पौष का महीना था, कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। घर के लोग अलाव जला कर खुद को गर्म रख रहे थे। तभी साथ के कमरे से बालक के रोने की आवाज आई। आवाज सुनकर सारा घर खुशी से झूम उठा।
तभी दाई ने खबर दी– “गुरुजी लड़का हुआ है, बधाई हो।“ गुरुजी और सारा परिवार उत्सुक था बालक को देखने के लिए। जब बालक को देखा तो सबको निराशा हुई। क्योंकि वह विकलांग था।
जन्म के पश्चात बालक की परवरिश में सावधानी बरती गयी। डॉक्टरों और नीम हकीमों को खूब दिखाया गया, लेकिन कोई विशेष लाभ नहीं हुआ। बालक की हालत यूँ ही बनी रही।
जब वह थोड़ा बड़ा हुआ तो उसे शिक्षा के लिए अपंग बाल गृह माना केम्प (जिला रायपुर) में दाखिल करवा दिया गया, जहाँ उस नि:शक्त बच्चे ने पहली कक्षा से छठवीं तक की पढाई की।
तभी दाई ने खबर दी– “गुरुजी लड़का हुआ है, बधाई हो।“ गुरुजी और सारा परिवार उत्सुक था बालक को देखने के लिए। जब बालक को देखा तो सबको निराशा हुई। क्योंकि वह विकलांग था।
जन्म के पश्चात बालक की परवरिश में सावधानी बरती गयी। डॉक्टरों और नीम हकीमों को खूब दिखाया गया, लेकिन कोई विशेष लाभ नहीं हुआ। बालक की हालत यूँ ही बनी रही।
जब वह थोड़ा बड़ा हुआ तो उसे शिक्षा के लिए अपंग बाल गृह माना केम्प (जिला रायपुर) में दाखिल करवा दिया गया, जहाँ उस नि:शक्त बच्चे ने पहली कक्षा से छठवीं तक की पढाई की।
13 जनवरी 1974 को जन्मे पुष्पेन्द्र कुमार धृतलहरे के मन में दुनिया को देख कर सवाल उठते थे। अपने अन्य भाई बहनों को देखकर उनके समकक्ष चलना चाहता था।
मन में कल्पना की उड़ाने थी। उसने ठान रखा था,कुछ करके दिखाना है। वह किसी के रहमों करम पे नहीं जीना चाहता था। उसने 7वीं 8 वीं की पढाई अशोक बजाज के ग्राम खोला से की।
उसके बाद मैट्रिक की परीक्षा बजरंग हायर सेकेन्डरी स्कूल अभनपुर से पास की और महाविद्यालय में दाखिला लिया। हाथों से पेन पकड़ कर नहीं लिख पाने के कारण उसे एक रायटर (लेखक) रखने की अनुमति शिक्षा विभाग ने दे रखी थी। इस तरह उसने अपनी नि:शक्तता पर विजय पाने अपना अभियान शुरु रखा।
मन में कल्पना की उड़ाने थी। उसने ठान रखा था,कुछ करके दिखाना है। वह किसी के रहमों करम पे नहीं जीना चाहता था। उसने 7वीं 8 वीं की पढाई अशोक बजाज के ग्राम खोला से की।
उसके बाद मैट्रिक की परीक्षा बजरंग हायर सेकेन्डरी स्कूल अभनपुर से पास की और महाविद्यालय में दाखिला लिया। हाथों से पेन पकड़ कर नहीं लिख पाने के कारण उसे एक रायटर (लेखक) रखने की अनुमति शिक्षा विभाग ने दे रखी थी। इस तरह उसने अपनी नि:शक्तता पर विजय पाने अपना अभियान शुरु रखा।
पिताजी हृदय लाल गिलहरे पेशे से शिक्षक हैं, मेरे समक्ष पुष्पेन्द्र के विषय में चिंता व्यक्त करते रहते थे। लड़का अब बड़ा हो रहा है और भविष्य में अपना जीवन कैसे बसर कर पाएगा?
इसे शौचादि के लिए भी एक सहायक की आवश्यकता पड़ती है। बिना किसी के सहारे के चलना भी दुर्भर है। कहते हैं न ईश्वर किसी व्यक्ति में कोई कमी करता है तो उसकी मेधा शक्ति बढा देता है।
जिसके बल पर वह अपना जीवन बसर कर सकता है। लगभग 80 प्रतिशत विकलांगता के पश्चात भी इस बालक ने दुनिया से हार नहीं मानी और जीवन के सफ़र पर निरंतर आगे बढता गया।
इसका ध्यान व्यवसाय में था। जब बड़ी-बड़ी दुकानों को देखता था तो उसके मन में भी विचार आता था कि एक दिन ऐसे ही किसी संस्थान का मालिक वह भी बनेगा।
इसे शौचादि के लिए भी एक सहायक की आवश्यकता पड़ती है। बिना किसी के सहारे के चलना भी दुर्भर है। कहते हैं न ईश्वर किसी व्यक्ति में कोई कमी करता है तो उसकी मेधा शक्ति बढा देता है।
जिसके बल पर वह अपना जीवन बसर कर सकता है। लगभग 80 प्रतिशत विकलांगता के पश्चात भी इस बालक ने दुनिया से हार नहीं मानी और जीवन के सफ़र पर निरंतर आगे बढता गया।
इसका ध्यान व्यवसाय में था। जब बड़ी-बड़ी दुकानों को देखता था तो उसके मन में भी विचार आता था कि एक दिन ऐसे ही किसी संस्थान का मालिक वह भी बनेगा।
सबसे पहले उसने देना बैंक से 50,000 का लोन लेकर एस टी डी पी सी ओ खोला। उस समय गाँव में एस टी डी की सुविधा पहली बार आई थी।
इसके साथ सायकिल रिपेयरिंग की दुकान खोली। नौकरों से काम करवा कर अपने व्यवसाय का संचालन शुरु किया। इसमें आशातीत सफ़लता मिली। समय पर ॠण चुकाने के कारण देना बैंक ने “बेस्ट कस्टमर अवार्ड” से सम्मानित किया।
इसी समय स्कूलों में शिक्षा कर्मियों की भर्ती हो रही थी। इसे प्राथमिक स्कूल के लिए शिक्षा कर्मी वर्ग-3 में नियुक्ति मिल गयी तब से लेकर आज तक सिंचाई कालोनी प्राथमिक शाला झांकी, ब्लॉक अभनपुर में विद्यार्थियों को विद्यादान कर रहा है।
इसके साथ सायकिल रिपेयरिंग की दुकान खोली। नौकरों से काम करवा कर अपने व्यवसाय का संचालन शुरु किया। इसमें आशातीत सफ़लता मिली। समय पर ॠण चुकाने के कारण देना बैंक ने “बेस्ट कस्टमर अवार्ड” से सम्मानित किया।
इसी समय स्कूलों में शिक्षा कर्मियों की भर्ती हो रही थी। इसे प्राथमिक स्कूल के लिए शिक्षा कर्मी वर्ग-3 में नियुक्ति मिल गयी तब से लेकर आज तक सिंचाई कालोनी प्राथमिक शाला झांकी, ब्लॉक अभनपुर में विद्यार्थियों को विद्यादान कर रहा है।
नि:शक्तजनों की समस्या को भली भांति समझने के कारण पुष्पेन्द्र ने एक जय भारती विकलांग कल्याण संघ संस्था का निर्माण किया। जिसमें कार्यपरिषद को मिलाकर लग भग 42 सदस्य हैं।
इसके कार्यों को देखते हुए। नेहरु युवा केन्द्र रायपुर ने 5000/- रुपए नगद एवं प्रशस्ति-पत्र से सम्मानित किया।
समाज कल्याण विभाग छत्तीसगढ शासन ने भी इसे सम्मानित कर प्रशस्ति-पत्र प्रदान किया। संस्था के कुछ कार्यक्रमों बतौर अतिथि मेरी भी उपस्थिति रही है।
पुष्पेन्द्र नि:शक्तजनों के लिए एक आशा का केन्द्र है। इसके कार्यों से इसे जन्म देने वाले माता पिता का शीश भी गर्व से ऊंचा हो जाता है।
इसके कार्यों को देखते हुए। नेहरु युवा केन्द्र रायपुर ने 5000/- रुपए नगद एवं प्रशस्ति-पत्र से सम्मानित किया।
समाज कल्याण विभाग छत्तीसगढ शासन ने भी इसे सम्मानित कर प्रशस्ति-पत्र प्रदान किया। संस्था के कुछ कार्यक्रमों बतौर अतिथि मेरी भी उपस्थिति रही है।
पुष्पेन्द्र नि:शक्तजनों के लिए एक आशा का केन्द्र है। इसके कार्यों से इसे जन्म देने वाले माता पिता का शीश भी गर्व से ऊंचा हो जाता है।
बात सन् 2000 की है। पुष्पेन्द्र के पिता ने मुझसे आग्रह किया कि मैं पुष्पेन्द्र को कम्प्युटर चलाना सिखा दूँ। जब मैने पुष्पेन्द्र को माउस चलाते देखा तो वह एक हाथ से नहीं चला सकता था।
माऊस चलाने के लिए उसे दोनो हाथों की जरुरत पड़ती थी। फ़िर भी मैने उसे कहा कि जब भी समय मिलेगा तुम्हे सिखाऊंगा। जब भी मुझे समय मिलता पुष्पेन्द्र को कम्प्युटर चलाना सिखाता।
वह मुझसे नए-नए साफ़्टवेयर के विषय में पूछता। श्री लिपि पर उसने हिन्दी टायपिंग करन सीख लिया। पेजमेकर और कोरल ड्रा पर डिजायनिंग भी सीख ली। जब भी मैं पहुंचता तो वह बहुत सारे प्रश्न एकत्र करके रखता था।
जिनके जवाब की आशा मुझसे होती थी। मुझे भी ऐसा शिष्य मिल गया था जो रोज प्रश्न करता था और मुझे उत्तर देने में खुशी होती थी। वह एक सामान्य विद्यार्थी से अधिक कुशाग्र था।
माऊस चलाने के लिए उसे दोनो हाथों की जरुरत पड़ती थी। फ़िर भी मैने उसे कहा कि जब भी समय मिलेगा तुम्हे सिखाऊंगा। जब भी मुझे समय मिलता पुष्पेन्द्र को कम्प्युटर चलाना सिखाता।
वह मुझसे नए-नए साफ़्टवेयर के विषय में पूछता। श्री लिपि पर उसने हिन्दी टायपिंग करन सीख लिया। पेजमेकर और कोरल ड्रा पर डिजायनिंग भी सीख ली। जब भी मैं पहुंचता तो वह बहुत सारे प्रश्न एकत्र करके रखता था।
जिनके जवाब की आशा मुझसे होती थी। मुझे भी ऐसा शिष्य मिल गया था जो रोज प्रश्न करता था और मुझे उत्तर देने में खुशी होती थी। वह एक सामान्य विद्यार्थी से अधिक कुशाग्र था।
कम्प्युटर सीखने के पश्चात पुष्पेन्द्र ने स्क्रीन प्रिंटिंग का काम शुरु कर दिया। उसके छोटे भाई स्क्रीन करते और यह उन्हे पेज, विवाह कार्ड, विजिटिंग कार्ड इत्यादि डिजाईन करके देता।
इस तरह एक घरेलु छापा खाना शुरु हो गया। एस टी डी पीसीओ और सायकिल दुकान का कार्य कम होने लगा। तो परिवार के सहयोग से इसने पूजा क्लाथ स्टोर नामक कपड़े की दुकान शुरु की।
ज्ञात हो कि इसके परिवार में कोई भी व्यवसाय में नहीं है। सभी किसान हैं और पिता शिक्षक हैं। इस दुकान में अपने तीनों भाईयों को लगा लिया और संचालन करता रहा। दुकान अच्छी चल निकली। स्कूल से आने के बाद सुबह शाम दुकान को समय देता था।
इस तरह एक घरेलु छापा खाना शुरु हो गया। एस टी डी पीसीओ और सायकिल दुकान का कार्य कम होने लगा। तो परिवार के सहयोग से इसने पूजा क्लाथ स्टोर नामक कपड़े की दुकान शुरु की।
ज्ञात हो कि इसके परिवार में कोई भी व्यवसाय में नहीं है। सभी किसान हैं और पिता शिक्षक हैं। इस दुकान में अपने तीनों भाईयों को लगा लिया और संचालन करता रहा। दुकान अच्छी चल निकली। स्कूल से आने के बाद सुबह शाम दुकान को समय देता था।
एक दिन गुरुजी ने कहा कि पुष्पेन्द्र का विवाह करना है। मैं भौंचक रह गया। कौन लड़की देगा इसे? गुरु जी ने कहा कि एक लड़की के विषय में पता चला है वह एक पैर से विकलांग है। उसके पिता से चर्चा करते हैं अगर रिश्ता मान लेगा तो शादी कर देंगे। हम दोनो गए और लड़की को देखा।
उसके पिता और अन्य रिश्तेदारों से चर्चा की। लड़का देखने के लिए आमंत्रित किया। लड़के से लड़की की मुलाकात हुई और शादी तय हो गयी। बैंड बज गया। आज यह एक सामान्य दम्पत्ति के रुप में सफ़ल जीवन बसर कर रहे हैं।
इनके तीन बच्चे हैं। दो लड़की पूजा 10 वर्ष, श्रुति 8 वर्ष और एक लड़का मंजीत 6 वर्ष का है। सभी अध्ययन कर रहे हैं। इसकी पत्नी ललिता कार्य में सहयोग करती है।
उसके पिता और अन्य रिश्तेदारों से चर्चा की। लड़का देखने के लिए आमंत्रित किया। लड़के से लड़की की मुलाकात हुई और शादी तय हो गयी। बैंड बज गया। आज यह एक सामान्य दम्पत्ति के रुप में सफ़ल जीवन बसर कर रहे हैं।
इनके तीन बच्चे हैं। दो लड़की पूजा 10 वर्ष, श्रुति 8 वर्ष और एक लड़का मंजीत 6 वर्ष का है। सभी अध्ययन कर रहे हैं। इसकी पत्नी ललिता कार्य में सहयोग करती है।
पुष्पेन्द्र पहने ओढने और खाने का बहुत शौकीन है। अपने सभी शौक पूरे करता है लेकिन एक हद तक। एक दिन मैनें देखा कि एक हाथ की उंगलियों में सोने की दो अंगुठियों पहन रखी थी।
मुझे यह परिवर्तन नजर आय तो मैने जिज्ञावश पहनने का कारण पूछा तो जो उसने मुझे बताया तो लोगों की मानसिकता पर बड़ा क्षोभ हुआ।
वह बोला कि- "एक दिन कहीं जाने के लिए रेल्वे स्टेशन पर गया था। प्लेटफ़ार्म पर किसी ने बिना बोले उसके हाथ पर एक रुपए का सिक्का धर दिया। यह सोचकर की कोई विकलांग भिखारी है। उस दिन मुझे बहुत खराब लगा।
तब से मैने सोच लिया कि किसी साहब के वेतन के मुल्य का सोना मुझे पहनना ही है जिसे देख कर लोगों की नि:शक्तजनों के प्रति मानसिकता बदले कि हर नि:शक्त भिखारी नहीं होता और उनके मन में सम्मान का भाव हो।
मुझे यह परिवर्तन नजर आय तो मैने जिज्ञावश पहनने का कारण पूछा तो जो उसने मुझे बताया तो लोगों की मानसिकता पर बड़ा क्षोभ हुआ।
वह बोला कि- "एक दिन कहीं जाने के लिए रेल्वे स्टेशन पर गया था। प्लेटफ़ार्म पर किसी ने बिना बोले उसके हाथ पर एक रुपए का सिक्का धर दिया। यह सोचकर की कोई विकलांग भिखारी है। उस दिन मुझे बहुत खराब लगा।
तब से मैने सोच लिया कि किसी साहब के वेतन के मुल्य का सोना मुझे पहनना ही है जिसे देख कर लोगों की नि:शक्तजनों के प्रति मानसिकता बदले कि हर नि:शक्त भिखारी नहीं होता और उनके मन में सम्मान का भाव हो।
खादी ग्राम उद्योग से 5 लाख का ॠण पाकर इनकी पत्नी ललिता ने भी स्थानीय बस स्टैंड में दो मंजिला कपड़े का स्टोर और ज्वलरी शाप खोल लिया है।
श्री बालाजी कलेक्शन एवं श्री बालाजी ज्वेलर्स नामक शानदार चकाचक शो रुम बनाया है और इनके पास आज दुकान में 4 नौकर काम करते हैं। व्यापारी और ग्राहक आकर लेन देन करते हैं।
सब तरफ़ सी सी कैमरे और इंटर काम लगा रखा है। काउंटर पर बैठे बैठे सभी गतिविधियों पर निगाह रखे जाती है। दुकान का स्टाक और लेन देन सब कम्प्युटर में दर्ज होता है।
रोज की आवक जावक हिसाब दुकान बढाने से पहले ही हो जाता है। अपने आने जाने के लिए तिपहिया स्कूटी ले रखी है जिसमें पति पत्नी आना जाना करते हैं। किसी ने सोचा नहीं था कि एक नि:शक्त जिसके गुजर-बसर को लेकर परिवार चिंतित था आज 10 लोगों का भरण-पोषण कर सकेगा।
यह उन लोगों के मुंह पर एक तमाचा है जो कहते हैं कि रोजगार नही है और सरकार का मुंह ताक रहे हैं, उन्हे पुष्पेन्द्र से प्रेरणा लेनी चाहिए। कहा गया है-
श्री बालाजी कलेक्शन एवं श्री बालाजी ज्वेलर्स नामक शानदार चकाचक शो रुम बनाया है और इनके पास आज दुकान में 4 नौकर काम करते हैं। व्यापारी और ग्राहक आकर लेन देन करते हैं।
सब तरफ़ सी सी कैमरे और इंटर काम लगा रखा है। काउंटर पर बैठे बैठे सभी गतिविधियों पर निगाह रखे जाती है। दुकान का स्टाक और लेन देन सब कम्प्युटर में दर्ज होता है।
रोज की आवक जावक हिसाब दुकान बढाने से पहले ही हो जाता है। अपने आने जाने के लिए तिपहिया स्कूटी ले रखी है जिसमें पति पत्नी आना जाना करते हैं। किसी ने सोचा नहीं था कि एक नि:शक्त जिसके गुजर-बसर को लेकर परिवार चिंतित था आज 10 लोगों का भरण-पोषण कर सकेगा।
यह उन लोगों के मुंह पर एक तमाचा है जो कहते हैं कि रोजगार नही है और सरकार का मुंह ताक रहे हैं, उन्हे पुष्पेन्द्र से प्रेरणा लेनी चाहिए। कहा गया है-
कौन कहता है आसमां में छेद नहीं हो सकता।
एक पत्थर तो जरा तबियत से उछालो यारों॥
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बहुत बढ़िया, प्रेरक...
जवाब देंहटाएंपुष्पेन्द्र और आपको
नए वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें...
क्या बात है पुष्पेन्द्र जी की . हिम्मते मर्दा मदद ऎ खुदा
जवाब देंहटाएंसार्थक आलेख
जवाब देंहटाएंनिश्चित तौर पर पुष्पेन्द्र का यह जज़्बा उन लोगों के मुंह पर एक तमाचा है जो कहते हैं कि रोजगार नही है और सरकार का मुंह ताक रहे हैं।
पुष्पेन्द्र परिवार को शुभकामनाएँ
नये साल के शुरुआत में पढ़ी बढि़या पोस्ट.
जवाब देंहटाएंसबसे पुष्पेन्द्र जी के जज्बे को सलाम, सच कहा आपने आसमान ऐसे व्यक्ति छेद कर सकते हैं । आपका आभार इस प्रेरणामयी पुरुष के जिवन गाथा को सामने रखा ।
जवाब देंहटाएंhoslon ki udhaan ko saabit krne vaali bhtrin shikshaprd post shi khaa hoslaa ho to fir khin har nhin hoti pushpendr ji ko mubarkbad lekin is taaqt ko ujagr kr jo sevaa kaa kaam kiya he iske liyen bhai llit ji ko bhut bhut bdhayi . akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंपुष्पेन्द्र जी के जज्बे को सलाम ... इतने प्रेरक व्यक्तित्वा से मिलाने के लिए धन्यवाद ...
जवाब देंहटाएंआपको नए साल की शुभकामनायें !
पुष्पेन्द्र की जीवटता को प्रणाम।
जवाब देंहटाएंप्रेरणादायक उदाहरण. शानदार प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंये हैं देश के असली हीरो! सलाम इस जज़्बे को!!
जवाब देंहटाएंसच है:
कैसे आकाश में सुराख़ हो नहीं सकता
एक पत्थर ज़रा तबीयत से उछालो यारो!
वाकई! पुष्पेंद्र ने आसमाँ में छेद ही नहीं किया। उस छेद में अपना पूरा संसार बसा डाला।
जवाब देंहटाएंप्रणाम इस इन्सान के हौसले को.
जवाब देंहटाएंहिम्मते मर्दा मददे खुदा के सिद्धान्त के प्रत्यक्ष उदाहरण पुष्पेन्द्र की जीवटता को सलाम !
जवाब देंहटाएंनववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ...
वाह वाह ... जज्बे के सलाम
जवाब देंहटाएंकौन कहता है आसमां में छेद नहीं हो सकता
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों ...
बेहतरीन पोस्ट..
इस आत्म शक्ति को मेरा भी नमन स्वीकारिये
जवाब देंहटाएंपुष्पेन्द्र की जीवटता को पढ़कर अह्लाद आ गया।
जवाब देंहटाएंसाल की शुरूवात में एक खुबसूरत पोस्ट और पुष्पेन्द्र जी से रूबरू होने का मौका देने के लिये धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंपुश्पेन्दर का व्यक्तित्व बहुत प्रेरणादायी है। आपको सपरिवार नये साल की हार्दिक शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंdushyant ji kee yah 2 panktiyaan ekdam sateek baithtee hain aise vyaktitw par
जवाब देंहटाएंsach men prerna ke gahan srot hain aise log.
naman hai.
@ बज्ज
जवाब देंहटाएंgirish pankaj - pranaam hai is pratibha ko.
@ बज्ज
जवाब देंहटाएंदर्शन लाल - vaah
@ बज्ज
जवाब देंहटाएंindu puri goswami -
यहीं पूरा आर्टिकल पढ़ गई.पुष्पेंद्रजी जैसे लोग एक मिसाल हैं.मेरे एक परिचित के घर सुन्दर स्वस्थ बच्चे ने जन्म लिया बस होठ,तालू का कुछ हिस्सा कटा हुआ था. बच्चा थोड़ी देर बाद मर गया क्योंकि उसे तगारी के नीचे दबा दिया गया था.दम घुटने से वो बच्चा मर गया.पर...क्या इतनी आसानी से उस बच्चे के प्राण निकल गये होंगे?
ये आर्टिकल ऐसे पेरेंट्स के लिए भी एक सबक है.थेंक्स ललित भैया.और पुष्पेंद्रजी और उनकी पत्नी को....सेल्यूट
वाह जी आप ने आज सच मे एक इंसान से मिलवाया, दाद देता हुं इस वीर पुरुष को धन्य हे यह,आप का धन्यवाद इन से मिलवाने के लिये
जवाब देंहटाएंआपको एवं चि.पुष्पेन्द्र को साधुवाद .
जवाब देंहटाएंपुष्पेन्द्र जी के जज्बे को सलाम ... इतने प्रेरक व्यक्तित्वा से मिलाने के लिए धन्यवाद ...
जवाब देंहटाएंआपको नए साल की शुभकामनायें!
kunwar ji!
पुष्पेन्द्र जैसे व्यक्तित्व से परिचय करवाने का बहुत बहुत शुक्रिया...बहुत ही बढ़िया आलेख और बहुत विस्तार से आपने उनकी संघर्ष-गाथा लिखी है.
जवाब देंहटाएंप्रत्येक व्यक्ति को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए. लोग छोटी-छोटी बातो की शिकायत करते हैं.और यहाँ सिर्फ अपने लगन और मेहनत से पुष्पेन्द्र ने इतनी कामयाबी हासिल कर ली. अनुकरणीय है उनका ज़ज्बा.
प्रेरक पोस्ट
जवाब देंहटाएंपुष्पेन्द्र जी और ललिता जी को मेरा प्रणाम कहियेगा
लोगों की मानसिकता पर बड़ा क्षोभ हुआ। वह बोला कि- "एक दिन कहीं जाने के लिए रेल्वे स्टेशन पर गया था। प्लेटफ़ार्म पर किसी ने बिना बोले उसके हाथ पर एक रुपए का सिक्का धर दिया। यह सोचकर की कोई विकलांग भिखारी है। उस दिन मुझे बहुत खराब लगा। तब से मैने सोच लिया कि किसी साहब के वेतन के मुल्य का सोना मुझे पहनना ही है जिसे देख कर लोगों की नि:शक्तजनों के प्रति मानसिकता बदले कि हर नि:शक्त भिखारी नहीं होता और उनके मन में सम्मान का भाव हो।
जवाब देंहटाएं=======================================
100% Sahi Pushpendra.. Proud of you.....
पुष्पेन्द्र जी कहानी बहुत ही प्रेरणा प्रद है. .........इनकी हिम्मत और जज्बे को सलाम. जहाँ आजकल अच्छे लोग भी भिखारी का ढोंग करके भीख मंगाते है वही ये मिशाल काबिलेतारीफ है. ........
जवाब देंहटाएंपुष्पेन्द्र जैसे लोग समाज में प्रेरणा के श्रोत है..
जवाब देंहटाएंउनकी बुद्धिमत्ता,साहस,धैर्य,लगन और मेहनत की
जितनी तारीफ की जाये कम है...यहाँ हम हर तरह से सक्षम लोग भी विपरीत
परिस्थिति में हिम्मत हार जाते हैं और उसका दोष किसी और पर मढ़ देते है..
कुछ न हो तो ऊपर वाले को ही दोषी ठहरा देते हैं...
पुष्पेन्द्र जी को बधाई...जीवन में सफल होने के लिए !!
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद कि आपने हमारा परिचय
एक ऐसे व्यक्ति से कराया जो अपने आप में एक मिसाल है !!
बहुत प्रेरक मिसाल।
जवाब देंहटाएंबहुत प्रेरक मिसाल।
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