स्वामी नारायण संप्रदाय द्वारा संचालित कॉले |
गुजरात की राजधानी गांधी नगर में प्रवेश करने पर कीकर के पेड ही दिखाई दिए। हमारा उद्धेश्य था स्वामी नारायण सम्प्रदाय के अक्षरधाम मंदिर को देखना। हम 4 बजे मंदिर के सामने थे। मंदिर पहुंचने पर जिग्नेश ने बताया कि मंदिर के भीतर कैमरा नहीं ले जाने देते। मैने सोचा, अपना मोबाईल तो है, उसने कहा कि मोबाईल ले जाना भी मना है। आप सारा सामान यहीं कार में छोड़ दिया। एक ब्लॉगर के लिए इससे अधिक दुखदाई क्या हो सकता है? हमने मन मसोस कर अक्षरधाम में प्रवेश करना मंजूर किया। मंदिर के प्रवेश द्वार पर पाईपों से भूल-भूलैया जैसे चक्कर बना दिया है। महिलाएं सीधे ही मेटल डिटेक्टर के द्वार में प्रवेश करती हैं और पुरुषों को 7 के भी 70 फ़ेरे लगाने पड़ते हैं तब कहीं जाकर मुख्य द्वार पर परणी परणाई स्वयं की ही बीवी मिलती हैं। मेटल डिटेक्टर के पास बेल्ट अंगुठियाँ, घड़ी आदि भी उतरवा दिए। ऐसी सुरक्षा जाँच पहली बार देखी थी। अच्छा हुआ जार्ज साहब के अमेरिका दौरे के दौरान हुई जैसी खाना तलाशी नहीं हुई।
तलाशी देने के बाद हम मंदिर की ओर चले। गेट के दायीं तरफ़ पुस्तक की दुकान थी। दोपहर का खाया रोटला असर दिखाने लगा था। पानी पी पीकर बुरा हाल था। प्यास बुझती नहीं थी और पेट खाली नहीं था। मुझे खाते वक्त ही शक हो गया था, लेकिन मजबूरी थी जो मिलावटी रोटले खा लिए। मंदिर के रास्ते में आगे बढे तो बांयी तरफ़ मनोरंजन के साधन के रुप में तरह-तरह झूले लगे हुए थे। लोग झूलते हुए चिचिया रहे थे और हम पेट पकड़े। मंदिर के भीतरी प्रवेश द्वार पर भी डंडाधिकारी मौजूद थे, वे निगाहों से एक्सरे कर रहे थे। उसके आगे एक फ़ोटोग्राफ़र का स्टाल लगा हुआ था। नामदेव जी ने उससे फ़ोटो का रेट पूछा तो 8x12 की साईज का 100 रुपए बताया। हमारे यहाँ इस साईज की फ़ोटो कलर लैब में 25 रुपए में बनती है। खुले आम लूट चल रही थी। मैने मना कर दिया कि मुझे कोई शौक नहीं है इस तरह की लूटमार में फ़ोटो खिंचाने का। नामदेव साहब नहीं माने, एक फ़ोटो खिंचवा ही ली खींच तान कर। नामदेव जी ने बताया कि फ़ोटो 6 बजे देगा।
गुरुद्वारा |
मंदिर परिसर में लाईट एन्ड साऊंड शो दिखाया जाता है लेजर लाईट के साथ। उसकी टिकिट 150 रुपए बताई गयी। हमारे आने से पहले ही 2 शो की टिकिट बिक चुकी थी। हम चाह कर भी यह शो नहीं देख सके। जबकि विनोद गुप्ता जी ने विशेष तौर पर इस शो को देखने की सलाह दी थी। मंदिर परिसर में ही बैठ कर फ़ोटो आने का इंतजार करने लगे। गांधी नगर में ब्लॉगर ज्योत्सना पांडे एवं उनके पतिदेव नामदेव पांडे जी रहते हैं। लखनऊ से स्थानान्तरण होने की सूचना उन्होने मुझे दी थी और गुजरात आने पर मिलने का आग्रह किया था। ज्योत्सना जी को फ़ोन लगाने पर पता चला कि वे लखनऊ में हैं और नामदेव जी फ़ोन पर चर्चा हुई तो उन्होने मुंबई में होना बताया। गांधी नगर इनसे मुलाकात टल गयी। मगर हम अभी गांधीनगर से नहीं टले थे।
जैसे-तैसे घड़ी ने 6 बजाए, हम फ़ोटो वाले के पास पहुंचे तो उसने कहा कि फ़ोटो बनकर नहीं आई है। हमने कहा कि 6 तो बज गए हैं, तो उसने पर्ची मांगी उसमें साढे 6 लिखा था। गजब हो गया यार मंदिर मे भी चालबाजी। मैने थोड़ा डांटा तो दो चार लोग और आ गए उसकी सपोर्ट के लिए। तभी मेरी नजर उसके माथे पर पड़ी तो रोली का गोल टीका उसके माथे पर दिखाई दिया। उसके समर्थन करने वाले के माथे पर भी वही टीका था। तब समझ में आया कि माथे पर रोली का गोल टीका स्वामीनारायण संप्रदाय वाले अपनी पहचान के लिए लगाते हैं। वही मैं सोच रहा था कि इनके अनुयाईयों का कोई पहचान चिन्ह क्यों नहीं दिखाई दे रहा है। अगर मुझे मालूम होता कि चालबाजी की हरकत होगी तो मैं फ़ोटो लेने का अपना जुगाड़ भी साथ ले आता। कम से कम यादगार की तौर पर इनकी फ़ोटो तो ब्लॉग पर चिपक जाती।
चालबाजी की हद तो तब हो गयी जब हम साढे 6 बजे फ़ोटो के लिए पहुंचे। तो उसने कहा कि अभी साढे 6 नहीं बजे हैं। मैने अपनी घड़ी दिखाई तो उसने अपनी घड़ी दिखाई जिसमें सवा 6 बजे थे और कहने लगा कि मैं तो अपनी घड़ी के हिसाब से चलता हूँ। अब मेरा मन हो गया था कि इसका मुंह तोड़ दूँ, लेकिन नामदेव जी ने गुस्से को शांत कराने की कोशिश की। बोले और 15 मिनट सही, जब डेढ घंटा खराब कर लिया तो थोड़ा सब्र और कर लेते हैं। सब्र की ............ अगर यही समय मिलता तो हम गांधी नगर में और भी कहीं घूम लेते। इसने तो समय की वाट लगा के धर दी। एक लाल टीकिया सज्जन दिखाई दिए। मैने सोचा कि अब इनका दिमाग चाटे बिना काम नहीं चलेगा। अन्यथा ओव्हर फ़्लो के चक्कर में कई निपट जाएगें।
उनसे मैने अक्षर धाम पर हुए आतंकवादी हमले के विषय में पूछा। तो उन्होने बताया कि तीन आतंकवादी थे और दूसरे गेट तक गोली चलाते हुए आ गए थे। फ़िर वे लायब्रेरी की छत पर चढ गए। मंदिर में मौजूद लोगों ने सारी लाईटे बंद कर दी फ़िर सुरक्षा बलों ने उन्हे लाईब्रेरी से ही मार गिराया। इस हमले में सुरक्षा बलों की जांबाजी से सैकड़ों लोगों की जान बच गयी। एक सिपाही ने शब्द भेदी गोली चलाई तो पहला आतंकवादी मरा। मेरी उन सज्जन से बात चल रही थी, साथ में उनकी सुकन्या भी थोड़ा सा सहारा दे रही थी, मेरी जानकारी में इजाफ़ा हो रहा था। उसने बताया कि आतंकवादी हमले के सभी निशान यहाँ से मिटा दिए गए हैं। मंदिर परिसर में एक बहुत बड़ी लायब्रेरी भी है, जिसमें मंदिर प्रशासन की लिखित अनुमति के पश्चात प्रवेश मिलता है।
हमारे पास समय भी नहीं था लाईब्रेरी तक जाने के लिए। अब फ़ोटो लेने वालों भीड़ लगी थी। फ़ोटोग्राफ़र की घड़ी के हिसाब से समय चल रहा था। हमारी फ़ोटो सबसे अंतिम में मिली। फ़ोटो में भी थोड़ी कारीगरी की गयी थी फ़ोटो शाप से। लेकिन मेरे पास समय नहीं था अब और रुकने का। हम फ़ोटो लेकर सीधे बाहर भागे जैसे किसी कैद से छूटे हों। वैसे बिजली के प्रकाश में मंदिर की छटा निराली थी। हमें तो एक ही लाल टीके वाले ने भुगता दिया। दोपहर के रोटले ने पेट फ़ूला दिया था। उसे 5 घंटे से झेल रहा था। एक जगह गाड़ी रोककर रोटले को बस्ती क्रिया से बाहर किया। तब थोड़ी चैन की सांस आई। हमारे पास अब समय नहीं था कि गांधी नगर और घूमा जाए। दिन भर घूम फ़िर कर थक गए थे। अब बिस्तर ही नजर आ रहा था। खाने की भूख तो मिट गयी थी।
पत्तों में घोंसला बनाते माटरा-चापड़ा |
(अक्षर धाम के चित्र नहीं होने के कारण अन्य चित्रों के साथ पोस्ट) ……… आगे पढें
आपके वर्णन से अपना घूमना याद आ गया..
जवाब देंहटाएंबढ़िया रहा यात्रा वृतांत ..
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया....
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया....
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी... रोचक विवरण...
जवाब देंहटाएंvaah lalit bhai andaze byaan aapka to kuchh or hai maashaallah ....akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंफोटो की कमी तो है.. लेख बढिया है.
जवाब देंहटाएंअक्षरधाम दिल्ली में भी सुरक्षा व्यवस्था बहुत कड़क हैं.....पिछले महीने ही मैं वहां गया था.....मुझे वहां जाकर अक्षरधाम के मंदिर से ज्यादा एक टूरिस्ट प्लेस होने का अहसास हुआ....
जवाब देंहटाएंकाठियावाड़ी खाने का आनंद मैं आजकल रोज ले रहा हूँ.......मसाला खिचड़ी मुझे बहुत पसंद हैं.....रोटले के साथ बैगन भरता खाइए.....मजा आ जायेगा
@Yashwant Mehta "Yash" मैं तो एक बार खाकर ही भुगत लिया। दुबारा खाने की हिम्मत नही।
जवाब देंहटाएंविवरण भी कम नहीं, एकदम सचित्र टाइप.
जवाब देंहटाएंमजा आ गया. तिलक धारियों के समक्ष आपने संयम बरता. बड़ी बात है.
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति ललित जी, मैं इतनी बार गया मगर कभी वहाँ के अक्षरधाम न जा पाया !
जवाब देंहटाएंबढ़िया यात्रावृतांत
जवाब देंहटाएंजिस फोटो के लिए इतने पापड़ बेले , वह कहाँ है भाई.
जवाब देंहटाएंअक्षरधाम दिल्ली में भी है . काफी अच्छा है .
जिस फोटो के लिए इतना समय जाया किया .. वो फोटो कहां है ??
जवाब देंहटाएंसंगीताजी ने सही कहा की--वो अड़ियल फोटू कहाँ हैं जिसने नाको चने चबवा दिए..
जवाब देंहटाएंअरे ,रोटला तो गुजरात का था पर पेट तो छत्तीसगढ़ का था न ? फिर क्यों नहीं संभाला इस चमड़े की जुबान को ????
दो बातें याद रहीं। काठियावाड़ी रोटला और रोली का लाल तिलक।
जवाब देंहटाएंरोचक वर्णन किया है ऐसा लगा की मै पुनः गुजरात पहुँच गई हूँ|
जवाब देंहटाएंयहाँ के स्वामी नारायण मंदिर में भी फोटो लेना मना है.
जवाब देंहटाएंबढ़िया रहा आपका वृतांत.
जिस फोटो के लिए इतना समय जाया किया .. वो फोटो कहां है ??
जवाब देंहटाएंललित भाई जी आपके जीवंत अक्षरधाम यात्रा वर्णन का आनंद रोटले को याद रखा जाये .
जवाब देंहटाएंअद्भुत और यादगार सफ़र
मंदिर का सही चित्रण आभार
ललित भाई जी आपके जीवंत अक्षरधाम यात्रा वर्णन का आनंद रोटले को याद रखा जाये .
जवाब देंहटाएंअद्भुत और यादगार सफ़र
मंदिर का सही चित्रण आभार
ललित भाई जी आपके जीवंत अक्षरधाम यात्रा वर्णन का आनंद रोटले को याद रखा जाये .
जवाब देंहटाएंअद्भुत और यादगार सफ़र
मंदिर का सही चित्रण आभार
आपके अनुभव का लाभ तो लिया ही जायेगा।
जवाब देंहटाएंसभी का अनुरोध है सो उस फोटो को दिखा ही देना चाहिये।
एक तो इतनी उत्सुकता जगा दी और उसे ही नहीं लगाया।
आशा है अगली पोस्ट में दर्शन होंगे।
एक बार मुझे भी ये मंदिर दिखने ले जाया गया था पर मैं अंदर जाने के बजाय बस में खूब आराम से सोया था.. दिल्ली के अक्षरधाम को देखने का भी पांचांग अभी बना नहीं है :)
जवाब देंहटाएं