सोमवार, 14 फ़रवरी 2011

कागभुसुंडी ज्योतिषी--वेलेन्टाईन डे--समाज सुधारक

वाह! वेलेन्टाईन बाबा, जब तुम आए हो हमारे देश में निठल्लों को काम मिल गया है। जो दिन भर बैठ कर ताश पीटते थे वे भी सजग हो गए हैं। छोकरे-छोकरी से लेकर डोकरे-डोकरी तक काम में लग गए हैं।

दोनो एक दूसरे पर निगाह रखे हुए हैं। किसका फ़ेंका हुआ गुलाब, किसके आंगन में गिरता है और मामला कोट कचहरी तक पहुंचता है यह तो वक्त ही बताएगा। बाग-बगीचों में अदृश्य कैमरे फ़िट हो चुके हैं।  

जाओ बेटा कहाँ तक जाते हो? फ़ूलों एवं टेडी बियर की दुकानें सज चुकी हैं। पुलिसिए भी अपने डंडे को तेल पिला कर तैयार हैं।

जनता हवलदार ने नयी नकोर चालान बुक निकाल ली है। कहीं हत्थे मत चढ जाना, बिना चालान के ही अंदर का रास्ता दिखा देगा। उसे पिछला वेलेन्टाईन याद है, जब कप्तान साहब ने फ़ीत उतारने की धमकी पिलाई थी।

शाम को कुछ निठल्ले समाज चिंतकों ने घेर लिया। गाहे-बगाहे टैम खराब करने चले आते हैं। इन्हे समाज सुधारने की घोर चिंता है। रोज कोई न कोई टापिक छेड़ ही देते हैं और खुद ही उसमें उलझ जाते हैं।

चौबे जी कहने लगे “इस वेलेन्टाईन ने तो सत्यानाश कर दिया। जो हरकतें खुले आम हो रही हैं, उससे तो हमारा सिर शर्म से झुक जाता है। भारतीय संस्कृति का ह्रास हो रहा है। हमें यूँ ही हाथ पर हाथ धरे खाली नहीं बैठना चाहिए, कुछ करना चाहिए।“

“क्या करना चाहिए?”

“अरे! गाँव मोहल्ले में घर-घर जाकर युवाओं को समझाना चाहिए, इस विदेशी त्यौहार के फ़ेर में मत पड़ो। हमारी संस्कृति पर खतरा है। समझाने से कुछ लोगों में तो जागृति आएगी।“

“हां! आपका कहना तो सही है चौबे जी। तनि ये भी सोचिए, हमारी संस्कृति पर तोप, गोला, बारुद से हमला होते रहा है सदियों। तब तो नष्ट नहीं हुई। क्या त्यौहार मनाने से संस्कृति का नाश हो जाएगा।“-बालु बाबा गंभीरता ओढे हुए बोले।

“अरे भाई बसंत उत्सव मनाओ, फ़ाग गाओ, डफ़ और नंगाड़े बजाओ, नफ़ेरी तुनतुनाओ। किसने मना किया है? पर वेलेन्टाईन जैसे उल्टे काम तो छोड़ो।“

“वाह! क्या उम्दा रास्ता ढूंढा है आपने। जब आप फ़ाग में गाते हो “खिड़की से यार को बुलाए रेSSS। तो संस्कृति कायम रहती है?”

“अरे हमारा मुंह मत खुलवाओ?  बात निकरेगी तो बहुत दूर तक जाएगी। पिछले वेलेन्टाईन में हम तुम्हारे लड़के को घर में चौका बर्तन करने वाली फ़ूलमतिया के साथ फ़टफ़टिया पर नहीं पकड़े थे क्या? बड़े संस्कार और संस्कृति के पहरुवा बने हो”

“देखो! प्रवचन देना आसान है, लेकिन उस पर अमल करना बहुत मुस्किल। आपै खारी खात है बेचत फ़िरै कपूर। गए साल रामखिलावन के खेत में तुम्हारी छोकरी को सबने नहीं देखा था क्या? चोट्टे पंसारी के लड़के के साथ।

बात कहाँ समाज सुधारने की हो रही थी और व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप तक पहुंच गयी।  एक दूसरे की पोल खोलने लगे, धोती खींचने लगे, वाद, विवाद में बदलने लगा तो मुझे ही हस्तक्षेप करना पड़ा। नहीं तो इनका बेलनटाईन अभी ही मनने लगता।

“जाईए आप लोग बहुत देर हो गयी, घर पर प्रतीक्षा हो रही है। अपना-अपना घर संभालिए। समाज सुधारने की चिंता समाज पर ही छोड़ दीजिए। बेमतलब लट्ठम लट्ठा होने से कोई फ़ायदा नहीं है। वेलेन्टाईन मनाईए, प्रेम से रहिए।“

इधर वेलेन्टाईन डे की आहट सुनकर परदेशी राम के कान खड़े हो जाते हैं। हर बरस 14 तारीख को दिल से गुलाब लगाए, बगीचों, मॉल, वी आई पी रोड़ पर चक्कर लगाते रहते हैं।

कोई तो, कहीं तो मिलेगी दिलरुबा। साल भर सपने देखने के बाद 14 फ़रवरी को सपनों के हकीकत में बदलने का दिन आ जाता है। लेकिन पुलिस के डंडे और हिन्दुवादी संगठनों के अंडे ख्याल आते ही सार फ़ितूर उतर जाता है। पिछले साल पिछवाड़े में पड़े डंडों का दर्द आज तक है।

हिम्मते मर्दां मददे खुदा। अगर ईश्क की राह में दो चार डंडे और अंडे खा लिए तो क्या हुआ। कौन सी शर्म की बात है? शर्म तो आनी-जानी चीज है, बंदा ढीठ होना चाहिए।

हुआ यूँ कि पार्क में परदेशी राम को बैठे बहुत देर हो गयी थी, कोई अकेला आयटम नजर नहीं आ रहा था। सभी बुक थे, अब किसकी ओर दोस्ती का गुलाब बढाएं?

बैठे-बैठे थाह ले रहे थे। दो घंटे बुरबक जैसे बैठने के बाद इन्होने दुसरी जगह जाने की ठानी। जैसे ही बेंच से उठकर चलने लगे तो आवाज आई “परदेशी परदेशी जाना नहीं, मुझे छोड़ के, मुझे छोड़ के।“ इन्होने मुड़ कर देखा तो पेन्सिल जींस टॉप में सपनों की रानी दिख ही गयी।

परदेशी की तो बांछे खिल गयी। चलो मेहनत सफ़ल हुयी। ये बोले-“ कहाँ जा रहे हैं हम। येल्लो आही गए, हैप्पी वेलन्टाईन डे- कहते हुए उसकी ओर गुलाब बढाया। पता नहीं उसके बाद क्या हुआ? तीन दिनों के बाद अस्पताल में ही होश आया।

बुजुर्ग कहते हैं कि इतिहास से सबक लेना चाहिए, तभी भविष्य और वर्तमान कारगर होता है। परदेशी राम ने तय कर लिया कि इस साल कागभुसुंडी ज्योतिषी से कुंडली पढवा कर जाएगें। जिससे खतरा कम हो जाएगा।

कागभुसुंडी ज्योतिषी महाराज सुबह से अपने स्थान पर पोथी पतरा लिए तैनात थे। क्योंकि वेलेन्टाईन डे पे ग्राहकों की संख्या बढ जाती है।  परदेशी राम को  जोतिस महाराज ने बता दिया की आज दक्षिणा का रेट बढ गया। सवा रुपया से काम नहीं चलेगा। परफ़ेक्ट नुश्खा चाहिए तो 251 रुपया लगेगा।  मरता क्या न करता परदेशी ने 251 रुपया महाराज के नजर किया। रुपया अंटी में धर के महाराज बल्लु को स्कूल छोड़ने गए हैं।

परदेशी मुंह फ़ाड़े दरवाजे पर बैठा है, आए तो नुश्खा बताएं। आपके पास कोई नुश्खा हो तो परदेशी की सहायता करें और वेलेन्टाईन का पुण्य लाभ अर्जित करें।

26 टिप्‍पणियां:

  1. इतना बड़ा लतीफा।
    वाह भई वाह
    भरेंगे कई आह
    बाकी करेंगे वाह
    नई देखकर राह

    हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग का वेलेंटाइन डे है आज

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  2. सुबह से शाम से जिस परदेशियों के लिए हाथ में डण्‍डा लिए फिरते है वो पूरा बाग खाली कराकर अपना जगह सुरक्षित करते है

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  3. जय हो!! काश, कोई नुश्खा होता...

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  4. काग भुसुंडी का कौनों नवा नुस्खा मिल जाय तो बताय दीन जाय... वरना तो रहर के खेत मे पूरे साल वैलेंटाइन ;)

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  5. संस्कृति तोपों के हमलों से नष्ट नहीं होती... उसे इसी तरह के हमलों से नष्ट किया जाता है... और फिर संस्कृति बची भी है नष्ट करने को.

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  6. मोहब्बत के इजहार के लिए दुनिया भर में एक दिन तय कर देना। क्या मूर्खता है?
    बाकी 364 दिन?

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  7. हास्य-व्यंग्य से परिपूर्ण दिलचस्प आलेख . आभार.

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  8. ललीत जी नमस्कार
    हास्य-व्यंग्य का सही सटीक सामंजस्य बैठाया है आपने
    आपको इस दिन की शुभकामनाएं

    हमारे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
    http://sbhamboo.blogspot.com/2011/02/blog-post_13.html


    मालीगांव

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  9. बड़ा करारा लतीफा मारा है ललितजी आनद आ गया !!!

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  10. वाह जी, वलेंटाइन दिन और हमारा समाज !!!

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  11. कभी तो मिलेगी, कहीं तो मिलेगी...

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  12. धार्मिक वातावरण बलिटाहन बाबा का।

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  13. क्या तीर चलाये हैं । परदेसी से कहें किसी पार्क मे चला जाये नुस्खे मिल जायेंगे अगर शिव सेना वाले न हुये तो।

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  14. कुंडली पर तो हमारा भी हाथ आजमाने का इरादा है.

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  15. "बुजुर्ग कहते हैं कि इतिहास से सबक लेना चाहिए, तभी भविष्य और वर्तमान कारगर होता है। "

    हा-हा ..ये परदेशी राम तब भी नहीं सुधरने वाला !

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  16. bahut badhiya.....is pitare ko ek din aage kholate to kuchh log sawadhan bhi hote the...ha..ha..ha...dhanuabad.

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  17. बेचारा परदेसी...बढ़िया हास्य में व्यंग का तडका लगाया है.

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  18. हास्य-व्यंग्य से परिपूर्ण दिलचस्प आलेख . आभार.

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  19. परदेसी राम का तो पता नहीं पर पंडित जी का तो 'वेलटाइम डे' हो गया।

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  20. नुश्खा तो है , पर २५१ में काम नही चलेगा ।

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  21. बहुत ही सटीक चित्र खींचा है भारतीय समाज का और मजेदार भी ।

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  22. अरे पंडित जी.... सत्यनाश कर दिया हमारे बेलने अरे अरे वेलेन्टाईन का हम जिन्दगी का पहला वेलेन्टाईन मनाने जा रहे थे कि नजर फ़िसल गई आप के लेख पर, सोचा सुबह से इंतजार कर हे हमारी टिपण्णी का, देते जाये, फ़िर पता नही कब होशा आये महबूबा की बाहों मे लेकिन आप की यह लाईने पढ कर**पुलिसिए भी अपने डंडे को तेल पिला कर तैयार हैं। जनता हवलदार ने नयी नकोर चालान बुक निकाल ली है। कहीं हत्थे मत चढ जाना, बिना चालान के ही अंदर का रास्ता दिखा देगा।*** आप ने तो हमारे होश ही उडा दिये, घर मे बेलन दिखता हे ओर बाहर आप की यह चेतावनी, राम, राम केसे दिन आ गये... अरे एक फ़ुल ही तो देना था उस पर भी ऎतराज....इन पुलिसियो को ओर कोई काम नही क्या?

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  23. हा हा हा...
    मजा आ गया भैया...
    निठल्लों को काम मिल जाता है इस दिन...
    सच्ची.. खरी खरी...
    सादर प्रणाम.

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