बुधवार, 23 मार्च 2011

मेरी बेवकूफ़ी --- ललित शर्मा

वंदना अवस्थी जी ने होली पर बेवकूफ़ियों पर पोस्ट लगाई है। सोचा कि हम भी अपनी महा बेवकूफ़ी आपके साथ बांट लें। यह पोस्ट वैसे तो मैं बहुत पहले लिख चुका था। लेकिन प्रसंगवश आज पुन: प्रकाशित कर रहा हूं।कभी कभी ऐसी नादानी हो जाती है,जिसे बाद में सोच कर हम अपने आप पर ही हंसने को मजबूर हो जाते हैं. एक घटना ऐसी ही मेरे साथ घटी वह आपके साथ बाँट रहा हूँ,शायद आप के साथ भी घटी हो?
हमारा गांव कोई 10 हजार वोटरों की ग्राम पंचायत है.अब नगर पंचायत में तब्दील हो गया है. हम सब एक दुसरे को जानते हैं और सबके सुख-दुःख में शामिल होते हैं. हमारे घर से कोई आधे कि.मी. की दुरी पर श्मशान है और यहाँ जाने का रास्ता हमारे घर के सामने से ही है. जब किसी की मृत्यु होती है तो मैं शवयात्रा में अपने घर से ही शामिल हो जाता हूँ. सभी पंथों एवं धर्मों की मान्यता है की शवयात्रा में शामिल होना पुण्य का काम है. दोस्त हो या दुश्मन, परिचित हो या अपरिचित सभी की अंतिम यात्रा में शामिल होना चाहिए, ये बात मैंने भी गांठ बांध रखी है. किसी की भी शव यात्रा घर के सामने से निकले मैं अपना पंछा (अंगोछा) उठा कर उसमे शामिल हो जाता हूँ। 

एक दिन ऐसी ही एक शव यात्रा घर के सामने से निकली, उसमे सभी परिचित लोग दिखे, तो मैंने सोचा कि गांव में किसी की मृत्यु हो गयी और नाई मुझ तक नहीं पहुच पाया, मुझे जाना चाहिए । मैंने अपना अंगोछा उठाया और चल दिया, श्मशान जाने के बाद मैंने किसी से नही पूछा कि कौन मरा है? अपने हिसाब से कयास लगाया. हमारे मोहल्ले में एक फौजी रहता था और वो काफी वृद्ध हो गया था, वो लगातार बीमार भी रहता था, उसके नाती लोग उसके साथ रहते थे. श्मशान में फौजी के नाती लोग सभी क्रिया कर्मो को अंजाम दे रहे थे. अब मैंने सोच लिया कि फौजी की ही शव यात्रा है. अंतिम संस्कार के बाद घर आया तो मेरी दादी ने पूछा कि कौन मर गया? मैंने कहा फौजी।

उन्हें बता कर, नहा धो कर, पूजा पाठ करके किसी काम से बस स्टैंड चला गया. जब वापस घर आया तो देखा घर के सब लोग एक साथ बैठे थे. मै देखते ही चक्कर में पड़ गया कि क्या बात हो गयी इतनी जल्दी? मैं तो अभी ही घर से गया हूं बाहर. दादी ने पूछा " तू किसकी काठी "अंतिम यात्रा"में गया था. मैंने कहा "फौजी की."  वो बोली "फौजी तो अभी आया था. रिक्शा  में बैठ के और मेरे से 100 रूपये मांग कर ले गया है. बीमार है और इलाज कराने के लिए पैसे ले गया है". अब मैं भी सर पकड़ कर बैठ गया "आखिर मरा वो कौन था? जिसकी मैं शव यात्रा में गया था. मैंने कहा- "ये हो ही नहीं सकता मैं अपने हाथों से लकडी डाल के आया हूँ. वो किधर गया है? " उन्होंने कहा कि बस स्टैंड में डाक्टर के पास गया होगा. मैंने फिर अपनी बुलेट उठाई और बस स्टैंड में उसको ढूंढने लगा. 

एक जगह पान ठेले के सामने वो मुझे रिक्शे में बैठे मिल गया. मैंने उतर के देखा और  उससे बात की. अब मैं तो सही में पागल हो चूका था कि "आखिर किसकी शव यात्रा में गया था?" मेरी तो समझ में नहीं आ रहा था, क्या किया जाये? फिर मेरे दिमाग में आया कि फौजी के नातियों से पूछा जाये. अब पूछने में शर्म भी आ रही थी कि वे क्या सोचेंगे? महाराज का दिमाग सरक गया है. काठी से आने के बाद पूछ रहा है कौन मरा था? किसकी काठी थी? मैं इसी उधेड़ बुन में कुछ देर खडा रह फिर सोचा कि चाहे कुछ भी पूछना तो पड़ेगा. ये तो बहुत बड़ी मिस्ट्री हो गयी थी.मौत तो उनके घर में हुयी थी. लेकिन किसकी हुयी थी यही पता करना था.  आखिर मैं उनके घर गया. दूर में मोटर सायकिल खड़ी करके उसके छोटे नाती को वहीँ पर बुलाया और  उससे पूछा.तो उसने बताया कि उसके पापा (फौजी के दामाद)की मौत हुयी है वो भी काफी दिन से बीमार चल रहे थे.

26 टिप्‍पणियां:

  1. ये बेवकूफ़ी सवाल सारे समझदारों के लिए था...

    लेकिन हम जैसे मक्खन की सोहबत में रहने वालों के लिए भी तो कोई सवाल होना चाहिए-

    मेरी एक समझदारी...

    क्योकिं जैसे समझदार दुर्लभ ही बेवकूफ़ी करते हैं, वैसे ही हमारे जैसे जीवों के लिए समझदारी भी दुर्लभ होती है...

    जय हिंद...

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  2. इसे बेवकूफी से ज्यादा गलत अनुमान कहा जा सकता है ...

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  3. बेवकूफी में ही सही सद्कार्य तो हुआ....इसे आपमें मौजूद मानवीयता का सुपरिणाम कहिए....

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  4. यदि किसी के दुःख में शामिल हो सके तो बेवकूफी भी चलेगी ..!

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  5. दुनियादारी तो निभ ही गई । बाकि तो होता है... चलता है.

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  6. लंबी उम्र मिले फौजी और आपको.

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  7. chaliye isi bahane kisi ke dukh men shamil ho liye isse badi samjhdaree kya ho sakti hai.

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  8. ऐसी बेवकूफ़ियां रोज होनी चाहिये.

    रामारम

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  9. चलो, काठी में तो हो आये..अब जो भी हो, जाना तो था ही..:)

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  10. are vaah bhaai saahb achchi rhi lekin aesaa hmaare aek vkil saahb ke saath bhi huaa he mujhe aek schchi khani ki post likhne ke baare men sochnaa pdhaa he aapki di gyi prernaa ke liyen dhnyvad

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  11. चलो जो हुआ सो हुआ। कहीं अगले की घरवाली से शोक-संवाद कर लेते तो..

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  12. chaliye ek nek kam kiya aapne...par kismat aapki achchhi thi ki usi din vo fouji aapke ghar aa gaye...kahi kisi se kuchh kah dete to....

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  13. हो जाती है ऐसी गलतियाँ कभी कभार

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  14. शुक्र है आपने मामले को सुलझा लिया वर्ना बड़ा बखेड़ा हो सकता था ।

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  15. संवेदना व्यक्त करने का कर्तव्य तो निभा ही दिया था।

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  16. अब मुझे पुरा यकीन हो गया कि आप फ़ोजी रह चुके हे :)
    मेरी तो हंसी ही नही रुक रही...शुक्र करो घर ओर गली की ओरते उस फ़ोजी के घर अफ़सोस करने नही चली गई....

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  17. किसी की काठी में शामिल होना वाकई पुण्य की बात है... इस पोस्ट में सच कहू तो वेबकूफी वाली बात कहीं लगी नहीं... बहुत संवेदनशील पोस्ट है यह...

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  18. नेक काम के पीछे कोई वजह होती...

    और जो वज़ह (कारण,समय,इंसान और paristhiti )

    देख कर किया जाए वो तो नेक काम न हुआ...

    आप ऐसे ही अपना नेक काम करते रहिये...

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  19. अपराध काहे का ,करता हर समझदार है,
    ग़लतियां करना हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार है !

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  20. :-)

    एक अजीब सा वाकया अपने साथ भी हुआ है... हमारी मौसी की मृत्यु हुई, लेकिन हुई बड़ी मौसी की थी और छोटी मौसी की बेटी जो विदेश में रहती है उनको किसी से खबर पहुंची की उनकी माता जी की मृत्यु हो गई है.... टेलीफोन उस ज़माने में गावं में लगे नहीं थे. बेचारी पुरे दिन रोती रही और अगले दिन जब हमने फोन करके बताया की बड़ी मौसी की मृत्यु हुई है तो उनकी अजीब सी स्थिति थी... उन्हें समझ में नहीं आया कि रोया जाए या हंसा जाए!

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  21. दोनों जाने वालो को नमन
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    एक काठी में दूजा माटी में ☺

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  22. वो फौजी जब आप घर पर होते तब आते तो ? शायद और भी मजेदार स्थिति बन जाती । कोई बात नहीं जब जागे तभी सवेरा ।

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