रास्ते की बस्तियाँ सुनसान थी। ठंड अधिक होने कारण लोग अपने घरों के दरवाजे बंद कर गरम हो गए थे। हम जंगल में भटक रहे थे। ये कैसी विडमबना है कि जंगल का आदमी शहर की तरफ़ भागता है और शहरी जंगल की तरफ़। हम तो सभी जगह खुश रहते हैं। जहाँ जो मिल जाए वही चल जाए। एक यायावर की जिन्दगी यही होती है। जाहि बिधि राखे राम तेही बिधि रहिए। वीरान कच्चे रास्ते पर लक्जरी कार चलना ऐसा लगता है कि जैसे कार के साथ अत्याचार हो रहा है। मुझे ठंड लग रही थी। हम रेस्ट हाउस पहुचे तो चौकीदार तैयार था। उसने आकर गेट खोला और हम रेस्ट हाऊस के भीतर हुए। चारों तरफ़ बिजली की रोशनी थी। जहाँ तक बिजली की रोशनी थी वहीं तक दिखाई देता था उसके आगे अंधेर गुप्प था।
विश्राम गृह मेहता पाईंट |
मेहता पाईंट के इस रेस्ट हाऊस में दो भवन हैं। एक भवन में तीन कमरे हैं और दूसरे भवन में दो कमरे। जिनकी हालत खस्ता है। दो कमरे वाले भवन में पलंग बिछा है जिस पर गद्दे लगे हुए थे। चौकीदार से चादर मंगाई तो उसे देखकर यहाँ ठहरने की हिम्मत नहीं हुई। हमारे पास कम्बल और चादर थी। साथ ही एक बालक की जिद के कारण हमें रुकना ही पड़ गया। चादरों की हालत देख कर लग गया था कि यहाँ का चौकिदार कितना अधिक कामचोर है। 10 रुपए के निरमा पावडर से चादर साफ़ हो सकती थी। लेकिन सरकारी मामला है, वह क्यों मगजमारी करे। पूछने पर कहने लगा कि अगर कोई बड़ा अधिकारी इधर आता है तो साहब लोग अम्बिकापुर से सारा सामान साथ ले आते हैं। यहाँ से कुछ भी लेने की जरुरत नहीं पड़ती।
इस रात की सुबह नहीं |
राहुल ने गाड़ी से उतरते ही कैम्प फ़ायर का मन बना लिया चौकीदार के साथ लकड़ियां लेकर आया और रेस्ट हाऊस के पीछे कुर्सियां और टेबल लगवाई। फ़िर कैम्पफ़ायर हुआ। खाने का कार्यक्रम शुरु हुआ। चौकीदार भी वहीं बैठ गया आगी तापने के एवं कैम्पफ़ायर का मजा लेने के लिए। कहने लगा कि आप पहले बता देते तो मैं खाना यहीं बना देता। क्योंकि कुक्कड़ कम पड़ गए। अब गांव में सब लोग सो गए होंगे इसलिए मिलने से रहे। हमें भी लगा कि पहले ही इंतजाम कर लिया होता तो ठीक था। लेकिन अब क्या करते जितने भी थे वहीं उदरस्थ किए। राहुल ने फ़िर माउथ आर्गन बजा कर ब्लंडर किया। हँसी मजाक के साथ कार्यक्रम चलते रहा। इतनी ठंड में खुले आसमान के नीचे भी बैठना बेवकूफ़ी ही है।
कैम्प फ़ायर |
रामसे बदर्स की फ़िल्म का चौकीदार अपनी चादर ओढ कर हमारे पास ही बैठ गया । रात गहराते जा रही थी, जंगली जानवरों की आवाजें आने लगी। सूनसान वीराने में हल्की सी आवाज भी दूर तक हवा में तैर जाती है। कार के एफ़ एम रेडियो पर रायगढ का प्रसारण चल रहा था। हम फ़ोन इन कार्यक्रम का आनंद ले रहे थे। एफ़ एम आने के बाद ग्रामीण अंचल में रेडियो का चलन एक बार फ़िर बढ गया। साथ ही गांव तक मोबाईल फ़ोन पहुचने के कारण फ़ोन इन कार्यक्रम काफ़ी सफ़ल हो रहे हैं। रात्रि का भोजन करने के बाद ग्रामीण रेडियो सुनते हुए अपनी फ़रमाईश का गाना सुनने के लिए फ़ोन लगाते रहते हैं। जिसका फ़ोन लग गया समझो उसकी तो बल्ले बल्ले हो गई। साथ ही फ़ोन करने वाला भी एंकर के साथ इतनी आत्मीयता से बात करता है जानों उसे बरसों से जानता हो। बस सुनसान स्थान पर कैम्प फ़ायर के साथ रेडियो का आनंद अद्भुत वातावरण बना रहा था।
आग की गर्मी के सहारे तिहारे पियारे |
चौकीदार से मैने रेस्ट हाऊस की बुरी हालत के विषय में पूछा तो कहने लगा कि - सर क्या बताऊं आपको, इस साल में सिर्फ़ 3 बार ही यहां पर कोई रुका है आकर। अब आप लोग चौथे हैं जो यहाँ रात को ठहर रहे हैं। कोइ डर के मारे यहाँ रुकता ही नहीं है। आस-पास भी 2-3 किलोमीटर तक कोई आबादी नहीं है, यदि कोई हादसा हो गया तो मुफ़्ते में मारे जाएगें। रात को जंगली जानवर आते हैं। बरहा और भालुओं की तो भरमार है। जब मेरी चौकीदारी यहाँ लगी तो सब खंडहर पड़ा था। उधर (मैदान की तरफ़ संकेत करते हुए) सब झाड़-झंखाड़ था। मेरे आने के बाद सब बिल्डिंग की मरम्मत हुई। एक बात बताऊं सर! यहाँ पर कई चुडैलों का डेरा है। मै कई बार सुना हूँ। छत पर धम-धम कूदने की आवाज आती है। कमरों में छन-छन पायल की आवाज आती है। मैं यहाँ पर अकेला रहता हूँ। एक साथी और है जो आ जाता है दोनो यहाँ रहते हैं। नहीं तो अकेला ही रहना पड़ता है।
स्वानानंद महाराज अपने चेले के साथ आग तापते हुए |
हम लोग तो यहीं के रहने वाले हैं। किसी चीज से नहीं डरते। यहीं खाना बना लेते है और पड़े रहते हैं। दिन में घूमने वाले आते हैं और खा-पीकर घूम-घाम कर चले जाते हैं। रात को सिर्फ़ हम ही बचते हैं। वह धारा प्रवाह कथा कहे जा रहा और हम उसकी बात सुनते जा रहे थे। तो चुडैलें अभी भी हैं क्या? अभी नहीं हैं, एक बाबाजी यहां आकर रुके तो उन्होने भी कहा था कि यहां पर चुड़ैले हैं। बोले कि दूबारा आऊंगा तो इनका मंतर-तंतर से इलाज कर दुंगा। कुछ दिनों के बाद वे दुबारा आए तो उन्होने कुछ जादू मंतर किया । अब क्या किया वे ही जाने, तब से पायल बजने की आवाजें आना बंद हो गयी कहते हुए उसने धीरे से चादर के भीतर से गिलास निकालकर धीरे आगे सरका दिया। दो स्वानानंद महाराज भी आनंदित भए चौकिदार का प्रवचन सुन रहे थे।
लो हो गया अब कैम्प फ़ायर |
फ़िर आगे कहने लगा कि ये पूरा ईलाका सरगुजा राजा का था। बूढे लोग बताते है कि कीर्ति राजा यहां पर शिकार खेलने आते थे तो हांका करने के लिए आस पास के सारे गांव वालों को जाना पड़ता था। जो जिस हालत में होता था उसे उसी हालत में जंगल में हांका करने जाना पड़ता था। अगर चुल्हे पर हंडी चढी है तो उसे भी वैसे ही छोड़ कर जाना होता था। जब तीन तरफ़ से हांका शुरु होता था तब राजा शेर का शिकार करते थे। मैट्रिक तक पढा-लिखा चौकिदार होशियार बहुत है। उसकी बाते चल रही थी और मुझे नींद आ रही थी। बिजली की रोशनी होने के कारण कोई समस्या नहीं थी। अगर बिजली चली जाती तो आग की रोशनी में भूत ही भूत दिखाई देते। मैं तो सोने चला आया कमरे में। पंकज पहले ही आकर सो गया था। राहुल कब तक उसकी कहानी सुनता रहा पता नहीं। निद्रा देवी भी कब तक प्रतीक्षा करती। उसे भी तो अपनी जिम्मेदारी निभानी थी……… आगे पढ़ें
लगा कि ट्रेलर है यह और आप कहने वाले हैं- 'अब आगे देखिए रुपहले परदे पर'
जवाब देंहटाएंअच्छा किया कि रात नहीं पढ़ा, पढ़ लिये होते तो नींद नहीं आती।
जवाब देंहटाएंअगली कड़ी का इंतजार
जवाब देंहटाएंरात में कैम्पफायर! शानदार.
जवाब देंहटाएंबढ़िया चल रहा है!
जवाब देंहटाएंchchchc vo babaji aapse pahle vaha kyon pahunch gaye..aapko bhi chudailo ke darshan ho jate..
जवाब देंहटाएंभूत - चुड़ैल हो या ना हो चित्र में जगह बड़ी ही डरावनी और सुनसान दिखाई दे रही है, आगे के विवरण का इंतजार है...
जवाब देंहटाएंठण्ड भरी रात में अक्सर भुत प्रेत ही निकलते हैं।
जवाब देंहटाएंरोचक विवाहित स्त्री होना :दासी होने का परिचायक नहीं आप भी जाने कई ब्लोगर्स भी फंस सकते हैं मानहानि में .......
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रविष्टि आज दिनांक 28-01-2013 को चर्चामंच-1138 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा |
जवाब देंहटाएंTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
लगा भूतों की कोई कहानी पढ़ रहे हैं ... रोचक
जवाब देंहटाएंयह भी मज़े हैं ज़िंदगी के उठाये जाइये :)
जवाब देंहटाएंजहां अतेक बड़े मशान बैठे हावय ओती ढहार चुडैल के का मजाल...
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा लिखा है सर...मजा आ गया पढ़ कर
जवाब देंहटाएंमाहौल सच मे डरावना हो जाता है अनजान जगहों पर ।
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा लेख
Sundar post
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