मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

संकल्प शक्ति - राम सजीवन और पुस्तक मेला

किताबें मनुष्य सच्ची और अच्छी जीवंत साथी होती हैं। किताबों से प्राप्त ज्ञान को व्यवहार में लाने से सामाजिक जीवन में लाभ मिलता है। जब मनुष्य ने ज्ञान को सहेजना प्रारंभ करने की दिशा में पहल की होगी तभी पहली किताब का जन्म हुआ होगा।

सहेजा हुआ ज्ञान आने वाली पीढी का मार्गदर्शक बने,इसके पीछे यही सोच रही होगी। श्रुति परम्परा से ज्ञान को संरक्षित करने में हमारे पूर्वजों का कोई सानी नहीं था।

आतताईयों के आक्रमण में विशाल ग्रंथालय नष्ट हो गए, लेकिन श्रुति परम्परा से कुल में संरक्षित वाचिक ज्ञान कायम रहा। पश्चात श्रुति ज्ञान को किताबों का रुप दिया गया। जो आज तक प्रचलित है।

साहित्य का तात्पर्य है कि “वह ज्ञान जिसमें समाज हित निहित हो।“ मनुष्य के हित में समाज को नए विचार देने में साहित्य की महती भूमिका रही है।

वेदों के मंत्र दृष्टा ॠषियों से लेकर कवि, लेखक, आलोचक आदि ने श्रम पूर्वक अपनी श्रेष्ठ कृतियाँ समाज को दी। इसी कड़ी में शांतिकुंज हरिद्वार एवं गायत्री परिवार के अधिष्ठाता आचार्य श्रीराम शर्मा ने भी समाजोपयोगी वैदिक साहित्य का संकलन किया और उसे नए कलेवर में समाज के समक्ष प्रस्तुत किया।

कहते हैं उन्होने अपने जीवन काल में 3200 छोटी बड़ी पुस्तकों की रचना की। कुछ मैनें भी पढी हैं। इस पुस्तकों ने सर्व साधारण के लिए ज्ञान प्राप्ति का मार्ग खोल दिया।

विगत 11 फ़रवरी को अभनपुर के गायत्री परिवार सत्संग परिसर में पुस्तक मेले का आयोजन किया गया है। जिसे नगरवासियों का अच्छा प्रतिसाद मिल रहा है।

पुस्तक मेले के अवलोकन के लिए समाज के सभी वर्गों के लोग आ रहे हैं तथा अपनी पसंद के अनुसार किताबें क्रय कर रहे हैं।

इस पुस्तक मेले में शांति कुंज हरिद्वार से आचार्य श्रीराम शर्मा द्वारा रचित सभी 3200 पुस्तकों को प्रदर्शित किया है। शायद ही ऐसा कोई विषय हो जिससे संबंधित पुस्तक यहाँ उपलब्ध न हो।

आर्षग्रंथ, गायत्री विद्या, कथा एवं पुराण, गीत एवं संगीत, स्वास्थ्य एवं औषधि, शिक्षा एवं स्वावलंबन  व्यसन मुक्ति, पर्यावरण, नारी जागरण, व्यक्ति निर्माण, परिवार निर्माण, समाज निर्माण, आत्मचिंतन,  भारतीय संस्कृति धर्म एवं दर्शन, महापुरुषों के प्रेरक जीवन वृत्तांत, विद्यार्थियों के लिए उपयोगी साहित्य एवं ज्योतिष विज्ञान आदि से संबंधित पुस्तकें विक्रय के लिए उपलब्ध हैं।

नगर में गायत्री परिवार की स्थापना तो 80 के दशक में हो चुकी थी। वर्षादि में एकाध बार यज्ञ हुआ करते थे। उसके पश्चात मिशन का प्रचार कार्य सिर्फ़ अखंडज्योति के सदस्य बनाने तक सिमट गया।

90 के दशक तक यही चलते रहा। फ़िर एक व्यक्ति ने गायत्री परिवार की दीक्षा ली और उसने प्रचार अभियान प्रारंभ किया। 24 घंटे समाज सुधार एवं समाज कल्याण का ही चिंतन करते थे साथ ही परिवार में नए परिजन जोड़ते थे।

शीघ्र ही उनका प्रयास रंग लाया। एक जगह गायत्री मंदिर की स्थापना हुई। लोगों को जुड़ने के लिए एक नियत स्थान मिल गया। इससे युग निर्माण का कार्य सुचारु रुप से प्रारंभ हुआ। समाज के सभी तबकों के लोग जुड़ने लगे। मंदिर में नित्य हवन पूजन प्रारंभ हुआ। नित्यता ही सफ़लता का कारक होती है। इसके लिए दृढ संकल्प आवश्यक है।

संकल्प के धनी इस व्यक्ति का नाम राम सजीवन चौरसिया है। हम भी पहले इनसे मजाक करते थे कि-"क्या यार पागल हो गए हो और कोई काम नहीं है क्या? दिन रात इसी बक-बक में लगे रहते हो।" लेकिन इस तरह के तानों से विचलित नहीं हुए। एकनिष्ठ होकर गायत्री मिशन के कार्य में लगे रहे। प्रारंभ की आर्थिक कठिनाईयों में अपना वेतन भी इन्होनें मिशन कार्य में लगाते रहे। घर-परिवार, नौकरी के साथ जीवन की जीजीविषाओं से जूझते हुए गायत्री मिशन के कार्य को गति देते रहे।

प्रज्ञा पुत्र-श्री देवलाल साहू एवं श्री राम सजीवन चौरसिया
एक दिन मुझसे कहने लगे कि नगर में कोई सार्वजनिक संत्संग हॉल नहीं है। इसकी कमी नगर में महसूस की जा रही है। मैने भी सहमति जताई। उस दिन से इन्होने सत्संग भवन निर्माण हेतू कार्य शुरु कर दिया।

नगर के मध्य में लगभग 22000 शासकीय भूमि का आबंटन कराया गया। इसके पश्चात नगर वासियों से सम्पर्क किया गया। किसी ने निर्माण सामग्री दी तो किसी ने नगद धन राशि।

उसके पश्चात 3000 वर्गफ़ुट में हॉल का निर्माण हो गया, जिसमें 50 लाख रुपए जन सहयोग से खर्च हुए हैं, इसके साथ ही यज्ञशाला का निर्माण हो रहा है। सम्पूर्ण योजना का बजट लगभग 2 करोड़ रुपए का है।

प्रारंभ में लगता था कि इतना रुपया कहाँ से आएगा? लेकिन साथी मिलते गए और कारवाँ बढता गया। कहा जाता है कि संकल्प में बल होता है। कभी कभी मैं मजाक में कह देता था कि “सुबह से झोला उठाकर मांगने निकल पड़ते हो।“ तो ये हँस कर कहते थे कि – 

मांगन से मरनो भलो,मांगु तन के काज।
परमारथ के कारने आवे न मोहे लाज ॥ 

अब इसी सत्संग परिसर में पुस्तक मेला सजा हुआ है। लोग पुस्तक मेले का लाभ उठा रहे हैं। यह पुस्तक मेला 20 फ़रवरी तक चलेगा। जिससे अंचल के पाठक और विद्यार्थी लाभान्वित होगें। आज इनके साथ अनुशासन बद्ध कार्यकर्ताओं की फ़ौज खड़ी है।

जो निरंतर अर्थ दान के साथ समय दान भी कर रही है। मैं राम सजीवन चौरसिया को हृदय से धन्यवाद देता हूँ तथा मिशन की सफ़लता की कामना करता हूँ।

13 टिप्‍पणियां:

  1. अविचलित रह कर दृढ़ संकल्‍प से काम करते हुए क्‍या संभव नहीं है, वाह.

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  2. सत्‍य परेशान हो सकता है मगर हार नहीं सकता....साबित कर दिया चौरसिया जी

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  3. मिशन की सफलता के लिए हमारी भी शुभकामनाएँ.

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  4. परम पूज्य आचार्य श्री राम शर्मा द्वारा तीन हज़ार से ज्यादा पुस्तकों की रचना वास्तव में एक अनोखा कीर्तिमान है. पुस्तक-मेले के रूप में उन पुस्तकों की प्रदर्शनी का आयोजन अभनपुर वासियों के लिए भी वाकई सौभाग्य की बात है. वहाँ जन-सहयोग से सत्संग भवन निर्माण के लिए जहां श्री रामसंजीवन जी साधुवाद के पात्र हैं , वहीं इस अच्छे कार्य के लिए सहयोगी बने नागरिकों की भी प्रशंसा की जानी चाहिए. इन रचनात्मक गतिविधियों को ब्लॉग के ज़रिए दुनिया के सामने लाने का सराहनीय कार्य आपने किया है. सुंदर आलेख के लिए आभार .

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  5. मैं बिल्कुल सहमत हूँ आपकी बातों से और गायत्री मिशन के लिए तो कहूँ ही क्या मैं "अखंड ज्योति" ना जाने कितने बर्षों से पढता आ रहा हूँ,बहुत ही बेहतर पोस्ट

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  6. जानकारी, सन्देश और मार्गदर्शन से सजी पोस्ट ..उत्तम है .....

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  7. मिशन की सफलता के लिए ढेर सारी शुभकामनाये.
    अच्छी जानकारी परक पोस्ट.

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  8. शुभकामनाएं सम्पूर्ण मिशन के लिये.

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  9. शान्तिकुंज हरिद्वार जा चुका हूँ, व्यक्तित्व व कृतित्व से परिचय हुआ था वहाँ पर।

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  10. पुस्तकों से ही प्रेम करना चाहिये... ज्ञान का अपार सागर..

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  11. इस अच्छे मिशन की सफलता के लिए हमारी तरफ़ से भी शुभकामनाये.

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  12. गायत्री परिवार में उनकी पुस्तकों के अलावा जो प्रभावित करता है मुझे , वह है महिलाओं की भी बराबर की भागीदारी ...
    मिशन कामयाब रहे , बहुत शुभकामनायें !

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  13. राम सजीवन चौरसिया जी ने साबित कर दिया कि संकल्प और मजबूत इच्छा शक्ति से कुछ भी कठिन नहीं है। आपके द्वारा उनके जानकारी मिल सकी आभार ।

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