। कुंए का मेंढक बनकर कभी भी इस संसार और प्रकृति का सौंदर्य नहीं देख पाता तथा न ही जान पाता कि यह दुनिया कितनी बड़ी है और इसमें किस तरह के लोग रहते हैं?
यात्राओं के दौरान मुझे कुछ बहुत अच्छे मित्र मिले, जिनसे मैं प्रेरणा पाता हूँ एक आदर्श के रुप में, कुछ ऐसे भी लोग मिले जिनके शरीर में सिर्फ़ डंक ही डंक भरे हैं। संत और असंत दोनों की एक ही प्रवृत्ति होती है। दोनों का रुप असली होता है।
संत के प्रभा मंडल में उसके सदाचार की किरणें प्रकाशित होती हैं और असंत के प्रभामंडल से विकारों की। नकारात्मक उर्जा के करीब रहने से वह साथ वाले व्यक्ति को भी प्रभावित करती हैं। यह तो आज का विज्ञान भी कहता है।
मुझे लोगों से मिलने पर ही अहसास हो जाता है कि किसमें कितनी सकारात्मकता और नकारात्मकता भरी है। इसलिए जहां तक हो सके सकारात्मकता को ही धारण करने की कोशिश करता हूँ। लेकिन सज्जन बनने वाले छद्म वेशी लोगों से थोड़ा सावधान रहता हूँ।
कहा जाता है कि आदमी गलतियों का पुतला है मानवीय भूल सबसे होती है। भूल पर चिंतन करके भूल सुधारने का मौका भी यही डायरी देती है।
संत के प्रभा मंडल में उसके सदाचार की किरणें प्रकाशित होती हैं और असंत के प्रभामंडल से विकारों की। नकारात्मक उर्जा के करीब रहने से वह साथ वाले व्यक्ति को भी प्रभावित करती हैं। यह तो आज का विज्ञान भी कहता है।
मुझे लोगों से मिलने पर ही अहसास हो जाता है कि किसमें कितनी सकारात्मकता और नकारात्मकता भरी है। इसलिए जहां तक हो सके सकारात्मकता को ही धारण करने की कोशिश करता हूँ। लेकिन सज्जन बनने वाले छद्म वेशी लोगों से थोड़ा सावधान रहता हूँ।
कहा जाता है कि आदमी गलतियों का पुतला है मानवीय भूल सबसे होती है। भूल पर चिंतन करके भूल सुधारने का मौका भी यही डायरी देती है।
छद्म वेशी दिन में सज्जनता मुखौटा पहन अपने वास्तविक चेहरे को छिपाकर ज्ञान बांटते फ़िरता है। लोग समझते हैं कि इससे अच्छा इंसान दुनिया में कोई भी नहीं है। कितना ज्ञानवान और सज्जन व्यक्ति है? अंधेरे में जब कभी उसकी कारगुजारियाँ देखने मिलती हैं तो वह किसी तमराज से कम नजर नहीं आता है।
किसी ने कहा है कि-“ आपै खारी खात है, बेचत फ़िरै कपूर।“ डायरी लिखना कोई आसान काम नहीं है। अगर व्यक्ति अपने दिन भर के क्रिया कलापों को एक डायरी में लिखता है (भले ही सार्वजनिक न करे) तो अवश्य ही उसके जीवन में बदलाव आएगा।
दुनिया को देखने का उसका नजरिया बदल सकता है। नकारात्मकता का उसके जीवन में लेश मात्र भी नहीं मिलेगी। जीवन का असली आनंद भी तभी मिल पाएगा।“ देखो सभी जगह अच्छाई, ऐसी दृष्टि सदा सुखदाई।“ इसलिए जीवन के अनमोल क्षणों को डायरी का रुप अवश्य ही देना चाहिए, जिससे आने वाली पीढी आपके विषय में जान सके।
वैसे ब्लॉग यानि डायरी और डायरी (दैनंदिन जीवन का विवरण) यानि आत्मकथा लेकिन आत्मकथा तो मुख्तसर रसीदी टिकट पर भी आ जाने वाली होती हैं. राहत और तसल्ली देने वाली पोस्ट.
जवाब देंहटाएंआपका जवाब नहीं। बहुत विचारणीय। और इसमें से एक मेरी फ़ोटॊ है लाल वाली, आपने किससे पूछ कर लगाई ? ही ही।
जवाब देंहटाएं"संत के प्रभा मंडल में उसके सदाचार की किरणें प्रकाशित होती हैं और असंत के प्रभामंडल से विकारों की।"
जवाब देंहटाएंआपकी पूरी पोस्ट आत्मविश्लेषण को प्रेरित करती है ...हर एक शब्द ..हर एक पंक्ति में गहरा अर्थ छुपा है ...संत और असंत को नयी लेकिन वास्तविक परिभाषा के माध्यम से प्रकट करने का आपका प्रयास स्तुत्य है ...आपका आभार इस पोस्ट के लिए
डायरी लिखना अपने दिल की, मन की आवाज़ सुनने जैसा होता है... और जो अपने दिल की अपने मन की या कहें अपनी खुद की नहीं सुनता उसके लिए दुनिया की सारी शिक्षाएं व्यर्थ हैं... डायरी लिखना तभी सार्थक है जब उसमे ईमानदारी हो...
जवाब देंहटाएंयद्यपि शादी के बाद डायरी लेखन अपने हाथों अपना गला रेतने जैसा ही है :)
@padmsingh ji यद्यपि शादी के बाद डायरी लेखन अपने हाथों अपना गला रेतने जैसा ही है :)
जवाब देंहटाएंयह खतरा तो उठाना पड़ेगा मित्र:)
बहुत विचारणीय
जवाब देंहटाएंआसान नहीं दैनंदिनी लिखना।
जवाब देंहटाएंसंसार में छद्म वेशी ऐसे बहुत से लोग हैं जिनकी कथनी और करनी में जमीन-आसमान का अंतर है। दिन में चेहरे कुछ दिखाई देते हैं और रात में सिर पर सींग उग आते है।
जवाब देंहटाएं.................आपकी पूरी पोस्ट आत्मविश्लेषण को प्रेरित करती है
बहुत लोग हैं जो diary लिखते हैं, उनमें से बहुत कम ऐसे हैं जो सच लिखते हैं ...
जवाब देंहटाएंरही बात ब्लॉग की ... तो यह आरम्भ में diary बनकर ही आया था सामने पर अब इसका विस्तार हो चूका है ... अब यह केवल diary भर नहीं रह गया है ... इसके कलेवर और काम दोनों अलग अलग रूप रंग में सामने आ चूका है ...
ब्लॉग जगत में हम कई तरह के ब्लॉग देखते हैं ... मसलन, साहित्य से जुड़े हुए, खबरों की दुनिया से जुड़े हुए, चित्र दिखाते हुए, धर्म चर्चा करते हुए, अधर्म चर्चा करते हुए... और कुछेक ब्लॉग ऐसे भी हैं जो diary जैसे हैं ...
खैर, कोई diary लिखे या न लिखे ... स्वभाव आदमी के आचरण से पता चलता है ... यहाँ मेरा मतलब केवल व्यवहार से नहीं ... क्यूंकि कई छल-कपट वाले व्यक्ति का व्यवहार बहुत सुन्दर होता है ... यहाँ मेरा मतलब है कई दैनंदिन बातों में वो क्या करता है, कैसे निर्णय लेता है ... इन सब बातों से ..
मुण्डे मुण्डे मतिभिन्न:
जवाब देंहटाएंडायरी लेखन से निसंदेह आत्मचिन्तन होता है। लेकिन ब्लाग लेखन सार्वजनिक होता है इसलिए सामाजिक सरोकारों का भी महत्व होता है। समाज हित के कार्यों को भी देखना होता है। जैसे कोई व्यक्ति के विवहोपरान्त अनेक सम्बंध हों और वह सार्वजनिक रूप से लिखे कि मैंने यह किया तो यह समाज हित में नहीं होगा।
जवाब देंहटाएंललित, आज के तुम्हारे पोस्ट ने तो मुग्ध करके रख दिया!
जवाब देंहटाएंमुझे तुमसे हमेशा ऐसी ही पोस्टों की उम्मीद रहती है।
वास्तविक डायरी लेखन का साहसपूर्ण कार्य कितने लोग कर पाते हैं । तब जब सभी ये कोशिश करते हों कि मेरे बारे में अच्छा तो हर कोई जाने किन्तु बुरा कोई न जान पावे । मेरे मरने के बाद भी क्यों ?
जवाब देंहटाएंबाकि तो पंडितजी के समान पर उपदेश कुशल बहुतेरे है ही.
विचारणीय ....
जवाब देंहटाएंआप तो संतो वाली बाते करने लगे जी...चलो साधुं बन जाये
जवाब देंहटाएंढायरी लिखना नित्य स्वयं से बातें करने जैसा है।
जवाब देंहटाएं*डायरी
जवाब देंहटाएंललित भाई , अब आप भी ऑटोबायोग्राफी लिख ही डालो ।
जवाब देंहटाएंबड़ा आनंद आएगा पढने में ।
वैसे लोगों को डायरी लिखकर खुश होने दो यार , क्यों झिड़कते हो भाई ।
आसान नहीं दैनंदिनी लिखना।
जवाब देंहटाएंkuch bhi likho lekin aap apne aap ko dhokha kaha de sakte ho ye likhne vala janta hai shayd is liye ye himmat vo juta nahi pata hai. par jo likhte hai vo vakai .................. hai
बेहद उम्दा पोस्ट ..बधाई !
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा लेखन. डायरी लेखन के संबंध में खरी खरी सत्य.
जवाब देंहटाएंबहुत मुश्किल है अपने आप को सब के सामने उजागर करना। कोई विरला ही सब बताने की हिम्मत रखता होगा।
जवाब देंहटाएंखुशवंत सिंह के बारे में क्या कहना चाहेंगे?
@गगन शर्मा
जवाब देंहटाएंओही सुच्चा बंदा है,
जो भेद नई रखदा।
सानु मेरे वीर जी सुच्चे बंदे दी तलाश हैगी।
आपकी नए वर्ष की डायरी सुरक्षित है.
जवाब देंहटाएंshi khaa sch khnaa or sch likhna himmt ki bat he jo kmse km aaj to kisi men nhin or agr kisi men milti he to fir voh nayaab he . akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंक्या बात लिखी शर्मा जी, बहुत ख़ूब।
जवाब देंहटाएंएकदम सही कहा आपने...बहुत दिन पहले अपने एक दोस्त वरुण को मैं यही बातें कह रहा था की इमानदारी से डायरी लिखने से किसी व्यक्ति का अच्छा और बुरा पक्ष दोनों सामने आता है...
जवाब देंहटाएंवैसे मेरी एक दोस्त है जिसका एक ब्लॉग है..यधपि उस ब्लॉग को बस वही पाठक पढ़ सकते हैं जिन्हें ब्लॉग की इन्विटेसन हो...उसके ब्लॉग से एक बात पता चलती है मुझे, वो अपने बारे में बहुत सी निजी बातें बताती है...अच्छी भी और बुरी भी..
मुझे अच्छा लगता है..
डायरी व्यक्ति का चरित्र चित्रण करती है
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