बस्तर जाने का कार्यक्रम अचानक ही बन गया बैठे बिठाए। दोपहर तीन बजे अचानक उठे और चल पड़े बस्तर की ओर। रायपुर से 305 किलोमीटर की दूरी पर बस्तर संभाग का मुख्यालय जगदलपुर स्थित है। जाने में लगभग 6 घंटे का समय लगता है। धमतरी के बाद चारामा घाट से जंगल शुरु हो जाता है। सड़क के दोनो तरफ़ हरे भरे वृक्षों के बीच से सांप सी लहराती सड़क घाट और वनों के बीच से गुजरते हुए जगदलपुर तक पहुंचाती है। केसकाल घाट पर तेलीन माता का मंदिर है, जहां एक बार वाहन चालक रुके नहीं तो भी माता के स्वागत में हार्न बजाकर जरुर जाते हैं। केसकाल से कोन्डागांव फ़िर भानपुरी एवं बस्तर गाँव होते हुए मुख्यालय जगदलपुर।
रास्ते में ध्यान आया कि
अली साहब से नहीं मिले पिछली यात्रा के दौरान। इस बार मिल लिया जाए। उन्हे फ़ोन लगाया तो वे घर पर ही मिल गए। हमने भी जगदलपुर पहुंचने की सूचना दे दी। उन्होने कहा कि हमारे यहाँ ही रुके। मैने
नीरज को होटल बुक करने के लिए कह दिया था। नीरज मेरा चचेरा भाई है जो पिछले साल मेरे साथ यात्रा पर गया था। अली सा के आग्रह को टाल न सका और उसे मना कर दिया और कहा कि अंकल को भी न दे मेरे आने की सूचना, उनसे कल मिल लेगें। हम 8 बजे जगदलपुर पहुंच गए। इस शहर के सभी चौक चौराहे एक जैसे ही हैं, जिनमें मैं उलझ जाता हूँ। अब तो मुख्य सड़क चौड़ी हो गयी है। इसलिए कुछ रास्ता तो समझ आ जाता है। अली साहब मुझे लेने के लिए 8 बजे शहीद पार्क पहुंच गए।
घर पहुंचने पर पता चला कि वे वायरल संक्रमण के शिकार हो गए हैं, तबियत कुछ नासाज सी है। मुझे ब्लॉगर रुम दे दिया गया, फ़िर तो कुछ कहना पूछना ही नहीं। ब्लॉगर को नेट-सेट मिल जाए तो जंगल में भी बैठ कर समय गुजार देगा। चाहे उस पर दीमक बांबियाँ भी बना ले तो भी पता न चले। रात के भोजन के पश्चात आदत के अनुसार 2 बजे तक नेट पर रहा। उसके बाद सोने का प्रयास किया। थोड़ी नींद आई और नहीं भी आई। इसी उहापोह में 6 बजे उठ गया। खिड़की से सूरज का प्रकाश आ रहा था और चिड़ियों का चहचहाना प्रारंभ हो गया, नीचे बगीचे में अली सा ने एक छोटा सा तालाब बना रखा है जिसमें मछलियाँ और कमल, कुमुदनी भी पाल रखे हैं।कुमुद के नीले फ़ूल बड़े सुंदर दिखाई दे रहे थे।
आस-पास में आम, कालीमिर्च, तेजपत्ता, और भी न जाने क्या-क्या लगा रखा है। चम्पा, चमेली, गुलाब, कटहल इत्यादि मतलब बगीचा अच्छा लगा रखा है। सुबह-सुबह मछलियाँ तालाब में कूद फ़ांद कर खेलने का मजा ले रही थी। एक दो मेंढक भी अली साहब ने दिखाए, जो तालाब में बलात प्रवेश कर गए थे। सांपों से दोस्ती के विषय में बताया। इसके बाद मैने नेट शुरु कर लिया और 10 बजे तक नहा धोकर तैयार। घर के बाहर कोचाई पत्ता दिखाई दिया। छत्तीसगढ में कहावत है कि किसी का बैठे बिठाए खर्च कराना हो तो उसके घर कोचाई पत्ता भेज दो। अर्थात कोचाई पत्ता तो दो रुपए का होगा पर उसकी सब्जी बनाने के लिए 50 रुपए और खर्चा करने पड़ेगें और उतनी ही मेहनत भी।
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महाराजा प्रवीरचंद भंजदेव |
हरी भरी वादियों एवं बेशकीमती इमारती लकड़ी के घने वनों से आच्छादित बस्तर धरती का स्वर्ग ही है। कल-कल करते झरने एवं प्रवाहित होती नदियाँ के साथ जंगल के प्राणियों से मुलाकात यहीं होती है। बस्तर तो मैं बरसों से जाता रहा हूँ। वर्तमान में नक्सली वारदातों के कारण पर्यटक जंगलों में भीतर नहीं जाते। बस्तर का नाम जेहन में आते ही राजा प्रवीरचंद भंजदेव की भी याद आती है। बस्तर के काकतीय वंशीय राज परिवार का इतिहास 14 वीं शताब्दी से प्रारंभ होता है, इसके प्रथम शासक आत्मदेव रहे हैं। बस्तर में आत्मदेव 1313 में राजा के रुप में प्रतिष्ठित हुए। इन्होने 47 वर्षों तक राज किया, 77 वर्ष की आयु में 1358 में इनकी मृत्यु हुई। कहते हैं कि आत्मदेव को देवी का वरदान प्राप्त था, कहा जाता है कि वे जहाँ तक विजय अभियान में जाएगें, देवी उनके साथ रहेगी, उन्हे देवी के पायल की आवाज सुनाई देती रहेगी। अगर उसने पीछे देखा तो विजय अभियान वहीं रुक जाएगा। एक बार उन्हे पायल की आवाज सुनाई नहीं दी, पीछे मुड़कर देख लिया। देवी के पैर नदी के रेत में धंसे होने के कारण पायल की आवाज सुनाई नहीं दी और उनका विजय अभियान वहीं रुक गया।
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राजमहल बस्तर- जगदलपुर |
गत 20-25 वर्षों में जगदलपुर जाने पर कई बार यहां के राजमहल के सामने गुजर जाता था, लेकिन कभी भीतर जाकर नहीं देखा। यहां का 75 दिनों का
दशहरा पर्व मशहूर है। इच्छा आज राजमहल को भीतर से जाकर देखने की थी। यह राजमहल कई शताब्दियों का इतिहास समेंटे हुए है। 25 मार्च 1966 को घटित घटना में राजा प्रवीरचंद भंजदेव एवं सैकड़ों आदिवासी इस राजमहल में मारे गए थे। सत्ता की लड़ाई में अक्सर मुकाबले होते रहे हैं जिनकी परिणिति मौतों से ही हुई है। राजा प्रवीरचंद भंजदेव आदिवासियों के बीच भगवान की तरह पूजनीय हैं। आदिवासियों के पूजा स्थल में प्रवीरचंद भंजदेव के चित्र अन्य स्थानीय देवी देवताओं के साथ मिल जाएगें। महल के दरबार कक्ष में राज प्रवीरचंद के चित्र के दर्शन करने के लिए आदिवासियों का आज भी तांता लगा रहता है। जो गांव से एक बार शहर आता है वह महल तक भी पहुंचता है। इनके वर्तमान वंशजो ने महल के हिस्से को किराए में दे रखा है। जिसमें व्यवसायियों ने अपने काम धंधे खोल रखे हैं। जो कबाड़ी बाजार जैसा दिखाई देता है।
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बस्तर राजमहल का मुख्य द्वार |
राजमहल में प्रवेश करने पर दिखा कि पहले हिस्से में नर्सिंग कॉलेज चलाया जा रहा है। कुछ विद्यार्थी नजर आए। सिर्फ़ महल का एक कक्ष ही खुला मिला। वहाँ और कोई जानकारी देने वाला नहीं था। पूछने पर बताया कि महारानी महल के उपरी हिस्से में निवास करती है। राजा प्रवीरचंद के वर्तमान वंशज कमलदेव भी से भी मुलाकात नहीं हुई। गत वर्ष उनसे रायफ़ल शुटिंग प्रतियोगिता के दौरान माना में ही मुलाकात हुई थी। साधारण रंग रोगन से ही महल को संवारा गया है। महल के मुख्य द्वार पर बस्तर राज की कुल देवी दंतेश्वरी माई का मंदिर है। वहां दर्शनार्थी भी मिले। दंतेवाड़ा में भी माँ दंतेश्वरी का मंदिर है। लकड़ी से निर्मित इस मंदिर में दर्शनों का अवसर मुझे कई बार मिला। एक बाबा जी ने बताया कि साक्षात देवी हैं। इसका अहसास उन्हे हुआ। मैं तो साधारण दर्शनार्थी ही था। मुझे तो धोती पहन कर सिर्फ़ विग्रह का ही दर्शन करना था और दर्शन किए भी।
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दलपत सागर जगदलपुर |
नीरज को मैने बताया नहीं था कि कहां रुका हूँ। दोपहर भोजन के पूर्व राजमहल गए, राजमहल के कुछ फ़ोटो लिए, उसके बाद दलपत सागर पहुंचे, जगदलपुर के दलपत सागर को दलपत देव ने अपने शासन काल 1722 से 1775 के बीच बनवाया था। दलपत सागर में पर्यटकों के लिए बोट की व्यवस्था है तथा म्युजिकल फ़ाउंटेन भी लगे हैं। मैं पहुचा तो कुछ युगल भी कोने में एकांतलाप कर रहे थे। एक के साथ एक फ़्री वाली योजना भी वहां साकार होती दिखाई दी। इस मामले में तो जगदपुर रायपुर के भी कान काटते नजर आया। लगा कि पाश्चात्य संस्कृति का अपमिश्रण फ़िल्मों के माध्यम से यहां तेजी से हो रहा है। अली सा के घर के पास बालाजी मंदिर है, जहाँ मैं पहले भी आ चुका हूँ, इस मंदिर को यहां के तेलगु समुदाय ने बनवाया है। तिरुपति बालाजी के प्रतिरुप जैसा ही है। दोपहर को यह मंदिर बंद रहता है और शाम के 6 बजे खुलता है। मंदिर के दीवारों एवं चौखटों पर खूबसूरत नक्काशी हुई है, मंदिर के सिंहद्वार पर देवी देवताओं एवं यक्ष किन्नरों की मुर्तियाँ बनी हैं। मंदिर का प्रांगण सुंदर एवं गरिमामयी है।
यहाँ से हम एन्थ्रोपोलाजी म्युजियम गए। जहां बस्तर के आदिवासियों के रहन-सहन संस्कृति संबंधी चित्र एवं वस्तुए प्रदर्शित किए गए हैं। जिससे उनके जन जीवन की जानकारी मिलती है। वहां पहुचने पर विद्युत अवरोध की सूचना मिली, म्युजियम में अंधेरा फ़ैला हुआ था। मेरे पास समय कम था, वहां के कर्मचारी को टार्च लाने की कही तो उसने टार्च नहीं होने की जानकारी दी। पर मुझे दरवाजे के पास एक होंडा कम्पनी का नया और बड़ा जनरेटर भी दिखाई दिया। उसे कहने पर भी चालु नही किया, उसका उपयोग बिजली व्यवस्था बनाने की बजाए खाने के टेबल के रुप में किया जा रहा था। चलो जनरेटर किसी काम तो आया, नहीं तो यूँ ही पड़ा रहता।
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बस्तर राज्य का राज चिन्ह |
घर पहुंचने पर दोपहर का खाना तैयार था। भोजनोपरांत अली सा ने मुझे अंकल के यहां छोड़ दिया। जो और साथी थे उनका कोई समाचार नहीं मिला। लगा कि उनका इंतजार करना बेमानी है, फ़ोन लगाने पर भी फ़ोन बंद मिला, मैने तुरंत बस की टिकिट बुक करवा ली, रात का खाना नीरज के साथ खाकर घर के लिए बस पकड़ ली। 11 बजे स्लीपर बर्थ पर डेरा डाला, लेटे लेटे सोच रहा था कि बस्तर की सुरम्य वादियों को किसकी नजर लग गयी। नक्सली एवं पुलिस नाम के दो पाटों के बीच लोग पिस रहे हैं, एक तरफ़ कुंआ और एक तरफ़ खाई वाला किस्सा है। इधर गए तो मरे और उधर गए तो मरे। जान बचाना है तो बस्तरिया मैजिक काम आएगा, न काहू से दोस्ती न काहू से बैर। हम भी जब चले थे तब बस्तरिया मैजिक का सरुर था, ज्यों-ज्यों दूर होते गए, बस्तर मैजिक का असर कुछ कम होने लगा तो नींद खुल गयी। देखा कि पौ फ़टने वाली है, अभी घर से कुछ दुर हैं, घर पहुंचे तो सुबह के 6 बज रहे थे।
NH-30 सड़क गंगा की सैर
जगदलपुर तो पहुंच गये। अब जरा किरंदुल वाली लाइन के बारे में भी बता देना।
जवाब देंहटाएंवाह ललित भाई खूब यात्रा करवाई जगदलपूर की भी और बस्तर के जंगलों की । दंतेश्वरी मंदिर के बारे में भैया से बहुत सुना था वे तब भिलाई में पोस्टेड थे एम पी ई बी में । पर जाना नही हो पाया । तस्वीरें बहुत ही सुंदर और साफ हैं । अली सा का बगीचा भी सुंदर लग रहा है ।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत नजारा, रोचक विवरण और अली साहब तो लाजवाब हैं ही.
जवाब देंहटाएंरोचक यात्रा विवरण के साथ एतिहासिक जानकारी बढ़िया लगी
जवाब देंहटाएंबस्तर यात्रा वृतांत मनभावन है .
जवाब देंहटाएंगुरु पूर्णिमा की बधाई .
अली भाई प्रिय व्यक्ति हैं। जगदलपुर जाने का मन है। पर कब यह आस पूरी होगी कहा नहीं जा सकता।
जवाब देंहटाएंबस्तर की खूब यात्रा करवाई ....दलपत सागर के स्टेचू दिल को मोह गए ...आभार !!!!!
जवाब देंहटाएंकई तरह की जानकारी समेटे हुआ यात्रा वृतांत ..
जवाब देंहटाएंदंतेश्वरी मंदिर ब्लॉग जगत में किसी पहेली में शामिल हो चुका है ..
वहां के 75 दिनों का दशहरा के बारे में जानकर ताज्जुब हुआ !!
बस्तर यात्र का सुन्दर वर्णन, न जाने कितने वर्षों का इतिहास समेटे हैं ये राजमहल।
जवाब देंहटाएंजानकारी देता यात्रा वृतांत
जवाब देंहटाएंअली सा से संक्षिप्त मुलाकात भिलाई में हो चुकी
अब जगदलपुर में मुलाकात का इरादा है
गुरूदेव मैजिक लाये हो तो रायपुर भी लेते आना साथ मिलकर लुफ़्त लिया जायेगा
जवाब देंहटाएंआप का बलाँग मूझे पढ कर अच्छा लगा , मैं भी एक बलाँग खोली हू
जवाब देंहटाएंलिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें.
गुरु पूर्णिमा की बधाई .
अगर आपको love everbody का यह प्रयास पसंद आया हो, तो कृपया फॉलोअर बन कर हमारा उत्साह अवश्य बढ़ाएँ।
रोचक यात्रा-वृतांत .....
जवाब देंहटाएंBahut pashand aai sir ji
जवाब देंहटाएंaapki yatra....aji ab to hamri bhi hui... ham bhi to samil ho gaye na.
अच्छा वृतांत है ललित भाई। खूबसूरत नजारे...वाह!
जवाब देंहटाएंअच्छी यात्रा।
जवाब देंहटाएंमजा आ गया।
बस्तर दर्शन करा दिया आपने तो।
आज 15- 07- 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएं...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
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बेहद ज्ञान वर्धक और रोचक..पढकर एक ख़याल आया. आप इस तरह की जगह की एक लघु फिल्म टाइप (डॉक्यूमेंट्री)क्यों नहीं बनाते.आजकल जो टीवी पर कचरा आ रहा है उससे कुछ निजात मिले.
जवाब देंहटाएंBanana cahiye bastar ka film
हटाएंबस्तर का सुन्दर वर्णन और ज्ञान वर्धक, रोचक एतिहासिक जानकारी देता सुन्दर चित्रों से भरा यात्रा वृतांत ... हार्दिक शुभकामनायें....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया यात्रा विवरण दिया है ... फोटो में हरियाली को देख कर लगता है की बस्तर जरुर घूमने आना पड़ेगा बहुत सुन्दर मनभावन आलेख प्रस्तुति...बधाई....
जवाब देंहटाएं@ ललित जी ,
जवाब देंहटाएंमुझे ये तो अंदाज़ था कि अपनी फोटो आपके साथ जाके रहेगी पर मौकाए वारदात बाद में समझ में आया :)
वाइरल के चक्कर में आपको तीरथगढ़ और चित्रकोट नहीं ले जा सका उसका अफ़सोस बना रहेगा !
@ सर्व टिप्पणीकार बंधु ,
आप जब भी उचित समझें , आपका स्वागत है !
@ राहुल सिंह जी ,
उस दिन सब कुछ त्वरा में गुज़र गया , आपके साथ गपशप की हसरत आज भी अधूरी है !
@ द्विवेदी जी ,
आप रायपुर भिलाई तक आ ही चुके हैं एक मौक़ा हमें भी दीजिए !
@ पाबला जी ,
जी ज़रूर ,आपका इंतज़ार रहेगा !
आमचो बस्तर कितरो सुन्दर.......
जवाब देंहटाएंबस्तर राज्य का राज चिन्ह से पहली बार परिचित,
रायपुर के भी कान काटते नजर आया। (दलपत) सागर किनारे दिल ये पुकारे... तू जो नहीं तो मेरा कोई नहीं है.....
बधाई....
बहुत सुंदर ओर उस गधे को भी देखा जॊ मोत के ऊपर बेठा हे नीचे से दुसरा चित्र:)
जवाब देंहटाएंबैठे बिठाए अचानक घूमने का विचार बन गया ! वो भी अकेले ! भाई कमाल करते हो .
जवाब देंहटाएंअज़ी आने ही वाले सावन के महीने में यूँ अकेले न घूमा करो . ;)
खैर मज़ा आया बस्तर घूमकर .
बस्तर यात्रा का मनोरम वर्णन, आपके साथ हमने भी बस्तर भ्रमण कर लिया।
जवाब देंहटाएं"ब्लॉगर को नेट-सेट मिल जाए तो जंगल में भी बैठ कर समय गुजार देगा। चाहे उस पर दीमक बांबियाँ भी बना ले तो भी पता न चले.' रोचक. मज़ा आया.गुरु पूर्णिमा की बधाई...
जवाब देंहटाएंहर ज़गह् दू अक्खी जारी है , अली भैया से ऐसी उम्मीद नही थी
जवाब देंहटाएंसुन्दर, रोचक, वृतांत... बढ़िया चित्र... मज़ा आगे...
जवाब देंहटाएंसादर...
जीवन के दस वर्ष बस्तर में गुजरे हैं.सारे दृश्य तरोताजा हो गये.
जवाब देंहटाएंapke yatra vrutant to sair kara dete hai...ali sahab ka bagecha bahut pasand aaya...bastar ke jungalon ki khoobsurati to hai hi..
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया वृतांत,
जवाब देंहटाएंसाभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
तुम अकेले कभी बाग में जाया न करो...
जवाब देंहटाएंदराल सर की नसीहत पर गौर फरमाइए ललित भाई....
जय हिंद...
तुम अकेले कभी बाग में जाया न करो...
जवाब देंहटाएंदराल सर की नसीहत पर गौर फरमाइए ललित भाई....
जय हिंद...
:)
जवाब देंहटाएंबहुत पहले बस्तर घूमना हुआ था....शायद राजमहल भी और बेलाडीला भी...यादें ताजा होती नजर आईं...बढ़िया वृतांत....
जवाब देंहटाएंआज हमने भी देख लिया यह जादू का शो .....आनंद आ गया .....बस्तर की यह यात्रा खूब रही ....सब कुछ समेट लेती है आपकी यात्रायें ....!
जवाब देंहटाएंबस्तर के बारे में पढ़ना मुझे हमेशा अच्छा लगा.लम्बे समय तक बस्तर और उस की संस्कृति भारत के अन्य लोगो से दूर रही.'घोटालू' के कारन कुछ विदेशियों ने इसे 'हाई लाईट' किया.उन लोगों का उद्देश्य यहाँ की जानकारी देने से ज्यादा उघडी देह को दिखाना रहा ऐसा मेरा अपना सोचना है.खेर....इस आर्टिकल में कई नै जानकारियां पढ़ने को मिली.राजा प्रवीरचंद भंजदेव जी का चित्र देख कर बहुत अच्छा लग रहा है.इनके जीवन से जुडी कई ऐसी बाते हैं जिसे हर ब्लोगर जानना और पढ़ना चाहेगा.प्लीज़ लिखियेगा.मुझे तो इंतज़ार रहेगा ही.उस पोस्ट की सूचना आप मुझे व्यक्तिगत रूप से जरूर दीजियेगा.वरना.....झगड़ा पक्का.हा हा हा
जवाब देंहटाएंक्या करू?ऐसिच हूँ मैं तो -झगड़ालू- कौन हूँ?क्यों बताऊँ? डोली नही हूँ बस हा हा हा
हे भगवान!मेरा कमेन्ट कहाँ गया?
जवाब देंहटाएं????????????????????????मेरा कमेन्ट.????
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