बुधवार, 23 जनवरी 2013

तिब्बतियों का टाउ……

सुबह जल्दी ही आँख खुल गयी। सूरज भी रजाई ओढे गुड़ की लाल चाय की ताक में था। चाय आई तभी वह रजाई से बाहर निकला और सूर्योदय हुआ, इसके बाद मैने आंवला की दातौन का प्रयोग दांत मांजने के लिए करते हुए विश्राम गृह के लॉन के दो तीन चक्कर लगाए। राहुल और पंकज भी सोकर उठ गए। कमरे में यत्र-तत्र गुजरी हुई रात को बजे माउथ आर्गन के ब्लंडर की निशानियाँ मौजूद थीं। राहुल मोबाईल उठा कर दूर एक कोने में बतियाने लगा।  हम मार्निंग वाक करते हुए उसके समीप से गुजरे तो उसकी धीमी-धीमी आवाज सुनाई दी लेकिन समझ में नहीं आया क्या बतिया रहा था। समझ में नहीं आया कि उसकी कौन सी गर्लफ़्रेंड एक दम फ़ुरसत में थी जो अल सुबह ही इसे फ़ुसफ़ुसाने का मौका दे रही थी। चलो छोड़ा जाए इन बातों को, क्या रखा है, अगर हमारे जमाने में ऐसे फ़ोनवा होता तो ………:)
उदयपुर  का  विश्राम गृह 
स्नानाबाद अमित सिंह देव का फ़ोन आया और उन्होने जानकारी दी कि किसी विशेष कार्य से आज उपस्थित नहीं रहेगें। हमारे साथ विष्णु सिंह देव जाएगें मैनपाट के लिए। नाश्ता करने का मन नहीं था। रात का खाया ही हजम नहीं हुआ था। विरेन्द्र प्रभा होटल का कमाल था एक बार खाओ तो कई दिन तक भूख न लगे। शायद कोई नया फ़ार्मुला विकसित किया है।  अम्बिकापुर पहुंचने पर विष्णु सिंह देव मिल गए, साथ ही उनका एक साथी भी था। ये कांग्रेस की छात्र राजनीति में सक्रीय हैं और राजनीति को ही कैरियर बनाने के पक्ष में अधिक दिखाई दिए। थोड़ी जिज्ञासु प्रवृति होना इनके लिए लाभदायक है। जिज्ञासु होने से ही ज्ञान बढता है और उचित मार्ग दिखाई देता है।
मैनपाट का रास्ता  
हमने रास्ते के नाश्ते के लिए केले लिए और दरिमा होते हुए मैन पाट की ओर चल पड़े। मैनपाट को छत्तीसगढ का शिमला या धर्मशाला मान सकते हैं। शिमला इसलिए कि यहाँ का मौसम ठंडा है और धर्मशाला इसलिए कि यहाँ शरणार्थी तिब्बतियों का बसेरा है। अम्बिकापुर से मैनपाट जाने के लिए 2 रास्ते हैं। पहला अम्बिकापुर व्हाया सीतापुर होते हुए दूसरा अम्बिकापुर व्हाया दरिमा होते हुए। अम्बिकापुर से मैनपाट की दूरी 75 किलोमीटर है। पाट से तात्पर्य है पठार, मैनपाट विंध्य पर्वतमाला पर समुद्र तल से 3781 फ़ुट की ऊंचाई पर स्थित है। इसकी लम्बाई 28 किलो मीटर एवं चौड़ाई लगभग 13 किलोमीटर है। मैनपाट से रिहन्द एवं मांड नदी का उद्गम हुआ है।
टाऊ  के खेत में भविष्य  का ताऊ 
दरिमा के बाद मैनपाट की चढाई प्रारंभ हो जाती है। वन क्षेत्र से होते हुए हम मैनपाट की ओर बढ रहे थे। रास्ते में बड़े ट्रक मिलने लगे। पता चला कि यहां पर बाक्साईट की खदाने हैं जिनसे कच्चा माल निकाला जा रहा है। 1993 से बाक्साईट की  खदाने खुलने के कारण अंधाधुंध वनों को काटा गया जिससे यहाँ के प्राकृतिक परिवेश को नुकसान पहुंचा है। इन भारी ट्रकों के कारण सड़क का भी सत्यानाश हो गया है। बीच में सड़क निर्माण का कार्य भी चालु है। पठार पर पहुंचने के बाद गुलाबी सफ़ेद फ़ूलों से भरे हुए खेत दिखाई देने लगे। ये खेत टाऊ के थे। टाऊ का आटा बनता है जिसका उपयोग व्रत उपवास में फ़लाहार के लिए किया जाता है। 
टाऊ 
टाऊ को कुट्टु कहा जाता है। उत्तर भारत में इसके आटे का उपयोग नवरात्रि इत्यादि व्रत उपवास के समय फ़लाहारी के रुप में प्रयोग में लाया जाता है।  2011 की नवरात्रियों के दौरान  दिल्ली, बुलंदशहर और मुजफ्फरनगर, नोयडा आदि शहरों में कुट्टु  के मिलावटी आटे का कहर बरपा, जिसके कारण नोयडा में एक व्यक्ति की मौत हो गयी एवं लगभग 600 अस्पताल में भरती कराया  गया। कुट्टु  चावल की एक प्रजाति मानी जाती है जिसका बाटनिकल नाम फ़ैगोपायरम-एफ़क्युलैंटम है। यह एक हाई प्रोटीन फ़ुड है और इसे संग्रहित करने पर इसमें फ़ंगस लग जाती है और यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो जाता है। इसके आटे को घर में ही तैयार करना चाहिए। हमने कुट्टु की फ़ोटो ली और आगे बढे।
देवानंद ने 3 किलो सोना ख़रीदा 
मैनपाट में वनों से हवा के साथ आने वाली प्राकृतिक फ़ूलों की खुशबू मन और आत्मा को तरंगित कर देती है। पक्षियाँ का कलरव एवं झरनों की कल-कल स्वर्गिक वातावरण का निर्माण  करती है। लगता है कि यही आकर धूनी रमाई जाए। सोचना तो ठीक है लेकिन निर्वहन करना कठिन वातावरण में ठंडक बनी हुई है और लगता है शाम तक अच्छी ठंड होने वाली है। रात का तापमान तो लगभग मायनस डिग्री में पहुंच जाता है जिससे पाला भी पड़ जाता है। तिब्बतियों के निवास के लिए यह मौसम आदर्श है। सड़क के किनारे साल के बड़े-बड़े वृक्ष आसमान से होड़ यहीं लेते हैं। रात को इस पठार में भालुओं का भ्रमण भी होता है। यदा कदा निवासियों से उनकी मुड़भेड़ होने के समाचार मिलते रहते हैं।

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी रोचक जानकारी.........!

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  2. बड़े ही प्रभावशाली ढंग से आपने अपने इस वृतान की जानकारी दी है अच्छा लगा पढ़कर...शुभकामनायें

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  3. बढ़िया जानकारी के साथ सुन्दर प्राकृतिक मनोहारी दृश्य बहुत अच्छे लगे...

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  4. टाऊ यानि कुट्टू !
    यह तो नई जानकारी मिली। वैसे हमने तो कुट्टू भी कभी नहीं देखा / खाया / खरीदा। :)

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  5. टाउ, ल्‍हासा, कालीन और तिब्‍बती यानि मैनपाट.

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  6. बहुत अच्छी रोचक जानकारी.सुन्दर प्राकृतिक मनोहारी दृश्य

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  7. आप वर्तमान में भी ताऊ बने रहें और ऐसी ही पोस्टें पढ़वाते रहें।

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  8. बहुत कुछ जानकारी दे दी। आपने पर कुछ छूटी जानकारी ये है। यदि आप दरिमा के रास्ते जाते हैं। तो दरिमा में ठीठिनिया पत्थर(पत्थर से मारने पर लोहे के टकराने की आवाज आती है) शामिल करें। अगर अंबिकापुर से सीतापुर रास्ते में सेदम फाल(झरना) को भी शामिल करें।

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  9. बहुत कुछ जानकारी दे दी। आपने पर कुछ छूटी जानकारी ये है। यदि आप दरिमा के रास्ते जाते हैं। तो दरिमा में ठीठिनिया पत्थर(पत्थर से मारने पर लोहे के टकराने की आवाज आती है) शामिल करें। अगर अंबिकापुर से सीतापुर रास्ते में सेदम फाल(झरना) को भी शामिल करें।

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