शुक्रवार, 2 सितंबर 2016

आरंग का भांड देऊल जैन मंदिर

छत्तीसगढ अंचल में जैन धर्मावलंबियों का निवास प्राचीन काल से ही रहा है। अनेक स्थानों पर जैन मंदिर एवं उत्खनन में तीर्थंकरों की प्रतिमाएं प्राप्त होती हैं। 

सरगुजा के रामगढ़ की गुफ़ा जोगीमाड़ा के भित्ति चित्रों से लेकर बस्तर तक जैन उपस्थिति दर्ज होती है। चित्र में दिखाया गया मंदिर रायपुर सम्बलपुर मार्ग पर 37 वें किमी पर रायपुर जिला स्थित आरंग तहसील का 11 वीं सदी निर्मित "भांड देऊल" मंदिर का है। 
भांड देऊल मंदिर आरंग
भांड देवल मंदिर आरंग
ऊंची जगती पर बना पश्चिमाभिमुखी भाण्ड देवल" इस श्रृंखला में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। ताराकृत शैली में बने इस जैन मंदिर के गर्भगृह में 6 फ़ुट ऊंची पीठिका पर श्रेयांशनाथ, शांतिनाथ एवं अनंतनाथ तीर्थकंरों की ओपदार पालिश युक्त काले पत्थर से निर्मित तीन प्रतिमाएं स्थापित हैं। मंदिर की बाहरी भित्तियों पर अनेक प्रतिमाएं स्थापित हैं, जिनमें मिथुन मुर्तियों को प्रमुखता से स्थान दिया गया है।
तीर्थंकर जैन
जैन तीर्थंकर श्रेयांशनाथ, शांतिनाथ एवं अनंतनाथ
आरंग जैन धर्म का महत्वपूर्ण केन्द्र रहा है। भांड देउल के अतिरिक्त सभी मंदिरों शैव, वैष्णव धर्म के देवों के साथ-साथ जैन तीर्थकंरों की प्रतिमाएं भी विद्यमान हैं। चण्डी मंदिर में 6 जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएं भी हैं। हनुमान मंदिर की बाह्य भित्तियों पर सोमवंश कालीन ब्राह्मण प्रतिमाओं के साथ कायोत्सर्ग मुद्रा में एक जैन तीर्थंकर भी हैं। 

आरंग में पारदर्शी स्फ़टिक प्रस्तर की तीन पद्मासन तीर्थंकरों की प्रतिमाएं चांदी के सिंहासन पर स्थापित प्राप्त हुई हैं जो रायपुर के दिगम्बर जैन मंदिर में स्थापित हैं। उन्हें देखने का अवसर मुझे प्राप्त हुआ है। इन प्रतिमाओं का निर्माण कुशल शिल्पी के द्वारा हुआ प्रतीत होता है।
भांड देऊल मंदिर आरंग की मिथुन मूर्तियां
मिथुनांकन
आरंग प्राचीन काल से महत्वपूर्ण नगर रहा है और वर्तमान में भी ऐतिहासिक एवं पुरातत्वीय दृष्टि से महत्वपूर्ण बना हुआ है। क्योंकि यहां से कई उत्कीर्ण लेख प्राप्त हुए हैं जिनमें चौथी शताब्दी का ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण राजर्षितुल्य कुल के भीमसेन द्वितीय का गुप्त संवत 182 (501ई) ताम्रपत्र है तथा शरभपुरिया वंश के जयराज द्वारा अपने शासन काल में जारी ताम्रपत्र इसकी प्राचीनता की पुष्टि करता है। 

किंवदन्तियों में इसे मोरध्वज की नगरी भी कहा जाता है। लोकगीतों में गाये जाने वाली प्रेम कहानी "लोरिक चंदा" का गृह भी आरंग को माना जाता है। जबकि यह प्रेम कहानी प्रदेश की सीमाओं से बाहर अन्य प्रदेशों में गाई जाती है। इस तरह प्राचीन काल में आरंग एक महत्वपूर्ण नगर एवं राजर्षितुल्य कुल की राजधानी रहा है

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी व महत्वपूर्ण जानकारी ... छत्तीसगढ़ ऐतिहासिक एवं पुरातत्वीय सम्पदा का धनी है, कितना कुछ है इस प्रदेश में जिसे आपकी लेखनी और चित्रों ने सभी के सामने लाकर रख दिया है. जितना देखो, घूमो। बहुत - बहुत आभार आपका...

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "नाम में क्या रखा है!? “ , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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