संसार का सबसे बड़ा
धन गाय को माना गया है और हमारी नामसमझी के कारण यह धन संकट में है। हमारे पूर्वजों
ने गौ पालन पर जोर दिया। जिसका कारण था कि गौ हमारी समृद्धि का प्रतीक है। गौ से ही
मनुष्यों की जाती में गोत्र का निर्माण हुआ। गायों के रहने के स्थान जिसे हम गौठान
कहते हैं वैदिक काल में उसे गौउत्र कहा जाता है। बड़े गौठानों का निर्माण गुरुकुलों
में होता था। उसे गौउत्र कहते थे। कालांतर में ॠषियों के यही कुल-गुरुकुल गौत्र कहलाए
और इनसे हिन्दुओं में कुल खानदान की पहचान बनी। एक गोत्र वाले भाई-सहोदर कहलाए। गौत्रों
का प्रारंभ गौ से ही हुआ जानना चाहिए।
गौमाता सर्वदेवमयी
है । अथर्ववेद में रुद्रों की माता, वसुओं की दुहिता, आदित्यों की स्वसा और अमृत की नाभि-संज्ञा से विभूषित किया गया है ।गौ सेवा से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों तत्वों की प्राप्ति सम्भव
बताई गई है । भारतीय शास्त्रों के अनुसार गौ में तैतीस कोटि देवताओं का वास है । उसकी पीठ में ब्रह्मा,
गले में विष्णु और मुख में रुद्र आदि देवताओं का निवास है । इस प्रकार
सम्पूर्ण देवी-देवताओं की
आराधना केवल गौ माता की सेवा से ही हो जाती है । गौ सेवा भगवत् प्राप्ति के
अन्य साधनों में से एक है । जहां भगवान मनुष्यों के इष्टदेव है, वही गौ को भगवान के इष्टदेवी माना है । अत: गौ सेवा से लौकिक लाभ तो मिलतें ही हैं पारलौकिक लाभ की प्राप्ति भी हो जाती
है।
शास्त्रों में उल्लेख
है कि गौ सेवा से मनुष्य को धन, संतान और दीर्घायु
प्राप्त होती हैं । गाय जब संतुष्ट होती है
तो वह समस्त पाप-तापों को दूर करती है । दान
में दिये जाने पर वह अक्षय स्वर्ग लोक
को प्राप्त करती है अत: गोधन ही वास्तव में सच्चा धन है । गौ सेवा से ही
भगवान श्री कृष्ण को भगवता, महर्षि गौतम,
कपिल, च्यवन सौभरि तथा आपस्तम्ब आदि को परम सिद्धि प्राप्त हुई ।महाराजा दिलीप को रघु
जैसे चक्रवर्ती पुत्र की प्राप्ति हुई । गौसेवा से ही अहिंसा धर्म को सिद्ध कर भगवान महावीर एवं गौतम बुद्ध ने अहिंसा
धर्म को विश्व में फैलाया । जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर भगवान आदीनाथ को ऋषभ भी कहते
हैं जिनका सूचक बैल ;ऋषभ द्ध है । वेद-शास्त्र स्मृतियां, पुराण तथा इतिहास गौ की महिमा से ओत-प्रोत है । और यहां तक की स्वयं वेद गाय को नमन करता है ।
ऋग्वेद में कहा
गया है कि जिस स्थान पर गाय सुखपूर्वक
निवास करती है वहां की घरती पवित्र
हो जाती है । पुरातन काल से ही हमारी भारतीय संस्कृति में गाय श्रद्धा का पात्र रही है । पुराण काल में एक ऐसी गाय की कल्पना की गई
है जो
हमारी सभी इच्छाओं की पूर्ति करती है
। इसे कामधेनू कहते हैं । यह स्वर्ग में रहती हैं और जन समाज के कल्याण के लिए मानव लोक में
अवतार ले लेती है ।भारतीय संस्कृति ही नही अपितु सारे विश्व में गौ का बड़ा सम्मान
रहा है । जैसे हम गौ की पूजा करते हैं उसी प्रकार
पारसी समाज के लोग सांड़ की पूजा करते हैं । सर्वविदित है कि मिश्र
देश के प्राचीन क्कों पर बैल की मूर्ति अंकित रहती थी ।
गौभक्त मनुष्य जिस-जिस वस्तु की
इच्छा करता है वह सब उसे प्राप्त होती है । स्त्रियों में भी जो गोओं की भक्त है वे
मनोवांछित कामनाएं प्राप्त कर लेती है ।पुत्रार्थी मनुष्य पुत्र पाता है और कन्यार्थी
कन्या । धन चाहने वाले को धन और धर्म चाहने वाले को धर्म प्राप्त होता है । दूध,
घी, दही के अतिरिक्त गौ का मूत्र और गोबर भी इतने
ही उपयोगी माने गये है । गवा मूत्रपूरीषस्य नोद्विजेत: कदाचन
। धर्म, अर्थ ,काम और मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों
की सिद्धि गौ से ही सम्भव है ।
गौ रक्षा हिन्दु धर्म
का एक प्रधान अंग माना गया है । प्राय: प्रत्येक हिन्दु गौ को माता कहकर पुकारता
है और माता समान ही उसका आदर करता है । जिस प्रकार कोई भी पुत्र अपनी
माता के प्रति किये गये अत्याचार को सहन नही
करेगा उसी प्रकार एक सच्चा हिन्दु
गौमाता के प्रति निर्दयता के व्यवहार
को सहन नही करेगा । गाय से शरीर से
जो सात्विक उर्जा निकलती है, उस घर या इलाके में गाय होने से
बहुत साड़ी अशुभ चीजें दूर हो जाती हैं l गाय के शरीर में सुर्यकेतु
नाड़ी होती है,
जो सूर्य किरणों को पीती है, इसलिए गाये के गोबर
व मूत्र में भी सात्विक पॉवर होता है l मरते समय भी गाय के गोबर का लीपन करके व्यक्ति को सुलाया
जाता है l
कैसी भी जहरी दवाएं
खायी हो, गौमूत्र थोड़े दिन पिये, Blockage खुल जायेगा और जहरी दवाओं का
असर उतर जायेगाl जिस रोग के लिए डॉक्टर ने मना कर दिया हो की
ये रोग ठीक नहीं हो सकता,
वो व्यक्ति घर में गाय पालें और चारा-पानी खुद
खिलाये और स्नेह करें l गाय की प्रसन्नता उसके रोमकूपों से प्रकट होगी और आप
अपने हाथ गाय की पीठ पर घुमाएंगे तो आपके हाथों की उँगलियों द्वारा वो प्रसन्नता, रोग प्रतिकारक
शक्ति बढाएगी l
२-४ महीने तक
ऐसा करें l
काली गाय का घी बुढापे में भी जवानी ले आता है
l हार्ट अटैक की तकलीफ
है और चिकनाहट खाने की मनाही है तो गाए का घी खाएं, हार्ट मज़बूत बनता है
एक वाकया याद आता है
जब करपात्री महाराज की अगुवाई में गौ रक्षा आंदोलन चल रहा था। भारत के लाखों लोगों
ने गौरक्षा की मांग को लेकर जेल भरो आन्दोलन किया। उस समय स्वामी श्रद्धानंद को दिल्ली
की जामामस्जिद में तकरीर करने के लिए मुसलमानों ने आमंत्रित किया। तब स्वामी श्रद्धानंद
ने जामा मस्जिद के मिम्बर से अपनी तकरीर की शुरुवात गां न हिंसी की सुक्ति से की। जिसका
अर्थ है गायों की हिंसा मत करो। स्वामी दयानंद ने गोकृष्यादिरक्षिणीसभा का निर्माण
किया तथा गौ आदि पशुओं की रक्षा के लिए राजाओं से लेकर आम जन तक का आव्हान किया।
सवाल आता है कि गौ
इतनी महत्वपूर्ण क्यों है?
इसे क्यों पाला जाए और रक्षा की जाए। इसके रक्षण और पालन को हिन्दू धर्म
में इतना अधिक महत्व क्यों दिया गया है? इसका जवाब स्वामी दयानंद
ने दिया है। वे गोकरुणा निधि में बताते हैं कि जो एक गाय न्यून से न्यून दो सेर दूध
देती हो, और दूसरी बीस सेर, तो प्रत्येक
गाय के ग्यारह सेर दूध होने में कुछ भी शंका नहीं । इस हिसाब से एक मास में ८।ऽ सवा
आठ मन दूध होता है । एक गाय कम से कम ६ महीने, और दूसरी अधिक
से अधिक १८ महीने तक दूध देती है, तो दोनों का मध्यभाग प्रत्येक
गाय के दूध देने में बारह महीने होते हैं । इस हिसाब से बारहों महीनों का दूध ९९।ऽ
निन्नानवे मन होता है । इतने दूध को औटा कर प्रति सेर में एक छटांक चावल और डेढ़ छटांक
चीनी डाल कर खीर बना खावें, तो प्रत्येक पुरुष के लिये दो सेर
दूध की खीर पुष्कल होती है । क्यूंकि यह भी एक मध्यभाग की गिनती है, अर्थात् कोई दो सेर दूध की खीर से अधिक खायेगा और कोई न्यून । इस हिसाब से
एक प्रसूता गाय के दूध से १९८० एक हजार नौ सौ अस्सी मनुष्य एक वार तृप्त होते हैं
। गाय न्यून से न्यून आठ और अधिक से अधिक अट्ठारह वार ब्याती है, इसका मध्यभाग तेरह वार आया, तो २५७४० पच्चीस हजार सात
सौ चालीस मनुष्य एक गाय के जन्म भर के दूधमात्र से एक वार तृप्त हो सकते हैं ।
इस गाय की एक पीढ़ी
में छः बछिया और सात बछड़े हुये । इनमें से एक का मृत्यु रोगादि से होना सम्भव है, तो भी बारह
रहे । उन छः बछियाओं के दूधमात्र से उक्त प्रकार १५४४४० एक लाख चौवन हजार चार सौ चालीस
मनुष्यों का पालन हो सकता है । अब रहे छः बैल, सो दोनों साख में
एक जोड़े से २००।ऽ दो सौ मन अन्न उत्पन्न हो सकता है । इस प्रकार तीन जोड़ी ६००।ऽ छः
सौ मन अन्न उत्पन्न कर सकती हैं, और उनके कार्य का मध्यभाग आठ
वर्ष है । इस हिसाब से ४८००।ऽ चार हजार आठ सौ मन अन्न उत्पन्न करने की शक्ति एक जन्म
में तीनों जोड़ी की है । ४८००।ऽ इतने मन अन्न से प्रत्येक मनुष्य का तीन पाव अन्न भोजन
में गिनें, तो २५६००० दो लाख छप्पन हजार मनुष्यों का एक वार
भोजन होता है । दूध और अन्न को मिला कर देखने से निश्चय है कि ४१०४४० चार लाख दश हजार
चार सौ चालीस मनुष्यों का पालन एक वार के भोजन से होता है । अब छः गाय की पीढ़ी परपीढियों
का हिसाब लगाकर देखा जावे तो असंख्य मनुष्यों का पालन हो सकता है । और इसके मांस से
अनुमान है कि केवल अस्सी मांसाहारी मनुष्य एक वार तृप्त हो सकते हैं । देखो !
तुच्छ लाभ के लिये लाखों प्राणियों को मार असंख्य मनुष्यों की हानि करना
महापाप क्यों नहीं ?
वेदों में कहा गया
हैः गावो विश्वस्य मातरः। अर्थात् गाय सम्पूर्ण विश्व की माता है। महाभारत में भी आता
हैः मातरः सर्वभूतानां गावः सर्वसुखप्रदाः। 'गौएँ सभी प्राणियों की माता कहलाती हैं।
वे सभी को सुख देने वाली हैं।' गौमाता की सेवा भगवत्प्राप्ति
के साधनों में से एक है। गौदुग्ध का सेवन करना भी गौ-सेवा है। जब
गाय का दूध हमारा आवश्यक आहार हो जायेगा, तब उसकी आपूर्ति के
लिए गौ-पालन तथा गौ-संरक्षण की आवश्यकता
होगी। गाय के दूध, दही, घी, गौमूत्र तथा गोबर की विशेष महिमा है। अग्नि, भविष्य,
मत्स्य, पद्म आदि पुराणों में गौदुग्ध की महिमा
का वर्णन मिलता है। गौदुग्ध में जो विशेष पोषक तत्त्व पाये जाते हैं, वे अन्य किसी के भी (भैंस, बकरी
आदि के) दूध में नहीं पाये जाते हैं।
गाय का दूध धरती का
साक्षात् अमृत है। यह सर्वोत्तम पेय तथा खाद्य-पदार्थों में सम्पूर्ण व सर्वश्रेष्ठ
आहार के साथ ही अमूल्य औषधि भी है। मानव की शारीरिक, मानसिक तथा
आध्यात्मिक शक्ति बढ़ाने वाला गाय के दूध जैसा कोई दूसरा आहार तीनों लोकों में नहीं
है। इसमें तेजतत्त्व अधिक मात्रा में एवं पृथ्वी तत्त्व बहुत कम मात्रा में होने से
इसका सेवन करने वाला व्यक्ति प्रतिभा-सम्पन्न व तीव्र ग्रहण-शक्तिवाला हो जाता है। गाय का दूध स्वादिष्ट, स्निग्ध,
सुपाच्य, मधुर, शीतल,
रूचिकर, बल, बुद्धि व स्मृति
तथा रक्तवर्धक, आयुष्यकारक एवं जीवनीय गुणदायक है। आचार्य वाग्भट्ट
के 'अष्टांगहृदय' ग्रंथ में उल्लेख है कि
सब पशुओं के दुग्धों में गाय का दुग्ध अत्यंत बलवर्धक और रसायन है। गव्यं तु जीवनीयं
रसायनम्।
मध्यकाल में अरब के
चिकित्सकों ने और सन् 1867
में रूप और जर्मनी के चिकित्सकों ने दूध के औषधीय महत्त्व को समझा। अमेरिका
के डॉ. सी.करेल ने अन्य औषधियों से निराश
सैंकड़ों रोगियों को दुग्धामृत से स्वस्थ किया।विश्व का सबसे धनी व्यक्ति रॉकफेलन जब
मेदरोग से पीड़ित हो गया तब किसी भी औषधि से उसे फायदा नहीं हुआ। उस समय गाय का दूध
उसके लिए वरदान साबित हुआ।
गौदुग्ध में पाये जाने
वाले आवश्यक तत्त्व-आचार्य सुश्रुत ने गौदुग्ध को जीवनोपयोगी तथा आचार्य चरक ने इसे जीवनशक्ति
प्रदान करने वाला द्रव्यों में सर्वश्रेष्ठ और रसायन कहा हैः प्रवरं जीवनीयानां क्षीरमुक्तं
रसायनम्। क्योंकि इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेटस, उच्च श्रेणी की लैक्टोज शर्करा, खनिज पदार्थ,
वसा आदि शरीर के सभी पोषकतत्त्व भरपूर मात्रा में पाये जाते हैं। इसमें
आवश्यक सभी एमिनो एसिडस प्रचुर मात्रा में होते हैं, जो अनाज,
सब्जी, अण्डा व मांस की तुलना में उच्च गुणवत्ता
वाले होते हैं। दुग्ध-वसा अन्य वसाओं की तुलना में सुपाच्य होती
है। रोज एक गिलास (250 ग्राम) दूध पीने
से शरीर की प्रतिदिन के कैल्शियम की 75 प्रतिशत आवश्यकता,
बच्चों की विटामिन बी-12 की 40-60 प्रतिशत आवश्यकता, व्यस्कों की वसा की 25-30 प्रतिशत आवश्यकता पूरी हो जाती है।
स्ट्रांशियम केवल गौदुग्ध
में ही पाया जाता है,
जो एटम बम के अणु-विकिरणों (एटॉमिक रेडियेशन्स) के विषकारक प्रभाव का दमन करता है।
दूध में विद्यमान 'सेरीब्रोसाइडस' तत्त्व
मस्तिष्क व बुद्धि में सहायक होते हैं। एम.डी.जी.आई. प्रोटीन शरीर की कोशिकाओं
की कैंसर से रक्षा करता है। गौदुग्ध सेवन से लाभः
यदि आप चाहते हैं कि आपके बच्चों का शरीर हृष्ट-पुष्ट, सुंदर एवं सुगठित हो, वे मेधावी और प्रचंड बुद्धि-शक्तिवाले व विद्वान बनें तो उन्हें नियमित रूप से देशी गाय का दूध व मक्खन
खिलायें-पिलायें। गाय का दूध वात, पित्त,
कफ तीनों दोंषों का शमन करने वाला है। दूध शरीर की जलन को मिटाता है।
अन्न पाचन में सहायता करता है। शिशु से वृद्ध तक सभी उम्र के लोगों के लिए गौदुग्ध
का सेवन हितकर है। छः माह से अधिक आयु के छोटे बच्चों को दूध में आधा भाग पानी मिलाकर
उबाल के पिलाना चाहिए। दाँत निकलने की अवस्था में शिशुओं को दूध में जौ का पानी मिलाने
से दूध सहज में ही पच जाता है।
दूध को खूब फेंटकर
झाग पैदा करके धीरे-धीरे घूँट-घूँट पीना चाहिए। इसका झाग त्रिदोषनाशक,
बलवर्धक, तृप्तिकारक व हलका होता है। अतिसार,
अग्निमांद्य तथा जीर्णज्वर में यह बहुत लाभदायक है। नियमित गौदुग्ध-सेवन से नेत्रज्योति तथा स्मरणशक्ति से खूब वृद्धि होती है। दूध में गाय का
घी मिलाकर पीने से मेधाशक्ति बढ़ती है। श्यामवर्ण की गाय का दूध विशेषरूप से वातशामक
होता है। धारोष्णममृतोपमम्। सद्यः शुक्रकरं धारोष्णं पयः। गाय को दुहते ही अविलम्ब
वह दूध पीने से (धारोष्ण दुग्धपान से) अमृतपान
के समकक्ष लाभ होता है।
आयुर्वेद के अनुसार
गाय का दूध, दही, घी, मक्खन व छाछ अमृत का भंडार
है। एकमात्र गाय की ही रीढ़ में 'सूर्यकेतु' नाड़ी होती है। अन्य प्राणी व मनुष्य जिन्हें नहीं ग्रहण कर सकते उन सूर्य
की गौकिरणों को सूर्यकेतु नाड़ी ग्रहण करती है। यह नाड़ी क्रियाशक्ति होकर पीले रंग
का एक पदार्थ छोड़ती है, जिसे 'स्वर्णक्षार'
कहते हैं। इसी कारण देशी गाय का दूध, मक्खन व घी
स्वर्ण-कांतियुक्त होता है। जो व्यक्ति जीवनपर्यन्त देशी गाय
के दूध का सेवन करते हैं, वे निःसंदेह स्वस्थ, वीर्यवान, बुद्धिमान, शक्तिशाली
एवं दीर्घजीवी होते हैं तथा उनके विचारों में भी सात्त्विकता रहती है। देशी गाय का
ही दूध हितकर है, जर्सी, होल्सटीन या उनकी
संकर प्रजातियों का नहीं। डेयरी प्रक्रिया (जैसे-पाश्चुराइजेशन) से भी दूध का सात्त्विक प्रभाव व पोषक
तत्त्व नष्ट होते हैं।
इन दिनों आप पर सरस्वती की बहुत कृपा है -गो गंगा गायत्री हिन्दू धर्म के भी प्राण तत्व हैं -आभार
जवाब देंहटाएंलालन पालन में गौ सा कोई नहीं..घर में गायें पाली हैं और बच्चों ने बचपन भर गाय का ही दूध पिया है।
जवाब देंहटाएंवास्तव में आपने सही फर्माया है "गौमाता सर्वदेवमयी है "
जवाब देंहटाएंहमारे घर पर भी गायं हमारे बचनप से पाली जाती रही हैं परन्तु हमने कभी इतने आंकड़े निकालकर नहीं देखे ललीत जी गणीत में आंकड़े निकालने में आपका जबाब नहीं अगर प्रत्येक गाय पालक ये आंकडै निकालकर देखे तो सही मायेने में गाय की रक्षा संभव हे।
आजकल तो हालात बदतर हो गये है।
जवाब देंहटाएंसबसे पहली बात है कि बच्चा माँ के बाद गाय का दूध पीता है... बहुत सुंदर लेख..
जवाब देंहटाएंगौ माता के परताप से आप पर सरस्वती की कृपा बनी रहे.
जवाब देंहटाएंआलेख बहुत ही ज्ञानवर्धक है. आभार.
जवाब देंहटाएंगाय के महत्व पर बहुत सुंदर लेख लिखा है ..
ऐसे लेख पढकर भी लोगों की आंख खुले तो अच्छा हो !!
हमारे दादा जी घर में हमेशा एक गाय रखते थे। कहते थे , गाय के दूध से बुद्धि का विकास होता है और भैंस के दूध से हिंसा की प्रवृति बनती है।
जवाब देंहटाएंआजकल तो चलन बीफ का है, हो सकता है कोई ज्ञानी अभी टिप्पणी में बीफ के फायदे और ऋगवेद में गौमांस भक्षण के बारे में टिप्पणी छोड़ जाये.
जवाब देंहटाएंपाण्डित्यपूर्ण.
जवाब देंहटाएंगोत्र के निर्माण की बढ़िया जानकारी मिली... ज्ञानवर्धक आलेख...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर वर्णन किया है आपने ...
जवाब देंहटाएंयह व्यक्ति भी गौ माता की असीम कृपा
के कारण ही, और सबसे बड़ी कृपा तो ननिहाल
मातामह, मातामही, मातुलान द्वारा गौ दुग्ध प्रबंध
कर इस पातक को खड़ा करने के कारण ही,
इस मुकाम तक पहुंचा है .......आभार ललित भाई ...