रविवार, 12 सितंबर 2010

संडे का फ़ंडा--गोल गोल अंडा

रविवार है छुट्टी का दिन और गणेश पूजा का पर्व प्रारंभ हो चुका है। इसके बाद पितृ पक्ष और नवरात्रि। फ़िर बीस दिनों के बाद दिवाली। गणेश पूजा के बाद हम इतने व्यस्त हो जाते हैं त्योहारों में की पता ही नहीं चलता कब दीवाली आ गयी। आज रविवार को संडे का फ़ंडा में चित्र प्रस्तूत हैं आप बताएं कि ये क्या है?






मिलते हैं एक ब्रेक के बाद

35 टिप्‍पणियां:

  1. बने जतन के राखे हस ग, का ए अंटर्रा बरोबर दिखत हे, अंडा के भोरहा म आमलेट झन फोर पारबे.

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  2. अंडे का फंडा...
    पर ये क्या है?...ये तो आज की पहेली बन गई...
    आप ही बता दे कि ये है क्या!

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  3. भैया हमें भी नींबू ही लग रहे है। अण्‍डे पीले होते हैं क्‍या?

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  4. हा हा हा ! हमें तो ये शतुरमुर्ग के अंडे लगते हैं :)।

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  5. @ajit gupta

    इसे हिंट समझिए

    आप राजस्थान में रह के भी नहीं पहचान पाईं।
    मुझे ताज्जुब हुआ।

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  6. राजस्थान हिंट है तो यह जरुर ऊठ के अन्डे होंगे ;) . वैसे है यह निम्बुडा का ही खानदानी

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  7. ओह ललित जी काचरे हैं। राजस्‍थान की बात पर समझ आया।

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  8. वैसे तो नासपती टाइप कुछ लग रहा है लेकिन आप जो बोल दोगे मान लिया जाएगा
    गेद भी हो सकती है

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  9. कल ताऊ पहेली के बात दिमाग में कुछ बचा ही नही है ....ऊपर से अपने title अंडा देकर और भरमा दिया है....ये तो टमाटर लग रहा है....

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  10. हर गोल गोल चीज़ अण्डा नहीं होती
    प्लास्टिक की बाल का फ़ोटू चिपका दिये

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  11. चीज़ें तो आखिर वहीँ होतीं है जो आदमी की खुराफात भरी खोपड़ी समझ ले .. !

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  12. अजीत जी ने सही पहचान बता ही दी है ...ऐसा लगता है ..

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  13. ये शायद बिजोरा नींबू हैं। आप भी पहेली बूझने लगे हमे मालूम नही था। अच्छा है माईड फ़्रेश करने का अतिउत्तम तरीका।

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  14. मन्नै तो ये ऊंटडी के अंडे लागरे सैं.:)

    रामराम.

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  15. मेरे को तो यह पीले वाले खरबुजे लगते है, अब इसे कचरी कहे या कुछ ओर यह हमे नही मालुम लेकिन इन्का स्वाद खरबुजो जेसा नही होता,अजित जी की हां मे हां मिलाते है कि यह काचरे है,

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  16. अण्डा देने वाली मुर्गी को ज़रूर पीलिया हुआ रहा होगा :-)

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  17. :) जो भी हो हमें कौन से खाने हैं :)

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  18. जबर बुझौला पूछे हवस भईया. कभू आमा कस दिखथे त कभू अटर्रा कस, कोनो दारी मोसंबी असन घलोक दिखथे. फेर कहूँ ए हर "जेट्रोफा" के फल तो नोहे? "डीजल मिलेगा बाडी से" वाला...

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  19. जिधर भी मैं देखूं तू ही तू है।
    त्यौहारों का मौसम है मुझे तो यह बंगाल के "सोंदेस" लग रहे हैं।

    मिष्टी मिष्टान मय सब जग जानी........ :-)

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  20. भाई इतने लोग कह रहे हैं तो निम्बू ही होंगे..... :-)

    आपकी आँखों से आंसू बह गए

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  21. इसका सही उत्तर अजीत गुप्ता जी ने दिया।
    जिसका अनुशरण राज भाटिया जी ने किया।

    इन्हे काचरी,कचरी कहा जाता है। राजस्थान,हरियाणा,गुजरात में इसका उपयोग सब्जी के लिए किया जाता है। राजस्थान की प्रसिद्ध सब्जी सांगरी और केर में इनका उपयोग होता है। लहसुन डालकर इनकी चटनी बनाई जाती है तथा बाजरे की रोटी और छाछ के साथ खाने का आनंद ही कु्छ और है।
    हमारे छत्तीसगढ में इसे बुन्देला कहा जाता है। यह प्रचलित नाम है। कच्चा रहने पर यह कड़ुआ होता है तथा पक कर पीला हो जाने पर खट्टा मीठा स्वादिष्ट हो जाता है।

    सभी को बहुत-बहुत धन्यवाद,
    जो आपने संडे का फ़ंडा का आनंद लिया।
    आभार

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  22. संडे के दिन कचरी/काचरी का खूब आनंद आया होगा .

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  23. ललित भाई,
    ये खाने के बाद जलजीरा वाली जूसी से हज़म ज़रूर कर लेना...

    जय हिंद...

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  24. लेकिन क्यों बताएं???ये वही है जो हमारे यहाँ भी ठेले पर मिलता है...

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  25. इसका उपयोग आप सुखा कर भी कर सकते है | इसक छिलके उतार दीजिए और सुखाकर कर मिक्सी में पीस लीजिए उसे आप साल भर तक काम में लीजिए | खटाई की जगह भी प्रयोग कर सकते है और चटनी भी लाजवाब बनती है | राजस्थान में पंसारी (किराने वाले के यंहा ) यह दो सौ या तीन सौ रूपये किलो मिल जाती है |

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  26. ललित जी, यह काचरे इतने प्रकार के और इतने स्‍वाद के होते हैं कि इनके स्‍वाद का कोई भी फल मुकाबला नहीं कर सकता। लेकिन हम इन से दूर हैं। उदयपुर में काचरे नहीं होते, यह अधिकतर रेगिस्‍तानी इलाकों में होते हैं और उदयपुर राजस्‍थान का हिस्‍सा होते हुए भी पहाडी क्षेत्र है। आपने काचरे दिखाकर मन ललचा दिया, मैं तो इनके स्‍वाद पर फिदा हूँ और जब भी जयपुर जाती हूँ इनकी ही फरमाइश करती हूँ।

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