गुरुवार, 6 अक्तूबर 2011

चचा पंचायती लाल मुहल्ले वाले --- ललित शर्मा

चचा पंचायती लाल मुहल्ले के एक ऐसे पात्र हैं, जिनके बिना कोई सामाजिक एवं सार्वजनिक कार्य के सम्पन्न होने की कल्पना ही नहीं की जा सकती। समाज सेवा करना इनका बचपन का शौक है और बढ-चढ कर भागीदारी निभाते हैं। नवरात्रि पक्ष शुरु होने वाला था, मोहल्ले में कई वर्षों से दुर्गा स्थापना नहीं हो पा रही थी। इसका मुख्य कारण चचा का इस आयोजन से अलग हो जाना ही था। चचा दुर्गा स्थापना के आयोजन से अलग नहीं होते, अगर उनके गले खर्च की उधारी नहीं पड़ती। कमेटी के सदस्य चंदे का रुपया हजम कर गए और उधारी चचा के गले पड़ गई। बीबी के गहनों को गिरवी धर कर उधारी चुकानी पड़ी। तब से चचा ने कान पकड़ कर तौबा कर ली कि मोहल्ले के छोकरों के चक्कर में नहीं पड़ेगें। इस वर्ष मोहल्ले के छोकरे चचा को फ़ांसने का उद्यम कर रहे थे। चचा को जाकर उन्होने मनाया कि आपके अलग होने से मोहल्ले की शान खराब हो रही है। दुसरे मोहल्लों में दुर्गा स्थापना का आयोजन हो रहा है और आपके रहते हमारा सूना पड़ा है। चचा पुरानी बातों को भूल कर एक बार फ़िर चने के झाड़ पर चढ गए। उन्हे दुर्गोत्सव कमेटी का अध्यक्ष बना दिया गया और दुर्गा स्थापना की कार्यवाही शुरु हो गयी।

चचा की खासियत है कि जिस काम को हाथ में लेते हैं उसे जिम्मेदारी से करते हैं, चाहे बेगारी हो। सामाजिक कार्य के लिए चंदा मांगने इन्हे कोई शरम नहीं आती। चंदा मांगने के लिए एक से बढ कर एक दोहे गढ रखे हैं। जिस किसी के पास चंदा लेने जाते हैं उसे गरुड़ पुराण की तरह पहले दोहे सुनाते हैं और फ़िर दूहते हैं। कहते हैं - मांगन से मरनो भलो, जो मांगु अपने तन के काज, परमारथ के कारने मोहे न आवे लाज। जब लाज ही त्याग दी तो चंदे का जुगाड़ तो होना ही था। मोहल्ले के लड़के इनके संग चल कर चंदा उगाही में साथ दे रहे थे। परमेश्वर को कोषाध्यक्ष बनाया गया। चंदे के रुपए उसी के पास जमा हो रहे थे। परमेश्वर किसी और ताक में लगा था। चचा सुबह से उसे ढूंढ रहे थे। परमेश्वर मिलने का नाम ही नहीं ले रहा था। होता तो मिलता, मौका और रुपए का सुयोग पाकर वह चंद्रिका के साथ फ़रार हो गया। अब मुर्ति वाला, टेंट वाला, माईक वाला, किराने वाला सबको पैसा चुकाना था। अगर दुर्गा स्थापना नहीं होती तो चचा की नाक कट जाती। कुछ लोग शब्दों की छूरी लेकर प्रतीक्षा में बैठे थे। जिन्होने चंदा दिया था वे चचा का धुर्रा बिगाड़ देते। अब मुड़ पकड़ कर बैठने अलावा चचा के पास दूसरा कोई चारा नहीं था।

संकट के समय अपना ही काम आता है, चचा अपने बचपन के मित्र (मितान) के पास पहुंचे और रोना रोने लगे। मितान ने चचा को दस हजार देते हुए कहा कि - रुपया पैसा की चिंता छोड़ो, पहले काम को निपटाओ, अन्यथा बेईज्जती हो जाएगी। परमेश्वर भाग कर कहाँ जाएगा, उसे एक दिन गाँव में वापस आना ही है। मिलते ही रुपए वसूल लेगें। मितान के एन वक्त पर काम आने से चचा की ठुकाई करने के मंसुबे पाले विरोधियों की योजना पर पाला पड़ गया। चचा ने धूम-धाम से दुर्गास्थापना की और पूजा पाठ चलते रहा। चचा भी सीना तान कर विरोधियों को चिढाते रहे। नवमी को दुर्गा विसर्जन के पश्चात दसमी को दशहरा मनाने की परम्परा है। इस दिन रावण का पुतला जला कर लंका लूटी जाती है। साल भर से लोग दशहरा के त्यौहार का इंतजार करते हैं। इस दिन रावण वध स्थल पर मेला भी भरता है। चाट-गोलगप्पे से लेकर मिठाई और खिलौनों की दुकाने सजती हैं। काफ़ी रौनक रहती है। दशहरा का रावण बनाने का जिम्मा भी चचा के ही गले पड़ गया। चचा चुनौतियों को स्वीकार कर लेते हैं बिना आगा-पीछा सोचे। यही उनकी खास बात है। दुर्गोत्सव में दस हजार की चपत लगने के बाद भी नहीं चेते। काकी ने बहुत समझाया कि इस पचड़े में मत पड़ो। पर चचा न जाने किस मिट्टी के बने थे। "चाहे जूते पड़े हजार, तमाशा घुस के देखेंगे।"

रावण का कद दिनों दिन बढते जा रहा है, हर साल रावण के पुतले का खर्च भी बढ जाता है। चचा ने सामान का जुगाड़ किया, बच्चे-कच्चे सब मिल कर रावण का पुतला बनाने लगे। 10 हंडिया लगा कर दशानन बनाया गया, उसे रंग पोत कर रावण की शक्ल दी गयी। घास फ़ूस भरकर रावण का धड़ भी बन गया। लाल-नीली-पीली पन्नियाँ लगा कर उसे भी स्वरुप दिया गया। अब फ़ायनल टच देना था, रावण के धड़ पर शीश लगाना था। तभी एक सांड गैइया को दौड़ाते हुए आया और गैइया दशानन के शीश उपर आकर गिर पड़ी। जिससे 4 हंडिया फ़ूट गयी। चचा की खोपड़ी भन भना गयी। बना बनाया रायता बिखर गया। सांड भी जान का दुश्मन बन गया। गैइया को दौड़ाना था तो थोड़ी देर बाद दौड़ा लेता, फ़िर रावण की तरफ़ ही दौड़ाने की क्या जरुरत थी। फ़ालतु काम बढा दिया। 4 मुड़ी फ़ूट गयी, फ़िर रोते गाते उन्हे तैयार किया और सुबह हो चुकी थी नहाने धोने चचा घर में घुस गए। रावण दुवारी मे खड़ा था। इधर पता नहीं कहाँ से गायों का झुंड फ़िर आ गया। चचा के आते तक रावण के पैजामे हो ही साफ़ कर गया। अब किस्मत ही खराब हो तो क्या किया जा सकता है।

चचा जब वापस आए तो रावन नंगा खड़ा था, माथा पीट लिया, रावण को नया पैजामा पहनाया गया। सवाल इज्जत का था। एक रात का जागरण करने के बाद रावण तैयार हुआ था। अब चचा ने सोच लिया कि इसे ठिकाने पर लगा दिया जाए। नहीं तो फ़िर कोई समस्या आ सकती है। रावण को मैदान के बीचों बीच खड़ा कर दिया और छुट्टी पाई, शाम को रावण दहन हो जाएगा सोच कर चचा सोने के लिए चले गए। चचा के सोते ही बरसात शुरु हो गयी। घनघोर बारिश हुई, एक घंटे में पानी ही पानी हो गया। रावण बरसात के पानी से भीग गया। शाम को लोग इकट्ठे होने लगे, भीगा हुआ रावण कैसे जलेगा? इस पर चर्चाएं होने लगी। चचा का विरोधी गुट इसे उनकी लापरवाही बता रहा था कि रावण को शाम को खड़ा करना था। तब तक किसी टीन शेड के नीचे रख कर दिया जाता तो भीगता नहीं। साल भर का त्यौहार अब कैसे मनेगा? रावण के भीगने की खबर चचा तक पहुंच गयी थी। वे अब घर से बाहर नहीं निकल रहे थे। विरोधी गुट के लड़के दारु पीकर चचा को गरियाते घूम रहे हैं कि मिल जाए तो उनकी मरहम पट्टी का इंतजाम किया जाए। चचा की खबर ली जाए, हम भी रावण भाटा में खड़े होकर रावण दहन का इंतजार कर रहे हैं। कुछ लोग चिल्ला रहे है कि एक कनस्तर मिट्टी तेल डाल कर रावण को आग लगा दी जाए। रावण को तो हर हाल में जलाना है। भले आतिशबाजी न हो। माहौल की दशा और दिशा सही नजर नहीं आ रही। इसलिए घर की तरफ़ खिसकने में ही भलाई है। आप भी चलिए, फ़ालतु तमाशे में क्या रखा है? बाकी समाचार कल के अखबार में पढ लेगें कि चचा और रावण का क्या हुआ? आखिर चचा पंचायती लाल फ़िर फ़ंस ही गए।

ब्लॉगोदय एग्रीगेटर

16 टिप्‍पणियां:

  1. वर्तमान परिप्रेक्ष्य मे यही सच है कि रावनों ने न जलने के तमाम उपाय और कलाबाज़ियाँ खोज ली हैं। कितने बाबा और अन्ना इसे जलाने के लिए लुकाठा लिए दौड़ा रहे हैं लेकिन ये रावण है कि तू डाल डाल मै पात पात की तर्ज़ पर बचता फिर रहा है।

    जवाब देंहटाएं
  2. बेचारे चाचा की किस्मत ही ख़राब थी ...
    रोचक!

    जवाब देंहटाएं
  3. जब तक आप बता नहीं देते कि चचा कौन हैं तब तक हम आपको ही मान के चल रहे हैं :)

    जवाब देंहटाएं
  4. चचा बेचारे सीधे रहे होंगे नहीं तो आयोजक तो पैसे बना ही लेते हैं। लेकिन हमें खूब आनन्‍द आया।

    जवाब देंहटाएं
  5. रावण का आकार व उसके कारण चचा की गतिविधियाँ भी बढ़नी ही हैं।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत दिलचस्प लेख । समाज में ऐसे चचा भी होते हैं और उनके साथ ऐसा ही होता भी है ।
    वैसे हमारे तीज त्यौहार भी अब ऐसे ही हो कर रह गए हैं ।
    फिर भी दशहरा की शुभकामनायें ।

    जवाब देंहटाएं
  7. रोचक.... चचा बेचारे...
    विजया दशमी की सादर बधाईयां...

    जवाब देंहटाएं
  8. चचा भी कहां फ़िर पंगा पालने पहुंच गये :)

    जवाब देंहटाएं
  9. बेचारे चचा ...खैर हमें तो मजा आया.

    जवाब देंहटाएं
  10. मजेदार घटना... बेचारे चचा...
    ऐसी ही १ घटना भोपाल में हुई थी एक बार विट्ठल मार्केट मैदान में इतना बड़ा रावन बनाया गया की दशहरे के दिन लाख कोशिश के बाद भी वह खड़ा नहीं हुआ, क्रेन तक उसका कुछ न कर सकी और अंत में रावन महाराज लेटे-लेटे ही जले...

    जवाब देंहटाएं
  11. चचा पंचायती लाल की चर्चा मजेदार है . वाकई रावण को मार गिराना इतना आसान नहीं है . इस घोर कलियुग में तो यह और भी कठिन है ,लेकिन संकल्प सच्चा हो , तो यह असम्भव भी नहीं है . देखते हैं आपकी कहानी के अगले एपिसोड में चचा की चर्चा किस मोड़ पर पहुँचती है . विजयादशमी की हार्दिक बधाई और शुभेच्छाएं .

    जवाब देंहटाएं
  12. .बेचारे चचा ...सच में इनकी पंचायती के बिना कुछ नहीं पाता :) ....

    जवाब देंहटाएं
  13. चचा का रोचक किस्‍सा।
    हर शहर हर मोहल्‍ले में ऐसे चचा मिल जाएंगे....

    जवाब देंहटाएं
  14. आनंद आ गया चाचा का हाल सोचकर. रावण भला करे..

    जवाब देंहटाएं
  15. बेचारे चचा...बुरे फसे....अगले साल इन्हें चचा का इंतज़ार रहेगा

    जवाब देंहटाएं
  16. पढ़ कर मजा भी आया और चचा के लिए सजा भी ....

    अब तो चचा तो हफ्ते में एक बार पंचायत में आना ही पडेगा
    हर हाल में

    जवाब देंहटाएं