बस्तर की धरा किसी स्वर्ग से कम नहीं। हरी भरी वादियाँ, उन्मुक्त कल-कल करती नदियाँ, झरने, वन पशु-पक्षी, खनिज एवं वहां के भोले-भाले आदिवासियों का अतिथि सत्कार बरबस बस्तर की ओर खींच ले जाता है। बस्तर के वनों में विभिन्न प्रजाति की इमारती लकड़ियाँ मिलती हैं। यहाँ के परम्परागत शिल्पकार सारे विश्व में अपनी शिल्पकला के नाम से पहचाने जाते हैं। अगर कोई एक बार बस्तर आता है तो यहीं का होकर रह जाता है। आदिवासी हाट-बाजार, त्यौहार, वाद्ययंत्र, नाच-गाना एवं पारम्परिक उत्सव, खान-पान के साथ महुआ का मंद बस्तर भ्रमण के आनंद को कई गुना बढा देता है। नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के कारण अब पर्यटकों की आवा-जाही कम हो गयी, लेकिन घुम्मकड़ों के लिए कहीं रोक टोक नहीं है। वे बेखौफ़ भ्रमण कर सकते हैं। बस्तर में ही आकर आदिवासी संस्कृति के विषय में विज्ञ हो सकते हैं। बचपन से अभी तक कई बार बस्तर जा चुका हूँ और जो भी बदलाव हुए हैं उसे मैने भी देखा है। बस्तर के निमंत्रण हमेशा तैयार रहता हूँ एक पैर पर।
नया ड्राईवर कर्ण |
एक सप्ताह पहले ही गुजरात भ्रमण कर घर लौटे था। सोचा था कि नव वर्ष घर पर ही मनाया जाएगा। बच्चे भी तैयारी में लगे थे। बरसों पुराने पारिवारिक मित्र चौहान जी का फ़ोन आया कि दंतेवाड़ा देवी दर्शन को चलते हैं। अगर छुट्टी मिल जाती है तो साथ चलेगें। मैने उन्हे अनमने मन से हाँ कह दी। बरसों के बाद मिल रहे थे। श्रीमती जी से जाने के विषय में पूछा तो उन्होने मना कर दिया और मैं अपने काम में लग गया। दुबारा उनका फ़ोन आया कि छुट्टी मिल गयी और वे शुक्रवार 30 तारीख को 12 बजे तक पहुंच रहे हैं। मैने अली सा को जगदलपुर पहुंचने की सूचना दे दी। दोपहर घर से खाना खाकर हम 5 प्राणी चल पड़े बस्तर जिले के मुख्यालय जगदलपुर की ओर। जगदलपुर राष्ट्रीय राजमार्ग 30 पर है। धमतरी होते हुए चारामा के बाद माकड़ी ढाबे में हम रुके। भाभी जी का चाय पीने का मन था। माकड़ी ढाबा भी इस वर्ष अपनी 50 वीं वर्षगांठ मना रहा है। रायपुर से जगदलपुर जाने वाली हर यात्री गाड़ी यहीं रुकती है। इस ढाबे की खीर बड़ी प्रसिद्ध है। हमने चाय से पहले खीर का आनंद लिया। यहाँ की खीर में बारीक चावल और औंटाया हुआ दूध रहता है साथ ही शक्कर की मात्रा कुछ सामान्य से अधिक। माकड़ी से विश्राम करके हम कांकेर की ओर चल पड़े। कांकेर में गाड़ी शहर के बीच से जाती है इसलिए वहां ट्रैफ़िक जाम की स्थिति बन जाती थी। अब यहाँ तालाब के पास से बायपास बना दिया है जो पप्पु ढाबा के पास जाकर मुख्य मार्ग में मिलता है।
हम बायपास से होकर केसकाल घाट की ओर बढते हैं। साथ ही घाट का जंगल भी बढता है। रास्ते के साथ के जंगल अब खत्म हो गए हैं। केसकाल घाट के पास ही कुछ जंगल बचे हैं। पहले यह घाट बहुत ही सकरा था। यह घाट आंध्रप्रदेश, उड़ीसा और बस्तर का प्रवेश द्वार है। पहले जब रास्ता सकरा था तो जब कभी भी इधर से गुजरते थे तो एक-दो गाड़ियां खाई में गिरी जरुर मिलती थी।रास्ता चौड़ा होने के बाद दुर्घटना की आशंका कम हो गयी है। लेकिन वाहन सावधानी से ही चलाने पड़ते हैं। सावधानी हटी दुर्घटना घटी। घाट के उपर तेलीन माता का मंदिर है। गाड़ियाँ यहाँ एक बार रुक कर ही जाती हैं। मंदिर में चढाने के लिए नारियल प्रसाद पास की दुकान में मिलता है। इस घाटी के अन्त में लोक निर्माण विभाग का विश्राम गृह भी है। वहाँ से घाटी का नजारा बड़ा खूबसूरत नजर आता है। जगदलपुर के सर्किट हाऊस इंचार्ज को फ़ोन लगाने से उनका नम्बर नहीं मिला। इसलिए हमने ब्लॉगरिय धर्म निभाया और अली सा को होटल बुक करने के लिए कहा। उन्होने थोड़ी देर बाद फ़ोन करके बताया कि 31 दिसम्बर मनाने वालों के कारण किसी भी होटल में जगह नहीं है। बड़ी मुस्किल से रेनबो होटल में एक कमरा मिला है और उसे आपके नाम से बुक कर दिया है। चलिए तसल्ली हुई, हमने कहा कि ये चारों एक कमरे में टिक जाएगें और हम अली सा के घर। मामला फ़िट हो जाएगा।
कोन्डागांव से बूंदा-बांदी शुरु हो गयी। मौसम खुशगवार हो गया था। नीरज को फ़ोन लगाया तो वह एक जन्मदिन पार्टी में था। वैसे भी उसकी जन्मदिन या शादी पार्टी रोज ही रहती है। हम लगभग 9 बजे रेनबो होटल ढूंढते हुए जगदलपुर शहर में पहुंचे। वहाँ काऊंटर पर पूछने पर बताया कि हमारे लिए एक कमरा बुक है, फ़िर उन्होने दूसरा कमरा भी दे दिया 3 माले पर। होटल में रेस्टोरेंट के साथ बार भी है। नीचे साफ़ सफ़ाई ठीक थी पर उपर जब अपने रुम में पहुंचे तो उसका बुरा हाल था। मेरे रुम में तो हनीमून के फ़ूल बिखरे हुए थे। बैरा ने हमारे कहने पर चादर तकिए बदले। लेकिन रुम में झाड़ू लगाने वाले गायब थे। भाभी जी अड़ी रही कि रुम साफ़ करवाया जाए, ये रुम ठीक नहीं है। उनको रुम बदल कर दे दिया गया। फ़्रेश होकर भोजन के लिए रेस्टोरेंट में पहुंचे वहाँ काफ़ी गहमा-गहमी थी। बाहर से पर्यटक आए हुए थे नव वर्ष मनाने के लिए। मेरा मुड उपर के रेस्टोरेंट में खाने का था। लेकिन ये सब नीचे के रेस्टोरेंट में पहुंच गए। अभी खाने का मुड बना था बच्चे सिर्फ़ सूप पीना चाहते थे। जब सूप आया तो उसमें डबल नमक निकला। जब उसे वापस किया गया तो उसने सूप के एक बाऊल को दो बना दिए और बिल देखा तो उसमें सभी का चार्ज जोड़ दिया।
चचा गालिब याद आ रहे थे, हमने जैसे तैसे खाना खाया, अन्य साथियों को यह रेस्टोरेंट पसंद नहीं आया। वे सूप के डबल बिल के नाम से काउंटर भिड़ गए। मुझे भी मैनेजर पर गरम होना पड़ा। काउंटर का लड़का मुझे जाना पहचाना लग रहा था। लेकिन मैने ध्यान नहीं दिया। जब उसने तुम कहकर बात कि मैने उसे कस के डांट दिया और अपने रुम में चला आया। अली सा ने फ़ोन पर बताया कि दंतेवाड़ा जाने के लिए सुबह जल्दी 6 बजे निकल जाएं तो कुटुमसर और तीरथ गढ के साथ चित्रकूट भी देखा जा सकता है। हमने भी रात को आपस में चर्चा कर ली थी कि सुबह जल्दी उठ कर दंतेश्व्वरी दर्शन के लिए चल पड़ेगें। होटल वाले ने भी सुबह 6 बजे चाय देने की हामी भर ली थी। मैने नेट चालू किया, मेरे डाटा कार्ट की स्पीड अच्छी थी। मैने मेल चेक किया और सोने लगा। कर्ण नेट पर लगा रहा, जब भी मेरी आँख खुलती तो उसे लैपटाप से ही उलझे देखा। मुझे आभास हो गया था कि अब सुबह जल्दी उठकर दंतेवाड़ा जाना संभव नहीं है। सारा कार्यक्रम अभी से विलंब से चलने लगा है। आखिर मैने यही सोचा कि जो होगा सो देखा जाएगा, रात बड़ी प्यारी चीज है मुंह ढांप कर सोईएगा...............
चलिये अब आपके साथ बस्तर की यात्रा करेंगें।
जवाब देंहटाएंप्राकृतिक सोंदर्य हरी भरी वादियाँ, उन्मुक्त कल-कल करती नदियाँ, झरने, वन पशु-पक्षी मन को आकर्षित करने के लिए कम नहीं होते उसपर उन भोले-भाले आदिवासियों का अतिथि सत्कार मन को जरुर मोह लेता होगा... और जानकारी की उत्सुकता है
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपका जबाब नहीं ..
जवाब देंहटाएंछत्तीसगढ के बारे में इतना लिख लिखकर क्यूं ललचाते रहते हैं ??
पहुंच जाएंगे तो खातिरदारी भी करनी होगी हमारी !!
हा हा हा हा .
सच्ची कहे ललित भईया, बस्तर तो बस तर हवे सुन्दरता म... कोनो सानी नी ये एखर... नवा बछर के गाडा गाडा बधई
जवाब देंहटाएंअली सा से मिलने नहीं गये..!
जवाब देंहटाएंपर्यटन को नक्सलवाद खा गया यहाँ पर..
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट पढ़कर बस्तर जाने का बड़ा मन हो रहा है ।
जवाब देंहटाएंअली सा भी आस पास है क्या ?
पर्यटन पर तो सभी आते-जाते हैं,लेकिन यात्रा के अपने हर पल के अनुभवों को याद रखने और उन्हें शब्दों के सांचे में ढाल कर रोचक शैली में लोगों के सामने प्रस्तुत करने की कलाकारी कम ही लोगों को आती है. आप में वो बात है. धारावाहिक यात्रा वृत्तांत की यह पहली किश्त भरोसा दिलाती है कि आगे और भी बहुत कुछ दिलचस्प होगा. नए साल में आपके अब तक के यात्रा वृत्तांत की एक पुस्तक भी आ जाए , यही कामना है .
जवाब देंहटाएंबड़ी खूबसूरती से बस्तर का मनोहारी वर्णन किया है
जवाब देंहटाएंऐसा लगता है कि आपके साथ हमने भी सेर की है प्रस्तुतीकरण बहुत ही अच्छा है।
जवाब देंहटाएं31 दिसंबर का प्रवास-भ्रमण तो माहौल के साथ ही मजेदार होता है.
जवाब देंहटाएंऔर जानने की इच्छा है.तीसरा नं की टिप क्यो हटाया गया !
जवाब देंहटाएं@rakesh tiwari
जवाब देंहटाएंतीसरे नम्बर की टिप लेखक द्वारा हटाई गयी है, मेरे द्वारा नहीं।
@देवेन्द्र पाण्डेय
जवाब देंहटाएंधैर्य रखे भगवन, शीघ्र की मिलवाते हैं।तत्काल मिलन सेवा यहाँ पर है
अभी तो रास्ते मे भी घूमा रहे हो,सामान्य से तनिक मीठी खीर खाते लज्जा न आई? मुझे कहते हो मीठा मत खाना और खुद खाते हो दूसरों को जलाते हो.
जवाब देंहटाएंखेर बस्तर कब पहुंचेंगे अपन.यानि आप ..यानि बस्तर की बाते कब बताओगे? बचपन मे धर्मयुग पत्रिका मे बस्तर के बारे मे खूब छपता था.बस्तर अपने 'घोटलु'(शायद यही नाम है) और अर्धनग्न युवितियों के फोटुओ के कारण दुनिया और खुद अपने देश के लोगों की नजर मे आया था.गलत होऊं तो निसंकोच बताइयेगा.वो भी यही अलग से मेल करके नही.आगामी अंक की प्रतीक्षा मे
नक्सल प्रभावित इस राज्य के बारे में अधिक जानने की उत्सुकता रही है और उस पर आपका रोचक वर्णन लाजवाब !
जवाब देंहटाएंबधाई इस उपलब्धि के लिए .बधाई नए साल की .ललचाता हुआ यात्रा वृत्तांत .
जवाब देंहटाएंलगता है न पूरी होने वाली ख्वाइशों की लंबी फेरहिस्त में छत्तीसगढ़ का नाम भी लिखना पड़ेगा.
जवाब देंहटाएंलाजबाब जानकारी भरी पोस्ट.
जवाब देंहटाएंबस्तर की यात्रा, आपकी जुबानी...मजेदार !
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की शुभकामनाएं।
यहाँ की यात्रा करने का सपना आँखों ने बसा रखा है देखो कब जाना हो? बहुत अच्छा लगा पढ़कर।
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