गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011

एक महामारी का रुप लेती शराब

समाज में शराब एक महामारी का रुप लेते जा रही है। युवा नशे की गिरफ़्त में आ रहे हैं। बेरोजगार होने पर यह बीमारी कोढ में खाज का काम कर रही है।

शराब खरीदने के लिए रुपए न  होने पर चोरी, डकैती, लूटपाट जैसे अपराध बढ रहे हैं। अपराध समाज के लिए बहुत बड़ा सिरदर्द है। युवा अपराध की ओर बढ रहे हैं।

आपको प्राण रक्षक दवाएं कहीं उपलब्ध न हो पाएं पर शराब प्रत्येक जगह उपलब्ध है। कहीं भी सड़क के किनारे खड़े-खड़े भी शराब की तलब लग जाए, वहीं आपको उपलब्ध हो जाएगी।

यह सर्व सुलभ है। सरकारों के राजस्व प्राप्ति के लोभ ने इस महामारी को विकराल रुप दिया है। जिसके दुष्परिणाम बढते हुए अपराध के रुप में हमें देखने मिल रहे हैं।

अशोक बजाज ने रायपुर जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर रहते हुए 2007 में स्थानीय भाषा में नारा दिया “नशा हे खराब, झन पीहू शराब” (नशा है खराब,मत पीना शराब)। जब यह नारा सुनाई पड़ा तो मैने सोचा कि बहुत कठिन काम है शराब बंदी।

सिर्फ़ नारा देने से काम नहीं चलने वाला। शराब बंदी के लिए राजनैतिक और सामाजिक इच्छा शक्ति और आत्मबल की आवश्यकता भी है। अशोक बजाज जी ने नशा मुक्ति रैली का आयोजन किया जिसमें मुख्यमंत्री रमन सिंह जी, काबीना मंत्री बृज मोहन अग्रवाल, लता उसेंडी इत्यादि ने अपनी उपस्थिति दी थी।

अशोक बजाज जी नशा बंदी के लिए अपना जन जागरण अभियान, रैलियों, बैठकों, संचार माध्यमों, ट्रेक्ट पोस्टर इत्यादि के माध्यम से लगातार जारी रखा।

जन जागरण अभियान के फ़लस्वरुप छत्तीसगढ सरकार ने महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए आगामी वर्ष में 250 शराब दुकानों को बंद करने का निर्णय लिया। सरकार के इस कदम का हम स्वागत करते हैं।

गाँवों में फ़ैल रही शराबखोरी की महामारी को रोकने में शराब दुकानों को बंद करने का कदम सहायक होगा। सड़क दुर्घटनाओं में कमी आएगी। लेकिन जिन्हे शराब की लत लग चुकी है। उन्हे लत से बाहर निकालने के लिए सरकार और समाज को भी आवश्यक कदम उठाना होगा। तभी शराब बंदी लागू हो सकेगी।

नशा मुक्ति पुनर्वास केन्द्रों की स्थापना करनी पड़ेगी। जिससे आदतन शराबियों को नशा मुक्त किया जा सके।

“नशा हे खराब, झन पीहू शराब”, नारे ने शराब बंदी के लिए जमीन तैयार करने का काम किया। जिस पर देवजी पटेल ने कंधे से कन्धा मिला कर अशोक बजाज जी का साथ दिया. मजे की बता तो यह है कि उन्होंने बेवरेज कार्पोरेशन का अध्यक्ष बनते ही इस दिशा में कार्यवाही शुरु की।

शराब बंदी की ओर कदम उठाए। इसका मजबूत शराब लॉबी ने विरोध किया  किन्तु  इसे नजर अंदाज कर मुख्यमंत्री रमन सिंह जी की केबिनेट ने मुहर लगादी। पूर्ण शराब बंदी होना तो बहुत कठिन है। लेकिन जितनी भी शराब की बिक्री कम हो और उपलब्धता काम हो उतना ही समाज के लिए बेहतर है। सुलभ न होगी तो शराब सेवन भी कम होगा।

शराब बंदी के लिए कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है। शराब बंदी के महत्वपूर्ण कदम के लिए हम मुख्यमंत्री जी, देवजी पटेल बेवरेज कार्पोरेशन एवं भाई अशोक बजाज (अध्यक्ष राज्य भंडार गृह निगम) को धन्यवाद देते हैं और आशा करते हैं कि नशा मुक्ति के लिए जन जागरण अभियान जारी रहे।

10 टिप्‍पणियां:

  1. शराब से होने वाली आय के चलते सरकारें कोई ठोस कदम नहीं उठा पाती हैं , जन चेतना ही कारगर होगी ...
    राजस्थान में वसुंधरा सरकार ने राज्य के विकास के लिए किये गए सभी कार्यों पर पर पानी फेरते हुए इसे इस तरह सुलभ बना दिया की राशन और दवाओं से ज्यादा इन्हें पाना आसान है ....आय तो उन्हें खूब प्राप्त हो गयी मगर हमारा शहर बिगड़ गया !

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  2. शराब की सामाजिक बुराई को खत्म करने और छत्तीसगढ़ को नशा-मुक्त राज्य के रूप में विकसित करने की दिशा में रमन-सरकार का यह साहसिक कदम निश्चित रूप से स्वागत योग्य है. डॉ. रमन सिंह और उनकी सरकार को इस महत्वपूर्ण निर्णय के लिए बहुत-बहुत बधाई और धन्यवाद . प्रदेश में विगत कुछ वर्षों से 'नशा हे खराब -झन पीहू शराब ' के नारे के साथ नशा-मुक्ति के लिए जन-जागरण अभियान चला रहे भाई अशोक बजाज और उनके साथ जुड़े सभी महानुभावों को भी बधाई और शुभकामनाएं .

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  3. महत्वपूर्ण प्रयास, प्रवाह और गति बनी रहे।

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  4. एक है शराब की लत और दूसरा है शराब का फैशन। लत को तो हम बुराई कहते हैं लेकिन फैशन को हम अपना अधिकार मानते हैं। इसलिए जबतक यह फैशन खत्‍म नहीं होगा और शराब का महिमा मंडन करना बन्‍द नहीं होगा, समाज से यह बुराई मिट नहीं सक सकती। पहले यह तो तय करें कि यह बुराई भी है या नहीं। क्‍योंकि जब हम जैसे लोग कभी-कभार आपत्ति उठाते हैं तब लोग इसे बुराई मानने से इन्‍कार कर देते हैं।

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  5. हंगामा है क्योँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है ...
    आपका शुक्रिया ललित जी ....शराब व्यक्ति को समाज में जीने लायक नहीं रहने देती ...आपकी चिंता बाजिव है

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  6. लत हर चीज़ की बुरी होती है ..फिर शराब तो उजाड ही देती है..आपकी चिंता जायज है.

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  7. सरकार की दोहरी नीतियां शराबखोरी की जड है | सचमुच जीवन की मूलभूत आवश्क्यताओं की चीजें मिलना कठिन है जबकि शराब अत्यन्त सुलभ | मगर जन जागरण से शराबबंदी सभंव है | आज २५० दुकानें बाद हुई हैं आगे और होंगीं ऐसी आशा है, विश्वास है | श्री अशोक बजाज जी को अनंत बधाई
    और शुभकामनाएं |

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  8. वैसे यूंही पूछ रहा हूं,
    आपका क्या ख्याल है इस नारे के बारे में :-)

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  9. वैसे यूंही पूछ रहा हूं,
    आपका क्या ख्याल है इस नारे के बारे में :-)

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