सोमवार, 25 अप्रैल 2011

लड़की को बदमाशों ने मार दिया पापा----ललित शर्मा

टीवी के कार्यक्रमों का बाल मन पर गहरा असर हो रहा है। इन कार्यक्रमों से बच्चों के क्रियाकलाप भी प्रभावित होते हैं। बच्चों का पूरा समय टीवी देखने में ही लग रहा था। पढाई चुल्हे में गई। हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के क्रिकेट मैच के दिन मैने टीवी चालु किया। अन्यथा टीवी बंद ही था।  टी वी बंद करने का अनुकूल असर भी बच्चों पर पड़ा। वे पढाई करने लगे थे। डिश तो शुरु नहीं किया पर डी डी वन चालु है।  उदय अभी 8 साल का है, अब वह समझने लगा है, गत दो सप्ताह से टीवी देख रहा है। पहले रात को नौ बजते ही सो जाता था, लेकिन फ़िल्म देखने के लिए रात 12 बजे तक जगा रहता है। कल भी उसने एक फ़िल्म  देखी। आज दोपहर वह फ़िल्म देख रहा था और मैं इधर नेट पर काम कर रहा था। मिस्टर इंडिया फ़िल्म चल रही थी, समीप होने के कारण उसके डायलाग मुझे सुनाई दे रहे थे। तभी अचानक उदय ने टी वी बंद कर दिया और बिजली के प्लग से भी उसका तार निकाल कर बाहर भाग गया।

टीवी की आवाज बंद होने पर मैने मुड़ कर देखा तो वह बाहर जा रहा था। मैने आवाज देकर उसे बाहर जाने का कारण पूछा। तो वह बोला कि "बम से लड़की को बदमाशों ने मार दिया पापा।" तब मुझे फ़िल्म का सीन याद आया कि मोगेम्बो कहता है"सारे भारत में खिलौनो में और कारों में भर कर बम लगा दो। सब तरफ़ त्राहि त्राहि मचने दो। खून की होली खेलेगें।" समुद्र के किनारे एक टेडी बियर में बम रखा था और उसे एक लड़की उठाती है और बम ब्लास्ट हो जाता है और लड़की मर जाती है। उदय इस दृश्य से सहम जाता है इसलिए टी वी बंद करके बाहर चला जाता है। मैं उसे आवाज देकर बुलाता हूँ और टीवी बंद करने का कारण पूछता हूँ। वह सहमे-सहमे कह्ता है " पापा, वह लड़की बम फ़ूटने से मर गयी तो मुझे अच्छा नहीं लगा। मै टीवी नहीं देखुंगा।" मैने टी वी फ़िर चालु किया और उसे बताय कि वह सीन निकल चुका है तु अभी बैठ कर देख। वह फ़िर टीवी देखने लगता है।

मैं टी वी देखते हुए उसकी भाव-भंगिमाओं पर नजर रखता हूँ। उसके चेहरे से मुझे लग रहा था कि वह डरा हुआ है। आराम से बैठ कर फ़िल्म नहीं देख रहा है। फ़िल्म के एक सीन ने उसके कोमल मन पर असर किया। कल सुबह उठेगा तो सामान्य हो जाएगा। इस तरह की घटना प्रत्येक बच्चे के साथ होती है। वर्तमान में बनने वाले टीवी कार्यक्रम एवं फ़िल्मों में हत्या, डकैती, ब्लात्कार, षड़यंत्र नग्न दृश्य इत्यादि ही फ़िल्माए जा रहे हैं। घर में पूरा परिवार एक साथ बैठ कर नहीं देख सकता। जिन बच्चों ने पुरानी फ़िल्मे नहीं देखी है उन्हे वर्तमान की फ़िल्में ही अच्छी लगती हैं। समाज में भी फ़िल्मों के प्रभाव वाले पहनावा और रहन सहन चल रहा है। टीवी और फ़िल्मों के दुष्प्रभाव से बच्चों में नकारात्मकता भरते जा रही है। जिस तरह फ़िल्मी बच्चे अपने माँ बाप से व्यवहार और संवाद करते हैं, उसी तरह का संवाद आज बच्चे अपने माँ बाप से करने लगे हैं। टीवी फ़िल्मों की नकल करने लगे हैं। रामायण एवं शक्तिमान धारावाहिक का असर तो हमने प्रत्यक्ष देखा है, पता नहीं धनुष के तीर से कितने बच्चों ने आंखे फ़ुड़वाई हैं और कितनों ने उड़ने की कोशिश में छत से छलांग लगाई है।

महलों से लेकर झोंपड़ी तक टीवी की पहुंच हो गयी है। लोग टीवी के साथ अब डिस्क एंटीना भी लगा रहे हैं। मैने बंजारों के अस्थाई टैंटो में भी डिश एन्टीना लगा हुआ देखा है। सास बहु के संवाद तो वैसे ही मशहूर हैं लेकिन अब टी वी सीरियल वाले बाकायदा संवाद लिख कर सास-बहु तक पहुंचा रहे हैं। अब सास-बहु और मियां बीबी के झगड़े में सीरियल के संवाद ही सुनाई देने लगे हैं। पॉंन्डस टैल्कम पावडर का एक विज्ञापन दिखाया जा रहा है, जिसमें जींस टॉप वाली लड़की बाईक पर आकर लड़के को भगा कर ले जा रही, जब लड़का अपने घर की तरफ़ देखता है तो कहती है " शादी भले ही हम भाग कर करेगें,पर रिसेप्शन घर वालों की सहमति से ही करेंगें।" मुझे यह समझ नहीं आया कि टैल्कम पावडर के विज्ञापन से भगौड़ी शादी का क्या संबंध है?  डी डी बन पर तो हर 15 मिनट में कंडोम और माला डी के विज्ञापन आ रहे हैं। गर्भनिरोधक गोलियों के वि्ज्ञापन चल रहे हैं। व्याभिचार को बढावा दिया जा रहा है। 

हम लोगों ने भी टीवी पर फ़िल्में देखी है, 74-75 से लेकर 92 तक पूरा परिवार एक साथ बैठ कर टीवी के कार्यक्रम देखता था और मोहल्ले वाले भी आ जाते थे रविवारीय फ़िल्म देखने के लिए। साफ़ सुधरी फ़िल्में दिखाई जाती थी जिसे सभी एक साथ बैठ कर देखते थे और फ़िल्मों का आनंद लेते थे। डिस्क के चलन से ही सारा गुल गपाड़ा हुआ है। घटिया कार्यक्रम चला कर लोगों की मानसिकता खराब करने का कार्यक्रम बेधड़क जारी है। फ़िल्म निर्माता भी ऐसे दृश्य फ़िल्मा रहे हैं कि जिन्हे बैठ कर वे भी परिवार के साथ नहीं देख सकते। उन्हे तो पैसा मिल रहा है समाज में विकृति फ़ैलाने का। क्या हिंसा और अश्लील दृश्यों के बिना फ़िल्मे बन एवं चल नहीं सकती? फ़िल्म फ़्लाप होने का रिस्क कौन ले? जो दिखता है वह बिकता है। वर्तमान पीढी को इस महामारी से कैसे बचाया जाए यह एक यक्ष प्रश्न है। पूरे कुंए में ही भांग पड़ी है। पता नहीं उदय जैसे कितने बच्चे इन कार्यक्रमों और फ़िल्मों को देख कर सहमते होगें?

(मैने चुपके से उदय चित्र लिए, जिसमें उसके चेहरे के भाव स्पष्ट दिख रहे हैं, फ़िल्म के सीन के हिसाब से उसकी मुख मुद्राएं बदल रही हैं)

42 टिप्‍पणियां:

  1. गंभीर से गंभीरतर होती बात और मुख-मुद्राएं.

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  2. निश्चित ही टी वी और फिल्मों का समाज एवं बच्चों पर गहरा असर होता है.

    बच्चों के नादान मन पर इसका प्रभाव रोकने के लिए अभिभावकों को सजग रहना होगा...साथ बैठकर क्या दिखाना है और क्या नहीं..इस हेतु खुद भी संयमित रहना होगा.

    फिल्म वाले और टीवी वाले तो व्यापार कर रहे हैं...वही दिखा रहे हैं जो बिकता है. सामाजिक जिम्मेदारी वाली बात कौन याद दिलाये उन्हें...इस व्यवसायिक जमाने में.

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  3. आपने वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में भूत और भविष्य को विश्लेषित किया है , यह सच है कि कितने उदय आज टी . वी. के दृश्यों से सहम जाते होंगे और फिर अपने मन पर पड़ने वाले असर से खुद को बचा नहीं पाते होंगे ......"वर्तमान पीढी को इस महामारी से कैसे बचाया जाए यह एक यक्ष प्रश्न है।" इस प्रश्न का जबाब खोजना टेढ़ी खीर के सामान है ....लेकिन अभी भी समय है सार्थक कदम उठाने चाहिए ...शुक्रिया

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  4. भाई जान सही और बहतरीन अंदाज़ में टी वी के कार्यक्रमों का अवलोकन किया है इन दिनों बच्चे ,महिलाओं पर इसका गहरा खतरनाक असर पढ़ रहा है ऐसे कार्यक्रमों की जांच और प्रसारण को रोकने के लियें सरकारी कायदे कानून बने है लेकिन आप जानते हैं के टी वी सेंसर बोर्ड कितने रूपये लेकर क्या करता है खुदा खेर करे बहतरीन झकझोर देने वाला सवाल आपने छोड़ा है मुबारक हो . अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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  5. युवा वर्ग को कोसने से पहले हमें भी सोचना चाहिए की आखिर हम उन्हें दे क्या रहे हैं ...
    युवाओं और बच्चों में " तारे जमीन पर ", रंग दे बसंती ...जैसी फिल्मों की लोकप्रियता बताती है की अच्छी फिल्मों को भी वे पसंद करते हैं ...मगर वे बनती कितनी है !!
    सार्थक चिंतन !

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  6. सार्थक चिंतन भईया...गंभीर प्रश्न उठाता आलेख...
    संचार माध्यमों की व्यापक होती परिधि के साथ प्रसारण तंत्र की उच्छ्श्रीन्ख्लता भी बढ़ती जा रही है.... इसके परिणाम और दुष्परिणाम से बाल मन के साथ साथ कोई भी अछूता नहीं है...बढ़ती आपराधिक प्रवृत्ति और मनोविकार के लिए इन्हें काफी हद तक जिम्मेदार कहा जा सकता है... प्रसारण अधिनियम का सख्त परिपालन शाश्कीय स्तर से सुनिश्चित किया जाना चाहिए...
    सादर.

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  7. लोग कहते हैं टीवी के प्रोग्राम लोगों की पसंद और बाज़ार की माँग के अनुरूप बनाए जाते हैं.... समझ में नहीं आता बाज़ार से माँग करने वाले वो कौन लोग हैं जो बच्चों और परिवार में नफरत, अश्लीलता, और चालाकियों के बीज बोना पसंद करते हैं... निश्चित ही यह छिछली मानसिकता और घटिया संस्कारों की प्रतिछावियाँ हैं !

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  8. सटीक सार्थक चिंतन...... बच्चों के जीवन के हर पहलू को प्रभावित करते हैं टीवी कार्यक्रम ....... बहुत विचारणीय है यह विषय

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  9. बच्‍चे टीवी के दृश्‍यों को भी वास्‍तविक घटना ही मान लेते हैं .. डरावने दृश्‍य छोटी उम्र के बच्‍चों पर बहुत ही गहरे असर डालते हैं .. हर जगह यही चल रहा हो तो लोग बच्‍चों को बचाए भी तो कैसे ??
    कुछ दिन पहले इस लेख में मैने भी लिखा था कि आज समाचार चैनल राष्‍ट्र और समाज के मुख्‍य मुद्दे से दूर छोटे छोटे सनसनीखेज खबरों में अपना और दर्शकों का समय जाया करते हैं। मनोरंजक चैनल स्‍वस्‍थ मनोरंजन से दूर पारिवारिक और सामाजिक रिश्‍तों के विघटन के कार्यक्रमों तथा अश्‍लील और फूहड दृश्‍यों में उलझे हैं। इसी प्रकार धार्मिक चैनल आध्‍यात्‍म और धर्म को सही एंग से परिभाषित करने को छोडकर अंधविश्‍वास फैलाने में व्‍यस्‍त हैं।
    ऐसी स्थिति में हम सोचने को मजबूर है कि क्‍या इसी उद्देश्‍य के लिए हमारे वैज्ञानिकों की इतनी बडी उपलब्धि को घर घर पहुंचाया गया था ।

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  10. सारे ही प्रश्‍न अनुत्तरित है, कुछ करते नहीं बनता। उदय के चित्र बहुत अच्‍छी लिए गए हैं, वह इतना मगन था कि उसे पता ही नहीं चला कि उसकी फोटो खेंची जा रही है। उसे प्‍यार।

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  11. आज कल टी.वी की हालत बहुत खराब है --न प्रोग्राम अच्छे आते है न समाचार --एक लाईन समाचार होता है और १० मिनिट का ब्रेक --टी वी देखना ही छोड़ दिया मेने --
    पहले देखना अच्छा लगता था --फिल्मे भी और छाया गीत भी --अब वो बात नही ?

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  12. टेलीविजन पर बच्चो को क्या दिखाएँ ...यह हमारे विवेक की परीक्षा है ! मासूम मन पर बेहद खराब असर डालने में कामयाब होगा ! शुभकामनायें आपको !

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  13. बच्चे देखेंगे तो वही जो टेलीविजन दिखायेगा.. बच्चों को समझाया ही जा सकता है. और किसी से उम्मीद रही नहीं..

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  14. यही चित्र हर घर की कहानी है, इतनी ध्यानस्थ अवस्था किसी और कार्य में नहीं देखी जा सकती है।

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  15. जूनियर शेर सिंह की शूटिंग की ट्रेनिंग शुरू कीजिए, सब डर निकल जाएगा...

    जय हिंद...

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  16. आज की वास्तविकता है यह. कोई भी परिवार शायद इससे अछूता रहे. बच्चे क्या बड़ों के मन पर भी टीवी पर चल रहे कार्यक्रमों का असर होता है ... अवचेतन पर अंकित होता रहता है ..

    बहुत ही प्रासंगिक पोस्ट.

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  17. बहुत सही मुद्दा उठाया है आपने...
    आप की बातों से सहमत हूं...बच्चों के कोमल मन पर हर बात का गहरा असर होता है.
    लेख बहुत महत्वपूर्ण और विचारणीय है.

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  18. टी वी और फ़िल्में समाज एवं बच्चों पर बहुत गहरा असर छोडती है.
    "वर्तमान पीढी को इस महामारी से कैसे बचाया जाए यह एक यक्ष प्रश्न है।" बच्चों के कोमल मन पर इसका प्रभाव रोकने के लिए अभिभावकों को सजग होना होगा ऐसा करने से पूरी तरह तो नहीं परन्तु कुछ हद तक इसके दुष्प्रभाव से बच्चों को बचाया जा सकता है...
    सार्थक चिंतन.....

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  19. सही मे बच्चों पर बहुत गहरा असर होता है। जो शायद कहीं न कहीं उनके विकास और ज़िन्दगी को प्रभावित करता है। शुभकामनायें।

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  20. सभी आयुवर्ग का माल टीवी पर कभी भी परोस देना ठीक नहीं है. कुछ तो संहिता होनी चाहिए।

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  21. गंभीर विषय उठाया है आपने .बच्चों पर निश्चित रूप से इसका गहरा असर पढता है.

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  22. ये टीवी चैनल वाले देश में हो रहे विकास कार्यों को नहीं दिखा कर केवल हिंसा और अश्लीलता वाले कार्यक्रम परोसते है | इन से बचने का कोइ उपाय भी नहीं है |

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  23. ललित शर्मा जी विवाह की वर्षगाँठ पर हार्दिक बधाई।

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  24. ललित शर्मा जी विवाह की वर्षगाँठ पर हार्दिक बधाई।

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  25. ललित शर्मा जी विवाह की वर्षगाँठ पर हार्दिक बधाई।

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  26. विवाह की वर्षगाँठ पर हार्दिक बधाई।

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  27. विवाह की वर्षगाँठ पर हार्दिक बधाई।

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  28. विवाह की वर्षगाँठ पर हार्दिक बधाई।

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  29. विवाह की वर्षगाँठ पर हार्दिक बधाई।

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  30. विवाह की वर्षगाँठ पर हार्दिक बधाई।

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  31. विवाह की वर्षगाँठ पर हार्दिक बधाई।

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  32. विवाह की वर्षगाँठ पर हार्दिक बधाई।

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  33. वैवाहिक वर्षगाँठ की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

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  34. वैवाहिक वर्षगाँठ की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

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  35. क्या भैया ! आज के दिन तो टी वी को छोड़ बीवी की बात करनी चाहिए थी ।
    वैवाहिक वर्षगांठ आप दोनों को बहुत मुबारक हो ।
    हार्दिक शुभकामनायें ।

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  36. बेहद सार्थक चिंतन जिसपर अतिशीघ्र विचार किया जाना आवश्यक है अन्यथा देश के भावी कर्णधारों की स्थिति अकल्पनीय होगी.........
    सार्थक एवं प्रभावी आलेख के लिए सादर आभार |

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  37. ललित शर्मा जी व श्रीमती शर्मा जी आप दोनों को वैवाहिक वर्षगांठ की हार्दिक बधाई और ढेरों शुभकामनायें.......

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  38. ललित शर्मा जी विवाह की वर्षगाँठ पर हार्दिक बधाई।
    भाई जब तक मेरे बच्चे १८ साल के नही हुये थे, तब तक उन्हे क्या हम सब टी वी दिन मे एक घंटा ही देखते थे, क्योकि बच्चो को मना करे ओर खुद देखे, इस से भी बच्चो पर गलत असर पडता हे, ओर वैसे भी आज कल टी वी पर सिर्फ़ बकवास ही दिखाते हे, अच्छा हे बच्चो को इस बिमारी से दुर ही रखे, ओर मार धाड ओर अंधविशवासी फ़िल्मो से भी बच्चो को दुर रखे, यानि धार्मिक फ़िल्मो से भी दुर, बच्चे जब बडे हो जाये तो वो खुद अच्छा बुरा समझने लगते हे, लेकिन यह उमर बहुत नाजुक हे इस लिये उदय को अभी दुर रखे

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  39. मैंने तो फिल्मे देखना ही बंद कर दिया है.. बच्चों के साथ तो हरगिज़ नहीं. एक फिलम आई थे थ्री इडीअटस, सुना बहुत अच्छी है बाद में जब देखी तब पता चला इसमें भी फूहड़ता की कमी नहीं है बच्चों के साथ देख नहीं सकते.

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  40. बाल मन कोरे कागज की तरह होता है , उस बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है |.......................विचारणीय पोस्ट लिखी है आपने

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