जिस बीमारी का ईलाज नहीं, उसकी हजारों दवाएं हैं। लाईलाज बीमारियाँ लोगों को दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर करती हैं। ऐलोपैथी के प्रति अभी तक ग्रामीण अंचल में पूरी तरह लोगों को विश्वास नहीं है। थोड़ी सी भी सर्दी जुकाम या हरारत होने पर देव स्थान में जाकर बैगा से झाड़ फ़ूंक करवा लेते हैं। जिससे उन्हे लगता है कि स्वस्थ हो जाएगें। मुफ़्त की सलाह देने वाले बहुत मिल जाएगें, साथ ही दवाई देने वाले बैगा-गुनिया एवं नीम-हकीम का पता बताना भी नहीं भूलते। जब इंसान ऐलोपैथी से हार जाता है तब वैकल्पिक चिकित्सा बैगा-गुनिया तथा झाड़ फ़ूंक का सहारा लेता है। बस इसी समय का फ़ायदा उठाने के लिए बैगा-गुनिया और झाड़-फ़ूकिया मुस्तैद रहते हैं। आया हुआ मुर्गा हाथ से नहीं जाने देते। दुनिया चाँद से होकर मंगल पर पहुंच रही है, पर समाज अंधविश्वास के शिकंजे से बाहर नहीं निकला है। इसकी जड़े बहुत गहरी हैं। लाख जागरुकता अभियान सरकार और सामाजिक संस्थाएं करें, पर लोग रुढियों की जंजीरे नहीं तोड़ना चाहते। बीमार होने की अवस्था में चमत्कार की आस लगाए दर-दर पर माथा घिसते-फ़िरते हैं और अंधविश्वास के कारण जान से हाथ गंवाते हैं। तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। आत्मा का परमात्मा से मिलन हो चुकता है। पीछे बचते हैं रोते-धोते परिजन। नीम-हकीमों पर कोई प्रशासनिक कार्यवाही न होने से इनका धंधा बदस्तूर जारी रहता है।
5 जुलाई 2012 नई दुनिया |
हमारे पड़ोसी मित्र को को किसी ने बताया कि मुझे डायबीटिज हो गयी है। तो वे संध्या काल में मेरे पास आए। वो भी डायबीटिज के शिकार हैं। इस राज रोग के अपने अनुभव बताने लगे। साथ जो दवाईयाँ ले रहे थे उसके बारे में भी जानकारी देने लगे, मैं सुनता रहा। नीम, मेथी, जामुन, गुड़मार इत्यादि मिश्रित नुश्खा भी बताया। अपोलो के डॉक्टर मित्र ने मुझे कहा था कि डायबीटिज के रोग में आप जिस पैथी से ईलाज कराते हैं उसे कभी बंद मत करना। अधिंकाश मरीज बार-बार चिकित्सा पद्धति एवं दवाई बदलने के चक्कर में जान गंवा बैठते हैं और कोई चिकित्सा पद्धति पूर्णत: कारगर सिद्ध होकर सकारात्मक परिणाम नहीं दे पाती। मैने डॉक्टर का मंत्र गाँठ बांध लिया तथा दवाईयों के साथ ही व्यायाम और 5-6 किलोमीटर की सैर जारी थी। एक दिन वही मित्र फ़िर आए और कहने लगे कि दुर्ग में एक ऐसा हकीम है जो एक बार दवाई देता है और खूब मीठा खाने कहता है। एक बार की दवाई से ही डायबीटिज का ईलाज हो जाता है। फ़लाना भी वहीं से दवाई लेकर आया है, उसके बताने पर मैं भी वहाँ गया था। आपको भी जाना चाहिए। वैसे भी मै किसी के दावे को बिना अपने परीक्षण के सही नहीं मानता और न ही इन नीम-हकीमों पर विश्वास करता। फ़िर भी सोचना पड़ा कि एक बार की दवाई लेने से अगर बीमारी ठीक हो जाती है तो रोज-रोज मंहगी चिकित्सा से मुक्ति मिलेगी। यह भी पता चल जाएगा कि दवाई के नाम पर वह वैद्य क्या खिला रहा है। यही सोच कर दवाई लेने दुर्ग जाने का मन बना लिया।
सुबह जल्दी तैयार होकर दुर्ग के लिए चल पड़ा। मुझे मित्र ने बताया था कि बस स्टैंड के पास मस्जिद के निकट जाकर हकीम का पता पूछ लेना, कोइ भी बता देगा। मैने रास्ते में चलते-चलते सोचा कि भिलाई से विश्वनाथन जी को भी साथ ले लिया जाए। जब मेरा ईलाज हकीम की दवाई से हो जाएगा तो वे भी ईलाज से क्यों वंचित रहें? एक से भले दो। रास्ते से ही उन्हे फ़ोन कर दिया कि वे तैयार रहें। भिलाई से हम दोनो साथ ही दुर्ग चले, वहाँ जाकर हकीम का पता पूछा। लोगों ने ठिकाना बता दिया। वहाँ पर हकीम मिले, बोले कि - शक्कर वाला एक लीटर दूध लाए हो? हमने कहा - नहीं। तो बोले यहीं सामने मिलता है उस दुकान में, ले आओ। हम दोनो एक-एक लीटर शक्कर वाला दूध लेकर आए। उनके घर पर काफ़ी लोग थे। जो दवा लेने आए थे। पूछने पर पता चला कि बहुत दूर दूर से आए हैं। केरल से लेकर हरियाणा तक के मरीज मिले। इससे अंदाजा लगा कि डायबीटिज के ईलाज के लिए यह भारत में प्रसिद्ध हो चुके हैं। हकीम ने धमेले (बड़ा बर्तन) में रखी दवाई की दो मुट्ठी दूध में डाली और पी जाने कहा। एक लीटर दूध, वो भी गर्म और खाली पेट पीना बड़ा कष्ट दायी लगा। दूध को पीने पर उसमें मुझे चिरपरिचित गंध एवं स्वाद आया। दवाई को जानने के प्रति मेरी जिज्ञासा बढ गयी। मेरे पूछने पर हकीम ने अपना गुप्त फ़ार्मुला नहीं बताया, लेकिन मैं जान गया। सामने ही दान पेटी रखी थी, हमसे 200-200 रुपए उसमें डालने कहे और वहां पर जिस लड़की ने पानी लाकर दिया था उसे 50-50 रुपए दिलाए। साथ ही बताया कि हम अब जी भर मीठा खा सकते हैं। सिर्फ़ ईमली और बैंगन का परहेज करना पड़ेगा। अन्यथा दवाई काम नहीं करेगी। हम ईलाज करा कर खुशी-खुशी घर आ गए।
घर आने पर साथ में ऐलोपैथी दवाई चलती रही। कुछ दिनों के बाद हाथ की उंगलियाँ सुन्न रहने लगी। डॉक्टर को दिखाया, शुगर लेवल चेक करने पर 478 निकला, डॉक्टर ने एक टेबलेट की जगह तीन टेबलेट लिख दी। हकीम के ईलाज का दुष्परिणाम सामने था। समय पर चिकित्सा मिलने पर किसी बड़े नुकसान से बच गया। कुछ दिनों के बाद गोरखपुर से एक मित्र ने फ़ोन करके इस हकीम के विषय में जानकारी ली। राउरकेला से फ़ोन पर एक परिजन ने पूछा। भारत से कई जगहों से फ़ोन आए। हकीम का इतना वाचिक प्रचार हो गया था कि लोग दूर-दूर से आकर ईलाज कराना चाहते थे। मैने उनको हकीकत बताई, लेकिन लोग मानते कहाँ है? कुछ लोग आखिर आकर ही गए और भुगते भी। कुछ दिनों के बाद हकीम की दवाई के कारण बाहर से आए एक व्यक्ति की दुर्ग में ही तबियत खराब हो गयी। जिसे जान बचाने के लिए भिलाई के सेक्टर-9 दाखिल होना पड़ा। फ़िर सुनने में आया कि हकीम की दवाई से शुगर लेवल बढने के कारण किसी की जान चली गयी। जब यह खबर अखबारों में आई तो प्रशासनिक अमला जागा और जवाहर चौक दुर्ग जामा मस्जिद बाड़ा में रहने वाले शेख इस्माईल वल्द स्व: शेख बहादूर 70 वर्ष के विरुद्ध 5-7 चमत्कारिक उपचार अधिनियम 1954 के अधीन मामला दर्ज किया। उसके पास औषधि एवं प्रसाधन अधिनियम 1940 के तहत दवाई बनाने की अनुज्ञा भी नहीं थी। दवाई को परीक्षण के लिए प्रयोग शाला भेजा। जिसकी रिपोर्ट का पता नहीं चला। यह घटना 3 जनवरी 2012 की है। मामला कलेक्टर के पास कार्यवाही के लिए 5 माह से लंबित है।
4 जनवरी 2012 |
अपराध दर्ज होने के बाद भी हकीम का दवाई देना निर्बाध जारी है। इसके दुष्परिणाम स्वरुप एक व्यक्ति की जान और चली गयी। अनुपपुर मध्यप्रदेश के रामप्रसाद यादव पिता लाभसिह यादव 25 वर्ष की मंगलवार 3 जुलाई 12 को दवाई पीने के बाद रात को तबियत बिगड़ गयी। उसे जिला चिकित्सालय में भर्ती गया, जहां उपचार के दौरान बुधवार को उसकी मृत्यु हो गयी। दुर्ग पुलिस ने मर्ग कायम कर लिया। अंधविश्वास ने एक युवक की जान ले ली। शेख इस्माईल द्वारा शुगर की दवाई दी जा रही है। कई मौते होने के बाद भी प्रशासन ने कोई कार्यवाही नहीं की। न ही लोगों तक दवाई से होने वाली मौतों की सूचना पहुंची। मैने अनुभव किया कि - यहाँ शक्कर वाला दूध पीने से मरीज की शुगर खतरनाक स्तर तक पहुच जाती है। जिसका दुष्परिणाम उसे भोगना पड़ता है। दवाई के सेवन के बाद मुझे नीम की गुठली, मेथी, जामुन की गुठली का स्वाद आया। नीम के तेल की खुश्बू और मेथी का लसलसापन कोई भी जान सकता है। शुगर के मरीजों में भ्रम है कि कड़ूवा खाने पर खून में मीठे का स्तर कम हो जाता है। इसलिए कहीं भी किसी अनजान नीम-हकीम की दवा खाने से पहले सौ बार सोचें, तब निर्णय लें। नीम-हकीम खतरे जान से जहाँ तक संभव हो बचें। अपने चिकित्सक की सलाह अवश्य लें, अन्यथा शुगर बढने से प्राण गंवाना पड़ेगा।
हे भगवान्! पैसे के लिए नीमहकीम कितना नीचे गिर सकते हैं!
जवाब देंहटाएंआपने भी सुना होगा की मिर्गी के इलाज के लिए भभूत देनेवाले ओझा लोग उसमें एलोपेथिक दवाई का चूर्ण मिलकर पहले से ही तैयार रखते हैं.
नीम हकीम खतरे जान ...
जवाब देंहटाएंसबसे बेहतर नियमित इलाज है.
इसी मर्ज का मरीज मैं भी हूँ.
ऐसे हकीम बहुत खतरनाक हैं। जनता में जागृति की कमी तो है ही, ग़रीबों के पास तो इलाज के साधन भी कम ही हैं। जाने प्रशासन इतने लम्बे समय तक सोता क्यों रहता है।
जवाब देंहटाएंराह दिखाता, फिर भटकाता भरोसा.
जवाब देंहटाएंकोई तो वैज्ञानिक आधार हो, इलाज का..कोई भी दवा ले लेने से तो नुकसान ही होगा..
जवाब देंहटाएंoh...kab log samjhenge ...
जवाब देंहटाएंARE "DADA" KAHIN SE BHI DAVAI LE LOGE TO AISA HI HOGA NA,..
जवाब देंहटाएं..............................................
LALIT JI APKE LIYE MAINE APNA BLOG UPDATE KAR DIYA HAI. OR KOI TO PADNE VALA HAI NAHIN..
AAP HI PAD LIJIYE..
http://www.yayavar420.blogspot.in/
जागरूक करने वाली पोस्ट .... बिना सोचे समझे नीम हाकिम पर भरोसा नहीं करना चाहिए
जवाब देंहटाएंये नीम हकीम तो बस आपना परिवार पालते है भले ही उनके इलाज से किसी का जान जाये तो उसे क्या? और आम जन भी इनकी बातो में जल्दी से विश्वास कर लेते है
जवाब देंहटाएंबहुत ही सचेतक जानकारी इसके लिये आपका आभार
ये लोग समाज के अपराधी हैं, इनसे बच कर की रहा जाए.
जवाब देंहटाएंजागरूक करने वाली पोस्ट
जवाब देंहटाएंचमत्कारिक डॉक्टर और चमत्कारिक इलाज --दोषी कौन ? नीम हकीम डॉक्टर या मरीज़ ?
जवाब देंहटाएंऐसे लोगों को सजा मिलनी ही चाहिए,,,,
जवाब देंहटाएं,
RECENT POST...: दोहे,,,,
बीमार तो ठीक होने की चिंता में कही भी पहुँच जाता है ...
जवाब देंहटाएंजागरूकता आवश्यक है !
.
जवाब देंहटाएंललित जी , आपकी पोस्ट में दो पृथक विषयों पर चर्चा है। एक 'पैथी' और दूसरा है 'नीम-हकीम-डाक्टर' ।
पोस्ट को पढ़कर प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो 'पैथी' पर चर्चा हो रही हो और एलोपैथी के सिवा अन्य सभी चिकित्सा पद्धतियाँ 'नीम हकीम' की श्रेणी में आती हों।
यदि नीम-हकीम ( तथाकथित डाक्टरों ), की बात कर रहे हैं आप , तो वे फर्जी लोग किसी भी पद्धति को अपनाकर , उसके साथ उस पद्धति को ही बदनाम कर देते हैं।
अतः पढ़े लिखे लोगों को चाहिए, की वे अनपढ़ों को पहचाने , तथा किसी पैथी के प्रति द्वेष न रखें। वैसे पढ़े-लिखे लोग इतने जागरूक हैं की वे गवारों की तरह झाड-फूंक वालों के पास नहीं जाते । विज्ञान के विस्तार के साथ चिकित्सा बहुत सुलभ हो गयी है आजकल ।
मुझे तो होमियोपैथिक , आयुर्वेद और एलोपैथी , तीनों में ही बराबर विश्वास है। लेकिन एलोपैथिक दवाईयों के साईड-इफेक्ट्स देखते हुए, उसका उपयोग बहुत ज़रूरी होने पर ही करती हूँ , अन्यथा नहीं।
आपने कडवी-मीठी आयुर्वेदिक दवाईयों का जिक्र कुछ derogatory अंदाज़ में किया है। जबकि यथार्थ तो ये है की आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में "षड रसों ' का वर्णन है। मधुर, तिक्त, कषाय आदि आदि...। नीम हकीम इसे खट्टा-मीठा कहकर दुष्प्रचारित करता है जबकि डिग्रीधारी आयुर्वेदिक फिजिशियन , उस द्रव्य में उपस्थित रसायनों के आधार पर , उसके गुण-धर्म को समझकर ही उसे prescribe करता है। करेला हो अथवा लशुन, दालें हों अथवा शाक-भाजी, सभी के अन्दर उनके रसायन और उपयोगी तत्व मौजूद होते हैं। जिनकी जानकारी उसके सही प्रारूप में उस पद्धति के चिकित्सक के पास होती है। और वही उसका सही उपयोग जानता है।
अतः पढ़े-लिखे, नॉन-मेडिकल लोगों को अन्य चिकित्सा पद्धतियों का सम्मान करते हुए , उसके जानकार/विशेषज्ञ चिकित्सक के पास ही जाना चाहिए। दादी-नानी के नुस्खों से काम नहीं चलेगा।
.
..kuchh log chamtkar par hi bhrosa karate hai.jo gupt hai anjana hai behtar hai isi karan chmtkaro ka dhandha aadim kal se badstur jari hai aur pratyek yug me falata-fulata raha. logo ko jagruk karane ka apka karya stutya hai
जवाब देंहटाएंबढ़िया पोस्ट लिखी ललित भाई , पता नहीं कितने लोग इन हकीमों के चक्कर में अपनी जान देते हैं !
जवाब देंहटाएंआभार आपका !
बेहतर यही होगा कि हम अपने शरीर को प्रयोगशाला ना बनायें और उचित चिकित्सा पद्धतियों से अपना इलाज़ करायें... ऐसी गलती और कोई ना दोहराए. सावधान करता आलेख... आभार आपका
जवाब देंहटाएंसजग करता लेख शासन को कड़ा रुख अपनाना चाहिए ..सदैव की भांति प्रणाम स्वीकार करें .
जवाब देंहटाएंआपने तो सही बात लिख ही दी. नीम हाकिम खतरे जान.
जवाब देंहटाएंवर्तमान में जो कुछ भी इलाज के नाम पर चल रहा है वह हमारी अज्ञानता का प्रतीक है ....हमने बेशक वैज्ञानिक उन्नति कर ली लेकिन अंधविश्वासों से अभी तक हमरा मोह नहीं छुटा है ...बेहतर पोस्ट ...!
जवाब देंहटाएं