छत्तीसगढ की पूण्य भूमि पर अनेक संतों एवं महापुरुषों ने जन्म लिया। महर्षि महेश योगी भी उनमें एक थे। कई बार पाण्डुका से गुजरते हुए आगे निकला, पर महर्षि जी के जन्मस्थान का दर्शन लाभ प्राप्त नही कर सका। आज वह समय आ ही गया, मैं उनकी संस्था द्वारा संचालित विद्यापीठ में पहुंच ही गया।
मुख्यद्वार से आम के वृक्ष के नीचे बैठे हुए दो सज्जन नजर आए, चर्चा होने पर पता चला कि सज्जन (श्रीवास्तव जी) महर्षि वेद विज्ञान विद्यापीठ के व्यवस्थापक हैं तथा दुसरे सह-व्यवस्थापक हैं। इन्होने महर्षि के विषय में हमें बहुत कुछ जानकारी दी। वेद विज्ञान पर चर्चा हुई, श्रीवास्तव जी ने बताया कि महेश प्रसाद वर्मा याने महर्षि महेश योगी का जन्म 12 जनवरी 1918 को छत्तीसगढ़ के राजिम शहर के पास पांडुका गाँव में हुआ। इनके पिताजी रामप्रसाद वर्मा यहाँ राजस्व विभाग में कार्यरत थे। महर्षि के बड़े भाई जागेश्वर प्रसाद की प्राथमिक शिक्षा पाण्डुका में ही हुई थी। पाण्डुका इनका बर्थ प्लेस है, नेटिव प्लेस जबलपुर के पास गोटे गाँव है। महर्षि महेश योगी ने इलाहाबाद विवि से भौतिक शास्त्र में स्नातक और दर्शन शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि ली थी।
विद्यापीठ का मुख्य द्वार |
दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि लेने के बाद वे 1941में स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती के अनुयायी बन गए। स्वामी जी ने उन्हें बाल ब्रह्माचार्य महेश नाम दिया। 1953 तक ब्रह्मानंद सरस्वती के सानिध्य में रहने के बाद महर्षि योगी ने उत्तरकाशी की ओर रुख किया। एक जनवरी 1958को मद्रास के एक सम्मेलन में महर्षि ने ट्रांसेंडेंटल मेडिटेशन के माध्यम से पूरे विश्व में आध्यात्मिक ज्ञान फैलाने की घोषणा की। यही वह क्षण था जब वे वैश्विक होने की ओर उन्मुख हुए। इसके पश्चात समूचे विश्व में ध्यान योग का डंका बजाया। पश्चिम में दम मारो दम की हिप्पी संस्कृति जोर पकड़ रही थी, महर्षि ने इन्हे नशे से मुक्त होने की दिशा में उन्मुख किया। इसी क्रम में 1958 में महेश योगी ने विश्वस्तरीय आध्यात्मिक प्रसार अभियान का आरंभ किया। इस प्रसार कार्यक्रम का उद्देश्य मानवता के लिए ध्यान और साधना को प्रचारित करना था। अभियान के प्रसार के लिए उन्होंने विश्व के कई देशों वर्मा, मलाया, हाँगकाँग, होनुलूलु का भ्रमण किया। उन्होंने अपना सबसे ज्यादा वक्त अमेरिका में बिताया।
महषि जी का जन्म इसी घर में हुआ था |
महर्षि महेश योगी ने 1963 में अपनी पहली पुस्तक अस्तित्व का विज्ञान और जीने की कला लिखी। 1965 में भगवद गीता का अंग्रेजी में अनुवाद किया। अपने योग के प्रसार के दौरान इस बात का दावा किया कि ट्रांसडेंटल मेडिटेशन से तनाव और निराशा दूर हो सकती है, जिससे लोगों का जीवन भी सुखमय होता है। हालाँकि उनके ध्यान के दौरान हवा में तैरने जैसे बातों की काफी आलोचना हुई, लेकिन ध्यान के चमत्कारिक प्रभाव को सभी ने स्वीकार किया। महेश योगी का मानना था कि सिद्ध लोगों के सामूहिक ध्यान करने से एक विशेष वातावरण का निर्माण होता है, जो कि आध्यात्मिक प्रभाव क्षेत्र का निर्माण करता है। इस क्षेत्र के विस्तार के अपराध और बुराइयों पर भी नियंत्रण पाया जा सकता है। महर्षि महेश योगी का यह भी दावा था कि इसका असर स्टॉक मार्केट पर भी होता है।
व्यावस्थापक श्रीवास्तव जी एवं तुलेन्द्र तिवारी जी |
महर्षि को अपने सिद्धांतों पर अटूट विश्वास था और वह उसके विस्तार से पूरे विश्व को लाभ पहुँचाना चाहते थे। 1971 में उन्होंने लॉस एंजिल्स में महर्षि अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना की। इसके साथ ही कई करोड़ों का अपना साम्राज्य स्थापित किया। वैदिक सिद्धांतों को बढ़ावा देने के लिए महर्षि विद्या मंदिर की स्थापना की गई। भारत में इसके करीब 200 शाखाएँ हैं। इसके अलावा महर्षि इंस्टीट्युट का एमबीए, एमसीए, वैदिक विश्वविद्यालय, महर्षि गंधर्ववेद विश्व विद्यापीठ, महर्षि आयुर्वेद विश्वविद्यालय, महर्षि इंफार्मेशन टेक्नोलॉजी और महर्षि वेद-विज्ञान विश्वविद्यापीठ हैं। इनके साथ उन्होने अत्युत्म ध्यान (ट्रांसडेंटल मेडिटेशन), महर्षि वेदिक टेक्नोलॉजी ऑफ कांशियसनेस, महर्षि स्थापत्य वेद, सिद्धी कार्यक्रम, महर्षि ग्लोबल एडमिनिस्ट्रेशन थ्रू नेचुरल लॉ, महर्षि ज्योतिष और योग कार्यक्रम, महर्षि वाणिज्य विकास कार्यक्रम भी चलाए।
महर्षि वैदिक विश्व प्रशासन की मुद्रा "राम" |
महर्षि चैनल भी चला करता था, अब बंद हो गया है। महत्वपूर्ण बात यह है कि महर्षि ने अपनी राम नामक मुद्रा भी चलाई, जिसे नीदर लैंड में मान्यता है। राम नाम की इस मुद्रा में चमकदार रंगों वाले एक, पाँच और दस के नोट हैं। इस मुद्रा को महर्षि की संस्था ग्लोबल कंट्री ऑफ वर्ल्ड पीस ने अक्टूबर २००२ में जारी किया था। अमरीकी राज्य आइवा के महर्षि वैदिक सिटी में भी राम का प्रचलन है। वैसे 35 अमरीकी राज्यों में राम पर आधारित बॉन्डस चलते हैं। नीदरलैंड की डच दुकानों में एक राम के बदले दस यूरो मिल सकते हैं। राम नाम की मुद्रा विदेशों में चल रही है, पर राम के देश में नहीं चला पाए। महर्षि वैदिक विश्व प्रशासन द्वारा राम मुद्रा जारी की गयी है। जिस पर सुंदर कल्प वृक्ष का चित्र अंकित हैं।
ब्रह्मचारियों के साथ एक गृहस्थ |
ग्राम पाण्डुका में महर्षि के पिताजी रामप्रसाद वर्मा किराए के घर में रहते थे, महर्षि के जन्म स्थान की जानकारी होने पर संस्था द्वारा इस मकान को खरीदा गया। महर्षि ने कहा कि इस घर को उसी अवस्था में रखा जाए जैसा पहले था। कोई अतिरिक्त निर्माण नहीं किया जाए। इसके साथ ही पाण्डुका ग्राम में 51 एकड़ जमीन खरीद कर विद्यापीठ की स्थापना की गयी। महर्षि इस गांव को योजनाबद्ध रुप से संवारना चाहते थे। लेकिन गांव के गौंटिया लोगों की आपत्ति एवं विरोध के पश्चात उन्होने इरादा त्याग दिया। मुझे याद है। कुछ वर्षों पूर्व विद्यापीठ में असामाजिक तत्वों ने आगजनी भी थी। महर्षि विद्यापीठ के कर्ता-धर्ताओं के साथ गांव वालों का विवाद भी हुआ था। इस विद्यापीठ में ब्राह्मणों के बच्चों को कर्मकांड सिखाए जाते हैं। वेद पाठ कंठस्थ कराया जाता है।
आवासीय विद्यापीठ के भवन |
विद्यापीठ में जाकर मैने विद्यार्थियों से चारों वेदों का पाठ सुना और रिकार्ड भी किया। इस आवासीय विद्यापीठ में 132 विद्यार्थी अध्ययन करते हैं। रहने के भवन की व्यवस्था अच्छी लगी। भवन पक्के बनाए हुए हैं। साथ-साथ धान की खेती भी की जा रही है। कुछ पेड़ पौधे भी लगाए गए हैं। मुझे हड़जोड़ का पौधा मिला, जिसकी एक कलम लेकर आया और लगाई। हड़जोड़ सूखी और हरी हाथ पैर के दर्द में काम आती है। इसका सेवन करने से टूटी हुई हड्डी जुड़ जाती है, जो इसके नाम (हड़जोड़) से ही प्रतीत होता है। विद्यापीठ में घूमने के बाद हमने आगे बढने का कार्यक्रम बनाया। जाना तो चाहते थे जतमई एवं घटारानी, पर तिवारी जी ने कहा कि सिरकट्टी से मेघा, कुरुद होते हुए अभनपुर पहुंचा जाए। हमने श्रीवास्तव जी से विदा ली और आगे बढ लिए सिरकट्टी की ओर।
NH-30 सड़क गंगा की सैर
दुर्लभ चित्र और अच्छी जानकारी लिए पोस्ट.... आभार
जवाब देंहटाएंमहर्षि महेश योगी भी पक्के घुमक्कड रहे थे।
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी
जवाब देंहटाएंवाह!! आपके इस पोस्ट से सचमुच ज्ञानवर्धन हुआ...
जवाब देंहटाएंइस अत्यंत बहुमूल्य रिपोर्टिंग के लिए सादर आभार एवं शुभयात्रा...
सादर...
जैसे ही यह प्रविष्टि खोली , पहला चित्र देखकर लगा कि श्री महेश योगी हाथ जोड़कर कह रहे हों ललित जी फिर आइयेगा :)
जवाब देंहटाएंइन ब्रह्मचारीयो में आप क्यों फंस गए ...ललितजी !
जवाब देंहटाएंदुर्लभ चित्रों सहित ..विवरण अच्छा लगा ..लगे रहो मुन्ना भाई !
काफी विस्तृत रोचक और प्रेरक जानकारी ...!
जवाब देंहटाएंहम वैसे तो शायद इन स्थानो की कभी सैर न कर पायें मगर आपने घर बैठे ही सैर करवा दी। धन्यवाद। चित्रों सहीत सुन्दर वर्णन। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंउर्वरा,
जवाब देंहटाएंभारत धरा,
नमस्तुभ्यम्।
महर्षि महेश के जन्मस्थान के बारे में और यात्रा के सन्दर्भ में बढ़िया जानकारी दी है . हड़जोड़ को हरजोड़ और हरजुड़ी भी कहते हैं . ... पशुओं को घाव लग जाते हैं या उनकी हड्डी टूट जाती है तो इसके लेप से टूटी हड्डी भी जुड़ जाती है ... व्यक्तियों की टूटी हड्डियाँ भी इसके लेप से जुड़ जाती हैं ... हड़जोड़ खासकर मंडला जिले में अधिकतर पाई जाती है ... धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंरोचक और विस्तृत जानकारी के लिए आभार.
जवाब देंहटाएं@राम नाम की मुद्रा विदेशों में चल रही है, पर राम के देश में नहीं चला पाए
राम के देश ?
कहाँ रहा जी राम का देश ........ अब तो रोम की महारानी का देश हो गया है.
महर्षि महेश के जन्मस्थान, उनके सिद्धांतों और संस्थानों के बारे में बहुत विस्तार पूर्ण जानकारी देने के लिए आभार... आज सिर्फ महर्षि विद्या मंदिर ही ऐसे स्कूल हैं जहाँ good morning की जगह "जय गुरुदेव" की परम्परा विद्यमान है...
जवाब देंहटाएंरोचक और विस्तृत जानकारी भरा पोस्ट .शुभकामना
जवाब देंहटाएंएक बात जरा हट कर। यह हरी T शर्ट कुछ खास है क्या?
जवाब देंहटाएंबहुधा देखा जाता है इसे आपके साथ :-)
@गगन शर्मा जी,
जवाब देंहटाएंआप हरी T शर्ट वाली पोस्ट पर ही पहुंचते हैं इसलिए ध्यान रखना पड़ता है जी। :)
वाह, पोस्ट हो तो ऐसी. राम मुद्रा की अविश्वसनीय और लाजवाब जानकारी.
जवाब देंहटाएंbrahmchariyon me grahasth badhiya lag raha hai.
जवाब देंहटाएंshukriya is jaankari ke liye.
विश्व प्रसिद्द संत महर्षि महेश योगी एवं उनके जन्म स्थान पाण्डुका के बारे में अत्यंत रोचक एवं नवीन जानकारी प्राप्त हुई ..........!
जवाब देंहटाएंअभी विस्तार से नही पढ पाई हूँ । महेश योगी जी कई विवादों में घिरे थे । वापस अच्छी तरह पढूंगी ।
जवाब देंहटाएंये राम नाम के नोट की बात तो हमें नई पता चली ।
जवाब देंहटाएंमहर्षि महेश योगी का यह भी दावा था कि इसका असर स्टॉक मार्केट पर भी होता है।
जवाब देंहटाएंदिलचस्प. अर्थ बिन सब निरर्थक