नयी फ़िल्में मैने गिनती की देखी हैं। दूरदर्शन पर आने वाली बिना टिकट की फ़िल्म प्रति रविवार श्रद्धा भाव से देखी थी।
जब 1973-74 में टीवी आया गाँव के स्कूल में तो रविवार को शाम 4 बजे से ही अपना बोरा सामने में बिछाकर बैठ जाते थे।
उसके बाद गाँव में नाटक और नौटंकी वालों का भी डेरा लगता था। वहाँ भी जाते थे देखने। इस तरह नाटकों से लगाव रहा है बचपन से।
अब भी कहीं नाटक के मंचन के जानकारी मिल जाती है तो अवश्य ही चला जाता हूँ एक दर्शक की हैसियत से। मित्र बालकृष्ण अय्यर नाटकों के कुशल चितेरे हैं। नामारुप वर्ष भर कुछ न कुछ प्रयोग और लीलाएं होते रहती हैं। नाटकों का मंचन भी।
जब 1973-74 में टीवी आया गाँव के स्कूल में तो रविवार को शाम 4 बजे से ही अपना बोरा सामने में बिछाकर बैठ जाते थे।
उसके बाद गाँव में नाटक और नौटंकी वालों का भी डेरा लगता था। वहाँ भी जाते थे देखने। इस तरह नाटकों से लगाव रहा है बचपन से।
अब भी कहीं नाटक के मंचन के जानकारी मिल जाती है तो अवश्य ही चला जाता हूँ एक दर्शक की हैसियत से। मित्र बालकृष्ण अय्यर नाटकों के कुशल चितेरे हैं। नामारुप वर्ष भर कुछ न कुछ प्रयोग और लीलाएं होते रहती हैं। नाटकों का मंचन भी।
कुछ माह पूर्व श्री बालकृष्ण अय्यर ने मुझे बताया था कि “रंगशिल्पी” नामक संस्था का निर्माण किया जा रहा है। बस इतनी ही चर्चा हुई थी।
उसके पश्चात रंगशिल्पी द्वारा आयोजित राष्ट्रीय नाट्य समारोह का निमंत्रण ही प्राप्त हुआ। 7 से 9 जनवरी तक नेहरु हाऊस में नाटकों के द्वारा कलारंग बिखेरा गया।
7 जनवरी को व्यस्तता के कारण इस कार्यक्रम में नहीं पहुंच पाया पर 8 जनवरी को जाने का दृढ निश्चय कर लिया था।
अल्पना भी बहुत दिनों से भिलाई जाने के लिए कह रही थी लेकिन संयोग 8 तारीख को ही बना। हम भिलाई पहुंच गए।
उसके पश्चात रंगशिल्पी द्वारा आयोजित राष्ट्रीय नाट्य समारोह का निमंत्रण ही प्राप्त हुआ। 7 से 9 जनवरी तक नेहरु हाऊस में नाटकों के द्वारा कलारंग बिखेरा गया।
7 जनवरी को व्यस्तता के कारण इस कार्यक्रम में नहीं पहुंच पाया पर 8 जनवरी को जाने का दृढ निश्चय कर लिया था।
अल्पना भी बहुत दिनों से भिलाई जाने के लिए कह रही थी लेकिन संयोग 8 तारीख को ही बना। हम भिलाई पहुंच गए।
पाबला जी को फ़ोनियाए तो पता चला कि वे नागपुर जाने की तैयारी कर रहे हैं। संजीव तिवारी जी को फ़ोन लगाए तो वे ऑफ़िस कार्य में व्यस्त थे।
हमने दोपहर का खाना बालकृष्ण जी यहाँ ही खाया ।एक बार नेहरु हाऊस जाकर आ गए। वहाँ खाली कुर्सियाँ ही मिली। उनसे ही बतियाने लगे।
नेहरु हाऊस की कुर्सियाँ भी अब कुंठित हो गयी हैं। उन्होने बताया कि एक जमाना था कि यहाँ फ़िल्मों का आयोजन होता था।
कुर्सियाँ कम पड़ जाती थी तो लोग खड़े-खड़े पूरी फ़िल्म देखते थे। यही हाल नाटकों का भी था। लोग दीवाने थे नाटकों के। नाटकों के मंचन के समय तो हाल छोटा पड़ जाता था।
अब तो कोई दर्शक आ जाते हैं तो सैकड़ों कुर्सियां लपक जाती हैं उनका स्वागत करने। ऐसी स्थिति में कुंठा अवसाद आ ही जाता है।
कुर्सियों की व्यथा सुनने के पश्चात संजीव तिवारी जी का फ़ोन आ गया। हम पहुंचे सिविक सेंटर के रेस्टोरेंट में। दोसा के साथ विचार विमर्श चला।
सांझ ढलने लगी। नाटक प्रदर्शन का समय हो चुका था। पुन: नेहरु हाऊस पहुंचे। प्रवेश द्वार पर ही शरद कोकास जी से भेंट हुई। क्या कहने उनके अंदाज के। बस यूँ कहिए की घायल होते होते बचे चाय की दुकान पर।
पता चला कि नागपुर की नाट्य संस्था द्वारा श्री उदय प्रकाश के नाटक “राम सजीवन की प्रेम कथा” का मंचन होना है। शरद भाई कहाँ चूकने वाले थे, सीधे उदय प्रकाश जी को ही फ़ोनिया दिए, पान ठेले पर ही फ़ोन वार्ता शुरु हो गयी।
उदय प्रकाश जी ने अपनी कहानी के मंचन पर सभी को शुभकामनाएं दी। हमे भी महान कथाकार से फ़ोनालाप करने का सौभाग्य मिला व्हाया शरद कोकास।
भीतर हाल में मंचन की तैयारी चल रही थी। कुर्सियाँ व्यग्र थी दर्शकों को गोद में बिठाने के लिए। एक-एक करके दर्शक आ रहे थे। कुर्सियों को खुश करने के लिए। हम सब चाय-पान करके पहुंच गए हॉल में।
सांझ ढलने लगी। नाटक प्रदर्शन का समय हो चुका था। पुन: नेहरु हाऊस पहुंचे। प्रवेश द्वार पर ही शरद कोकास जी से भेंट हुई। क्या कहने उनके अंदाज के। बस यूँ कहिए की घायल होते होते बचे चाय की दुकान पर।
पता चला कि नागपुर की नाट्य संस्था द्वारा श्री उदय प्रकाश के नाटक “राम सजीवन की प्रेम कथा” का मंचन होना है। शरद भाई कहाँ चूकने वाले थे, सीधे उदय प्रकाश जी को ही फ़ोनिया दिए, पान ठेले पर ही फ़ोन वार्ता शुरु हो गयी।
उदय प्रकाश जी ने अपनी कहानी के मंचन पर सभी को शुभकामनाएं दी। हमे भी महान कथाकार से फ़ोनालाप करने का सौभाग्य मिला व्हाया शरद कोकास।
भीतर हाल में मंचन की तैयारी चल रही थी। कुर्सियाँ व्यग्र थी दर्शकों को गोद में बिठाने के लिए। एक-एक करके दर्शक आ रहे थे। कुर्सियों को खुश करने के लिए। हम सब चाय-पान करके पहुंच गए हॉल में।
शरद भाई ने माईक संभाल लिया। रामसजीवन के दल के विषय में जानकारी दी और हमें (अल्पना जी और मुझे) मंच पर बुलवा लिया
कार्यक्रम का शुभारंभ करने के लिए। हमें भी शुभारंभ करने की जल्दी थी क्योंकि जितनी देर नाटक प्रारंभ होने में होगी उतनी देर से हम घर पहुंचेगें।
अल्पना जी ने रंग शिल्पी द्वारा आयोजित किए गए नाट्य समारोह के लिए शुभकामनाएं दी। हमने भी दो शब्द रंग में जोड़ दिए शिल्प के।
अब नाटक शुरु हो चुका था। मंच पर कलाकार एक-एक करके आते गए और मंच जमने लगा। कुर्सियाँ भी शांत चित्त थी। मुंह फ़ाड़े देख रही थी मंच की ओर।
कार्यक्रम का शुभारंभ करने के लिए। हमें भी शुभारंभ करने की जल्दी थी क्योंकि जितनी देर नाटक प्रारंभ होने में होगी उतनी देर से हम घर पहुंचेगें।
अल्पना जी ने रंग शिल्पी द्वारा आयोजित किए गए नाट्य समारोह के लिए शुभकामनाएं दी। हमने भी दो शब्द रंग में जोड़ दिए शिल्प के।
अब नाटक शुरु हो चुका था। मंच पर कलाकार एक-एक करके आते गए और मंच जमने लगा। कुर्सियाँ भी शांत चित्त थी। मुंह फ़ाड़े देख रही थी मंच की ओर।
रामसजीवन गाँव का लड़का था, शहर में उच्च शिक्षा ग्रहण करने आया था। गाँव से शहर आकर उसे शहरिया हवा लग जाती है।
गाँव में घुंघट वाली लजीली-शर्मीली लड़कियाँ देखी थी। लेकिन शहर में फ़र्राट जींस टॉप वाली देख कर घायल हो जाता है।
बस वह प्रेम नामक प्रेत बाधा से ग्रसित हो जाता है। हम भी सामने बैठे बैठे यह प्रेम कथा कहीं और घटित होते देख रहें हैं। चेहरे पर मुस्कान तैर जाती है। जिसे संजीव भाई पढ लेते हैं।
क्योंकि एक देहाती दूसरे देहाती की मुस्कान भी पहचान जाता है। हम दोनो तीसरे देहाती का दर्द समझ जाते हैं आखों में ही। लेकिन जुबां चुप रहती है। आंखे ही बोलती हैं।
गाँव में घुंघट वाली लजीली-शर्मीली लड़कियाँ देखी थी। लेकिन शहर में फ़र्राट जींस टॉप वाली देख कर घायल हो जाता है।
बस वह प्रेम नामक प्रेत बाधा से ग्रसित हो जाता है। हम भी सामने बैठे बैठे यह प्रेम कथा कहीं और घटित होते देख रहें हैं। चेहरे पर मुस्कान तैर जाती है। जिसे संजीव भाई पढ लेते हैं।
क्योंकि एक देहाती दूसरे देहाती की मुस्कान भी पहचान जाता है। हम दोनो तीसरे देहाती का दर्द समझ जाते हैं आखों में ही। लेकिन जुबां चुप रहती है। आंखे ही बोलती हैं।
कहानी आगे बढती है, रामसजीवन दिन में भी सपने देखते हुए चलता है। कमरे में पड़े-पड़े अकेले से बातें करता है। वह जींस टॉप वाली छलावा बनकर उसके सामने आते-जाते रहती है।
वह समझता है कि हकीकत में घट रहा है। वह मानसिक बीमारी का शिकार हो जाता है। हास्टल के वार्डन रामसजीवन की हालत देख कर उसे घर पहुंचा देते हैं।
रामसजीवन कुछ सालों बाद वहीं फ़िर वापस आता है। तब तक चिड़िया उड़ चुकी होती है। उसके साथी नौकरी लग चुके होते हैं।
लेकिन अधूरी प्रेम कहानी रामसजीवन को कहीं का नहीं छोड़ती। इस तरह एक देहाती के निश्छल प्रेम की वाट लग जाती है।
मुझे एक हरियाणी फ़िल्म चंद्रावल का एक गीत याद आता है – “ परदेशी की प्रीत की रे कोई मत ना करियो होड़, बनजारे की याद यूँ भाई गया सुलगती छोड़”। अब रामसजीवन सुलगते रहता है। पर्दा गिर जाता है।
वह समझता है कि हकीकत में घट रहा है। वह मानसिक बीमारी का शिकार हो जाता है। हास्टल के वार्डन रामसजीवन की हालत देख कर उसे घर पहुंचा देते हैं।
रामसजीवन कुछ सालों बाद वहीं फ़िर वापस आता है। तब तक चिड़िया उड़ चुकी होती है। उसके साथी नौकरी लग चुके होते हैं।
लेकिन अधूरी प्रेम कहानी रामसजीवन को कहीं का नहीं छोड़ती। इस तरह एक देहाती के निश्छल प्रेम की वाट लग जाती है।
मुझे एक हरियाणी फ़िल्म चंद्रावल का एक गीत याद आता है – “ परदेशी की प्रीत की रे कोई मत ना करियो होड़, बनजारे की याद यूँ भाई गया सुलगती छोड़”। अब रामसजीवन सुलगते रहता है। पर्दा गिर जाता है।
हम भी भाई बालकृष्ण से घर जाने की इजाजत लेते हैं। लेकिन वे हमें रोकना चाहते थे। रुकने का सब इंतजाम कर रखा था।
हमारी कुछ मजबूरियाँ थी। नाटक के शुरु होते ही उन्होने सारे गेट बंद करा दिए थे कि कोई दर्शक भाग न जाए।
हमें बड़ी मुश्किल से उन्होने घर जाने की इजाजत दी वह भी इस शर्त पर कि हम दुबारा आएंगे। सबसे बड़ी खुशी की बात यह रही कि अब नाटकों में नई पीढी भी रुचि लेने लगी है।
नाटकों मंचन जारी रहेगा। राष्ट्रीय स्तर पर नाट्य समारोह के सफ़ल आयोजन पर मैं रंग शिल्पी परिवार को साधुवाद देता हूँ।
हमारी कुछ मजबूरियाँ थी। नाटक के शुरु होते ही उन्होने सारे गेट बंद करा दिए थे कि कोई दर्शक भाग न जाए।
हमें बड़ी मुश्किल से उन्होने घर जाने की इजाजत दी वह भी इस शर्त पर कि हम दुबारा आएंगे। सबसे बड़ी खुशी की बात यह रही कि अब नाटकों में नई पीढी भी रुचि लेने लगी है।
नाटकों मंचन जारी रहेगा। राष्ट्रीय स्तर पर नाट्य समारोह के सफ़ल आयोजन पर मैं रंग शिल्पी परिवार को साधुवाद देता हूँ।
अच्छा लगा जानकर, आप भी इस आयोजन के सक्रिय भागीदार बने. रंग शिल्पी को व्हाया आपके बधाई.
जवाब देंहटाएंरंगशिल्पी राष्ट्रीय नाटय समारोह 2010 का आमत्रंण संजीव भैया के आरंभ ब्लाग से मिला था. सफल आयोजन हेतु रंगशिल्पी परिवार को बधाई. आपको भी नाटक रामसजीवन की प्रेमकथा को रोचक पोस्ट प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद . अभिनित कलाकारो का नाम अपेक्षित.
जवाब देंहटाएंसुंदर आलेख के लिए आपको और सुंदर आयोजन के लिए रंग-शिल्पी परिवार को बहुत-बहुत बधाई .
जवाब देंहटाएंबधाईयां शर्मा जी.
जवाब देंहटाएंरामसजीवन के दल, रंगशिल्पी संस्था और आपको सफल आयोजन के लिये बधाई
जवाब देंहटाएंचन्द्रावल का नाम लेकर आपने पूरी फिल्म याद दिला दी
यह एक सुपरहिट फिल्म थी और गाने भी सभी सुपरहिट थे
नैन कटोरे, काजल डोरे
गजबन छोरी बहादुरगढ का बम्ब
मैं जंगल की मोरनी
मेरा घाघरा सिमा दे हो नण्दी के बीरा
प्रणाम
सुंदर आलेख के लिए आपको ....बहुत-बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंकुर्सियां तो भरी दिख रही हैं .. अब लोग ऐसे आयोलनों में रूचि लेने लगे हैं .. अच्छे आयोजन के लिए 'रंगशिल्पी' को बधाई और शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंचित्र से लग रहा है कि नाटक जबरजस्त हुआ है।
जवाब देंहटाएंनई पीढ़ी ज़रूर नाट्य कला में दिलचस्पी रखती है, आने वाला समय नाटक और कलाकारोंके लिए अच्छा है, इसका जीता जगता उदहारण मैं मुम्बई में देख चुका हूँ और संभवतः सारे देश में यह लहर नाट्य कला को नया आयाम देगी.
जवाब देंहटाएंमनोज
सुंदर आलेख के लिए आपको और सुंदर आयोजन के लिए रंग-शिल्पी परिवार को बहुत-बहुत बधाई .
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लग रहा हे यह नाटक, बहुत-बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंइस जानकारी को देने के लिये आप का धन्यवाद
प्रणाम,
जवाब देंहटाएंसुन्दर आलेख के लिए आपको एवं सफल आयोजन के लिए रंग शिल्पी परिवार को बधाई !!
bhaaijaan bhut bhtrin post he mubark ho . akhtar khan akeal kota rajsthan
जवाब देंहटाएंरंगकर्म बहुत कठिन तपस्या है. शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंललित जी, आपने बहुत ही अच्छा चित्रण किया है इस मंचन का . रंगशिल्पी संस्था और आपका प्रयास सराहनीय है . नाट्य मंचों के प्रति लोगों का झुकाव अच्छी बात है............ सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंदो जीवन शैलियों के बीच बेचारा रामसजीवन, जैसे दो पाटन के बीच। नाटक के मंचन के लिए नाट्य मंडली को और उस की रिपोर्ट के लिए आप को बधाई!
जवाब देंहटाएंबढ़िया लेख और नाटक का मंचन भी अच्छा लगा ...कुर्सियां तो काफी भरी दिख रही हैं ...
जवाब देंहटाएंLalit Bhai aapki posting lajawab hoti hai. Thanks for presenting "RANGSHILPI" IN A BEAUTIFUL MANNER.
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत बधाई .
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