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अभनपुर जंक्शन |
भाई दूज मनाने का चलन बढा, जब से गाँव के घर-घर में गाड़ियाँ हुई, लोग पहुंच जाते हैं बहन-बेटियों के घर। हाल चाल के साथ साक्षात्कार भी हो जाता है, बहन-बुआ भी खुश कि पीहर से भाई-भतीजा आया है मिलने। बेटी माई की लगन पीहर के लिए सदा लगी रहती है, भावनात्मक रिश्ता सदियों से कायम है, जब-जब कोई त्यौहार आता है तो इनकी याद आ ही जाती है, बचपन के दिन बरबस याद आ जाते हैं, जब साथ मिल कर त्यौहार मनाते थे। पीहर के लिए बेटियों का हृदय उमड़ता रहता है, माता-पिता भाई-भौजाई से मिलने की आस लगी रहती है। कुछ दिनों पहले मेरी मुलाकात मेरे दादा की 107 वर्षीय बड़ी बहन से हुई, पापा की तरह हम भी उन्हे बुआ ही कहते हैं। कहते हैं कि जब तक माँ-बाप हैं तक ही मायका है, उसके बाद तो कोई आए-जाए वही बड़ी बात है। जब मैं उनसे मिलने पहुंचा तो खाट से उठ कर मेरे पास आकर बैठ गयी, पता चला कि मेरे पहुंचने पर कई दिन बाद खाट से उठ कर चली हैं। मायके से पोते की आने की खुशी ने उनमें फ़ुर्ती भर दी। उन्होने मेरा दुलार किया और मेरे साथ आने का बाल हठ करने लगी। उन्हे इस अवस्था में घर तक लाना मुश्किल काम था, लेकिन मायके को देखने की ललक कायम थी, उन्होने मुझसे पुरे परिवार के विषय में जानकारी ली। बड़ा अच्छा लगा उनसे मिलकर और स्नेह पाकर। बड़ी बुआ, बुआ, बहन और बेटियाँ चार पीढियाँ मौजूद हैं।
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खुली खिड़की |
जब से होश संभाला, तब से देख रहा हूँ ,मेरे घर के बगल से छोटी रेलगाड़ी को आते-जाते। जब कोयला वाले इंजन हुआ करते थे, छुक-छुक करती रेल जब सीटी बजाती थी हम दौड़ कर रेल देखने पहुंच जाते थे, सवारियों को हाथ हिला कर टा टा बाय बाय करते, इंजन भी हमें देख कर ढेर सारा धूंवा उगल कर अभिवादन स्वीकार करता। काली टोपी लगाए ड्रायवर और कोयला डालने वाला भी बेलचा थामे हाथ हिलाता। प्रतिदिन का ही काम था, ड्रायवर भी पहचानने लगे थे। कभी एक दो पैसे का सिक्का पटरी पर रख कर उसकी गति भी देखते थे, सिक्का फ़ैल कर चिकना हो जाता। रेल्वे स्टेशन के पास एक ईमली का पेड़ था, कभी स्कूल से बंक मारकर ईमली तोड़ने पहुंच जाते, एक दो पत्थर स्टेशन मास्टर की कुटिया की छत पर गिरते तो वह बाहर आकर चिल्लाता तथा कमरे में बंद करने की धमकी देता। हम डर कर भाग जाते, अगले दिन फ़िर वही हरकतें शुरु हो जाती। स्टेशन मास्टर के बच्चे भी हमारे साथ पढते थे, इसलिए स्टेशन मास्टर उत्पात झेल लेते थे। 112 साल से लगातार इस रेल लाईन पर गाड़ी चल रही है। सड़क मार्ग से साधन होने के कारण ट्रेन में दो-चार बार ही यात्रा करना नसीब हुआ। रायपुर से धमतरी, राजिम के लिए यह छोटी रेल चलती है, अभनपुर आकर एक लाईन धमतरी और दूसरी राजिम के लिए विभाजित हो जाती है, इसलिए अभनपुर जंक्शन रेल के मानचित्र में प्रमुखता से दिखाई देता है। कुछ दिनों बाद यह रेल बंद हो जाएगी, इसकी जगह बड़ी लाईन बनने वाली है।
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छोटी गाड़ी का डिब्बा |
बच्चे रोज रेल को देखते हैं, लेकिन इन्हे इसकी सवारी करने का कभी मौका नहीं मिला। लोग टॉय ट्रेन की सवारी करने मेले ठेले में जाते हैं, हमारे घर के पास से गुजरी ट्रेन में कभी बच्चे बैठे नहीं यही सोचकर निर्णय लिया कि भाई दूज के दिन बुआ जी के घर धमतरी चला जाए, भाई दूज भी मन जाएगी और बच्चे भी छुक-छुक गाड़ी की सैर कर लेगें। अभनपुर से धमतरी पहुंचने में 2 घंटे लगेगें, इसके हिसाब से बच्चों के लिए नाश्ता-पानी रख लेगें। शाम को तय हुआ कि बच्चा पार्टी और मैं सुबह 8 बजे वाली गाड़ी से धमतरी जाएगें और शाम 6 बजे धमतरी से आने वाली ट्रेन से वापसी करेगें। इस तरह एतिहासिक गाड़ी का सफ़र हो जाएगे। पुराने भूले बिसरे स्टेशनों एवं पैसेंजर हाल्ट की याद भी ताजा हो जाएगी। 1985 के आस-पास भाप के इंजन बदल गए, तब से डीजल इंजन चल रहे हैं। गाड़ी की स्पीड भी बढी है, जब डीजल इंजन प्रारंभ हुए थे तब अभनपुर से रायपुर पौन घंटे में पहुंच जाते थे। लेकिन पटरियों की जीर्ण हालत को देखते हुए गति कम कर दी गयी, अब सवा घंटा लग जाता है। ट्रेन भी स्टेशन तक न जाकर तेलीबांधा में ही रोक दी गयी है। बहुत कुछ बदलाव हो चुके हैं। अभनपुर से रायपुर का किराया 5 रुपया और धमतरी का किराया 7 रुपए है।
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हनी |
सुबह जल्दी उठने के बाद बच्चा पार्टी को जगाने लगा। कोई जागने को तैयार नहीं था, आदि ने आँख खोल कर देखा और जाने से मना कर दिया और फ़िर आँखे बंद कर ली। श्रेया-श्रुति के कान पर जूँ नहीं रेंगी, खूब जगाने पर भी नहीं जागी। उदय जाग गया एक आवाज में और तैयार होने बाथरुम में घुस गया। हनी भी जाग गयी, लेकिन हनी को ले जाने से परेशानी होनी थी, वह सुबह से शाम तक बिना श्रेया-श्रुति के नहीं रह सकती थी, मुझे हलाकान करती, उसे मना कर फ़िर सुला दिया, अब उदय और मुझे ही जाना था। स्टेशन पर पहुंच कर टिकिट ली, उदय की आधी और मेरी पुरी टिकिट 11 रुपए की आई। सोचा था कि ट्रेन में भीड़ नहीं होगी, लेकिन भाई दूज का असर इस ट्रेन पर भी दिखा। पहले इस ट्रेन में सिर्फ़ दो डिब्बे ही लगते थे, इसलिए इसे ग्रामीण दूडबिया गाड़ी कहते थे, अब 6 डिब्बे लगते हैं। एक डिब्बे में बैठने की जगह मिल गयी, उदय ने भी खिड़की की सीट संभाल ली। खिड़की से खेत खलिहान, नदी नाले देखने का मजा बच्चों को बहुत आता है, इसलिए खिड़की की सीट पर बैठना उन्हे अच्छा लगता है। उदय नजारों का मजा लेगा और मैने अपने साथ वैशाली की नगरवधू अम्बपाली को ले लिया,डेढ दो घंटे का सफ़र मजे से कट जाएगा।
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स्टेशन पर भाई दूज |
धमतरी,राजिम और रायपुर से आने वाली ट्रेन एक साथ ही स्टेशन पर पहुंचती है। दो महिलाएं धमतरी वाली ट्रेन से उतरी और दो पुरुष रायपुर वाली ट्रेन से, स्टेशन पर जय जोहार हुई भाई बहनों में। स्टेशन की बेंच पर बैठाकर बहनों ने भाईयों को तिलक निकाल कर मि्ठाई खिलाई, स्टेशन पर ही भाई दूज मनी देख कर बम्बई की आपा-धापी याद आ गयी, अब गाँवों पर भी शहरों का असर हो रहा है, समय कम होने पर परम्पराओं के कायम रखने की खुशी भी हैं। ट्रेन स्टेशन तो छूटी तो एक जोड़ा बच्चे सहित ट्रेन पकड़ने के लिए दौड़ने लगा। उन्हे देख कर गार्ड ने ट्रेन रुकवा दी। इस ट्रेन में टी-टी नहीं हैं, गाड़ी संचालन खर्च कम करने के लिए टी टी और क्रासिंग के गेट मेन हटा दिए, जब ट्रेन क्रासिंग पर पहुंच कर रुकती है तो एक गेट मेन ट्रेन से उतर कर गेट बंद करता है तब ट्रेन आगे बढती है। रायपुर से धमतरी तक सभी क्रासिंग पर यही प्रक्रिया अपनाई जाती है। इस ट्रेन के संबंध में एक बार इंडिया टूडे में छपा था कि एक सब्जी वाली का टोकरा गिर जाने के कारण लोको पायलट ट्रेन को 7 किलोमीटर रिवर्स ले आया था। यात्री सेवा की इतनी बड़ी मिसाल पुरे भारत में कहीं नहीं मिलेगी। फ़िर भी लोग रेलसेवा को कोसते हैं।:)
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जानकी बाई |
ट्रेन चल पड़ी, उदय खिड़की से नजारे देख रहा था, भीड़ की धका पेल जारी थी। मेरे सामने एक वृद्धा बैठी थी, उसे पहचानने की कोशिश कर रहा था। थोड़ी देर में दिमाग की बत्ती जल गयी, ह्म्म, ये तो फ़लाने सेठ की नौकरानी जानकी है, दांत झर गया है इसलिए पहचान नहीं पाया, उसने भी मुझे बचपन में देखा था इसलिए वह भी नहीं पहचान पाई, उससे बातचीत चली तो पहचान कर खुश हो गयी, अपने द्वारा सेठ के घर में 40 सालों तक किए गए काम का बखान करने लगी। उसकी यादों के पुराने पन्ने खुल चुके थे, उसके मोहल्ले के आस-पास के पुराने लोगों की चर्चा होने होने लगी। पहला स्टेशन चटौद आ चुका था, गाड़ी रुकी, सवारियाँ चढी और फ़िर चल पड़ी, अगला स्टेशन सिर्री था, साहू बाहुल्य बड़ा गाँव है, कुरुद ब्लाक का। थाना अभनपुर लगता था, शायद अब बदल कर कुरुद या भखारा हो गया हो गया होगा। जानकी बाई की कथा जारी थी, सेठ का गुणगान जारी था। सिर्री से गाड़ी आगे चलने पर एक गाँव अछोटी में गाड़ी के ब्रेक लग गए, यहाँ स्टॉप तो नहीं था पर सवारी को विशेष सुविधा देने के लिहाज से उसके उतरने तक गाड़ी रोक दी गयी। इस रुट पर गाड़ी गार्ड और पायलट की मर्जी से चलती है, रेल्वे के सारे कानून और नियम बस्ते में बंद रहते हैं।
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सरसोंपुरी स्टेशन |
कुरुद से चलकर सरसोंपुरी फ़िर संबलपुर फ़िर डेढ घंटे के भीतर गाड़ी धमतरी पहुंच चुकी थी। धमतरी स्टेशन पर उतर कर बुआ जी के घर पहुंचे। कुछ देर बाद याद आया कि डीआईजी हिमांशु गुप्ता जी भी धमतरी में ही हैं, उन्हे फ़ोन लगाया तो पता चला कि कुछ तबियत नासाज है, मैने फ़िर कभी धमतरी आने पर मिलने का वादा किया। अम्बपाली वैशाली के कानून को धिक्कृत कर रही थी, वैशाली के कानून धिक्कृत कहने के कारण संथागार में उत्तेजना फ़ैली हुई थी, वैशाली ने जनपद कल्याणी का पद ग्रहण करने के लिए तीन शर्तें रख दी थी। उसके पिता महानामन भरी सभा में अपनी बात रख रहे थे। नगर के श्रेष्टी और युवा अम्बपाली के शर्तों को मानने के लिए तैयार थे। गणपति ने आखरी शर्त में संसोधन के साथ अम्बपाली की शर्ते मान ली और महाबलाधिकृत क्रोध के मारे अपने पैर पटक रहे थे। वाद-विवाद के पश्चात महाबलाधिकृत अम्बपाली को शर्ते मानने की सूचना देने नीलपद्मप्रासाद में पहुंच गए। अम्बपाली उनकी खबर ले रही थी और मुझे नींद आ गयी।
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भाई दूज |
शाम 5 बजे नींद खुलने पर पता चला की अम्बपाली की शोभायात्रा सप्तप्रसाद पहुंच रही है, उसका जनपद कल्याणी के पद पर अभिषेक कर दिया गया। इधर हमारी भी वापसी का समय हो रहा था। बुआ जी ने तिलक लगा मौली बांध कर भाई दूज की परम्परा का निर्वहन किया। उदय भी बुआ जी के घर पहली बार पहुंचा था। छुक छुक ट्रेन के माध्यम से मिलन संभव हुआ। स्टेशन पर ट्रेन लग चुकी थी। मै गार्ड से कुछ जानकारी ले रहा था, तभी गोविंद दारु के नशे में हिलते डुलते पहुंचा, मेरे से पा लागी किया और गार्ड को नमस्कार और बोला - पहचाने क्या आप मुझे? गार्ड ने इंकार किया, तो बोला लखन के बहिन दमांद हंव। तो मैने कहा फ़िर टिकिट लेने की क्या जरुरत हैं, बैठो गाड़ी में, पहचान तो बता ही दिए हो। वह ट्रेन में बैठ लिया। भारतीय रेल इस तरह छोटी गाड़ी की सेवा बेरोकटोक 112 वर्षों से दे रही है, जो टिकिट ले उसका भी भला, जो न ले उसका भी भला। गंतव्य तक साधुभाव से बिना किसी भेदभाव के पहुंचा रही है। ईंजन ने सीटी बजा दी मैं, उदय और अम्बपाली चल पड़े गंतव्य की ओर............।
रेल गाडी की छुक -छुक के साथ खेत खलिहानों के बीच से निकलना अब एक पुरानी याद- सा ही लगता है .
जवाब देंहटाएंबहुत सादगी से लिखा आपने पूरा संस्मरण !
सही है ललित भाई छोटी रेलगाडियों के सफ़र का अपना अलग अनुभव होता है जिसे बडी एक्सप्रेस गाडियों मे महसूस नहीं किया जा सकता है।
जवाब देंहटाएंबने चित्रण करे हस महराज भाई दूज के। काल कतेक देरी कर दे रेहेव जी। मुलाकात नई होय पाइस। वइसे सियान मन के जतका दिन के साथ रथे बने च लगथे……
जवाब देंहटाएंबढ़िया लगा छुक-छुक में यात्रा का विवरण|
जवाब देंहटाएंये ऐतिहासिक रेल बड़ी रेल में बदलने वाली है इसकी जानकारी तो नीरज जाट को भी देणी पड़ेगी ताकि वो इस ऐतिहासिक रेल में यात्रा कर अपने इतिहास में भी इसकी यात्रा दर्ज कर सके :)
Gyan Darpan
RajputsParinay
@ भारतीय रेल इस तरह छोटी गाड़ी की सेवा बेरोकटोक 112 वर्षों से दे रही है, जो टिकिट ले उसका भी भला, जो न ले उसका भी भला. --
जवाब देंहटाएंकाश ऐसी सेवा बड़ी रेलगाड़ियों में भी मिल पाती . वाकई मजा आ गया आपकी इस रेल यात्रा का अनुभव पढ़कर .
ए छुकछुकिया के बड आनंद हे ग...
जवाब देंहटाएंएक घं जात रेंहें महूँ... छुकछुकिया बुझा गे...
पता चलिस एक ठन गउ माता हर रद्दा म बईठ गे हे...
ओला उठा के छुकछुकिया फेर चलिस, दू किलोमीटर जाये के बाद पता चलीस उहीच गउ माता हर फेर रद्दा म बईठे हवे...:)))
फेर अच्छा बरनन करे हस...
सादर बधाई...
छुक छुक गाड़ी का सुंदर अनुभव ..बच्चों के लिए भी बड़ों के लिए भी...... :) त्योंहार कई यादें वापस ले आते हैं
जवाब देंहटाएंइस सजीव चित्रण में बहुत आनन्द आया। लेकिन नौकरानी द्वारा सेठजी की प्रसंशा वामपंथियों के लिए तो एक मुद्दा बन जाएगा।
जवाब देंहटाएं''सब्जी वाली का टोकरा गिर जाने के कारण लोको पायलट ट्रेन को 7 किलोमीटर रिवर्स ले आया था।''
जवाब देंहटाएंऐसा होता रहा तो फिर चल चुकी रेल.
त्यौहारों पर रेलगाड़ी में भीड़ का आलम कुछ और ही होता है, और छोटी लाईनों की तो बात ही निराली है, हमने भी कई बार छोटी रेल से एक बार खण्डवा से उज्जैन और कई बार रतलाम से मन्दसौर तक की यात्रा की है, हालांकि रतलाम से मन्दसौर नीमच तक बड़ी लाईन बन गई है, तो शायद छोटी लाईन बंद हो गई होगी, परंतु उज्जैन खण्डवा लाईन तो अभी भी चल रही है।
जवाब देंहटाएंनीरज जाटजी को जरुर बताना चाहिये, शायद उनकी यह छोटी लाईन की यात्रा बाकी है और बाकी रह ना जाये।
जवाब देंहटाएंबडी बुआजी की हुई खुशी का अन्दाज ही लगाया जा सकता है।
प्रणाम
बहन -भाई का मिलन ..भरत -मिलाप से कम नहीं हुआ ....भारतीय रेल जिन्दाबाद --- टी.टी.इ अब रिटायर्ड हो गया हैं ..हा हा हा हा हा ..
जवाब देंहटाएंबिहार में अपने गांव पहुंचने के लिए दो घंटे छोटी लाइन की गाडी में यात्रा करने की जरूरत होती है .. बहुत भीड रहती है इन गाडियों में .. उसमें चढना और उतरना दोनो जंग जीतने के समान है .. चूंकि हम शुरूआती स्टेशन पर चढते हैं .. निश्चिंत से बैठने की जगह मिल जाती है .. सामान सहित उतरने वक्त एक जंग जीतना पडता है .. उस वक्त तक चढने उतरने की रस्साकस्सी और लडाई झगडे देखकर हमारा काफी मनोरंजन हो जाता है !!
जवाब देंहटाएंशानदार यात्रा विवरण।
जवाब देंहटाएंजीवंत विवरण!
जवाब देंहटाएंरेलवे को संस्कृति से जोड़ता सुन्दर आलेख।
जवाब देंहटाएं"जब-जब कोई त्यौहार आता है तो इनकी याद आ ही जाती है, बचपन के दिन बरबस याद आ जाते हैं, जब साथ मिल कर त्यौहार मनाते थे। पीहर के लिए बेटियों का हृदय उमड़ता रहता है..."
जवाब देंहटाएंछोटी रेलगाडियों के सफ़र का अपना अलग ही अनुभव होता है, हर व्यक्ति के चढ़ने -उतरने पर डोलती है नाव की तरह... भाईदूज के वृत्तान्त ने पुरानी यादें ताज़ा कर दी...
मायके के मोह से छुक छुक गाड़ी तक बहुत कुछ बता दिया आपने.और जैसे आँखों के आगे से एक एक मंजर निकल गया.
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा पढ़ना.
छोटी रेलगाडियों के सफ़र का अलग ही अनुभव होता है
जवाब देंहटाएंहमने भी खूब मजे किए हैं इस रूट पर
chhoti gadiyon ke safar me jo aanad hai vo badi express gadiyon me kahan....hamne bhi safar ka bharpoor aanad liya.
जवाब देंहटाएं@ पाबला जी ,
जवाब देंहटाएंआपने इस रूट पर जो भी मजे लिए हों कृपया उनका खुलासा कीजिये वर्ना हम ना जाने क्या क्या सोचने पे मजबूर हैं :)
@ ललित शर्मा ,
अपनी भाई दूज तो मना ली पर उदय की भाई दूज पे वाट लगा दी :)
@ हनी ,
हनी को मुआवजा मिलना चाहिए :)
@ अली जी
जवाब देंहटाएंअब जाने भी दीजिए
काहे 32-34 वर्ष पुरानी यादों को कुरेद रहे :-)
आजकल देश के माटी के बहुत दर्शन करा रहे हो भाई ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लगा यह सादगी भरा संस्मरण और रेल यात्रा का वर्णन ।
सही है , जो ले उसका भी भला जो न ले उसका भी भला (टिकेट) ।
बहुत ही......रोचक यात्रा संस्मरण। सबसे अच्छा लगा स्टेशन पर भाई दूज।
जवाब देंहटाएंललित भइया के आपके बारे में सूना बहूत था ...माफी चाहता हूं आपको पहली बार पढ़ रहा हूं ...कमाल के लिखते हैं ...भाई दूज के साथ धमतरी रुट पर रेलगाड़ी और पुराने लम्हों के साथ...जानकी बाई व दारु के नशे में गोविंद का लाजवाब चित्रण ....सच में टीवी देखने वाले था पर आपके जादुई भरे शब्दों मुझे रोक लिया।
जवाब देंहटाएं@लेकिन मायके को देखने की ललक कायम थी,
जवाब देंहटाएंभावुकता का पूट अच्छा लगा .
बहुत ही शानदार यात्रा विवरण है अंकल.मै भी इस रेलगाड़ी की यात्रा करूँगा आपका संस्मरण पढ़ कर काफी उत्सुकता हो रही है.
जवाब देंहटाएं