बुधवार, 27 जुलाई 2011

दो प्लेट चाट और 4 प्लेट गोल गप्पे ---- ललित शर्मा

सप्ताहांत के दिन की सुबह चमकीली नहीं थी, आसमाने में काले-काले बादलों की घटा छाई हुई थी, कोई पता नहीं कब बरस जाएं? 5 दिनों सर्दी बुखार का मजा लेते-लेते खोपड़ी खराब हो गयी, दवाईयाँ लो और सो जाओ, बस यही चल रहा था। तबियत जब कूछ ठीक हुई तो दिमाग ने भी काम करना शुरु किया, वह सोचने लगा कि घर में बैठे-बैठे भी क्या करें? आज कहीं घूम ही लिया जाए। बाईक पर लांग ड्राईव का मजा इसी मौसम में आता है, अगर रिमझिम फ़ुहारें बरस रही हों तो क्या कहने, आनंद ही आनंद। तिवारी जी फ़ोन लगाया तो पता चला कि वे साप्ताहिक धुलाई के कार्यक्रम में व्यस्त हैं। उन्होने एक घंटे बाद साथ चलने की हामी भरी। मैं नियत समय पर उनके घर पहुंच गया। सुबह का नास्ता हो गया था, पर समय देखते हुए श्रीमती जी ने भोजन करके ही जाने को कहा। लेकिन भोजन के कारण विलंब हो सकता था। इसलिए ऐसे ही चल पड़े। रास्ते में कहीं भोजन कर लिया जाएगा। तिवारी जी को घर से लेकर आगे बढ लिए। हमारी योजना में महानदी की बाढ, महर्षि महेशयोगी की जन्मस्थान की सैर शामिल था।

गाड़ी हाइवे पर चली जा रही थी, तिवारी ने हमें ही हांकने की आज्ञा दे दी। आसमान की तरफ़ देखकर लगता था कि बरस जाएगा, मानिकचौरी रेल्वे क्रांसिग पार करते ही भूख लगने लगी। घर से निकले तो 15 मिनट ही हुआ था। ग्राम हसदा चौक पर एक चाट का ठेला दिखाई दे गया। बस गोलगप्पे खाने के इरादे से वहीं टिक गए, हसदा आना-जान बचपन से लगा हुआ है, तिवारी जी भी हसदा में अध्यापन कर चुके हैं। जान पहचाने के लोग वहां मिल गए। स्टूल और बेंच पर जम गए, देवा चाट भंडार, प्रोप्राईटर साहू जी को गोलगप्पे का आडर दिया, तभी मन बदल गया, चाट बनाने के लिए कहा। तिवारी जी ने गोलगप्पे थामें और मैने चाट। वाह! स्वाद के क्या कहने थे, मजा आ गया। ऐसी चाट शहर की भी किसी बड़े होटल में नहीं खाई। एक प्लेट उदरस्थ करने के पहले ही दुसरी का भी आडर दे दिया। फ़िर गोल गप्पे का, गोल गप्पे में तेल की महक थी, थोड़ा उसे गरियाया। पता किया कि एस पी (सरपंच पति) कहाँ है? गाँव में नहीं थे, परन्तु याद करते ही वे भी पहुंच गए। बड़ी लम्बी उमर है यार, शैतान का नाम लेते ही हाजिर।

चाट भक्षण चालु था, तभी एक नवयुवक गले में हेडफ़ोन डाले, हाथ में मोबाईल लिए पहुंचा। मुझसे बोला -"अंकल जी थोड़ा सरकिए"। हम सरक लिए, वह बेंच पर आकर बैठ गया। मोबाईल में गाना सुना रहा था। मैने जब उसे नीचे से पर तक देखा तो उसकी हरकत पर गौर करके अन्य लोग भी हँसने लगे। तिवारी गुरुजी ठहाके लगाने लगे। तभी उसके मोबाईल में घंटी आई और बंद हो गई, बोला -" साले मन मिस काल करथे।" मैने कहा - "ओखर मोबाईल मे तैंहा रिचार्ज कराथस का?" करातेस त फ़ुल काल करतिस।" उसने क्या सोचा पता नहीं, तभी उसका एक साथी पहुंच गया - "चल बे, जाना हे त, मैं जात हंव।" मैने कहा-" हेडफ़ोन ला कान में लगा, बने दिखथे।" वहां बैठे लोग उसका मजा लिए जा रहे थे। चाट के आनंद के साथ आनंद दुगना हो गया। सामने मुझे सप्तपर्णी का वृक्ष दिखाई दिया। परसों ही मल्हार पर मेडागास्कर पाम का जिक्र सुब्रमनियन जी ने किया था। मैने उसके कुछ चित्र लिए और सुब्रमनियन जी के चित्रों से मिलान किया। यह वृक्ष भी उसी जाति का लगा पर, इसमें फ़ूल नहीं आए थे, मैने फ़ूल भी देखे हैं। जो सुब्रमनियम जी के चित्रों में दिखाए फ़ूलों जैसे ही होते हैं। 

दो प्लेट चाट और 4 प्लेट गोल गप्पे अंदर करने के बाद हमने सेवा शुल्क पूछा तो उसने हमारे 30 रुपए लिए। सस्ते में मामला निपट गया। शुल्क जमा करके हम आगे बढ लिए, क्योंकि आगे जाने में विलंब होने की आशंका थी, नवापारा पहुचकर गंज रोड़ की प्रदक्षिणा करके हम महानदी के घाट पर पहुंचे। वहां कोई भी कावंडिया दिखाई नहीं दिया। हमारी फ़ोटो इच्छा पूर्ति नहीं हुई। जब नदी के पुल पर पहुंचे तो बाढ देखने की इच्छा भी अधुरी रह गयी। नदी में पानी ही नहीं था। कुलेश्वर मंदिर के आस-पास रेत दिख रही थी। अर्थात वर्षा कम ही हुई है, नदी में भरपूर जल नहीं आ सका। 

मैने सोचा था कि नदी में पानी होगा तो नाव वाले भी मिलेंगे। उनसे चर्चा करेगें कि - "नाव में मामा-भानजा एवं पहिलावत (ज्येष्ठ पुत्र-पुत्री) क्यों नहीं बैठते? मान्यता है कि इनके बैठने से नाव उलट जाती है। नाव वाले नहीं मिले, रामभरोसा जी ने बताया था कि एक बार जानकारी के अभाव में वे मामा-भांजा एक साथ नाव में बैठ गए। जब नाव डगमगाने लगी तो नाव ने कहा कि -" कोई मामा भांजा बैठे हो तो बता दो, नहीं तो नाव उलट जाएगी।" इनका पता चलने पर एक को नाव से नदी में कूद जाने कहा। मामा तो बैठे रहे, नदी में रामभरोसा जी को कूदना पड़ा। थोड़ी देर नजारे देखने के बाद आगे बढ लिए।

गरियाबंद मार्ग पर आगे बढे, रास्ते में बोल बम कावंड़िए मिले, सावन में शिव भक्ति सैलाब उफ़ान पर होता है। कौन कहां से जल लेकर कहां चढाने जा रहा है पता ही नहीं चलता। पर कावंड़िए हर सड़क पर मिल जाते हैं। एक महिला कांवड़िया दल भी मिला और नौजवान भी, चलते-चलते इनकी चाल बदल चुकी थी। मुझे भी अनुभव है इसका। जांघे छिलने के कारण पैदल चलना कठिन हो जाता है। मैने तो इसका तोड़ निकाल लिया था, नारियल तेल की एक शीशी साथ लेकर चलता था और जांघों में लगा लेता था। जिससे जांघे छिलती नहीं थी और यात्रा भी मजे से हो जाती थी। अब समय नहीं था कि इन्हे यात्रा टिप्स देते चलुं। नहीं तो अवश्य ही बता देता। धान के खेतों में फ़सल लहलहा रही है, जिन्होने पहले बोनी कर ली वे चलाई, निंदाई और बियासी कर रहे हैं। महिलाओं का दल रोपा लगा रहा है, जिस खेत में पानी अधिक था और समय पर बोनी नहीं हुई उसमें लाई-चोपी बोनी पद्धति (खेत को मता कर उसमें उपर ही बीज छिड़कना) का प्रयोग किया गया था।

रास्ते में एक नंगरिहा बैलों को खोलकर सड़क पर बैठकर चोंगी सिपचा (बीड़ी जलाना) रहा था, थोड़ी देर आराम करने के बाद फ़िर बैला नांगर में फ़ांदने की तैयारी कर रहा था, मतलब बैटरी रिचार्ज कर रहा था। 300 एकड़ के खार में बोवाई हो चुकी है, निंदाई चलाई चल रही है किसान पुरानिक पटेल ने बताया। तीन-चार दिनों की बारिश ने किसानों के चेहरे पर रौनक ला दी। पौधों के भरी हुई बैलगाड़ियाँ खड़ी हैं, रोपा लगाने वाले थरहा ले जा रहे हैं। रोपा कतार में लगाया हुआ सुंदर दिखाई दे रहा था। ढंग से रोपा लगाने से फ़सल अच्छी होती है। गांव में रोपा का काम ठेके पर होता है। अगर खेत का मालिक स्वयं सामने न रहे तो मजदुर एक पौधे से दुसरे पौधे की दुरी बढा कर जल्दी से काम निपटाने की कोशिश करते हैं। जिससे फ़सल कम होने की संभावना रहती है। इसलिए खेत मालिक को भी उनके साथ काम में जुटना पड़ता है। तभी तो कहते हैं "खेती अपन सेती"। कांवरिए लगातार चल रहे हैं अपनी मंजिल की ओर तथा हम भी बढ रहे हैं आगे।  

NH-30 सड़क गंगा की सैर

24 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर चित्रों के साथ बढ़िया विवरण
    way4host

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  2. पूरे रफ्तार में स्‍वाद भरी जिंदगी.

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  3. जब भी इस मार्ग से गया तो यहां पर चाट जरुर खानी है।

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  4. बुखार के बाद गोलगप्पे खाने का आनन्द ही कुछ और है।

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  5. मस्त घूमों,बुखार होगा तो फ़िर देखेंगे।देहात की चाट और भजिये क मुक़ाबला शहर से कंहा?मज़ेदार,लज़्ज़तदार पोस्ट्।

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  6. वाह अच्छा घुमा फ़िरा दिया आपने साथ थोड़ा सोमरस पान भी रहता तो मजा कुछ और बढ़ जाता

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  7. बहुत ही प्रिय पोस्ट , बधाई !

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  8. कमाल है आपका .....चाट पापड़ी ...खाना....ये सोच भी ..किसी लेख का हिस्सा बन सकती है ...वो भी चित्र सहित
    बहुत खूब....आपकी कलम को सलाम है भाई जी

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  9. बहुत अच्छी सैर करा रहे हैं आप....

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  10. बढ़िया हो रही सैर
    और बुखार के बाद गोलगप्पे तो स्वाद ही बना देते हैं

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  11. बिमारी के बाद इतना तगड़ा नाश्ता ...?????

    हमारे यहाँ भूल कर मत खा लेना गोलगप्पे !३० रु में सिर्फ एक प्लेट ही मिलेंगी ..

    चाट के साथ एक सुट्टा भी मार लेते..हल के पास बैठ क

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  12. व्वाह!! जर के बाद मुहु के सुवाद हर बिगड जाथे, अईसन में गुपचुप अऊ चाट खाए के मजाच अलग हवे... जतमई अऊ घटारानी घलोक ल घूम डार अभी बनेच बोहावत होही झरना हर....

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  13. ये भी खूब रही । बुखार में उठते ही गोल गप्पे और चाट !
    सही है , कांटे को कांटा निकालता है ।

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  14. हजम करने के लिए मेदा मजबूत होना चाहिए

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  15. इस मौसम में बुखार के बाद गोलगप्पे खाने की बजाये कुछ दवा दारू करनी थी ना?:)

    रामराम.

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  16. जैसे-जैसे आपका वर्णन-विवरण आगे बढ़ रहा था, हम भी आपके साथ-साथ चल रहे थे।
    अच्छा भ्रमण रहा, तबियत खुश हो गई।

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  17. आपके इस लेख में सावन के माहौल का सुंदर चित्रण है - तबीयत, मौसम,त्यौहार, खेती सभी कुछ ...

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  18. अगली पोस्ट में कुछ महेश योगी के बारे में लिखियेगा....

    जय रामजी की

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  19. चाट का ज़िक्र हो और मुँह में पानी न आए यह कैसे हो सकता है ... मामा भांजा और ज्येष्ठ पुत्र/पुत्री नाव में नहीं बैठते ..यह जानकारी पहली बार मिली ..

    बढ़िया रिपोर्ट रही ..

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  20. aapki ek bhi post mujhse nahi chhut ti . aapka wiwrn ati rochk aur sundar hai . chhatisgarh ki yaadein taza ho jati hain . aapki ghumakkadi ko mera sadhuwad !

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  21. बढ़िया विवरण सुंदर चित्रण
    सुन्दर चित्रों के साथ बढ़िया विवरण

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