रविवार, 8 जून 2014

अमरकंटक : कर्ण मंदिर

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धूप का कहर बढ चुका था, 10 बजे ही सूरज आग के गोले बरसाने लगा था। बाबा, बिरला और बाक्साईट का असर अमरकंटक के मौसम पर भी दिखाई देने लगा है। गर्मी के मौसम में अमरकंटक सूरज की मार से अप्रभावित रहता था। अंधाधूंध वनों की कटाई, बाक्साईट की खुदाई और बाबाओं की जमाई ने यहाँ गर्मी बढा दी। 
जरा देख लिया जाए स्नैप : प्राण चड्डा जी
फ़िर भी शाम का मौसम ठीक ही रहता है। रात को पंखा चलने पर कंबल सुहाता है। अमरकंटक के पर्यावरण को हो रही हानि यही पर ठहर जानी चाहिए। अन्यथा यह स्थान भी गर्मी के मौसम में भ्रमण करने के लायक नहीं रहेगा। मेरे बाहर आते तक चड्डा जी कुंड के समीप वृक्ष के नीचे बैठ कर विश्राम कर रहे थे, मैं भी धूप से बचने के लिए थोड़ी विश्राम करने लगा।
नर्मदा नदी का विहंगम दृश्य
चर्चा के दौरान चड्डा जी कहने लगे - पहले सभी तीर्थ यात्री नर्मदा कुंड में ही स्नान करते थे। वहाँ स्नान बंद करने के बाद बाहर बने हुए इस कुंड में स्नान करते हैं। जब कुंड की धार पतली होने लगी तो नर्मदा उद्गम पर संकट मंडराने लगा। इस संकट से वाकिफ़ होने पर कोटा विधानसभा के विधायक एवं पूर्व विधानसभा अध्यक्ष छत्तीसगढ़ स्व: डॉ राजेन्द्र प्रसाद शुक्ला ने 20 वर्ष पूर्व यहाँ पर एक कार्यक्रम करवाया, जिसमें अजय (राहुल) सिंह भी उपस्थित हुए। मुद्दे पर गंभीरता से विचार विमर्श होने पर स्नान के लिए पृथक कुंड एवं अन्य घाट बनाने का निर्णय लिया, यह कार्य वर्तमान में फ़लीभूत दिखाई देते हैं तथा नर्मदा कुंड को नवजीवन मिल गया।
पंच मठ 
हमारा अगला पड़ाव था कर्ण मंदिर समूह। यह मंदिर समूह तीन स्तरों पर है। परिसर में प्रवेश करते ही पंच मठ दिखाई देता है। इसकी शैली बंगाल एवं असम में बनने वाले मठ मंदिरों जैसी है। इससे प्रतीत होता है कि यह स्थान कभी वाममार्गियों का भी साधना केन्द्र रहा है। इस तरह के मठों में अघोर एकांत साधनाएँ होती थी। पंच मठ के दाएँ तरफ़ कर्ण मंदिर एवं शिव मंदिर हैं। शिवमंदिर में श्वेतलिंग है तथा इससे समीप वाले मंदिर में कोई प्रतिमा नहीं है। 
जोहिला मंदिर
इन मंदिरों के सामने ही जोहिला मंदिर एवं पातालेश्वर शिवालय है। इसके समीप पुष्करी भी निर्मित है।, इन मंदिरों से आगे बढने पर उन्नत शिखर युक्त तीन मंदिरों का समूह है जिनका निर्माण ऊंचे अधिष्ठान पर हुआ है। यहाँ भी कोई प्रतिमा नहीं है तथा द्वार पर ताला लगा हुआ है। इन मंदिरों का निर्माण बाक्साईट मिश्रित लेट्राईट से हुआ है। 
विष्णु मंदिर
पातालेश्वर मंदिर, शिव मंदिर पंचरथ नागर शैली में निर्मित हैं। इनका मंडप पिरामिड आकार का बना हुआ है। पातालेश्वर मंदिर एवं कर्ण मंदिर समूह का निर्माण कल्चुरी नरेश कर्णदेव ने कराया। यह एक प्रतापी शासक हुए,जिन्हें ‘इण्डियन नेपोलियन‘ कहा गया है। उनका साम्राज्य भारत के वृहद क्षेत्र में फैला हुआ था। 
पातालेश्वर
सम्राट के रूप में दूसरी बार उनका राज्याभिषेक होने पर उनका कल्चुरी संवत प्रारंभ हुआ। कहा जाता है कि शताधिक राजा उनके शासनांतर्गत थे। इनका काल 1041 से 1073 ईस्वीं माना गया है। वैसे इस स्थान का इतिहास आठवीं सदी ईस्वीं तक जाता है। मान्यता है कि नर्मदा नदी का स्थान निश्चित करने के लिए सूर्य कुंड का निर्माण आदि शंकराचार्य ने करवाया था।
शिव मंदिर
नर्मदा कुंड के पीछे की तरफ़ बर्फ़ानी बाबा का आश्रम है तथा कर्ण मंदिर समूह के उपर की तरफ़ गायत्री मंदिर निर्मित किया गया है। बाकी अन्य दर्शनीय स्थल भी हैं, जिन्हे वाहन द्वारा देखना ही संभव है। कपिलधारा नर्मदा नदी का पहला झरना है। जो लगभग 100 फ़ुट उपर से गिरता है, वर्तमान में निर्माण के कारण यह सूख गया है। एक पतली सी धारा गिरते हुए दिखाई देती है। जैसे लगता है कि इससे सिर्फ़ पानी का एक गिलास भरा जा सकता है। 
कर्ण मंदिर
कपिलधारा डिंडोरी जिले के करंजिया जनपद के अंतर्गत है। इसके आगे दुधधारा है। जहां उपर से गिरता हुआ पानी दूध जैसे शुभ्र दिखाई देता है। इसके साथ ही विगत 10 वर्षों से तीर्थंकर आदिनाथ मंदिर का भी निर्माण हो रहा है। यह विशाल एवं भव्य जैन मंदिर लगभग 1 अरब रुपए की लागत से बन रहा है। ……  आगे पढें

9 टिप्‍पणियां:

  1. अमरकंटक यात्रा की यादें ताजा हो गयीं।

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  2. महाकवि कालिदास के आम्रकूट के जंगल में आज भी आम की आदिम प्रजाति है,फल छोटे पर मीठे,,आमतौर पर ये चूसकर खाने वाले आम हैं ,,उनके ऊँचे पेड़ों पर परिंदों का बसेरा है जब शिवरात्रि पर मेला लगता है तो इसकी छाँव तले ग्रामीण भोजन बनाते है,,ये पेड़ इन मंदिरों के इर्द-गर्द भी अपना वजूद बनाये हैं,

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  3. महाकवि कालिदास के आम्रकूट के जंगल में आज भी आम की आदिम प्रजाति है,फल छोटे पर मीठे,,आमतौर पर ये चूसकर खाने वाले आम हैं ,,उनके ऊँचे पेड़ों पर परिंदों का बसेरा है जब शिवरात्रि पर मेला लगता है तो इसकी छाँव तले ग्रामीण भोजन बनाते है,,ये पेड़ इन मंदिरों के इर्द-गर्द भी अपना वजूद बनाये हैं,

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  4. अमरकंटक यात्रा के दौरान सुन्दर धार्मिक स्थलों का सचित्र वर्णन बहुत अच्छा लगा

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  5. bahut hi sundar chitr . ! yaade taaza ho gayi . ek do mandir nahi dekha hia shaayad !

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  6. सही कहा है आपने "अमरकंटक के पर्यावरण को हो रही हानि यही पर ठहर जानी चाहिए। अन्यथा यह स्थान भी गर्मी के मौसम में भ्रमण करने के लायक नहीं रहेगा। " आपकी चिंता जायज़ है भीषण गर्मी इसी का नतीजा है . सुन्दर चित्रों के साथ बहुत अच्छी जानकारी।

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  7. मनुष्य की लोलुपता के कारण पर्यावरण विनाश नहीं रूक पाएगा

    चित्रों ने आलेख का महत्व बढ़ा दिया

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  8. सभी प्राकृतिक स्थान दुसित होते जा रहे है।
    और इसका कारण मनुष्य है। हमे समझना होगा
    अगर ऐसा ही चलता रहा तो सभी कुछ समाप्त हो
    जाएगा जो गंदगी नदियों में बहाई जा रहे है।यह आगे चलके बहुत बड़ी आपदा बन जाएगी और इसके कहर को हमे झेलना पड़ेगा

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