|
कोरवा मुखिया-दिलबर बाबा |
आदिवासी संस्कृति में वनों का बड़ा महत्व है। इनका जीवन वनो पर ही आधारित होता है। वर्तमान में वनों की अधांधुंध कटाई, वनोपज एवं खनिज के दोहन के कारण इनके जनजीवन एवं संस्कृति को खतरा उत्पन्न हो गया है। जंगलों में पाए जाने वाले कंद मूल, महुआ, टोरी, सालबीज, चार, तेंदुपत्ता, बांस इत्यादि से इन्हे जीवन यापन के लिए नगद मिल जाता है। वृक्षों की चोरी छिपे कटाई भी इनके लिए काल बनते जा रही है। छोटा-मोटा शिकार करके भी ये आपना पेट भरते हैं।छत्तीसगढ का एक जिला कोरबा इन्ही के नाम से जाना जाता है। पहाड़ी कोरवा वनों में निवास करते है, इनका रहन-सहन एवं खान-पान देख कर आदि मानव का चित्र मस्तिष्क पर अंकित हो जाता है। इस इलाके में मैने 20 दिन गाँव-गाँव भ्रमण किया और ग्रामीणों से मुलाकात की।
कोरवा लोग किसी एक स्थान पर स्थायी रुप से नहीं रहते। जंगल साफ़ किया खेती शुरु कर दी। अगर इस स्थान पर फ़सल कम होने लगी या भोजन की समस्या आने लगी तो तुरंत ही अपनी झोपड़ियाँ छोड़कर किसी दुसरे स्थान में बसेरा बना लेते हैं। जीवन यापन का साधन ढूंढ लेते हैं। आज भी तीर-धनुष एवं भाला टांगी रख कर हमेशा घुमते हैं। समय के बदलाव के साथ-साथ कुछ लोग अब स्थायी रुप से गाँव में रहने लगे हैं। शासन ने जमीन का पट्टा दे दिया है। मोबाईल तक इनकी पहुंच हो गयी है। टीवी के सीरियल भी देखते हैं, एक दो घरों में डिस्क लगने के कारण सलमान खान, अमिताभ बच्चन, आदि अभिनेताओं को पहचानने लगे हैं। प्रधानमंत्री के विषय में पूछने पर इन्हे नहीं मालूम। भोले-भाले लोग बस अपनी दुनिया तक ही सीमित हैं।
|
वन देवियों के साथ लेखक |
सरकार ने वनों की रक्षा के लिए वन ग्रामों में वन रक्षा समिति बना रखी है। जिसके सदस्य वनों की चौकीदारी करते हैं। पेड़ काटने वाले की सूचना जंगल विभाग के अधिकारियों तक पहुंचा कर उन्हे पकड़वाने के एवज में इन्हे कुछ मानदेय भी मिलता है। मेरी मुलाकात बलसेड़ी गाँव की जाँबाज कोरवा महिलाओं से हुई। इन्होने बिना किसी सरकारी सहायता के वन रक्षा महिला समिति बनाकर वन रक्षा का कार्य शुरु किया। इनके दल में गांव की 55 महिलाएं है, जो रात के बारह-एक बजे तक जाग कर वनों की रक्षा करती हैं। इनके दल में प्रमुख हीरामणी, बीफ़ैय्या, नीनी बाई, तिलासो, मीनाकुमारी, बुधियारो, सुंदरकेली, शांति, गुड्डी, दसमतिया हैं। आपसी सामंजस्य से महिला वन सुरक्षा समिति का परिचालन कर रही है। यह दल सरकारी नही है और महिलाओं ने स्वप्रेरणा से बनाया है। इसके माध्यम से गाँव की अन्य विकास के कार्यों को भी सम्पन्न करती हैं।
मर्दों द्वारा जंगल की चौकीदारी नहीं करने के प्रश्न पर दसमतिया कहती है कि-" हमें पुरुषों पर भरोसा नहीं है, ये थोड़ी सी दारु में ही बिक जाते हैं और पेड़ कटवा डालते हैं। इसलिए हमने जंगल की रक्षा की जिम्मेदारी अपने हाथों में ले ली। अब लोग पेड़ काटने से डरने लगे हैं। एक बार 9 मोटर सायकिलों पर 18 लोग पेड काटने आए। हमने उन्हे पकड़ लिया, मोबाईल से अधिकारियों को सूचित करने पर उनकी गिरफ़्तारी हुई। एक पुलिस वाले ने इन्हे पेड़ काटने का ठेका दिया था, वह भाग गया। जंगल काटने वाले अपराधियों को जेल भेजा गया। रात के वक्त हम अपने परम्परागत हथियार लेकर चौकीदारी करते हैं, यदि किसी ने हमला किया तो जवाब दे सकें।" इनके साथ बलजीत नामक मोबाईलधारी नवयुवक रहता है, जो इनके साथ निरंतर चौकीदारी के काम को अंजाम देता है।
|
कोरवा वन देवियाँ |
अशिक्षा के बावजुद कोरवाओं में जंगल रक्षा की जागृति आना बड़ी बात है। पहले तो यही जंगल काटकर खेत बनाते थे, अब जंगल की रक्षा के लिए कटिबद्ध हो चुके हैं। क्योंकि इन्हे मालूम है कि जीवन यापन करने की सामग्री इन्हे जंगल से ही प्राप्त होती है। अगर जंगल नहीं रहे तो इनका जीवन भी खत्म हो जाएगा। खेती एवं शिकार के अलावा इन्हे और कोई कार्य नहीं आता। बांस की टोकरी, झाड़ु,चटाई आदि बनाने का काम कर लेते हैं। पर जीवन जंगल पर ही आधारित है। दारु वैसे तो आदिवासी जन-जीवन के साथ जुड़ी हुई है। देवी-देवताओं को दारु और मुर्गा अर्पित करने की परम्परा रही है। सरकार ने भी 5 लीटर तक महुआ की दारु बनाने की छूट दे रखी है। इससे ग्रामीण क्षेत्र में समस्या बढ गयी। दारु पीकर घर में हंगामा करना, बीबी बच्चों को मारना पीटना, लड़ाई झगड़ा करना आम हो गया है। शराबियों से तंग आकर महिला वन रक्षा दल ने दारुबंदी कराने का सार्थक प्रयास भी किया है।
हीरामणी कहती है- हंड़िया पीकर लोग पड़े रहते हैं, काम पे नहीं जाते, दारु पीने से मना पर बीबी बच्चों के साथ मारपीट करते हैं। हद तो तब हो जाती है, जब सड़क पर आकर गाली-गलौज करने लगते हैं। अगर कोई मर्द इन्हे मना करे तो उससे मारपीट करने लगते हैं, इसका हल हमने निकाला, किसी के भी घर में कोई पीकर हंगामा करे तो उसकी बीबी या अन्य कोई हमें चुप-चाप सूचना दे जाता है। हम गाँव की सब औरते इकट्ठे होकर उसके घर जाती और हंडिया फ़ोड़कर उसे न पीने की चेतावनी देकर आती हैं। गांव में सबके सामने बेइज्जती होने के कारण लोग अब पीने से डरने लगे हैं। जिसका फ़र्क उनके जीवन पर भी पड़ा है। हमारी महिला समिति इस तरह ग्राम सुधार के कार्य कर रही है। इसके लिए हम सरकार से भी कोई सहायता नहीं ले रहे।
|
कोरवा आदिवासियों के साथ लेखक |
सरगुजा की खलीबा पंचायत के आश्रित बलसेड़ी की महिलाओं की हिम्मत एवं कार्य प्रशंसनीय है। वे एक साथ दो-दो मोर्चों पर लड़ाई लड़ रही हैं, एक तरफ़ जंगल से चोरों से दुसरी तरफ़ शराबियों से। इनका कहना है कि दारुबंदी होनी चाहिए। लोग सायकिल, बैल, भैंस, बकरी बेच कर दारु पी जाते हैं तथा थोड़ी सी दारु के लिए ईमान बेच कर बड़ा नुकसान एवं अपराध कर डालते हैं। भ्रष्ट्राचार के विषय में पूछने पर सुंदरकेली कहती है- मुझे तो भ्रष्ट्राचार के बारे में इतना ही मालूम है कि, नून-मिर्चा, तेल-फ़ुल मंहगा होने के कारण खर्च बहुत बढ गया। गरीबों का जीवन यापन मुश्किल हो गया, हमारा पैसा साहब लोग खा जाते हैं। बिना पैसा दिए राशन कार्ड नहीं बनता, तहसील में कोई नहीं सुनता। क्यों इसको ही भ्रष्ट्राचार बोलते हैं न? उसने एक सवाल मेरी ओर दागा। फ़िर बोली- मेरे को इसका नाम भी लेना नहीं आता।
समाज सुधार की सकारात्मक सोच रखने वाली पहाड़ी कोरवा महिलाओं ने काफ़ी प्रभावित किया। इनका कार्य अनुकरणीय एवम प्रशंसनीय है, किटी पार्टी वाली मेमों एवं एसी चेम्बर में बैठकर पर्यावरण पर व्यर्थ के गाल बजाने वालों को इन आदिम जनजातिय महिलाओं से समाज सुधार के सार्थक कार्यों की प्रेरणा लेनी चाहिए, जो रात को भी जंगल की चौकीदारी कर पर्यावरण बचाने में लगी हुई हैं, जिन गावों में आज तक बिजली नहीं पहुंची है उन गावों की अनपढ कोरवा आदिवासी महिलाएं मुस्तैदी से जंगल बचाकर अपना एवं बच्चों का भविष्य बनाने की जद्दोजहद में जुटी हैं। मैने इनके निमंत्रण पर गांव पहुचकर जंगल की चौकीदारी में एक रात साथ चलने का वादा किया। इनके वन रक्षा के जज्बे को सैल्युट करता हूँ। महिला वन रक्षा समिति के एकमात्र पुरुष सदस्य बलजीत का मोबाईल नम्बर-90097-23019
इन महिलाओं का सार्थक कार्य यक़ीनन अनुकरणीय और प्रशंसनीय है ........ बहुत अच्छा लगा पोस्ट पढ़कर
जवाब देंहटाएंललित भाई,
जवाब देंहटाएंआज महिला हर कार्य में आगे है, तो इसमें पीछे क्यों रहती?
सरगुजा में माताजी राजमोहिनी देवी और गहिरा गुरु जी ने यह बीड़ा उठाया था, जान कर अच्छा लगा कि यह जन-जन तक पहुंच रहा है.
जवाब देंहटाएंयक़ीनन अनुकरणीय और प्रशंसनीय
जवाब देंहटाएंमहिलाओं का कार्य और साहस दोनों ही लाजवाब है !
जवाब देंहटाएंइनके परिचय के लिए आभार !
महिलाएं जागृत हो रहीं है , इन्हें भारत माता वाहिनी से जोड़ना है .
जवाब देंहटाएंयह महिलाएं समाज के लिए एक मार्गदर्शक हैं ! शुभकामनायें !!
जवाब देंहटाएंअनुकरणीय.... महिला वन रक्षा समिती को शुभकामनाये...
जवाब देंहटाएंशानदार पोस्ट भईया...
सादर...
वनदेवियों का कार्य प्रेरक और सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंएक अच्छी पोस्ट के लिये आभार
प्रणाम स्वीकार करें
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंकिटी पार्टी वाली मेमों एवं एसी चेम्बर में बैठकर पर्यावरण पर व्यर्थ के गाल बजाने वालों को इन आदिम जनजातिय महिलाओं से समाज सुधार के सार्थक कार्यों की प्रेरणा लेनी चाहिए
जवाब देंहटाएंप्रेरक और सराहनीय कार्य, कथित अशिक्षित महिलाओं का
इसे कहते हैं अपनी मदद आप करो तो ही सुधार संभव है.बढ़िया जानकारी.
जवाब देंहटाएंइनका कार्य अनुकरणीय एवम प्रशंसनीय है
जवाब देंहटाएंमहिलाओं का कार्य प्रेरक और सराहनीय है.....
जवाब देंहटाएंइनके इस प्रयास से परिचय करने के लिये आपका बहुत-बहुत आभार........
बहुत बढ़िया कार्य कर रही हैं कोरवा महिलाएं ।
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी ।
महिलाओं का सार्थक कार्य प्रेरक और सराहनीय है.....
जवाब देंहटाएंइनके इस प्रयास से परिचय करने के लिये आपका बहुत-बहुत आभार........
यही सार्थक और अनुकरणीय कार्य हैं।
जवाब देंहटाएंआप का बलाँग मूझे पढ कर आच्चछा लगा , मैं बी एक बलाँग खोली हू
जवाब देंहटाएंलिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
मै नइ हु आप सब का सपोट chheya
joint my follower