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बौद्ध स्तूप |
हमारा कार्यक्रम प्रात: 9 बजे तक सिरपुर से सिंघधुरवा के लिए निकल जाने का था। लेकिन सुबह की सैर में प्रभात सिंह के साथ वेदपाठ शाला एवं स्तूप देखने के लिए चल पड़े। सिरपुर से पूर्व दिशा में रायकेरा तालाब के किनारे से स्तूप के लिए रास्ता जाता है। स्तूप तक पहुंचने के लिए धान के खेतों को पार करना पड़ता है। खेतों की मेड़ से होकर हम स्तूप तक पहुंचे। स्तूप से लगी हुई वेद पाठशाला है। जहाँ विद्यार्थियों के आवास के साथ शिक्षा का भी प्रबंध था। यहाँ के भवन में दो अंतराल हैं, उसके बाद दो कमरे भी हैं जहाँ विद्यार्थियों के साथ आचार्यगण भी निवास करते रहे होगें। वेद पाठशाला से लगा हुए मंदिर में शिव लिंग स्थापित है। यह मंदिर पंचायतन शैली में निर्मित है। गर्भ गृह के सामने मंडप बना हुआ है।
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वेद पाठशाला |
स्तूप और मंदिर समीप ही बने हैं। इससे जाहिर होता है कि दोनो सम्प्रदायों में सामंजस्य रहा होगा। स्तूप का पुनर्निर्माण उत्खन में उपलब्ध सामग्री से किया गया है। जब हम स्तूप स्थल पर पहुंचे तो सूर्योदय हो रहा था। मैने इसे "अरुणोदय स्तूप" का नाम दिया। स्थल की पहचान के लिए नामकरण भी आवश्यक है। यहाँ तक पहुंचने के लिए पर्यटन विभाग ने कांक्रीट का रास्ता बनाया है। लेकिन बीच में किसानों की खेती की जमीन होने के कारण खेतों की मेड़ से जाना पड़ता है, जिससे फ़िसल कर गिरने की आशंका बनी रहती है। एक स्थान पर तो मैं फ़िसल ही गया था। इसके बाद मेड़ पर चलने की बजाए धान के खेतों के बीच से ही जाना उपयुक्त समझा।
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बालेश्वर मंदिर |
स्तूप एवं वेद शाला से लौटकर हम लक्ष्मण मंदिर के बाएं तरफ़ स्थित बालेश्वर शिव मंदिर समूह आ गए। यहाँ पश्चिमाभिमुख ताराकृति अधिष्ठान पर युगल मंदिर स्थापित है। उत्खनन में "शिवगुप्त राजस" मिट्टी की छाप मिलने एवं ताम्रपत्र में बालेश्वर मंदिर उल्लेखित होने एवं महाशिवगुप्त द्वारा बालार्जुन उपाधि धारण करने के कारण इस मंदिर का नामकरण बालेश्वर शिव मंदिर उत्खननकर्ताओं द्वारा किया गया। काले पत्थर से निर्मित इस मंदिर के चारों कोनो पर एक-एक मंदिर के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इसलिए इसे पंचायतन शैली का माना जाता है। बालेश्वर मंदिर की लम्बाई 22 मीटर एवं चौड़ाई 10 मीटर है। मंदिर के जंघा का निर्माण सिरपुर के अन्य स्मारकों के जैसे प्रस्तर खंडों से हुआ है तथा जंघा से उपर का हिस्सा ईंटों से निर्मित है।
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बालेश्वर मंदिर पुजारी आवास |
मंदिर की निर्माण योजना में गर्भगृह, अंतराल, मंडप तथा एक से अधिक बरामदों का निर्माण किया गया है। बरामदों को अलग करने के लिए दीवारों तथा अष्टकोणिय प्रस्तर स्तंभों का प्रयोग हुआ है। इन स्तंभों के मध्य अत्यंत अलंकृत युगल एवं सिंह ब्याल आदि की मूर्तियाँ स्थापित की गयी हैं तथा विभिन्न कथाओं का भी अंकन है। मंदिर के उत्खनन से प्राप्त मृण मुद्रा एवं अभिलेखों के अध्ययन एवं लिपि शास्त्रिय प्रमाणों के आधार पर इस मंदिर का निर्माण सातवी सदी ईस्वीं माना गया है। यह मंदिर केन्द्रिय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के संरक्षण में है। अभी यहाँ पर संरक्षण कार्य जारी है। लेकिन भग्न मंदिर की निर्माण सामग्री का उपयोग मंदिर के शिल्प की मांग के अनुसार नहीं हो रहा। एक स्थान पर तो सिरदल के पत्थर को अधिष्ठान के फ़र्श में लगा दिया गया है।बालेश्वर युगल मंदिर से लगा हुआ दक्षिण दिशा में पुजारी आवास है। इस पुजारी आवस में एक अंतराल एवं एक ही कक्ष निर्मित है। इतने बड़े क्षेत्र में विशाल युगल मंदिर को देखते हुए पुजारी आवास छोटा ही लगा।
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शिव मंदिर |
बालेश्वर मंदिर के पिछले द्वार से हम गंधेश्वर मंदिर के आगे स्थित जैन विहार पहुंचे। सिरपुर में उत्खनन के दौरान 3 जैन विहार प्राप्त हुए हैं। यह जैन विहार महानदी के किनारे पर स्थित है। उत्खननकर्ताओं ने यहाँ से प्राप्त जैन मुर्तियों को 6 वीं शताब्दी की माना है। उत्खनन के दौरान ये मुर्तियाँ सातवाहन काल की परत के नीचे प्राप्त हुई हैं। अनुमान है कि बौद्धों के आगमन के पूर्व ही जैन धर्मी सिरपुर में बस गए थे। ईसा पूर्व 6 वीं शताब्दी में सिरपुर का व्यापार अपनी चरम सीमा पर था। जैन धर्म के अनुयायी व्यापारी थे और सिरपुर व्यापार का प्रमुख केन्द्र था। इसलिए यहाँ जैन धर्म की स्थापना हो चुकी थी। सिरपुर में पूर्व में उत्खनन में प्राप्त जैन धर्म से संबंधित मूर्तियाँ लक्ष्मण मंदिर स्थित संग्रहालय में रखी हुई हैं। यहाँ उत्खनन में पार्श्वनाथ की 3 मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। जिनमें 7 फीट 4 इंच ऊँची (सबसे ऊँची) प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में है। सिर के पीछे 7 फनवाले नाग देवता हैं। शेष 2 मूर्तियाँ इससे नाम मात्र की छोटी है।
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मंडप एवं आवास |
जैन विहार के साथ ही गंधेश्वर मंदिर के पूर्व में विशाल शिवमंदिर उत्खनन के दौरान प्राप्त हुआ है। यह पूर्वाभिमुख मंदिर लगभग डेढ मीटर ऊंचे अधिष्ठान पर निर्मित है। 12 तोरण वाले प्रस्तर स्तंभों का तोरण द्वार है, इसके पूर्व की सीढियों के दोनो तरफ़ हाथी बांधने के पत्थर हैं। पंचायतन शैली के मुख्य मंदिर में प्रवेश करने के लिए उत्तर एवं दक्षिण दोनो तरफ़ सीढियाँ बनी हुई हैं। गर्भ गृह में श्वेत रंग का धारा लिंग योनिपीठ पर स्थापित है। मंदिर में दो परकोटे हैं। भीतरी परकोटा ईंटों से एवं बाहरी परकोटा पत्थर से बना हुआ है। मंदिर के दोनो परकोटों के बीच रंग शाला एवं सभा मंडप भी बना हुआ है। मंदिर की दक्षिण दिशा में पुजारी आवास बना हुआ है तथा भीतरी परकोटे में यात्रियों के निवास के लिए कमरे बने हुए हैं।
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शिव मंदिर एवं जैन विहार का प्रवेश द्वार |
इस मंदिर के पूर्व दिशा में बाजार क्षेत्र लग जाता है। बाजार में स्थित होने के कारण इस मंदिर तक सभी श्रद्धालु एवं व्यापारी दर्शनार्थ आते होगें । मंदिर से लग कर ही बड़ी आवासीय संरचना प्राप्त हुई है। इसका प्रवेश द्वार व्यापार क्षेत्र की ओर है। इस आवासीय संरचना के साथ ही शिल्प निर्माण केन्द्र भी प्रकाश में आए हैं। वास्तु शास्त्र के अनुसार इन निर्माणों में मध्य में रास्ते है कमरे के किवाड़ दो पल्लों के होते थे। पहली मंजिल पत्थरों एवं दूसरी मंजिल ईंटो से निर्मित है। प्राय: सभी कमरों में धान कूटने के लिए गड्ढे बने हुए हैं। उपरी मंजिल की छत कवेलू के स्थान पर पत्थरों के छप्पर की बनाई जाती थी। मकानों के प्रत्येक समूह के समीप पेयजल की व्यवस्था के लिए कुंओं का निर्माण किया गया है। उत्खननकर्ता अरुण कुमार शर्मा इस निर्माण को ईसा पूर्व 6 वीं शताब्दी से लेकर ईसा के बाद चौदहवीं शताब्दी का मानते हैं। अब हम अगले पड़ाव की ओर जाने की तैयारी में लग गए। …… जारी है ……
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मैने इसे "अरुणोदय स्तूप" का नाम दिया। स्थल की पहचान के लिए नामकरण भी आवश्यक है।
जवाब देंहटाएंआपकी जिज्ञासा और पुरातात्विक दृष्टि इस पोस्ट में उभर कर सामने आई है .....!
आलेख खोज परक है.. @केवलराम जी. अरुणोदय स्तूप उत्तम नामकरण मित्र
जवाब देंहटाएंऔर भी स्तूपों की संभावना है सिरपुर में.
जवाब देंहटाएंसिरपुर में बहुत कुछ देखना बाकी रह गया. आपके द्वारा मिलने वाला आँखों देखा हाल भी कम नहीं है, आगे के पड़ाव की जानकारी की उत्सुकता है... आभार
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब वाह!
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार जानकारी दी, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
घुमक्कड़ी के लिहाज़ से रोचकवर्णन है. परंतु जहां तक "अरुणोदय" स्तूप(?) का प्रश्न है,उस पर यदा-कदा संदेह व्यक्त किया जाता रहा है!प्रथमत: इसकी प्रमाणिकता पर सवाल उठाये जाते रहे हैं और यदि इसे स्तूप मान भी लिया जाय, तो भी उसकी तिथि उतनी पीछे नही जा सकती है ।६ठी शताब्दी ईसापूर्व मे मात्र आठ बौद्ध स्तूप,बुद्ध के महापरिनिर्वाण के तत्काल बाद पूर्वी उत्तर प्रदेश के सरयू पार क्षेत्र मे आठ गणराज्यों मे बने थे तथा अशोक महान ने अपने शासन काल मे इन प्रारम्भिक स्तूपों से अस्थि अवशेष निकलवाकर देशपर्यंत स्तूप बनवाये । अत:इस स्तूप (?) को किसी भी दशा मे अशोक से पूर्व का नही माना जा सकता है । परंतु मेरे अनुमान से इसकी प्राचीनता शरभपूरियो के काल की है !
जवाब देंहटाएंन केवल छत्तीसगढ़ निवासियों के लिए बल्कि सभी पर्यटन प्रेमियों के लिए उत्तम जानकारी देने के लिए धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंमहोदय मेरे मन में एक शंका है। इस पृष्ठ में आपने वैदिक पाठ शाला का जो चित्र पोस्ट किया है, वह शिव मंदिर से संलग्न भवन का है। जबकि स्थानीय गाइड्स् इस मंदिर के दक्षिण में स्थित एक लघु सरोवर के तट पर बनी संरचना को वैदिक पाठशाला बताते हैं। कृपया शंका समाधान करने की कृपा करें।
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