कुछ दिनों से लगातार बारिश हो रही है, हरियाली भी तेजी से बढ रही है। पशुओं के लिए भरपूर चारा है तो मनुष्य के लिए मच्छर और बीमारी।
इन सबसे अलग सोचे तो हरियाली आंखो को भा रही है, हरी-हरी घास में लोटने का मन करता है लेकिन फ़िर सांप और बिच्छुओं का ख्याल आते ही मन मार कर रह जाना पड़ता है।
क्या पता मखमली घास के नीचे किस जन्तु का डेरा हो। इसलिए संभल कर चलना पड़ता है। आज शाम को कुछ देर के लिए धूप खिली।
जो घास के हरियाले रंग में परिवर्तन कर रही थी। बस इस सुंदर दृश्य को आंखों में बसा लेने का दिल किया। लेकिन आँखे स्थाई रुप से इसे संजोकर नहीं रख सकती, इसलिए कैमरे की आँख ने दृश्य को कैद कर लिया।
हमारे घर पर हरियाली आई |
क्या पता मखमली घास के नीचे किस जन्तु का डेरा हो। इसलिए संभल कर चलना पड़ता है। आज शाम को कुछ देर के लिए धूप खिली।
जो घास के हरियाले रंग में परिवर्तन कर रही थी। बस इस सुंदर दृश्य को आंखों में बसा लेने का दिल किया। लेकिन आँखे स्थाई रुप से इसे संजोकर नहीं रख सकती, इसलिए कैमरे की आँख ने दृश्य को कैद कर लिया।
चारों ओर हरियाली ही छाई |
ऐसा ही कुछ गालिब के साथ भी हुआ होगा। तभी बहार और बयांबां का जिक्र आया है। चांदनी चौक के करीम ढाबे पर तो हरियाली नहीं तो बहार जरुर आई होगी। जिस पर मिर्जा साहब ने शेर कहे होगें और जामों के साथ साकी और दोस्तों ने जी भर दाद दी होगी।
जिसकी सदा कुचा-ए-बल्लीमरान तक उनकी बेगम सुनी होगी और कल्लु खाँ को खैरियत लेने फ़ौरी तौर पर भेजा होगा। पता नहीं कल्लु खाँ ने क्या-क्या नहीं कहा होगा, नमक मिर्च लगा कर।
देखो फ़ूल भी खिले हैं रंग रंगीले |
एक मित्र की बे-गम तो शाम 7 बजे ही छोटे लड़के को ड्युटी पर लगा देती है, वह अपने बाप की हर मुव्हमेंट की खबर माँ तक पहुंचाता है, फ़िर महफ़िल जमते ही वहां से दो चक्कर लगाता तीसरे चक्कर की बजाए, उनका चलभाष गुर्राता है, कानाबाती होती है।
सिर्फ़ हां, हूं और हूं के कोड वर्ड में बात खत्म हो जाती है, फ़िर खीसे निपोरते हुए कहते हैं-"घर से फ़ोन था, कह रही थी, मौसम खराब है, ज्यादा मत हरिया जाना।" तभी एक कह उठता है-"साले सब तेरी चाल है,तीसरे पैग में ही भाग लेता है।" वह फ़िर दांत निपोरता है। शायद गालिब के साथ भी ऐसा ही होता हो।
बरगद पर भी है हरियाली छाई |
अब चल पड़ो और सूखे से डरते रहो। अगर सूखे से डरते रहोगे तो हरियाली बनी रहेगी। जहांपनाह का जलवा कायम रहे हरियाली के साथ,"- कह के दोस्तों से विदा लेते हैं।
धीरे-धीरे सब चल पड़ते हैं क्योंकि सबके अपने-अपने कल्लु खाँ हैं, वहां दो ही बच जाते हैं साकी और ढाबे वाला, जिनके लिए बारहों महीना हरियाली है।
बढ़िया जी
जवाब देंहटाएंसुबह सुबह आपके खेतों की हरियाली के हमने भी दर्शन कर लिए
.... kyaa baat hai !!!
जवाब देंहटाएंबे-गम
जवाब देंहटाएंऔर
घर से फ़ोन था, कह रही थी, मौसम खराब है, ज्यादा मत हरिया जाना।"
मजा आ गया जी।
बढ़िया जी
जवाब देंहटाएंमजा आ गया.........
उग रहा है दर-ओ-दीवार पे सब्जा गालिब, हम बयांबां में है घर में बहार आई है।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब, लाजबाब !
सुंदर चित्रों से सुसज्जित अच्छी पोस्ट .. सुबह सुबह हरियाली के दर्शन हो गए !!
जवाब देंहटाएंबढिया मौसम लग रहा है। कहो तो आ जाऊं छत्तीसगढ।
जवाब देंहटाएंवाह! पढ़कर सुबह सुबह मन हरा हो गया!
जवाब देंहटाएंवाह - दिल खुश कर दिया आपने :)
जवाब देंहटाएंहरियाली सजी सुन्दर पोस्ट ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब .......आनंद आ गया !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ललित जी , प्रकृति की गाथा है यह !
जवाब देंहटाएंवाह वाह जी बहुत मजा आ गया,प्रकृति की सुंदरता देख कर दिल बाग बाग हो गया. धन्यवाद
जवाब देंहटाएंभैय्या चारों तरफ अब हरियाली फुल्लम्फुल हो गई है जैसे धरती ने हरी चूनर पहिन ली हो .....
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर.........
जवाब देंहटाएंआपका आलेख पढ़ कर दिल ये गदगद हो गया।
भाव-नगरी की सुहानी वादियों में खो गया॥
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
बहुत खूब सर जी।
जवाब देंहटाएंहरियाली देख हरिया गये भई..बढ़िया
जवाब देंहटाएंआँखों की नज़र तेज हो गयी इस हरियाली को देख कर.
जवाब देंहटाएंहम तो पढ़ और देखकर ही हरिया गये ।
जवाब देंहटाएंकलाकार की यही खूबी होती है कि वो कल्पना के घोड़े खूब दौड़ा लेता है ..आप तो ग़ालिब के जमाने की सैर भी कर आए ।
जवाब देंहटाएंऐसी इच्छा हो रही है कि बोरिया बिस्तर लेके आपके यहीं डेरा डाल दें कुछ दिनों के लिये.
जवाब देंहटाएंरामराम.