मित्रों गत सप्ताह मैने प्रख्यात चित्रकार डॉ डी डी सोनी के साक्षात्कार का प्रथम भाग प्रस्तुत किया था। आज उसी कड़ी को आगे बढाते हुए चलते हैं और उनसे कुछ प्रश्नों के जवाब लेते है।
ललित.कॉम:-अभी भारत में चित्र कला को लेकर विवाद काफ़ी गहराता जा रहा है। प्रख्यात चि्त्रकार एम एफ़ हुसैन ने हिंदु देवी देवताओं का नग्न चित्रण किया है तथा उनके एक चित्र में भारत के मानचित्र को एक नग्न महिला का रुप दिया गया है। क्या इस तरह की चित्रकारी सही है? मैं आपका मंतव्य जानना चाहता हूँ।
डॉ.डी.डी.सोनी:- मकबुल फ़िदा हुसैन साहब के साथ मैने काम किया है, जब ग्वालियर मेला भरता था, तब मुझे उनके साथ काम करने का मौका मिला है, निश्चित तौर पर वे महान चित्रकार हैं, आज वे बहुत ही उंचे मुकाम पर हैं, मै उन्हे नमन करता हुँ। जब चित्रकार चित्रांकन करता है तो वह किसी जाति धर्म या पंथ से जुड़ा हुआ नही होता, वह सिर्फ़ एक कलाकार है, अपना सृजन करता है। चुंकि वे मुसलमान हैं इसलिए बात ज्यादा उठी, लेकिन इसे कम किया जा सकता या इसे इतना उभारना नही चाहिए था। इसमें संशय है कि क्या यह काम जानबुझ कर किया गया? अगर जानबुझ कर किया गया तो गलत है, कलाकार को स्वतंत्रता होती है पर ये स्वतंत्रता नही होती कि किसी के आराध्य देव की पेंटिंग्स में न्युड बनाया जाए।
ललित.कॉम:-मनुष्य के जीवन में कई पड़ाव आते हैं,रंग जीवन में अद्भुत छटा बिखेरते हैं, जो दृश्य हम देखते हैं उसे अपने काम का विषय बनाते हैं किसी ने कहा है कि--चित्रकार कवि चोर की गति है एक समान, दिल की चोरी चित्रकार कवि करे लुटे चोर मकान", तो कभी आपने किसी का दिल चुराया या किसी ने आप पर अपना दिल न्योछावर किया? ये बताएं?
डॉ.डी.डी.सोनी:- ऐसी घटनाएं कलाकारों के साथ घटित आम बात है, कोई हमारा काम देखकर आनंदित हो जाता है, स्टेज पर आकर गले लग जाता है, कोई चूम ले्ता है, कोई उत्साहित होकर कंधों पर उठा लेता है, तो सोचना पड़ता है कि ईश्वर की हम पर विशेष कृपा रही है, कई बार तो मेरी पत्नी के सामने ही ऐसी घटनाएं हो गयी हैं लेकिन समझदार पत्नी मिलने के कारण गृहस्थी बनी रही। चाहे किसी भी क्षेत्र का कलाकार हो, उसके लिए यह सब साधारण सी बातें हैं।
ललित.कॉम:- मैं एक बात पुछना भुल रहा था कि हुसैन साहब की पेंटिंग्स में घोड़े बहुत दौड़ते हैं, मैने फ़्रायड का मनोविज्ञान भी पढा है, वे इस पर अपना दृष्टिकोण रखते हैं। लेकिन हुसैन साहब घोड़ों के रुप में क्या प्रदर्शित करना चाहते हैं? इस विषय पर कुछ प्रकाश डालें।
डॉ.डी.डी.सोनी:- चित्रकारी के प्रारंभिक दिनों में मुझे इसकी समझ नही थी, लेकिन जैसे जैसे चित्रकारी में डूबता गया तो सब समझ आने लगा। इस विषय पर मै हसैन साहब की तारीफ़ करुंगा कि उन्होंने चित्रकारी में घोड़ों का प्रयोग किया। पावर शेर, चीते, लैपर्ड,गेंडे तथा अन्य जानवरों में भी होता है। लेकिन वह हिंसा के लिए होता है। घोड़ा एक समझदार और खुबसूरत जानवर है, जो अपने पावर का उपयोग बड़ी खु्बसुरती से करता है, इसके नाम से बल का नामकरण हार्स पावर कि्या गया। यह संतुलित रचनात्मक शक्ति का प्रतीक है। यह सेक्स का सबसे बड़ा खुबसूरत प्रतीक है, धनवान हो, निर्धन हो या विद्वान हो, अगर उसमें सेक्स पावर नही है तो अपनी ही निगाहों से गिर जाता है। इसीलिए हम सेक्स पावर को दिखाने लिए खु्बसूरती से घो्ड़ों का उपयोग करते हैं। हुसैन साहब ने घोड़ों के रुप में एक बहुत ही अच्छा माध्यम चु्ना पेंटिंग के लिए सेक्स पावर को प्रदर्शित करने के लिए।
ललित.कॉम:-आपके जीवन में कोई ऐसी घटना घटी हो जो आपको आज तक गुदगुदाती हो या चेहरे पर हंसी लाती हो। यदि ऐसा कुछ संस्मरण है तो बताएं
डॉ.डी.डी.सोनी:-यह घटना भी हमारे हार्स पावर से जुड़ी हुई है हमारे मामाजी दुकान करते थे और बाजारों में जाकर सामान बेचते थे। एक दिन उन्होनें मुझे कहा कि आज तुमको घोड़े पर बैठ जाओ मैं मोटर सायकिल से आ जाउंगा। पहाड़ी पगडंडी थी जिस पर हमें जाना था, मुझे घोड़े पर बैठा दिया गया और हम चल पड़े, रास्ते में बहुत से लोग बाजार जाते हुए मिले कुछ लड़कियाँ भी बाजार जा रही थी। मेरे को चिल्ला रही थी मुन्ना ओ मुन्ना तुम अकेले ही घोड़े पर जा रहे हो, तभी अचानक ही सामने गड्ढा आया और उसमें घोड़े का पैर धंस गया। जैसे ही घो्ड़े का पैर धंसा, मेरी तो समझ में नही आया क्या हुआ लेकिन मैं घो्ड़े के उपर से उछल कर उसके सामने जा खड़ा हुआ। लोगों की भीड़ लग चुकी घोडा चोटिल हो गया था. उसके पैर को खींच कर निकाला गया. उससे खून निकल रहा था. मैंने एक मिटटी लगा कर उसे बाँधा और दुकान में पहुंचा. मेरे पहुँचने से पहले ही खबर लग गई थी. मेरी बहादुरी के किस्से पहुँच चुके थे कि क्या तुम्हारे भानजे ने घोड़े पर से छलांग लगाई है कि मत पूछो? जब कि मुझे मालूम है कि सब कुछ स्वत: घट गया था. उस दिन मामाजी ने भी शाबाशी दी कि दुर्घटना होने के बाद कीमती समान को घोड़े के साथ लेकर आ गया. उस दिन मुझे लगा कि मैं हीरो बन गया हूँ. इस घटना की याद आते ही आज भी मन प्रसन्न हो जाता है.
ललित.कॉम:- शायद इसे ही कहते हैं "हपट परे तो हर-हर गंगे", हा हा हा.......वर्तमान समय में हम देख रहे हैं कि चित्रकारी पर संकट मंडरा रहा है. हाई रेजुलेशन कैमरे आ चुके हैं उन कैमरों के चित्रों की प्रदर्शनी लगती है. पहले फिल्मों के पोस्टर, बैनर, दुकानों के साइन बोर्ड, विज्ञापन के बोर्ड इत्यादि बना करते थे इनसे चित्रकारों को रोजगार मिल जाता था जीविकोपार्जन के लिए. अब यह काम कंप्यूटर से होने लगे, फ्लेक्स बनाने लगे. यह काम चित्रकारों के हाथ से निकल गया. मैंने पुरे भारत का दुआर किया और जाना कि जो हमारे चित्रकार हैं उनके सामने अब रोजगार कि समस्या खड़ी हुयी है. इन विषम परिस्थियों में आप चित्रकारी का क्या भविष्य देखते हैं? आगे चित्रकारी से रोजगार मिल सकता है या इसके सामने और भी भीषण संकट आ सकता है?
डॉ.डी.डी.सोनी:- इस विषय पर मेरे विचार बहुत खुले हैं, मैं आपको बताता हूँ कि कोई भी व्यक्ति, बच्चा या चित्रकार मिले जिसमे ईश्वर प्रदत्त कुछ हुनर दिख रहा है, चाहे चित्रकार, शिल्पकार, मूर्तिकार, नाट्यकार, कवि, रंग मंच कलाकार हो इन्हें सबसे पहले अपनी माली हालत देखनी चाहिए कि उसके परिवार कि माली हालत क्या है? उसका परिवार उसे कितना संरक्षण दे सकता है. कितना उसका खर्च उठा सकता है?
अगर माली हालत ठीक नहीं है तो पहले अपने शिक्षा को बढाएं फिर रोजगार की व्यवस्था करें. अगर आप ये दोनों काम नहीं करते हैं तो आगे जाकर फेल हो जायेंगे, मैं ऐसा मानता हूँ. ये सच्चाई है.कम से कम ६ सात घंटे काम करके कुछ कमाए जिससे घर की परिस्थिति ठीक हो, आर्ट की शिक्षा लें, फिर स्टेज पर बोलने की क्षमता विकसित करें, जनता के बीच में काम करने की क्षमता विकसित करें. मूड में तो काम करने वाले बहुत मिलते हैं. अगर आपको आगे बढ़ाना है तो डिमांड पर काम करना भी आना चाहिए. अगर डिमांड पर काम करते हैं तो मान के चलो आपी के सफलता के ९९% चांस हैं. दुनिया में चैलेन्ज तो हर वक्त बना रहता है. कल जब आपने ब्रश उठाई थी तब भी चैंलेंज था आज आपके पास सौ पेंटिग है तब भी चैलेन्ज है. स्क्रीन प्रिंटिंग आया तब भी चैलेन्ज था.फ्लेक्स आया तब भी चैलेन्ज है और आगे माइक्रो में जो फोटोग्राफी आ रही है वह भी एक चैलेन्ज है. आपको चैलेन्ज स्वीकार कर अपनी पेंटिंग बनानी पड़ेगी. दुनिया में हाथ की बनायीं पेंटिंग का काम ख़त्म हो जाए ऐसा नहीं है. हमेशा एक वर्ग ऐसा आएगा जो हाथ की बनी पेंटिंग को आगे बढ़ाएगा. कम्प्यूटर से बनाने वाले हमें पीछे नहीं कर रहे हैं. वे लोग अपनी लाइन को आगे बढा रहे हैं. आप चित्रकार हो तो अपनी लाइन को आगे बढाओ. हाथ से हुआ सृजन माँ के हाथ रोटी की तरह है, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता, चाहे पिज्जा बर्गर और अन्य खाद्य पदार्थ कितने भी आ जाएँ पर माँ के हाथ के खाने की बराबरी नहीं कर सकते.
अगर माली हालत ठीक नहीं है तो पहले अपने शिक्षा को बढाएं फिर रोजगार की व्यवस्था करें. अगर आप ये दोनों काम नहीं करते हैं तो आगे जाकर फेल हो जायेंगे, मैं ऐसा मानता हूँ. ये सच्चाई है.कम से कम ६ सात घंटे काम करके कुछ कमाए जिससे घर की परिस्थिति ठीक हो, आर्ट की शिक्षा लें, फिर स्टेज पर बोलने की क्षमता विकसित करें, जनता के बीच में काम करने की क्षमता विकसित करें. मूड में तो काम करने वाले बहुत मिलते हैं. अगर आपको आगे बढ़ाना है तो डिमांड पर काम करना भी आना चाहिए. अगर डिमांड पर काम करते हैं तो मान के चलो आपी के सफलता के ९९% चांस हैं. दुनिया में चैलेन्ज तो हर वक्त बना रहता है. कल जब आपने ब्रश उठाई थी तब भी चैंलेंज था आज आपके पास सौ पेंटिग है तब भी चैलेन्ज है. स्क्रीन प्रिंटिंग आया तब भी चैलेन्ज था.फ्लेक्स आया तब भी चैलेन्ज है और आगे माइक्रो में जो फोटोग्राफी आ रही है वह भी एक चैलेन्ज है. आपको चैलेन्ज स्वीकार कर अपनी पेंटिंग बनानी पड़ेगी. दुनिया में हाथ की बनायीं पेंटिंग का काम ख़त्म हो जाए ऐसा नहीं है. हमेशा एक वर्ग ऐसा आएगा जो हाथ की बनी पेंटिंग को आगे बढ़ाएगा. कम्प्यूटर से बनाने वाले हमें पीछे नहीं कर रहे हैं. वे लोग अपनी लाइन को आगे बढा रहे हैं. आप चित्रकार हो तो अपनी लाइन को आगे बढाओ. हाथ से हुआ सृजन माँ के हाथ रोटी की तरह है, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता, चाहे पिज्जा बर्गर और अन्य खाद्य पदार्थ कितने भी आ जाएँ पर माँ के हाथ के खाने की बराबरी नहीं कर सकते.
ललित.कॉम:- कभी मेरे साथ होता है कि मेरे मन में कोई विचार आते हैं और वे एक चित्र का रूप लेना चाहते हैं. लेकिन उपयुक्त स्थान की कमी या समय की कमी के कारण मैं उसे मूर्त रूप नहीं दे पाता. मन तो करता है कि रंग और ब्रश उठों और कैन्वाश पर उतर दूँ. अगर नहीं उतार पाता तो मैं बहुत व्याकुल रहता हूँ. यही व्याकुलता मैंने बहुत से चित्रकारों, कलाकारों में देखी है. जो मेरे साथ घटता है, क्या यही व्याकुलता ही आगे बढ़ाने में मदद करती है?
डॉ.डी.डी.सोनी:- बिलकुल यह बात वैसी ही है जब माँ अपने बच्चे को जन्म देने के लिए प्रसव पीड़ा से गुजरती है. चित्रकार भी ऐसे ही होता है, जब उसके दिमाग में कोई विचार आते हैं, जो इन विचारों को पेश कर जाते हैं वही चित्रकार के रूप में ख्यति प्राप्त करते हैं. यही सृजन की प्रक्रिया है.
ललित.कॉम:- हमारी यह भेंट अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुकी है. मेरा आपसे आग्रह है कि नवोदित चित्रकारों के लिए एक सन्देश आप दें तो उन्हें मार्गदर्शन प्राप्त होगा.
डॉ.डी.डी.सोनी:- मनुष्य जो भी अपनी आँखों से देखता है उसकी एक इमेज अपने दिमाग में बना लेता है. अब अभिव्यक्ति के लिए आपको जो भी माध्यम अच्छा लगता है उसमे पूरी शक्ति, लगन और श्रद्धा के साथ जुट जाएँ और यह सोच लें कि सुनहरा भविष्य आपके ही हाथ में होगा.आप दूसरों से अच्छा काम कर पाएंगे, अब रहा सवाल सफल और असफल होने का तो सबसे पहले आपको अपनी दिशा और मंजिल तय करनी पड़ेगी. इसलिए अपनी सम्पूर्ण शक्ति का संचय करके इस कला के क्षेत्र में कदम रखे. अवश्य ही सफलता आपके कदम चूमेगी.
ललित.कॉम :- प्रज्ञावानं लभते ज्ञानं, श्रद्धावानं लभते ज्ञानं, जिसके पास प्रज्ञा और श्रद्धा हो्गी, वह अवश्य ही अपने कला कौशल से सुर्य की तरह प्रकाशवान होगा तथा उन्नति और सफलता उसके कदम चूमेगी. आज हमने डॉ. डी.डी.सोनी से एक अनौपचारिक बात चीत करके उनके सफल चित्रकारिक जीवन के विषय में जाना, मैं उन्हें धन्यवाद देता हूँ. उन्होंने बहुत ही सारगर्भित शब्दों के साथ हमें जानकारी दी. उनका आभार प्रकट करता हूँ.
वाह । बहुत मजेदार रहा ये साक्षात्कार ।
जवाब देंहटाएंघोड़ों के बारे में अच्छी जानकारी मिली।
लेकिन हुसैन के दिमाग में हमेशा सेक्स ही घूमता रहता है क्या ?
बहुत उत्कृष्ट विचारों से अवगत कराया आपने. सोनीजी को बहुत शुभकामनाएं और आपका बहुत आभार.
जवाब देंहटाएंरामराम.
"आज हमने डॉ. डी.डी.सोनी से एक अनौपचारिक बात चीत करके उनके सफल चित्रकारिक जीवन के विषय में जाना .."
जवाब देंहटाएंआपके सौजन्य से हमने भी जान लिया ललित जी! बहुत अच्छा लगा जानकर!!
AAPKE JARIYE dr. d.d soni ji se milana acchaa lagaa.
जवाब देंहटाएंआपके सौजन्य से हमने भी जान लिया ललित जी! बहुत अच्छा लगा जानकर!!
जवाब देंहटाएंसाक्षात्कार बहुत अच्छा लगा, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसाक्षात्कार लेना या देना सहज बात नहीं है
जवाब देंहटाएंपर सब पढ़ के ऐसा लग रहा था जैसे
हम थियेटर में बैठे हों.
और हाँ हुनर हुनर है. प्रकृति प्रदत्त उपहार
उतार चढ़ाव लगा रहता है
पर मानिए न कभी हार
बहुत अच्छा लगा.
बहुत मजेदार रहा ये साक्षात्कार ।
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