जाना था जापान पहुँच गये चीन वाली तर्ज पर हमें जाना था बिल्हा और पहुच गये बिलासपुर. हुआ यूँ कि जब हम बिल्हा के लिए निकल रहे थे तो रविवार था और ७ तारीख थी. दोपहर को अरविन्द झा जी को फोन लगाया तो वो बोले आप सीधा बिलासपुर ही आ जाईये.
इधर संजीव तिवारी जी भी बिलासपुर पहुच रहे थे सपरिवार एक विवाह समारोह में, हमें भी तिलक समारोह में बिल्हा पहुंचना था. भैया को बोल दिये थे कि शाम की ट्रेन से आ रहा हूँ. अब बड़ा संकट में फँस गया था.
मेरा काम ८ तारीख को था. सोचा चलो आज मित्रों से ही मिल लिया जाये बहुत दिन हो गये थे बिलासपुर में रुके. तो मित्रता पारिवारिक रिश्तों के बंधन तोड़ कर आगे निकल गई और हमने शताब्दी की टिकिट कटा ली,
इधर संजीव तिवारी जी भी बिलासपुर पहुच रहे थे सपरिवार एक विवाह समारोह में, हमें भी तिलक समारोह में बिल्हा पहुंचना था. भैया को बोल दिये थे कि शाम की ट्रेन से आ रहा हूँ. अब बड़ा संकट में फँस गया था.
मेरा काम ८ तारीख को था. सोचा चलो आज मित्रों से ही मिल लिया जाये बहुत दिन हो गये थे बिलासपुर में रुके. तो मित्रता पारिवारिक रिश्तों के बंधन तोड़ कर आगे निकल गई और हमने शताब्दी की टिकिट कटा ली,
उस समय ५:३० बज रहे थे और बैठ गए बिलासपुर के लिए. ट्रेन लगभग ८:३० पे बिलासपुर पहुंची. स्टेशन पर श्याम कोरी जी और अरविन्द झा अपने दोस्त संजय मेश्राम जी के साथ बड़ी गरम जोशी से मिले.
वहां से चलकर हम अरविन्द जी के घर पहुंचे. कुछ देर चर्चा हुयी, इधर अरविन्द जी ने भोज की तैयारी करवा रखी थी. भोजन से पहले हमने संजीव तिवारी जी को फोन लगाया तो वो बोले "मै तो अभी शादी में फँस गया हूँ बारात द्वार-चार के लिए अभी तक नहीं पहुंची है और मेरे को तुरंत रात को ही भिलाई निकालना है इस लिए मै आप लोगों की महफ़िल में शरीक नहीं हो पाउँगा."
अब हम लोग आपस में चर्चा करने लगे. अरविन्द झा एक सुलझे हुए इन्सान और इन्होने कुछ साल नेवी में भी काम किया था. उसे छोड़ कर इन्होने रेलवे की सर्विस ज्वाइन कर ली. आज पॉँच साल से बिलासपुर में हैं और क्रांति दूत नामक ब्लाग पर ब्लागिंग कर रहे हैं.
श्याम कोरी जी का ब्लाग कडुवा सच है. जिस पर वो लिखते है. खाना खाते खाते अरविन्द जी ने एक बहुत बढ़िया स्मरण सुनाया.
वह यूँ था कि एक लड़का अपने जीवन के संघर्ष काल में था. अकेले रहता था. किराये के मकान में दिन भर का थका हरा जब आफिस से वापस घर आता था तो सोफे पे बैठ कर सबसे पहले जूता निकलता था.फिर सीधा दीवार पर दे मारता था.
पहला जूता और फिर दूसरा जूता. जिस दीवाल पर वह जूता मरता था उसके बगल में मकान मालिक का कमरा था. रात को लेट आने के बाद जब मकान मालिक सोने के समय जूतों की आवाज सुनता था तो उसकी नींद उचट जाती थी. जिससे उसे गुस्सा आ जाता था.
एक दिन मकान मालिक ने उसे जूते दीवाल पर मारने से माना किया. तो उसने भी आज से ना मारने का आश्वासन दिया. पर जैसे ही रात को आया उसने जूते खोले और सीधा आदत के अनुसार दीवाल पर दे मारा. जब पहला जूता फेंका तो उसे याद आया कि आज तो मैंने मकान मालिक को आश्वासन दिया है कि दीवाल पर जूता नहीं मारूंगा. यह ख्याल आते ही उसने दूसरा जूता नहीं मारा. थोड़ी देर के बाद उसके कमरे की घंटी किसी ने बजायी. जब दरवाजा खोल कर देखा थो मकान मालिक था. उसने कहा "यार जल्दी से दूसरा जूता मारो मुझे सोना है..............."
इसके बाद श्याम भाई ने ब्लागिंग के विषय में तकनीकि जानकारियों पर चर्चा की. ब्लाग कैसा होना चाहिए? उस पर क्या लिखना चाहिए?
अरविन्द जी ने कहा कि जब दुनिया का हर पांचवा ब्लाग लिखने लगेगा तो क्या होगा?
जब दुनिया का हर पांचवा आदमी ब्लाग लिखने लगेगा तो बाप-बेटा भी लिखेंगे. बाप ने अगर बेटे को रात को कोई काम बताया और दुसरे दिन शाम को पूछा कि मैंने जो काम बताया था वो किया कि नहीं?
तो बेटा बोलेगा कि "मैंने तो सुबह ही आपको पोस्ट लिख कर बता दिया था कि वह काम मुझसे नहीं हो सकता. अब आपने मेरा ब्लाग नहीं पढ़ा तो उसमे मेरी क्या गलती है". हां हा हा
अरविन्द जी ने कहा कि जब दुनिया का हर पांचवा ब्लाग लिखने लगेगा तो क्या होगा?
जब दुनिया का हर पांचवा आदमी ब्लाग लिखने लगेगा तो बाप-बेटा भी लिखेंगे. बाप ने अगर बेटे को रात को कोई काम बताया और दुसरे दिन शाम को पूछा कि मैंने जो काम बताया था वो किया कि नहीं?
तो बेटा बोलेगा कि "मैंने तो सुबह ही आपको पोस्ट लिख कर बता दिया था कि वह काम मुझसे नहीं हो सकता. अब आपने मेरा ब्लाग नहीं पढ़ा तो उसमे मेरी क्या गलती है". हां हा हा
इसके बाद खाना खाकर श्याम कोरी जी ने फिर मिलने के वादे के साथ बिदा ली.उनसे मिल कर बड़ा अच्छा लगा. अरविन्द झा जी ने उन्हें स्टेशन तक छोड़ा. फिर हमने सोने का प्रयत्न किया. तभी रात को अरविन्द जी वाले ब्लाक की लाईट चली गयी. मच्छरों ने रात को सोने नहीं दिया.रात ऐसे ही जागते हुए कट गई,
सुबह ७ बजे लाईट आई. जब तक हम वापसी के लिए तैयार हो चुके थे. अरविन्द जी, संजय मेश्राम और श्याम कोरी जी के साथ स्नेह मिलन यादगार रहा. फिर मिलने के वादे के साथ हम चल पड़े ट्रेन पकड़ कर अपने गंतव्य की ओर चल पड़े.
ये भी बढ़िया रहा ब्लॉगर मिलन!!
जवाब देंहटाएंजहाँ चार यार मिल जायें,
वहीं रात दें गुजार!!
yara nal bahara, mele mitra de.narayan narayan
जवाब देंहटाएंचार यार मिले और हो गया मिलन। ये तो खूब रही।
जवाब देंहटाएंललित जी बिलकुल एस पी लग रहे हैं।
जूता मार किस्से पर अरविंद झा जी को सौ बटे सौ...
जवाब देंहटाएंये ब्लॉगर मिलन भी खूब रहा...
जय हिंद...
जैसे सरकारी अफ़सर जहां निकलता है उसका दौरा हो जाता है वैसे ही ब्लॉगर जहां जाता है वहीं मिलन कर लेता है!
जवाब देंहटाएं.... होली पर्व पर आप पुन: आमंत्रित हैं !!!
जवाब देंहटाएंमिलते रहिए ऐसे ही। अरविंद जी बहुत मजेदार ब्लागीर हैं।
जवाब देंहटाएंगजब की बात है भाई , जहाँ मिले चार लोग वही हो गया ब्लोगर मिट ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया मिलन रहा! और उससे भी बढ़िया आपका उसके बारे में बयान करना!
जवाब देंहटाएंबधाई हो आप सबको
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंवाह! ये भी खूब रही
जवाब देंहटाएंवर्णन भी रोचक
बी एस पाबला
मजा आ गया आपका ब्लॉगर मिलन पढ़कर ..
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंब्लोगर मिलन की कथा रोचक लगी
जवाब देंहटाएंऐसे बनता है सन्जोग
ब्लॉगरों मे ऐसे ही सौहार्द बना रहे!
जवाब देंहटाएंवाह जी बल्ले बल्ले
जवाब देंहटाएंललित भाई, ताऊ पहेली के विजेता बनने पर हार्दिक शुभकामनाएं!!!
जवाब देंहटाएंछोटी सी यात्रा और छोटी सी भेंट को इतना सुन्दर ललित शर्मा ही बना सकते हैं.आपको बहुत-बहुत धन्यवाद और शुभकामनायें. कृपया होली के अवसर पर पधारकर पुनः क्रुतार्थ करें.
जवाब देंहटाएंआपका यह मिलन बहुत ही रोचक और उसका प्रदर्शन उससे भी रोचक लगा । मैं आपसे पहली बार होली के अअअवसर पर भिलाई में मिला था । आपका कुछ देर का सानिध्य भी हमें काफी रोमांचित करता है कि हम आप जैसे वरिष्ट अनुभवी ब्लागर से मिले । आपका पुन: सानिध्य प्राप्त हो ऐसी आशा हम करते है ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया रहा ब्लॉगर मिलन!!
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