सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

जेठू राम! कुर्सी खाली मत छोड़ो यार

दिल्ली से बड़े मंत्री पधारे हुए थे। मेरे परिचित थे और मुझे भी कुछ काम था उनसे। मेरे साथ जेठू राम भी था। जिस हॉल में मंत्री जी का कार्यक्रम था वहाँ बहुत सारी कुर्सियाँ लगी थी। हमने सामने  वाली कुर्सियों पर कब्जा जमा लिया। सारी कुर्सियाँ भर चुकी थी।

कुछ लोग कुर्सियों के खाली होने पर कब्जियाने के चक्कर में ताक रहे थे। मंत्री जी के स्वागत के लिए मंच से पुकार होने लगी। हमारा नाम आने पर स्वागत करने गए।

जब वापस लौटे तो जेठू राम की कुर्सी पर किसी ने कब्जा कर लिया। जेठू ने मेरी तरफ़ देखा, वह बताना चाहता था कि उसकी कुर्सी पर कब्जा हो गया,वह मायूस हो गया । 

मैने उसे गरियाते हुए और कुर्सी कब्जाने वाले को सुनाते हुए कहा कि-“ साले कुर्सी छोड़कर जाओगे तो ताकने वाले कब्जा कर ही लेगें। लोगों ने कुर्सियों के लिए इमान धरम बेच खाया, तुम्हें क्या छोड़ेगें।

दिन में कुर्सी और रात को खटिया कभी खाली नहीं छोड़नी चाहिए, नहीं तो कब्जा होने में टैम नही लगता। राजनीति करना है तो कुर्सी कभी खाली छोड़ कर नहीं जाओ।

उस पर अपना कब्जा बना कर रखो। खुल्ली गाय और खाली कुर्सी का मालिक वही होता है जिसका कब्जा होता है। इतना सुनकर भी खद्दरधारी कुर्सी नहीं छोड़ी और मुंह फ़ेर लिया, बड़े नेता जो ठहरे। जेठू खड़ा रह गया।

कभी-कभी बस में सफ़र करते हुए भी सोचना पड़ता है कि कोई वरिष्ठ महानुभाव न मिल जाएं, नहीं तो पूरा सफ़र खड़े-खड़े ही करना पड़ेगा। दूसरी अन्य सवारियाँ भी यही सोचती होगीं।

बस में चढते ही कोई पहचान वाला दिख जाए और उसे पहचान लिए तो मुसीबत समझो। सीट छोड़नी ही पड़ेगी। इसलिए पहचान लेने की बजाए मुंह फ़ेरना ही ठीक है, जैसे की उसे देखा ही नहीं।

अब तो साधन भी मिल गया है, आँखें फ़ेर कर मुंह चुराने का। बस मोबाईल का हेड फ़ोन कानों में ठूंस कर रंगीन ऐनक लगा कर आँखें बंद करके मजे से गाना सुनिए। पहचान वाला समझ जाएगा कि सो रहा है और उसे सीट भी न देनी पड़ेगी।

जब ठिकाने पर पहुचे तो अंगड़ाई लेकर उठें जैसे नींद से जागे हो और फ़िर उसकी तरफ़ देख कर कहें कि- नमस्कार जी, क्या हाल चाल है? आगे जाएगें तो मैने सीट खाली कर दी है आपके लिए।

जो सज्जन रेल के दैनिक यात्री होते हैं, उन्हे सीट कब्जा करने एवं अपनी सीट बचाकर रखने का गजब का अनुभव होता है। राजनीति में सफ़लता की संभावना अन्य से अधिक होती है।

लोकल ट्रेन आते ही प्लेट फ़ार्म पर अपने-अपने रुमाल, तौलिए, पंछे, छाते, बोतलें, अखबार लेकर तैयार हो जाते हैं जैसे ही ट्रेन प्लेटफ़ार्म पर लगती है, खिड़कियों से अपने सामान सरका देते हैं और निश्चिंत हो जाते हैं। अगर कोई पूछता है कि सीट खाली है क्या? तो कह देते हैं कि सवारी आ रही है।

सीट उनकी और उनके बाप की हो गयी। आराम से अपनी सीट पर टांगे फ़ैलाते हुए सफ़र का मजा लेते हैं। एक दो साथी मिलते ही ताश का खेल शुरु हो जाता है। दैनिक यात्री जो ठहरे। ट्रेन में विशेष छूट रहती है इनके लिए। आर पी एफ़ से लेकर टी टी तक सब ताबेदार रहते हैं।

मैं बिलासपुर जाने के लिए लोकल में फ़ंस गया। दरवाजे से चढने लगा तब तक कब्जाने वाले सारे हथियार सीटों पर आ चुके थे। मैं खिड़की के पास एक के रुमाल पर ही बैठ गया। अब वह अपना रुमाल ढूंढता फ़िर रहा था।

बार-बार मेरे पास आता था, लेकिन कहता कुछ नहीं था। जब उसने तीसरा फ़ेरा लगाया तो मैने उससे कहा कि- क्यों मित्र क्या ढूंढ रहे हो?

उसने कहा कि- मैने यहाँ पर कहीं अपना रुमाल रखा था।, मैने रुमाल दिखाते हुए कहा कि-‘ यह तो नहीं है? उसने अपना रुमाल पहचान कर ले लिया। तो उसने मुझे धौंस जमाई कि सीट उसकी है।

मैने कहा कि- यूँ अपना सामान लावरिस छोड़ना ठीक नहीं है। कोई ले जाता तो। एक तो तुम्हारा रुमाल ईमानदारी से लौटा रहा हूँ और मुझे ही धौंस दे रहे हो। अगले स्टेशन में सीट खाली होगी वहाँ बैठ जाना। तब तक खैनी खाओ।

सीट और कुर्सी का लफ़ड़ा जमीन पर ही नहीं आसमान में भी है। मुझे चीलगाड़ी से कहीं जाना होता है तो खिड़की वाली कुर्सी की ही मांग करता हूँ और ईश कृपा से मिल भी जाती है।

एक बार रायपुर से दिल्ली के लिए चढे, अपनी कुर्सी संभाले ही थे कि पड़ोसी ने खिड़की के पास बैठने की मंशा जाहिर की। उन्हे समझाया कि मुझे खिड़की वाली सीट ही लेनी थी इसलिए आधे घंटे पहले बोर्डिंग किया।

उसने अपनी मजबूरी बताई कि- खैनी खाने के बाद थूकना पड़ता है। इसलिए खिड़की वाली सीट चाहिए। मैं समझ गया कोई नया-नया कलफ़ चढा है, ट्रेन-बस की सवारी फ़्लाईट में आ गयी। 

मैने अपनी जेब से खैनी की डिबिया निकाल कर दिखाई, और कहा कि हम भी गंवईहा है भाई, तुम्हारे से पहले जहाज चढ लिए, इसलिए अपना  देहाती जुगाड़ फ़िट  कर लिए। प्लेन में खिड़की खुलती ही नहीं है दादा, कहाँ थूकोगे?

उसने कहा कि आप कहाँ थुकते हैं? मैने कहा कि इसके लिए सामने कुर्सी में एक थैली है। जिसे अंग्रेजी में वोमैटिंग बैग कहते हैं, थूकने के लिए इसका ही इस्तेमाल करता हूँ। आप भी करिए और मजे से मौज लीजिए,

क्या बताएं? नेता से कुर्सी बचाना बड़ा मुस्किल है भैया। कुर्सी का चक्कर गजब है भाई, इसे पाना भी कठिन है तो बचाना उससे भी कठिन। 

कहते हैं कि राजा पहले रानी के पेट से पैदा होता था। सोने का सिंहासन साथ लेकर आता था। लेकिन  अब राजा पेटी के पेट से पैदा होता है और अपनी कुर्सी साथ लेकर आता है।

जनता की, जनता के द्वारा,जनता के लिए सरकार आने के बाद जिन्होने कुर्सी पकड़ी, आज तक छोड़ी ही नहीं। फ़ेविकोल लगा के चिपक गए। बिना रिनिवल के ही कुर्सी पर लदे हैं। ड्रायविंग लायसेंस के रिनिवल न होने पर जनता हवलदार चालान कर देता है।

एक्सपायरी लायसेंस से सरकार चला लेते हैं। इनका चालान कौन करे? हर छोटी कुर्सी बड़ी कुर्सी के नीचे, बड़ी कुर्सी छोटी कुर्सी के उपर है, यह सनातन परम्परा है।

कुर्सियाँ आपस में तय करती हैं किस कुर्सी पर किसे बिठाना है और किसे कुर्सी से हटाना है। कुल मिला कर कुर्सियाँ ही चलती-चलाती हैं। जमीन पर खड़े होने वाले हम लोग कमर तक झुक कर फ़र्शी सलाम ठोंकने लिए ही हैं।

18 टिप्‍पणियां:

  1. बढि़या किस्‍सा कुर्सी का.

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  2. कुर्सियाँ आपस में तय करती हैं किस कुर्सी पर किसे बिठाना है और किसे कुर्सी से हटाना है

    सही है

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  3. बड़ा ही सुन्दर व्यंग, पर कुर्सी बचा कर रखना आवश्यक है।

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  4. दिलचस्प व्यंग्य रचना . वास्तव में सारा का सारा किस्सा कुर्सी का है. पहले सिंहासन हुआ करता था .अब कुर्सी है. कुर्सी अनंत , कुर्सी कथा अनंता! कुर्सी की महिमा न्यारी है. क्या आपकी भी किसी कुर्सी पर जमकर बैठने की तैयारी है ?

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  5. यह कुर्सी-कथा बड़ी रोचक लगी।

    रुमाल वाले को आपने अच्छा चमकाया।

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  6. कुर्सी नहीं छोड़ेंगे चाहे जान पर बन आये ... सार्थक सन्देश देता व्यंग्य ...आपका आभार ललित जी

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  7. हर छोटी कुर्सी बड़ी कुर्सी के नीचे, बड़ी कुर्सी छोटी कुर्सी के उपर है,
    vaah ji ...

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  8. हे कुर्सी तेरी माया अपरम्पार ...

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  9. सटीक पर कुर्सी जानी नही चाहिये.

    रामराम.

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  10. अरे अरे यह कुर्सी गई भाड मे आप ने एक वोमैटिंग बैग का सत्यनाश कर दिया, अब जो जो आप की पोस्ट पढेगा वो इस वोमैटिंग बैग का इस्तेमाल करेगा, ओर फ़िर भाविष्या मै टिकट ओर महंघी हो जायेगी, अरे साथ वाले की जेब किस कम आयेगी, आंख बचा कर कर दो काम, वेसे भारत मे तो प्लेन की खिडकी जरुर खुलनी चाहिये, राम राम

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  11. आपसे कोइ सीट लेने के लिए धौंस जमा सकता है ये बात कुछ हजम नहीं हुई | सामने वाला आपकी मुछो को और आपकी कद काठी को देख कर वैसे ही सीट खाली कर देगा |

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