शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

झूलती मीनार और अलबेला खत्री ने मारी डुबकी --- ललित शर्मा

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अगली सुबह अलबेला खत्री जी से बात हुई तो उन्होने बताया कि वे एक दिन पहले अहमदाबाद में ही थे। फ़िर उन्होने कहा कि अगले दिन मैं सुबह की गाड़ी से अहमदाबाद आ रहा हूँ। वहीं मुलाकात हो जाएगी। मैने कहा कि अहमबाद स्टेशन पर आपको गाड़ी तैयार मिलेगी। मुझे फ़ोन कर देना, ड्रायवर आपको हमारे ठिकाने पर पहुंचा देगा। मेरी यह चर्चा अलबेला भाई से लोथल से लौटते वक्त हो रही थी। सुबह जब हम ऑफ़िस में पहुचे और उन्हे फ़ोन लगाया तो पता चला कि उनकी गाड़ी छुट गयी। उन्होने कहा कि जब शाम को आप सूरत पहुंचेगें तो मिलते हैं। चलो कोई बात नहीं यह भी खूब रही। संजय बेगानी जी को वापसी की सूचना देने के लिए फ़ोन लगाया तो उनकी तबियत भी नासाज थी। सर्द गर्म और वायरल से जूझ रहे थे। उन्हे आराम करने की सलाह देते हुए मैने वापसी का समाचार दिया।

मेरे रास्ते का खाना घर से बन कर आ गया था। पोरबंदर हावड़ा एक्सप्रेस अपरान्ह 3.40 पर थी। हम दोपहर का भोजन करके स्टेशन पहुंचे। विनोद गुप्ता जी भी साथ ही थे। वहाँ पहुंचने पर पता चला कि ट्रेन रात को 10.50 पर आएगी। सुन कर झटका लगा, सात घंटे लेट थी ट्रेन। आगे कोई भरोसा भी नहीं कब आए। हावड़ा रुट की सभी गाड़ियाँ रिशेडयुल हो कर चल रही  हैं ज्ञानेश्वरी दुर्घटना के बाद। रेल्वे की वेबसाईट पर रिशेडयुल समय नहीं दिखाता। इसके कारण यात्रियों को परेशानी होती है। अगर मुझे सही समय का पता लग जाता तो अहमदाबाद पुरी से टिकिट करवाता। काहे के लिए हावड़ा वाली गाड़ी में मगजमारी करता। यह रेल्वे की सरासर धोखाधड़ी है यात्रियों के साथ। अगर पहले पता चल जाए कि ट्रेन 7-8 घंटे लेट चलेगी तो यात्री उसके हिसाब से इंतजाम करके आए। अल्पना जी का सामान मुझ तक पहुंच चुका था।

स्टेशन के पास झूलती हुई मीनार है, विनोद भाई ने कहा कि अब आ गए हैं तो वही देख लेते हैं। हम समीप में बनी झूलती मीनार देखने गए। दो मीनारें बनी हुई है। इन्हे चारों तरफ़ से घेर दिया गया है। कहते हैं कि हाथ से धक्का देने पर यह मीनारें हिलती हैं। इसलिए इन्हे झूलती हुई मीनार कहा जाता है। मीनारे गिरने का खतरा देखते हुए इन्हे घेर कर बाड़ कर दी है। आस-पास गंदगी फ़ैली हुई है। जबकि गुजरात पर्यटन के कैलेंडर में इन मीनारों की फ़ोटो भी लगी है। अगर कोई पर्यटक आएगा तो क्या गंदगी देखने आएगा। जहाँ सड़ांध उठ रही हो। हुँ छुँ अमदाबाद वाला बोर्ड शायद यही प्रदर्शित कर रहा है। आओ देखो अहमदाबाद में पर्यटक स्थलों का क्या हाल है। मीनारे देखने के बाद हम पुन: आफ़िस आ गए। अब रात को ट्रेन पकड़नी थी। तब तक नेट पर ही टाईम पास किया जाए।

शाम को विनोद भाई के साथ घर पहुंचे, फ़िर रात का भोजन करके साढे दस बजे स्टेशन रवाना हुए। रास्ते में सैंटा क्लाज की ड्रेस बिक रही थी। एक ड्रेस उदय के लिए ली। स्टेशन पहुंचने पर पता चला कि गाड़ी एक घंटे लेट और हो गयी है। इंतजार करते समय बीतता गय। सवा बारह बजे ट्रेन आई। हमने अपनी सीट संभाली और सो गए। सुबह आँख खुली तो सूरत निकल चुका था। सूरत नरेश अलबेला खत्री का कहीं पता नहीं था। न वो आए, न उनका फ़ोन आया। गजब ही कर दिया कविराज ने। कोई बात नहीं, परदेश का मामला ही ऐसा होता है। अगर कही सूरत पहुंच जाते तो वे शायद मुंबई में मिलते। वापसी की यात्रा का फ़ोन सूर्यकांत गुप्ता जी को कर दिया था। नागपुर में वे इंतजार कर रहे थे।

ट्रेन नागपुर लगभग 4 बजे पहुंची। गुप्ता जी स्टेशन पर मिल गए। अब एक से भले दो। रात और आधा दिन मैने सोकर ही काटा था। गुप्ता जी के आने से बहार आ गए। गुंजने लगे हंसी के ठहाके और ट्रेन चलने लगी। साढे सात बजे लगभग हमारी ट्रेन दुर्ग स्टेशन पहुंच गयी। गुप्ता जी विदा लेकर अपने गंतव्य की ओर बढ लिए। अब हमें रायपुर आने का इंतजार था। लगभग 8 बजे हम रायपुर पहुंचे। स्टेशन के बाहर अल्पना जी इंतजार करते मिली। उनका सामान जो लाए थे। ठंड बढ गयी थी, एक मित्र की सहायता रात घर पहुंचे। उन्होने गाड़ी भेज दी थी। इस तरह गुजरात की अधूरी यात्रा सम्पन्न हुई। होली के बाद बाकी यात्रा पुरी करनी है। कुछ देखना छूट गया, उसे पूरा करना है।

14 टिप्‍पणियां:

  1. गुजरात की रोचक यात्रा के बाद आपकी अन्य यात्राओं की व्यग्रता से प्रतीक्षा रहेगी..

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  2. @अल्पना जी का सामान मुझ तक पहुंच चुका था।
    @स्टेशन के बाहर अल्पना जी इंतजार करते मिली।

    रोचक यात्रा विवरण ....अलबेला जी तो नहाने के चक्कर में लेट हो गए होंगे ....या नहाते - नहाते कविता सुनाने लगे होंगे उनका कोई भरोसा नहीं .....सांपला में भी यही कुछ अलबेला जी ने किया था .....खैर !!!!! अल्पना जी आपका इन्तजार कर रहीं थी या अपने सामान का .....???

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  3. झूलने वाले मीनारों के बारे में यह जानकार दुःख हुआ की उसके चारों तरफ गन्दगी फैली हुई है. घर लौट आये इसमें भी एक बड़े सुख की अनुभूति हुई होगी.

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  4. चलिए अधूरी यात्रा का विवरण बढ़िया रहा.अब पूरी का इंतज़ार रहेगा.

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  5. ललित भाई जी एक बार अकलतरा उतरा. फेर श्री राहुल सिंह जी के गाँव किन्दरवाहा.
    चेत करके मंदिर देखबो आखिर म
    भक्तिन के चोपहला देंवता .
    अउ खा पि के गाड़ी चढ़ जाहा.
    कीरिंग कीरिंग कर देहे रहिहा

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  6. रोचक और ऐतिहासिक जानकारियों से भरी थी पूरी गुजरात यात्रा...विस्तृत यात्रा विवरण के लिए आभार...

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  7. एतिहासिक स्मारकों का ऐसा बुरा हाल !!!

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  8. सुन्दर वृतान्त ललितजी. अगली यात्रा का इन्तेज़ार है :)

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  9. अज्योधा में कटे कैश पुन: प्रगति पर हैं :)

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  10. विस्तृत यात्रा विवरण के लिए आभार|

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  11. मीनारों पर कुछ अधिक जानने का मन हो रहा है.

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